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शनिवार, 18 नवंबर 2017

शाबर मंत्र साधना नियम

आज मैं सभी शाबर मंत्रों के साधको को वो नियम बताता हू जिनके कारण उनकी साधना सफल असफल होती है।
कुछ साधको को शाबर तंत्र के प्राथमिक व अनिवार्य नियमों के विषय में पता ही नही होता और वे शुरू कर देते है साधना करना बिल्कुल वैसे ही कि बिच्छू का मन्त्र पता नही और सांप के बिल में हाथ डालना और नतीजा ये रहता है कि साधना सफल नही होती और फिर साधक मन्त्र शक्ति पर शंका करने लगता हैं। और साथ ही साधक का आत्मविश्वास भी टूटता है। आप जब मुझसे जुड़े हो तो मैं यही चाहता हूँ कि आप किसी भी तरह शाबर मंत्र साधना के नियम से वंचित रहे और साधना की सिद्धि में असफलता हाथ लगें।



1.  शाबर तंत्र का पहला नियम है कि ये एक गुप्त विद्या है और शुरू से ही गुरु शिष्य के बीच केवल मौखिक रूप में ही विद्यमान रहती थीं। इसलिये इसके बारे मे आप केवल अपने गुरू के अलावा किसी अन्य को अपनी साधना या साधना के दौरान होनी वाली अनुभूतियों को किसी अन्य को न बताये
चाहे वो कोई हो चाहे कुछ हो सपने तक किसी को नही बताये
यदि ऐसा किया जाता है तो जो अनुभूति मिल रही है वो बन्द हो सकती है साधना असफल हो सकती है और उग्र देव की साधना मे प्राण तक जाने का खतरा होता है और मानसिक विकृति भी सम्भव है इसलियें किसी से भी कुछ शेयर न करे सिवाय गुरू के।

2.  दूसरा नियम गुरू द्वारा प्रदान किये गये मंत्रो को ही सिद्ध करने की कोशिश करे। अगर अभी तक आपने कोई गुरु धारण नही किया है, और आप शाबर मंत्र साधना करना चाहते है तो आप शाबर मंत्र भाग 1 देख सकते हैं उसमें अनुभूत और प्रमाणिक विधि दी गयी है बिना गुरु के मन्त्र साधना करने की।

3.  शाबर मंत्र साधना को किसी भी धर्म, जाति, वर्ण, आयु का पुरुष या स्त्री कोई भी कर सकता है। शाबर मन्त्र साधना में जाति या धर्म का कोई बंधन नही माना जाता है और फिर आज शबर मन्त्रो में ही हमें सब धर्मो का नाम एक ही साथ देखने को मिलता हैं | कोई भी व्यक्ति जो शाबर मन्त्रो पर विश्वास, निष्ठा, लगन रखता है, देवी देवताओं पर विश्वास रखता है वह ये साधनायें कर सकता है |


4.  शाबर मन्त्रों की साधना में गुरु की इतनी आवश्यकता नहीं रहती, क्योंकि इनके प्रवर्तक स्वयं सिद्ध साधक, तांत्रिक , भक्त रहे हैं। तथा इनका निर्माण भी आमजन, साधारण व्यक्ति के हितों को ध्यान में रखकर ही किया गया था | जिससे की कोई भी इनका उपयोग करके अपना मनोरथ सिद्ध कर सके व अपनी परेशानीयों का हल कर सके |


5.  शाबर मन्त्र साधना में वैसे तो गुरु का कोई मुख्य महत्व नहीं होता क्योंकि लगन, विश्वास, दृढ़ता, पवित्रता आदि ही मुख्य गुर हैं, जो आपको साधना में सफलता तक ले जाती हैं फिर भी अगर कोई निष्ठावान् साधक गुरु बन जाए, तो कोई आपत्ति नहीं क्योंकि वह किसी होनेवाले नुकसान से वह बचा सकता है। तथा हमारा उचित मार्गदर्शन कर सकता हैं | शाबर मन्त्र साधना के अतिरिक्त साधनाओ में गुरु का तात्पर्य एक ऐसे व्यक्ति से है जो आपको भी जानता है और देवताओं को भी जानता है| वह साधना के मार्ग पर चला है इसलिये आपको वह मार्ग बता सकता है | मंत्र साधनाओं से शरीर में उर्जा का संचार होने लगता है, और इस उर्जा को सही दिशा में ले जाना जरूरी होता है जो केवल और केवल गुरु ही कर सकता है | गुरु भी पहले शिष्य होता है, वह अपने गुरु के सानिध्य में साधना कर गुरुत्व को प्राप्त होता है |

6. साधना काल मे यानि जितने दिन साधना करनी है उतने दिन ब्रह्मचर्य रखे शारीरिक सम्बंध न बनाये (अत्यधिक महत्वपूर्ण हो तब एक आध बार मे कोई परेशानी नहीं), मानसिक ब्रह्मचर्य के टूटने की चिंता नही करे इस पर किसी का वश नही है जैसे नाइट फॉल आदि।

7. साधना के दौरान कमरे मे पंखा कूलर न चलाये ये तीव्र आवाज करते है जिनसे ध्यान भंग होता है। एसी रूम मे बैठ सकते है या पंखा बहुत स्लो करके बैठे। सबसे अच्छा यही है कि पंखा न चलाये क्योकि साधना के दौरान होने वाली आवाज या किसी भी प्रकार की हलचल को अाप पंखे की आवाज मे सुन नही पाते हो और साथ ही मन्त्र जप पूर्ण होने से पहले ही दीपक बुझने का खतरा होता है।

8.  कमरे मे आप बल्ब भी बन्द रखे क्योकि ये पराशक्तियॉ सूक्ष्म होती है इने तीव्र प्रकाश से प्रत्यक्ष होने मे दिक्कत होती है।
9. जप से पहले जिस की साधना कर रहे हो उसे संकल्प लेते समय जिस रूप यानि मॉ बहन पत्नी दोस्त दास रक्षक जिस रूप मे करे उसका स्पष्ट उल्लेख करे ताकि देवता को कोई दिक्कत न हो और वो पहले दिन से आपको खुलकर अनुभूति करा सके।

10. जाप के समय ध्यान मंत्र की ध्वनि पर या नाभि, आज्ञाचक्र पर ऱखे। कमरे मे होने वाली उठापटक या किसी भी तरह की आवाज की तरफ ध्यान नही दे।

11. कोई भी उग्र साधना करने पर सबसे पहले रक्षा मंत्रो द्वारा अपने चारो और एक घेरा खींच ले और शरीर रक्षा मन्त्र या सुरक्षा कवच का भी जप करें।

12. कवच चाकू , लोहे की कील , पानी , आदि से अपने चारो और मंत्र पढते हुये घेरा खीचे।

13. जाप के बाद भूलचूक, किसी प्रकार की भौतिक वस्तु की कमी, अपराधो के लिये क्षमा अवश्य माँगे।

14. जाप के बाद उठते समय एक चम्मच पानी आसन के कोने के नीचे गिराकर उस पानी को माथे से अवश्य लगाये इससे जाप सफल रहता है।

15. देवता प्रत्यक्षीकरण साधना के दौरान भय न करे। ये शक्तियाँ डरावने रूपो मे नही आते अप्सरा यक्ष यक्षिणी परी गन्धर्व विधाधर जिन्न आदि के रूप डरावने नही है मनुष्यो जैसे है आप इनकी साधना निर्भय होकर करे।

16. यक्षिणी जिस रूप मे सिद्ध की जाती है उस रूप को थोडी दिक्कत रहती है लेकिन ये उने मारती नही है डरावने रूप भी नही दिखाती कुछ यक्षिणी कोई भी कष्ट नही देती
अतएव आप निर्भय होकर इनकी साधना कर सकते है।

17.  सबसे जरूरी बात जो भी साधना सिद्ध होती है या सफल होती है तो पहले या दूसरे दिन प्रकृति मे कुछ हलचल हो जाती है यानि कुछ सुनायी देता है या कुछ दिखायी देता है या कुछ महसूस होता है यदि ऐसा न हो तो साधना बन्द कर दो वो सफल नही होगी लम्बी साधना जैसे 40 या 60 दिनो वाली साधना मे सात दिन मे अनुभूति होनी चाहिये

18. साधना के लिये आप जिस कमरे का चुनाव करे उसमे साधना काल तक आपके सिवा कोई भी दूसरा प्रवेश नही करे
कमरे मे कोई आये जाये ना सिवाय तुम्हारे।

19. साधना काल मे लगने वाली सूखी सामग्री का पूरा इंतजाम करके बैठे।

20. फल फूल मिठाई हमेशा प्रतिदिन ताजे प्रयोग करे।

21. पूरी श्रद्धा विश्वास एकाग्रता से साधना करे ये सफलता की कुंजी हैं।

22. ये पराशक्तियॉ प्रेम की भाषा समझती हैं इसलिये आप जिस भाषा का ज्ञान रखते है इनकी उसी भाषा मे पूजन ध्यान प्रार्थना करे इने संस्कृत या हिन्दी या अंग्रेजी से कोई मतलब नही है अगर आप गुजराती हो तो आप पूरा पूजन गुजराती मे कर सकते है अगर आप मराठी हो तो पूरा पूजन मराठी मे कर सकते हो कोई दिक्कत नही होगी।

23. मन्त्र के देवता महान शक्तियॉ है इसलिये हमेशा इनसे सम्मान सूचक शब्दो मे बात करे।

24. साधना कोई वैज्ञानिक तकनीक नही है जैसा आप लोगो को बताया जा रहा है अगर ऐसा होता तो अब तक भूत प्रेत का अस्तित्व वैज्ञानिक साबित कर चुके होते, ये एक जीवित शक्तियो की साधना है जिसमे देवता का आना ना आन उस देव पर भी निर्भर करता है कि आपसे वो कितना खुश है।

25. ऐसा कभी नही होगा कि कोई भी 11 दिन 21 माला का जाप बिना श्रद्धा विश्वास कर दे और अप्सरा, जिन्न, भूत प्रेत, देवी देवता आदि उसके समक्ष आकर खडी हो जाये।

26. मंत्रो की ध्वनि का जीवित व्यक्ति के श्रद्धा विश्वास जाप करने पर ही वातावरण मे प्रभाव होता है, ऐसा नही है कि 108 टेपरिकार्ड गायत्री मंत्र के चलाये जाये और माँ गायत्री उन टेपरिकार्ड को वरदान देने आ जाये अगर ये ध्वनि से उतपन्न होती तो अवश्य आती, मगर ये शक्तियां भाव, श्रद्धा, सेवा से खुश होकर ही आती है या अपना होने का अहसास कराती है।
आशा करता हूँ कि यह लेख आपके लिए बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। 
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घर में धन वृद्धि और बरकत, सुख शांति व अन्य परेशानियों के लिए सरल टोटके

घर में धन वृद्धि और बरकत, सुख शांति व अन्य परेशानियों के लिए 
सरल टोटके 

  • आपका खर्चा बढ़ा हुआ है या आपकी अपने रिश्तेदारों से नहीं बनती हैं तो रसोईघर में बैठकर खाना खाएं 
  • आपको नींद नहीं आ रही है, मन परेशान है तो रात को सोते समय पलंग के नीचे या सिरहाने एक लोटे में पानी भरकर रखें और फिर बाद में अगले दिन घर के मुख्‍य द्वार के आधा दाएं एवं आधा बाएं डाल दें। ऐसा करने से परेशानियों से मुक्ति मिल जाएगी। 
  • रात को सोते समय पलंग के नीचे या सिरहाने में एक लोटे में जल भरकर रखें और अगले दिन गमलों या क्‍यारियों में डाल देंगे तो अकारण झगड़े, अपमान, रोग, झूठा आरोप आदि से बचाव होगा | 
  • जब भी आपको शमशान में जाने का अवसर मिले तो वहां दूजों की नजर बचारक एक दो रुपए गिरा दें, ऐसा करने से दैविय सहायता मिलती है या यूं कह लीजिए कि अचानक आपदा आ जाने पर बचाव हो जाता है | 

  • बुधवार को पहले किन्नरों को कुछ पैसे दान दे फिर कुछ पैसे उनसे उनके पास से आशीर्वाद के रूप में ले ले | उन पैसो को पूजा के स्थान पर रखकर धुप बत्ती दिखाए और हरे कपडे में लपेटकर धन वाले स्थान पर रख दे | 
  • एक कमल पर बैठी हुई लक्ष्मी जी की फोटो लाये जिसमे दो हाथी सुँढ़ उठाकर हो उसे अपनी तिजोरी के दरवाजे पर ऊपर की तरफ चिपका दे , घर में बरकत होने लगेगी | 
  •  साईं जी की 9 परिक्रमा करे अपनी आवश्यकता को मन में दोहराए , गुलाब की अगरबती जलाये , श्वेत वस्त्र पहन कर करें . लाभ होगा | 
  • घर मे क्लेश का वातावरण अचानक से हो जाए तो थोडा नमक ले कर उसे अपने कंधे पर रख कर उत्तर दिशा की तरफ मुख कर 11 बार निम्न मंत्र का उच्चारण करे | “ ॐ उत्तराय सर्व बाधा निवारणाय फट्” उस नमक को फिर हाथ मे ले कर घर के बाहर थोडी दूर कही रख दे तो घर मे क्लेश का वातावरण दूर होता है | 
  • 11 पीपल के पत्तो को गंगाजल से धोकर 7 मंगलवार 7 बार राम लाल चन्दन से लिखकर हनुमान जी को चढ़ाएं |
  •  शुक्ल पक्ष के पहले बुधवार को सफेद कपडे के झंडे को पीपल के वृक्ष पर लगायें |  
  • पति से कहे कि पायल शुक्रवार को खरीद कर आपको गिफ्ट करे सलिल के कपडे पर रखकर लक्ष्मी जी के सामने 5 बार उन पर केसर का तिलक करे और माँ से प्रार्थना करे कि माँ धन आये, श्री सूक्त का पाठ करें , 15 मिनट बाद वो पायल पहन ले , जब भी पूजा-पाठ करे दो बार उस पायल को छनका ले और खुशियों कि प्रार्थना करें | यह प्रयोग महिलाओं के द्वारा किया जाना चाहिए | 
  • चांदी कि बांसुरी को लाल साटन (सूती) कपडे में बांधकर लक्ष्मी जी कि तरह पूजा करे फिर लक्ष्मी जी की पूजा करे फिर श्री सूक्त का पथ करे फिर थोड़ी देर के बाद बांसुरी को उठाकर धन वाले स्थान पर रख दे | 
  •  अपनी खुराक या भोजन की थाली से तीन कौर (निवाले) या श्रद्धानुसार भोजन जो देना चाहें गाय, कौए एवं कुत्ते के लिए निकाल कर अलग रख दें | ये दान आपको जीवन में आने वाली समस्‍याओं से मुक्‍त करके सुख-शान्ति, बरकत, धन, सन्‍तान सुख आदि से परिपूर्ण करेगा। इसे आजीवन भी कर सकते हैं | 
  •  चौका प्रारम्‍भ करते समय या सर्वप्रथम गैस जलाकर तवा गर्म करें और फिर उस पर पानी का छींटा मारें, पानी उड़ जाएगा और फिर उस पर तीन रोटी गाय, कौए एवं कुत्ते के‍ लिए बनाकर उनको खाने को दें | गाय की रोटी घर में बरकत व शान्ति लाती है, कौवे की रोटी धन वृद्धि करती है और कुत्ते की रोटी सन्‍तान की समस्‍याएं दूर करके सन्‍तान की उन्‍नति व उसके सुख में वृद्धि करती है | इसे आजीवन भी कर सकते हैं |

रविवार, 15 अक्तूबर 2017

दीपावली पूजन




















भारत के सबसे बड़े त्योहारों में से दिवाली एक है। कार्तिक मास की अमावस्या को दिवाली का त्योहार बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। इस साल दीपावली 19 अक्टूबर 2017 को मनायी जाएगी। दिवाली के त्योहार पर रोशनी का अपना एक अलग ही महत्व रहता है। रोशनी के लिए पारंपरिक तरीकों में दीयों को सबसे ज्यादा तवज्जो दी जाती है। दिवाली के त्योहार पर घर को दीयों से जगमग कर दिया जाता है।
इस दिवाली पर गुरु चित्रा योग का संयोग बन रहा है, जो कि महालक्ष्मी काे प्रसन्न करने के लिए पूजा-पाठ से लेकर घर की सजावट के लिए बाजार से हर प्रकार की खरीदारी करने के लिए शुभ है। नक्षत्र मेखला की गणना के अनुसार ऐसा संयोग आगे 4 साल बाद 2021 में बनेगा। 1990 में गुरुवार के दिन चित्रा नक्षत्र में जब दिवाली आई थी तब यह संयोग बना था। यह दिवाली इसलिए भी खास होगी क्योंकि इस रोज 7 चौघडि़ए, एक अभिजित मुहूर्त और दो लग्न मिलाकर दिन से रात तक खरीदी से लेकर लक्ष्मी, गणेश कुबेर की पूजा के ल वैसे तो दिवाली से पहले 13 अक्टूबर को पुष्य नक्षत्र और इसके बाद 17 अक्टूबर को धनतेरस पर भी लोगों को जमकर खरीदारी करने का मौका मिलेगा। लेकिन ज्योतिष के मान से गुरु चित्रा योग में पूजा खरीदी खास ही नहीं बल्कि चीर स्थाई काल तक लाभ देने वाली मानी जाती है। इसलिए लोग इस योग भी लाभ ले सकते हैं। 19 अक्टूबर को सुबह 7.25 बजे तक हस्त्र नक्षत्र रहेगा। इसके बाद चित्रा नक्षत्र लगने के साथ गुरु चित्रा योग शुरू हाे जाएगा जो कि अगले 24 घंटे तक रहेगा।

दिवाली पर अधिकांश लोग शाम के वक्त प्रदोषकाल में महालक्ष्मी की पूजा करते हैं। इस बार शाम 5.54 से रात 8.26 बजे तक 2.20 घंटे का प्रदोषकाल रहेगा। इस दौरान लोग धन, सुख-समृद्धि की कामना से लक्ष्मी, गणेश कुबेर का पूजन कर सेकेंगे। इस बार एक और खास बात यह भी है कि दिवाली पर लक्ष्मी की विशेष पूजा के लिए 12 साल के बाद चतुर्ग्रही योग का संयोग भी बन रहा है। जाे कि रात 8 बजे के बाद शुरू होगा।
अमावस्या तिथि, गुरुवार का दिन और चित्रा नक्षत्र इन तीनों के एक साथ होने का योग बहुत कम बनता है। ज्योतिष में गुरु को सोना, भूमि, कृषि आदि का कारक ग्रह माना जाता है। जबकि चित्रा नक्षत्र चांदी, वस्त्र, वाहन और इलेक्ट्रॉनिक चीजों के लिए खास शुक्र की राशि वाला यह नक्षत्र समृद्धि का कारक है। गुरु, शुक्र के साथ नक्षत्र का संचार लाभप्रद रहेगा।
दीपावली पर ये सात चौघडि़ए
एक अभिजीत मुहूर्त और दो लग्न

सुबह 6.30 से 8 बजे तक शुभ
सुबह 11 से 12.30 बजे तक चर
दोपहर 12.30 से 2 बजे तक लाभ
दोपहर 2 से 3.30 बजे तक अमृत
शाम 5 से 6.30 बजे तक शुभ
शाम 6.30 से रात 8 बजे तक अमृत
रात 8 से रात 9.30 बजे तक चर
दिन के 11 से 12.30 बजे तक अभिजित मुहूर्त
शाम 7.36 से 9.27 तक वृषभ लग्न
रात 2.4 से 4.10 तक सिंह लग्न

दिवाली पूजन शुभ मुहूर्त
मुख्यतः तीन कालो में वर्गीकृत किया जाता है । जिसमे श्रीगणेश व लक्ष्मी पूजन के लिए सबसे बढ़िया मुहूर्त का समय प्रदोष काल को ही माना जाता है । प्रदोष काल के अलावा
महानिशिता काल मुहूर्त और चौघड़िया पूजा मुहूर्त भी होता है। आइये तीनो काल के शुभ मुहूर्त के बारे में जाने —

दीवाली लक्ष्मी पूजा प्रदोष काल शुभ मुहूर्त
समय = 7:11PMसे 8:16PM
अवधि = 1 घण्टा 5 मिनट्स
प्रदोष काल = 5:43PM से 8:16PM
वृषभ काल = 7:11PM से 9:06PM
अमावस्या तिथि प्रारम्भ = 19.10.2017 को 12:13 AM बजे
अमावस्या तिथि समाप्त = 20.10.2017 को 12:41AM बजे



दीवाली लक्ष्मी पूजा महानिशिता काल शुभ मुहूर्त
समय = 23:40 से 24:31+ (20.10.2017 को 00:31) *(स्थिर लग्न के बिना)
अवधि = 0 घण्टे 51 मिनट्स
महानिशिता काल = 23:40 से 24:31+ (20.10.2017 को 00:31)
सिंह काल = 25:41+ (20.10.2017 को 01:41) से 27:59+ (20.10.2017 को 03:59)



दीवाली लक्ष्मी पूजा चौघड़िया शुभ मुहूर्त
प्रातःकाल मुहूर्त (चर, लाभ, अमृत) = 06:28AM – 07:53AM
अपराह्न मुहूर्त (शुभ) = 04:19 PM– 08:55 PM
सायंकाल मुहूर्त (शुभ, अमृत, चर) = 12:06 AM– 12:41 AM


गृहस्थ और व्यापारी वर्ग के लोगो के लिए लक्ष्मी पूजा को प्रदोष काल के दौरान ही किया जाना शुभ माना जाता है जो कि सूर्यास्त के बाद प्रारम्भ होता है और लगभग 1 घण्टे 05 मिनट तक रहता है ।


महानिशिता काल तांत्रिक समुदायों और पण्डितों के लिए होता है । महानिशीता काल में मुख्यतः तांत्रिक कार्य, ज्योतिषविद, वेद् आरम्भ, कर्मकाण्ड, अघोरी, यंत्र-मंत्र-तंत्र सिद्धि साधना कार्य व विभिन्न शक्तियों का पूजन करते हैं एवं शक्तियों का आवाहन करना, मन्त्र शक्ति जागृत करना, मंत्रो को जगाना आदि शुभ रहता है।

लक्ष्मी पूजा को करने के लिए चौघड़िया मुहूर्त विशेषकर व्यापारी समुदाय के लिए और यात्रा के लिए उपयुक्त होता है । अतः इस विशेष कल में व्यापारी वर्ग को चाहिए की धन लक्ष्मी का आहवाहन एवं पूजन, गल्ले की पूजा तथा हवन इत्यादि कार्य सम्पूर्ण करें।


लक्ष्मी पूजन सामग्री
यहाँ पर बताई जा रही पूजन आदि की सामग्री की कोई बाध्यता नहीं है, आप अपने श्रद्धा और आर्थिक स्तिथि के अनुसार पूजन सामग्री का चयन कर सकते है । क्योंकि भगवान सच्ची भक्ति और भाव के भूखे है न की आप के द्वारा चढ़ाये जाने वाले पूजन सामग्री के…
1. लक्ष्मी व श्री गणेश की मूर्तियां (बैठी हुई मुद्रा में) अथवा चित्र।
2. देवी देवताओ के लिए लाल सूति आसन और वस्त्र, वस्त्र लाल अथवा पीले रंग का होना उत्तम रहता है।
3. केशर, रोली-मौली(कलावा), चावल, पान, सुपारी, फल – फूल, दूध, खील, बताशे, सिंदूर, शहद, सिक्के, लौंग।
4. सूखे मेवे, मिठाई, दही, गंगाजल, धूप, अगरबत्ती, 11 दीपक
5. रूई तथा नारियल और मिट्टी अथवा तांबे का कलश रखना उत्तम है।


दीवाली पूजन विधि
सबसे पहले पूजा स्थल की साफ सफाई कर ले । इसके बाद अपने आपको तथा आसन को, पूजन सामग्रियों को इस मंत्र से शुद्धिकरण के लिए इस मंत्र का जाप करे –


“ऊं अपवित्र : पवित्रोवा सर्वावस्थां गतोऽपिवा।
य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तर: शुचि :॥”

पृथ्विति मंत्रस्य मेरुपृष्ठः ग षिः सुतलं छन्दः
कूर्मोदेवता आसने विनियोगः॥

इन मंत्रों से अपने ऊपर तथा आसन पर 3-3 बार कुशा या पुष्पादि से छींटें लगायें फिर आचमन करें –पुष्प, चम्मच या अंजुलि से एक बूंद पानी अपने मुंह में छोड़िए और बोलिए-
ॐ केशवाय नमः
और फिर एक बूंद पानी अपने मुंह में छोड़िए और बोलिए-
ॐ नारायणाय नमः
फिर एक तीसरी बूंद पानी की मुंह में छोड़िए और बोलिए-
ॐ वासुदेवाय नमः

फिर हाथ धोएं, पुन: आसन शुद्धि मंत्र बोलें-
ऊं पृथ्वी त्वयाधृता लोका देवि त्यवं विष्णुनाधृता।
त्वं च धारयमां देवि पवित्रं कुरु चासनम्॥

शुद्धि और आचमन के बाद चौकी सजाये चौकी पर माँ लक्ष्मी और गणेश की मूर्तियाँ विराजमान करे ।
मूर्तियों को विराजमान करने से पहले यह सुनश्चित अवश्य कर ले की मूर्तियों का मुख पूर्व या पश्चिम दिशा में हो और भगवान गणेश की मूर्ति माँ लक्ष्मी की बायीं ओर ही हो पूजनकर्ता का मुख मूर्तियों के सामने की तरफ हो।
अब कलश को माँ लक्ष्मी के सामने मुट्ठी भर चावलो के ऊपर स्थापित कर दे कलश के मुख पर रक्षा सूत्र बांध ले और चारो तरफ कलश पर रोली से स्वस्तिक या ॐ बना ले।
कलश के अंदर साबुत सुपारी, दूर्वा, फूल, सिक्का डालें ।
उसके ऊपर आम या अशोक के पत्ते रखने चाहिए उसके ऊपर नारियल, जिस पर लाल कपडा लपेट कर मोली लपेट दें।
अब नारियल को कलश पर रखें।
ध्यान रहे कि नारियल का मुख उस सिरे पर हो, जिस तरफ से वह पेड़ की टहनी से जुड़ा होता है।
कलश वरुण का प्रतीक है ।
इस प्रक्रिया के बाद गणेशजी की ओर त्रिशूल और माँ लक्ष्मीजी की ओर श्री का चिह्न बनाएँ उसके सामने चावल का ढेर लगाकर नौ ढेरियाँ बनाएँ ।
छोटी चौकी के सामने तीन थाली व जल भरकर कलश रखें ।
दो दिप को जलाये – एक घी की दीपक और दूसरें को तेल से भर कर और एक दीपक को चौकी के दाईं ओर और दूसरें को लक्ष्मी-गणेश की प्रतिमाओं के चरणों में रखें।
तीन थालियों में निम्न सामान रखें।


1. ग्यारह दीपक (पहली थाली में)
2. खील, बताशे, मिठाई, वस्त्र, आभूषण, चन्दन का लेप सिन्दूर कुंकुम, सुपारी, पान (दूसरी थाली में)
3. फूल, दुर्वा चावल, लौंग, इलायची, केसर-कपूर, हल्दी चूने का लेप, सुगंधित पदार्थ, धूप, अगरबत्ती, एक दीपक. (तीसरी थाली में)

इन थालियों के सामने पूजा करने वाला स्वंय बैठे। परिवार के अन्य सदस्य आपकी बाईं ओर बैठें। शेष सभी परिवार के सदस्यों के पीछे बैठे।
आप हाथ में अक्षत, पुष्प और जल ले लीजिए। कुछ द्रव्य (रुपये, पैसे 1, 2, 5, 11 आदि) भी ले लीजिए यह सब हाथ में लेकर संकल्प मंत्र का जाप करे ।

ऊं विष्णुर्विष्णुर्विष्णु:, ऊं तत्सदद्य श्री पुराणपुरुषोत्तमस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीय पराद्र्धे श्री श्वेतवाराहकल्पे सप्तमे वैवस्वतमन्वन्तरे,
अष्टाविंशतितमे कलियुगे, कलिप्रथम चरणे जम्बुद्वीपे भरतखण्डे आर्यावर्तान्तर्गत ब्रह्मवर्तैकदेशे पुण्य (अपने नगर/गांव का नाम लें) क्षेत्रे बौद्धावतारे वीर विक्रमादित्यनृपते : २०६७, तमेऽब्दे शोभन नाम संवत्सरे दक्षिणायने/उत्तरायणे हेमंत ऋतो महामंगल्यप्रदे मासानां मासोत्तमे कार्तिक मासे कृष्ण पक्षे अमावस तिथौ (जो वार हो) शुक्र वासरे स्वाति नक्षत्रे प्रीति योग नाग करणादिसत्सुशुभे योग (गोत्र का नाम लें) गोत्रोत्पन्नोऽहं अमुकनामा (अपना नाम लें) सकलपापक्षयपूर्वकं सर्वारिष्ट शांतिनिमित्तं सर्वमंगलकामनया– श्रुतिस्मृत्यो- क्तफलप्राप्तर्थं— निमित्त महागणपति नवग्रहप्रणव सहितं कुलदेवतानां पूजनसहितं स्थिर लक्ष्मी महालक्ष्मी देवी पूजन निमित्तं एतत्सर्वं शुभ-पूजोपचारविधि सम्पादयिष्ये।

अर्थात संकल्प कीजिए कि मैं अमुक व्यक्ति अमुक स्थान व समय पर अमुक देवी-देवता की पूजा करने जा रहा हूं जिससे मुझे शास्त्रोक्त फल प्राप्त हो।
सबसे पहले गणेश जी पूजन करे तब माँ लक्ष्मी का।

दिवाली गणपति पूजन विधि
हाथ में पुष्प और चावल का अक्षत लेकर गणपति का ध्यान करें।
मंत्र पढ़ें-
गजाननम्भूतगणादिसेवितं कपित्थ जम्बू फलचारुभक्षणम्।
उमासुतं शोक विनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपंकजम्।
आवाहन: ऊं गं गणपतये इहागच्छ इह तिष्ठ।।

इतना कहकर पात्र में अक्षत छोड़ें।

अर्घा में जल लेकर बोलें-
एतानि पाद्याद्याचमनीय-स्नानीयं, पुनराचमनीयम् ऊं गं गणपतये नम:।

रक्त चंदन लगाएं –
इदम रक्त चंदनम् लेपनम् ऊं गं गणपतये नम:

सिन्दूर चढ़ाएं –
इदं सिन्दूराभरणं लेपनम् ऊं गं गणपतये नम:
दुर्वा और विल्बपत्र भी गणेश जी को चढ़ाएं।

गणेश जी को वस्त्र पहनाएं –
इदं रक्त वस्त्रं ऊं गं गणपतये समर्पयामि।

पूजन के बाद गणेश जी को प्रसाद अर्पित करें-
इदं नानाविधि नैवेद्यानि ऊं गं गणपतये समर्पयामि:।

इसी प्रकार से अन्य सभी देवताओं की पूजा करें। जिस देवता की पूजा करनी हो गणेश के स्थान पर उस देवता का नाम लें।

दिवाली लक्ष्मी पूजन विधि
सबसे पहले माता लक्ष्मी का ध्यान करे-ं

ॐ या सा पद्मासनस्था, विपुल-कटि-तटी, पद्म-दलायताक्षी।
गम्भीरावर्त-नाभिः, स्तन-भर-नमिता, शुभ्र-वस्त्रोत्तरीया।।
लक्ष्मी दिव्यैर्गजेन्द्रैः। मणि-गज-खचितैः, स्नापिता हेम-कुम्भैः।
नित्यं सा पद्म-हस्ता, मम वसतु गृहे, सर्व-मांगल्य-युक्ता।।

इसके बाद लक्ष्मी देवी की प्रतिष्ठा (स्थापित) करें। हाथ में अक्षत लेकर बोले-ं
“ॐ भूर्भुवः स्वः महालक्ष्मी, इहागच्छ इह तिष्ठ, एतानि पाद्याद्याचमनीय-स्नानीयं, पुनराचमनीयम्।”

-प्रतिष्ठा के बाद स्नान कराएं :
ॐ मन्दाकिन्या समानीतैः, हेमाम्भोरुह-वासितैः स्नानं कुरुष्व देवेशि, सलिलं च सुगन्धिभिः।। ॐ लक्ष्म्यै नमः।।


रक्त चंदन लगाए-
इदं रक्त चंदनम् लेपनम् ।

इदं सिन्दूराभरणं से सिन्दूर लगाएं।
‘ॐ मन्दार-पारिजाताद्यैः, अनेकैः कुसुमैः शुभैः। पूजयामि शिवे, भक्तया, कमलायै नमो नमः।। ॐ लक्ष्म्यै नमः, पुष्पाणि समर्पयामि।’
इस मंत्र से पुष्प चढ़ाएं फिर माला पहनाएं।

अब लक्ष्मी देवी को इदं रक्त वस्त्र समर्पयामि कहकर लाल वस्त्र पहनाएं।
लक्ष्मी देवी की पूजा के बाद भगवान विष्णु एवं शिव जी पूजा करनी चाहिए फिर गल्ले की पूजा करें।

लक्ष्मी पूजा के समय लक्ष्मी मंत्र का उच्चारण करते रहें –
इस मंत्र का कम से कम 11 माला कमलगट्टे की माला से जप करें और अधिक आपके सामर्थ्यानुसार 51, 108, 11, 121 माला जपें
मन्त्र
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नम:


पूजन के पश्चात सपरिवार आरती और क्षमा प्रार्थना करें-

क्षमा प्रार्थना
न मंत्रं नोयंत्रं तदपिच नजाने स्तुतिमहो
न चाह्वानं ध्यानं तदपिच नजाने स्तुतिकथाः ।
नजाने मुद्रास्ते तदपिच नजाने विलपनं
परं जाने मातस्त्व दनुसरणं क्लेशहरणं



दीपक कहाँ रखने चाहिए
वैसे तो अपनी श्रद्धा के अनुसार दीपक जलाकर रखे जा सकते है लेकिन कुछ जगह दीपक जलाकर अवश्य रखने चाहिए ,जो इस प्रकार है :

— घी का दीपक इष्ट देव के यहाँ जहाँ रोज पूजा करते है।

— एक दीपक तुलसी के तले।

— घर के मुख्य द्वार पर दोनों तरफ एक एक ।

— एक दीपक घर के दक्षिणी पश्चिमी कोने पर।

— एक दीपक रसोई घर में।

— एक दीपक मटकी वाले परिन्डे पर(जल के जल/पानी स्रोतों पर)

— एक दीपक पास में यदि कोई मंदिर है तो वहाँ।

— एक दीपक पीपल के पेड़ के नीचे।


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रविवार, 17 सितंबर 2017

नवरात्रि शुद्ध पूजन विधि




माँ नवदुर्गा को इस बार प्रसन्न कीजिये उचित व शुद्ध पूजन विधि के द्वारा।
विधि की ईबुक तैयार हो गई है जो कि आप यहाँ से निःशुल्क या स्वेच्छा से डाऊनलोड कर सकते हैं
माँ दुर्गा आपकी समस्त प्रकार से रक्षा करें, समस्त पापों का विनाश करें, समस्त दुखों का विनाश करें, व आपकी झोली खुशियों से भर दे।


घटस्थापना का शुभ मुहूर्त

जिन घरों में नवरात्रि पर घट-स्थापना होती है उनके लिए शुभ मुहूर्त 21 सितंबर को सुबह 06 बजकर 03 मिनट से लेकर 08 बजकर 22 मिनट तक का है। इस दौरान घट स्थापना करना अच्छा होता है।


किसी भी वक्त कलश स्थापित कर सकता है

वैसे नवरात्र के प्रारंभ से ही अच्छा वक्त शुरू हो जाता है इसलिए अगर जातक शुभ मुहूर्त में घट स्थापना नहीं कर पाता है तो वो पूरे दिन किसी भी वक्त कलश स्थापित कर सकता है क्योंकि मां दुर्गा कभी भी अपने भक्तों का बुरा नहीं करती हैं।
  • अभिजीत मुर्हूत 11.36 से 12.24 बजे तक है।
  • देवी बोधन 26 सितंबर मंगलवार को होगा। 
  • बांग्ला पूजा पद्धति को मानने वाले पंडालों में उसी दिन पट खुल जाएंगे। 
  • जबकि 27 सितंबर सप्तमी तिथि को सुबह 9.40 बजे से देर शाम तक माता रानी के पट खुलने का शुभ मुहूर्त है।
नवरात्र में मां के 9 रूपों की पूजा होती है...

  • 21 सितंबर 2017 : मां शैलपुत्री की पूजा 
  • 22 सितंबर 2017 : मां ब्रह्मचारिणी की पूजा 
  • 23 सितंबर 2017 : मां चन्द्रघंटा की पूजा 
  • 24 सितंबर 2017 : मां कूष्मांडा की पूजा 
  • 25 सितंबर 2017 : मां स्कंदमाता की पूजा 
  • 26 सितंबर 2017 : मां कात्यायनी की पूजा 
  • 27 सितंबर 2017 : मां कालरात्रि की पूजा 
  • 28 सितंबर 2017 : मां महागौरी की पूजा 
  • 29 सितंबर 2017 : मां सिद्धदात्री की पूजा
  • 30 सितंबर 2017: दशमी तिथि, दशहरा


बुधवार, 13 सितंबर 2017

सर्व कार्य सिद्धि के लिये शाबर मंत्र

यदि आप शाबर मंत्र साधना में सफलता प्राप्त करना चाहते हैं  और आप चाहते हैं कि आपको  हर शाबर मंत्र सिद्ध करने पर  सफलता निश्चित ही रूप से प्राप्त हो तो  आज मैं आपके सामने एक ऐसा ही  सर्व कार्य सिद्धि  साबर मंत्रों को पेश कर रहा हूं और यह शाबर मंत्र हर प्रकार की शाबर साधना मे सफलता प्राप्त करने के लिये और साथ ही घर में सुख शांति का माहौल बनाने के लिए बहुत ही अच्छा वह अनेकों बार आजमाया गया प्रयोग है आप भी इसको अपनाएं और फायदा उठाएं।



इस मंत्र को सिद्ध करने के लिए तीन माला 11 दिन तक लगातार जपने से मंत्र सिद्ध हो जायेगा सिद्ध होने के पश्चात इसका प्रयोग करें।


॥ॐ नमो आदेश गुुरु को


 नमो देवी सर्वकार्य सिद्धकरणी 


जो पाती पूरेब्रह्म, विष्णु, महेश तीनों देवतन 


मेरी भक्तिगुरु की शक्ति।

चल शब्द मन्त्र की तान

तू ना चले तो गुरु गोरख की आन।।


मंत्र का प्रयोग करने के लिए पहले मंत्र का सिद्ध होना आवश्यक है और जब मंत्र आप सिद्ध कर लेते हैं और इसके पश्चात ही आप इसका प्रयोग करें जो कि इस तरह से हैं :

1. जब कभी भी आप किसी भी शाबर मंत्र की साधना करते हैं तो आप गुरु गणेश पूजन के बाद सबसे पहले उपरोक्त इस मंत्र की माला एक जप करें और उसके पश्चात आप जिस मंत्र को सिद्ध करना चाहते हैं उसे जपना शुरु करें।
जब उस मंत्र का जप पूरा हो जाए पश्चात उसके पुनः इसी मंत्र का एक माला जाप और करें। साधना चाहे एक दिवसीय3, 5, 11 हो अथवा अधिक दिवसीय आपको यह प्रयोग जब तक मंत्र की साधना की जाती है तब तक इसका प्रयोग करते रहना है ऐसा करने से मंत्र की सिद्धि निश्चित है।

2. दूसरा प्रयोग इसका इस तरह से है कि यदि आपके घर में परेशानी का माहौल है आपके कोई भी कार्य नहीं बन रहे हैं चाहे वह रिश्ते-नाते की बात को आपसी विचार हो रोजगार की समस्या हो घरेलू या तंत्र की समस्या हो उन सभी समस्याओं से ईसी एक मंत्र से निजात पाई जा सकती है उसके लिए पहले तो यह मंत्र होली दिवाली ग्रहण दशहरा नवरात्रि शिवरात्रि आदि महा पर्व से शुरू करें और 11 दिन तक रोज तीन माला जप कर इसे सिद्ध करें।
सिद्ध होने के पश्चात रोज प्रातः व् साँय कालीन पूजा के समय कम से कम 21 बार किया ज्यादा से ज्यादा एक माला का जाप रोज करें ऐसा करने से आपकी सभी बातें दूर हो जाएगी

मंगलवार, 12 सितंबर 2017

शाबर मन्त्रो की उत्पत्ति

‘साबर’ या “शबर” शब्द का पर्यायवाची अर्थ ग्रामीण, अपरिष्कृत, असभ्य आदि होता है | ‘साबर-तन्त्र’ – तन्त्र की ग्राम्य (ग्रामीण) शाखा है | इसके प्रवर्तक भगवान् शंकर स्वयं प्रत्यक्षतया नहीं है, किन्तु जिन सिद्ध-साधको ने इसका आविष्कार किया, वे जरुर परम-शिव-भक्त अवश्य थे | गुरु गोरखनाथ तथा गुरु मछिन्दर नाथ ‘साबर-मन्त्र’ के जनक माने जाते हैं | तथा गोरखनाथ जी ही मुख्यतः शाबर मन्त्रो के प्रचारक माने जाते है | वे   अपने तपोबल से वे भगवान् शंकर के समान पूज्य माने जाते हैं | अपनी साधना के कारण वे मन्त्र-प्रवर्तक ऋषियों के समान विश्वास और श्रद्धा के पात्र हैं | ‘सिद्ध’ और ‘नाथ’ सम्प्रदायों ने मिलकर परम्परागत मन्त्रों के मूल सिद्धान्तों को लेकर आम बोल-चाल की भाषा को अटपटे स्वरूप देकर उन शब्दों को शाबर मन्त्रो का दर्जा दिया गया |
‘साबर’-मन्त्रों में ‘दुहाई’, ‘गाली’, ‘आन’ और ‘शाप’, ‘श्रद्धा’ और ‘धमकी’ इन सबका  प्रयोग किया जाता है | साधक अपने शाबर मन्त्र के देव के समक्ष ‘बालक’ या ‘याचक’ बनकर देवता को सब कुछ कहता है और उसी से सब कुछ कराना चाहता है | जिस प्रकार एक बालक अपने माता पिता से अपनी इच्छित वस्तु प्राप्त करने के लिए कुछ भी अनाप-शनाप कह देता है | और तो और आश्चर्य यह है कि उस साधक की यह ‘दुहाई’, ‘गाली’, ‘आन’ और ‘शाप’, ‘श्रद्धा’ और ‘धमकी’ भी काम करती है | ‘दुहाई’, ‘आन’ का अर्थ है – सौगन्ध, कसम देकर कार्य करवाने को बाध्य करना |

तांत्रिक व् शास्त्रीय प्रयोगों में इस प्रकार की ‘दुहाई’, ‘गाली’, ‘आन’ और ‘शाप’, ‘श्रद्धा’ और ‘धमकी’ आदि नहीं दी जाती है | ‘साबर’-मन्त्रों की रचना में हमे संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, और कई क्षेत्रीय भाषाओं का समायोजन मिलता है तो कुछ मन्त्रों में संस्कृत और मलयालय, कन्नड़, गुजराती, बंगाली या तमिल भाषाओं का मिश्रित रुप मिलेगा, तो किन्हीं में शुद्ध क्षेत्रीय भाषाओं की ग्राम्य-शैली भी मिल जाती है |

हालाँकि हिन्दुस्तान में कई तरह की भाषाओ का प्रयोग व्यवहार में लाया जाता है फिर भी इसके बड़े भू-भाग में बोली जाने वाली भाषा ‘हिन्दी’ ही है | अतः अधिकांश ‘साबर’ मन्त्र हिन्दी में ही देखने-सुनने को मिलते हैं | इस मन्त्रों में शास्त्रीय मन्त्रों के समान ‘षड्न्गन्यास’ – ऋषि, छन्द, बीज, शक्ति, कीलक और देवता आदि की प्रक्रिया अलग से नहीं रहती, अपितु इन अंगों का वर्णन मन्त्र में ही सम,समाहित रहता है | इसलिए प्रत्येक ‘साबर’ मन्त्र अपने आप में पूर्ण होते है | उपदेष्टा ‘ऋषि’ के रुप में गोरखनाथ, लोना चमारिन, योगिनी, मरही माता, असावरी देवी, सुलेमान जैसे सिद्ध-पुरुष हैं | कई मन्त्रों में इनके नाम लिए जाते हैं और कईयों में केवल ‘गुरु के नाम से ही काम चल जाता है |
‘पल्लव’ (शास्त्रीय मन्त्रो के अन्त में लगाए जाने वाले शब्द आदि) के स्थान पर
‘शब्द साँचा पिण्ड काचा, फुरो मन्त्र ईश्वरी वाचा’
वाक्य ही सामान्यतः रहता है | इस वाक्य का अर्थ है-

“शब्द (अक्षर/ध्वनि) ही सत्य है, नष्ट नहीं होती |
यह देह (शरीर) अनित्य (हमेशा न रहने वाला) है, बहुत कच्चा है |
हे मन्त्र | तुम ईश्वर की वाणी हो (ईश्वर के वचन से प्रकट होवो)”


इसी प्रकार
‘मेरी भक्ति गुरु की शक्ति
फुरो मन्त्र ईश्वरी वाचा’
और उपरोक्त वाक्य का अर्थ है
“मेरी भक्ति (विश्वास/ श्रद्धा) की ताकत से |
मेरे गुरु की शक्ति से |
हे मन्त्र | तुम ईश्वर की वाणी होकर चलो (ईश्वर के वचन से प्रकट होवो)”

या इससे मिलते-जुलते दूसरे शब्द आदि शाबर मन्त्रों के ‘पल्लव’ होते है |

अन्य मत के अनुसार शाबर मन्त्रो की उत्पत्ति

कहा जाता है कि द्वापरयुग में भगवान् श्री कृष्ण की आज्ञा पाकर अर्जुन ने पशुपति अस्त्र की प्राप्ति के लिए भगवान् शिव की तपस्या शुरू की | एक दिन भगवान् शिव एक शिकारी का भेष बनाकर आये और जब पूजा के बाद अर्जुन ने सुअर पर बाण चलाया तो ठीक उसी वक़्त भगवान् शिव ने भी उस सुअर को तीर मारा अब दोनों में सूअर के हकदारी का विवाद हो गया और शिकारी रुपी शिव ने अर्जुन से कहा- “मुझसे युद्ध करो जो युद्ध में जीत जायेगा सुअर उसी को दीया जायेगा” | अर्जुन और भगवान् शिव में युद्ध शुरू हुआ (इसी युद्ध की महाभारत में किरात युद्ध कहा गया है) | युद्ध देखने के लिए माँ पार्वती भी शिकारी का भेष बना वहां आ गयी और युद्ध देखने लगी तभी भगवान् कृष्ण ने अर्जुन से कहा- “जिसका रोज तप करते हो वही शिकारी के भेष में साक्षात् खड़े है” |  अर्जुन ने भगवान् शिव के चरणों में गिरकर प्रार्थना की और भगवान् शिव ने अर्जुन को अपना असली स्वरुप दिखाया |
  अर्जुन भगवान् शिव के चरणों में गिर पड़े और पशुपति अस्त्र के लिए प्रार्थना की, भगवान शिव ने अर्जुन को इच्छित वर दिया, उसी समय माँ पार्वती ने भी अपना असली स्वरुप दिखाया | जब शिव और अर्जुन में युद्ध हो रहा था तो माँ भगवती शिकारी का भेष बनाकर बैठी थी और उस समय अन्य शिकारी जो वहाँ युद्ध देख रहे थे उन्होंने जो मॉस का भोजन किया वही भोजन माँ भगवती को शिकारी समझ कर खाने को दिया अत: माता ने वही भोजन ग्रहण किया इसलिए जब माँ भगवती अपने असली रूप में आई तो उन्होंने ने भी शिकारीओं से प्रसन्न होकर कहा- “हे किरातों मैं आप सब से प्रसन्न हूँ , वर मांगो” | इस पर शिकारीओं ने कहा- “हे माँ हम भाषा व्याकरण नहीं जानते और ना ही हमे संस्कृत का ज्ञान है और ना ही हम लम्बे चौड़े विधि विधान कर सकते है पर हमारे मन में भी आपकी और महादेव की भक्ति करने की इच्छा है, इसलिए यदि आप प्रसन्न है तो भगवान शिव से हमे ऐसे मंत्र दिलवा दीजिये जिससे हम सरलता से आप का पूजन कर सके” |

माँ भगवती की प्रसन्नता देख और भीलों की भक्ति भावना देख कर आदिनाथ भगवान् शिव ने आगे चलकर नाथ सम्प्रदाय में साबर मन्त्रों की रचना की | नाथ पंथ में भगवान् शिव को “आदिनाथ” कहा जाता है और माता पार्वती को “उदयनाथ” कहा जाता है भगवान् शिव जी ने यह विद्या भीलों को प्रदान की और बाद में यही विद्या दादा गुरु मत्स्येन्द्रनाथ को मिली, उन्होंने इस विद्या का बहुत प्रचार प्रसार किया और अन्य कई करोड़ साबर मन्त्रों की रचना की उनके बाद उनके शिष्य गुरु गोरखनाथ जी ने इस परम्परा को आगे बढ़ाया और नवनाथ एवं चौरासी सिद्धों के माध्यम से इस विद्या का बहुत प्रचार हुआ | और ऐसा भी कहा जाता है कि योगी कानिफनाथ जी ने 5 करोड़ साबर मन्त्रों की रचना की और वही चर्पटनाथ जी ने 16 करोड़ मन्त्रों की रचना की और योगी जालंधरनाथ जी ने 30 करोड़ साबर मन्त्रों की रचना की इन योगीयो के बाद अनन्त कोटि नाथ सिद्धों ने साबर मन्त्रों की रचना की यह साबर विद्या नाथ पंथ में गुरु शिष्य परम्परा से मौखिक रिवाज के आधार पर आगे बढ़ने लगी, इसलिए साबर मंत्र चाहे किसी भी प्रकार का क्यों ना हो उसका सम्बन्ध किसी ना किसी नाथ पंथी योगी से अवश्य होता है | अतः यह कहना गलत ना होगा कि साबर मंत्र नाथ सिद्धों की देन है |


Pitru Dosh Shanti | Kaal Sarp Dosh Niwaran |पितृदोष शांति

Pitru Dosh Shanti | Kaal Sarp Dosh Niwaran |पितृदोष शांति


आश्विन कृष्ण प्रतिपदा से लेकर अमावस्या पंद्रह दिन पितृपक्ष (पितृ = पिता) के नाम से विख्यात है। इन पंद्रह दिनों में लोग अपने पितरों (पूर्वजों) को जल देते हैं तथा उनकी मृत्युतिथि पर पार्वण श्राद्ध करते हैं। पिता-माता आदि पारिवारिक मनुष्यों की मृत्यु के पश्चात्‌ उनकी तृप्ति के लिए श्रद्धापूर्वक किए जाने वाले कर्म को पितृ श्राद्ध कहते हैं।

पितृपक्ष भर में जो तर्पण किया जाता है उससे वह पितृप्राण स्वयं आप्यापित होता है। पुत्र या उसके नाम से उसका परिवार जो यव (जौ) तथा चावल का पिण्ड देता है, उसमें से अंश लेकर वह अम्भप्राण का ऋण चुका देता है। ठीक आश्विन कृष्ण प्रतिपदा से वह चक्र उर्ध्वमुख होने लगता है। 15 दिन अपना-अपना भाग लेकर शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से पितर उसी ब्रह्मांडीय उर्जा के साथ वापस चले जाते हैं। इसलिए इसको पितृपक्ष कहते हैं और इसी पक्ष में श्राद्ध करने से पित्तरों को प्राप्त होता है।


पितृदोष / ऋण की शांति के 11 सरल और सस्ते उपाय करने से पितृ दोष में शान्ति मिलती है !!

ज्योतिष में पितृदोष का बहुत महत्व माना जाता है। प्राचीन ज्योतिष ग्रंथों में पितृदोष सबसे बड़ा दोष माना गया है। इससे पीड़ित व्यक्ति का जीवन अत्यंत कष्टमय हो जाता है। जिस जातक की कुंडली में यह दोष होता है उसे धन अभाव से लेकर मानसिक क्लेश तक का सामना करना पड़ता है। पितृदोष से पीड़ित जातक की उन्नति में बाधा रहती है। आमतौर पर पितृदोष के लिए खर्चीले उपाय बताए जाते हैं लेकिन यदि किसी जातक की कुंडली में पितृ दोष बन रहा है और वह महंगे उपाय करने में असमर्थ है तो भी परेशान होने की कोई बात नहीं। पितृदोष का प्रभाव कम करने के लिए ऐसे कई आसान, सस्ते व सरल उपाय भी हैं जिनसे इसका प्रभाव कम हो सकता है।

1. कुंडली में पितृ दोष बन रहा हो तब जातक को घर की दक्षिण दिशा की दीवार पर अपने स्वर्गीय परिजनों का फोटो लगाकर उस पर हार चढ़ाकर रोजाना उनकी पूजा स्तुति करना चाहिए। उनसे आशीर्वाद प्राप्त करने से पितृदोष से मुक्ति मिलती है।

2. अपने स्वर्गीय परिजनों की निर्वाण तिथि पर जरूरतमंदों अथवा गुणी ब्राह्मणों को भोजन कराए। भोजन में मृतात्मा की कम से कम एक पसंद की वस्तु अवश्य बनाएं।

3. इसी दिन अगर हो सके तो अपनी सामर्थ्यानुसार गरीबों को वस्त्र और अन्न आदि दान करने से भी यह दोष मिटता है।

4. पीपल के वृक्ष पर दोपहर में जल, पुष्प, अक्षत, दूध, गंगाजल, काले तिल चढ़ाएं और स्वर्गीय परिजनों का स्मरण कर उनसे आशीर्वाद मांगें।

5. शाम के समय में दीप जलाएं और नाग स्तोत्र, महामृत्युंजय मंत्र या रुद्र सूक्त या पितृ स्तोत्र व नवग्रह स्तोत्र का पाठ करें। इससे भी पितृ दोष की शांति होती है।

6. सोमवार प्रात:काल में स्नान कर नंगे पैर शिव मंदिर में जाकर आक के 21 पुष्प, कच्ची लस्सी, बिल्वपत्र के साथ शिवजी की पूजा करें। 21 सोमवार करने से पितृदोष का प्रभाव कम होता है।

7. प्रतिदिन इष्ट देवता व कुल देवता की पूजा करने से भी पितृ दोष का शमन होता है।

8. कुंडली में पितृदोष होने से किसी गरीब कन्या का विवाह या उसकी बीमारी में सहायता करने पर भी लाभ मिलता है।

9. ब्राह्मणों को प्रतीकात्मक गोदान, गर्मी में पानी पिलाने के लिए कुंए खुदवाएं या राहगीरों को शीतल जल पिलाने से भी पितृदोष से छुटकारा मिलता है।

10. पवित्र पीपल तथा बरगद के पेड़ लगाएं। विष्णु भगवान के मंत्र जाप, श्रीमद्‍भागवत गीता का पाठ करने से भी पित्तरों को शांति मिलती है और दोष में कमी आती है।

11. पितरों के नाम पर गरीब विद्यार्थियों की मदद करने तथा दिवंगत परिजनों के नाम से अस्पताल, मंदिर, विद्यालय, धर्मशाला आदि का निर्माण करवाने से भी अत्यंत लाभ मिलता है।

पित्र दोष निवारण मन्त्र

मन्त्र 1 -- ॐ सर्व पितृ देवताभ्यो नमः ।
मन्त्र २-- ॐ प्रथम पितृ नारायणाय नमः ।।
मँत्र 3  - ॐ देवताभव्य: पतृ:भ्य महायोगीभ्यश्च ।
 नम: स्वाहाय स्वाधाय पतृभ्यो नमोस्तुते : ।।
140000 , जप करावे। या गायत्री मँत्र का 140000 जप कराये ।

4 - त्रिपिण्डी , नारायण बली, गया श्राद्ध , भागवत की कथा , करावे ।
एक माला रोज अगर घर का मुखिया या अन्य सदस्य करें तो बहुत लाभ होता है

गुरुवार, 3 अगस्त 2017

भैरु बाबा का शक्तिशाली शाबर मन्त्र

भैरु बाबा का शक्तिशाली शाबर मन्त्र

।। ॐ गुरुजी काला भैरुँ कपिला केश,
काना मदरा,भगवाँ भेस।
मार-मार काली-पुत्र।
बारह कोस की मार,
भूताँ हात कलेजी खूँहा गेडिया।
जहाँ जाऊँ भैरुँ साथ।
बारह कोस की रिद्धि ल्यावो।
चौबीस कोस की सिद्धि ल्यावो।
सूती होय, तो जगाय ल्यावो।
बैठा होय, तो उठाय ल्यावो।
अनतर की भारी ल्यावो।
गौरा-पार्वती की विछिया ल्यावो।
गेल्याँ की रस्तान मोह,
कुवे की पणिहारी मोह,
बैठा बाणिया मोह,
घर बैठी बणियानी मोह,
राजा की रजवाड़ मोह,
महला बैठी रानी मोह।
डाकिनी को, शाकिनी को, 
भूतनी को, पलीतनी को,
ओपरी को, पराई को, 
लाग कूँ, लपट कूँ,
धूम कूँ, धक्का कूँ, 
पलीया कूँ, चौड़ कूँ,
चौगट कूँ, काचा कूँ, 
कलवा कूँ, भूत कूँ,
पलीत कूँ, जिन कूँ, 
राक्षस कूँ,
बरियों से बरी कर दे।
नजराँ जड़ दे ताला
इत्ता भैरव नहीं करे,
तो पिता महादेव की 
जटा तोड़ तागड़ी करे,
माता पार्वती का चीर फाड़ 
लँगोट करे।
चल डाकिनी, शाकिनी,
छौडूँ मैला बाकरा,
देस्यूँ मद की धार,
भरी सभा में द्यूँ आने में
कहाँ लगाई बार ?
खप्पर में खाय, मसान में लौटे,
ऐसे काला भैरुँ की कूण पूजा मेटे।
राजा मेटे राज से जाय,
प्रजा मेटे दूध-पूत से जाय,
जोगी मेटे ध्यान से जाय।
शब्द साँचा, ब्रह्म वाचा,
चलो मन्त्र ईश्वरो वाचा ।।

विधिः- उक्त मन्त्र का अनुष्ठान रविवार से प्रारम्भ करें। एक काले पत्थर का तीन कोनेवाला टुकड़ा लेकर उसे अपने सामने स्थापित करें। उसके ऊपर चमेली के तेल और सिन्दूर का लेप करें। पान और नारियल भेंट में चढावें। वहाँ नित्य सरसों के तेल का दीपक जलावें। अच्छा होगा कि दीपक अखण्ड हो। मन्त्र को नित्य 21 बार 41 दिन तक जपें। जप के बाद नित्य छाड़ छबीला, कपूर, केशर और लौंग इलायची आदि की आहुति दें। भोग में बाकला, बाटी बाकला रखें (विकल्प में उड़द के पकोड़े, बेसन के लड्डू और गुड़-मिले दूध की बलि दें। मन्त्र सिद्ध होने के पश्चात मन्त्र में वर्णित सब कार्यों में यह मन्त्र काम करता है। मन्त्र साधना में भयभीत ना हो।

शुक्रवार, 28 जुलाई 2017

प्रेम को अपना बनाने के लिए इस मंत्र का जाप का भी उल्लेख है:
                                  केशवी केशवाराध्या किशोरी केशवस्तुता,
                                     रूद्र रूपा रूद्र मूर्ति: रूद्राणी रूद्र देवता।

कहा जाता है कि अपने प्रेमी या प्रेमिका के लिए मन से उपरोक्त मंत्रों का जाप करते हुए भगवान श्रीकृष्ण की आराधना करना चाहिए। प्रेम- विवाह में अवश्य सफलता मिलेगी। प्रत्येक शुक्रवार को राधा-कृष्ण की प्रतिमा के सामने इन मंत्रों का सच्चे मन से 108 बार जाप करें। लोग कहते हैं कि 3 माह के अंदर प्रेम-विवाह में आ रही सारी अड़चनें दूर होने के रास्ते बन जाते हैं।

यदि प्रेम-विवाह में कोई बाधा आ रही हो तो 5 नारियल लेकर इसे भगवान शंकर की मूर्ति के आगे रखकर
                                              || ऊं श्रीं वर प्रदाय श्री नमः ||
 मंत्र का जाप बार करें। यह जाप स्फटिक या रूद्राक्ष की माला पर पांच माला फेरते हुए करें। इसके बाद वे पांचों नारियल शिव जी के मंदिर में चढ़ाएं, विवाह की बाधाएं दूर होती नजर आएंगी।

कुछ पंडितों का कहना है कि प्रत्येक सोमवार को यदि सुबह नहा-धोकर शिवलिंग पर
                                                    || ऊं सोमेश्वराय नमः || 
का जाप करते हुए दूध मिले जल को चढ़ाएं और वहीं मंदिर में बैठकर रुद्राक्ष की माला से इस मंत्र का एक माला जप करें तो विवाह की सम्भावना शीघ्र बनती नज़र आएगी।

महाकाली मंत्र

महाकाली मंत्र

ऊं ए क्लीं ह्लीं श्रीं ह्सौ: ऐं ह्सौ: श्रीं ह्लीं क्लीं ऐं जूं क्लीं सं लं श्रीं र: अं आं इं ईं उं ऊं ऋं ऋं लं लृं एं ऐं ओं औं अं अ: ऊं कं खं गं घं डं ऊं चं छं जं झं त्रं ऊं टं ठं डं ढं णं ऊं तं थं दं धं नं ऊं पं फं बं भं मं ऊं यं रं लं वं ऊं शं षं हं क्षं स्वाहा।
विधि : यह महाकाली का उग्र मंत्र है। इसकी साधना विंध्याचल के अष्टभुजा पर्वत पर त्रिकोण में स्थित काली खोह में करने से शीघ्र सिद्धि होती है अथवा श्मशान में भी साधना की जा सकती है, लेकिन घर में साधना नहीं करनी चाहिए। जप संख्या 1100 है, जिन्हें 90 दिन तक अवश्य करना चाहिए। दिन में महाकाली की पंचोपचार पूजा करके यथासंभव फलाहार करते हुए निर्मलता, सावधानी, निभीर्कतापूर्वक जप करने से महाकाली सिद्धि प्रदान करती हैं। इसमें होमादि की आवश्यकता नहीं होती।
यह मंत्र सार्वभौम है। इससे सभी प्रकार के सुमंगलों, मोहन, मारण, उच्चाटनादि तंत्रोक्त षड्कर्म की सिद्धि होती है।

स्वप्न वाराही सिद्धी



यह एक अनोखी साधना है जिसमे सफलता पाना आसान है परंतु इस साधना का उपयोग तभी करना चाहिये जब आप किसी कठिन समस्या मे फसे हुए हो और समस्या से बाहर निकलने का रास्ता ना मिले.
कभी भी इस साधना का गलत प्रयोग ना करे जैसे सट्टा या लौटरी का नंबर स्वप्न मे देखना.

साधना विधि:-

सोने से पूर्व जहा आप सोते है वहा के आस पास का जगहा साफ करके रखे और चद्दर भी साफ सुधरी होनी चाहिये.
सोने से पहिले 3 माला जाप 21 दिनो तक करना है.इससे आपको इस साधना मे सफलता मिलती है.जब किसी सवाल का जवाब प्राप्त करना हो तब 'स्वप्न वाराही" से प्रार्थना करके अपना सवाल बताये और 11 बार मंत्र का जाप करके निद्रा ले,इस विधान से आपको समस्या के निवारण हेतु जवाब स्वप्न मे मिल जायेगा.
मंत्र-

ll ओम ह्रीं नमो वाराहि अघौरे स्वप्न दर्शय दर्शय ठ: ठ: स्वाहा ll

3 माला रोज 21 दिनो तक जाप करना है.
दिशा,वस्त्र,माला का कोई विधान नही है इसलिये चिंतित ना हो. 

गुरुवार, 30 मार्च 2017

अनेक रोग शांति मन्त्र


|| सींक बांधू, सींक बान
अर्जुन सांधे धनुष बान
बन में जाई अन्जनी
जूँ जन्मे हनुमन्त
अटठोरी कटठोरी
बद कखयारी
झीनवा लिकाश सा
बेल बाहला
बिस्सी थनैला
कर्णमुल कर्णफूल
कण्ठे लिकाड़ा
मै न झाड़ू
झाडे निम् की डाल
तिन चीज़ मेरे
अक्कड़ मक्कड़ न्योल का पित्ता
एबिस तू गर मन गित्ता
इस बिसवा की लम्बी चोब
बिसवारा पौह्चा पताल
राजा बासक की आन
हनुमान जती की आन
भद्र काली की आन
भुमिया चामुण्डा की आन
नुना चमारी की आन  ||

किसी शुभ दिन, महूर्त में हनुमान जी की पंचोपचार पूजन करके मन्त्र का 1008 जप करके सिद्ध करले | फिर आवश्कयता पड़ने पर निम् की डाली से झारे  11 या 21 बार मन्त्र पढकर | मन्त्र में वर्णित सभी रोग शांत होंगे |

सोमवार, 27 मार्च 2017

कमर दर्द निवारण मन्त्र



|| चलता आवे उछलता जाय
भस्म करता उह उह जाय
सिद्ध गुरु की आन
मन्त्र सांचा
फुरो मन्त्र
इश्वरो वाचा ||

विधि:- 1008 बार मन्त्र का जप करके सिद्ध करे|

कंवारी कन्या के द्वारा शुक्ल-पक्ष में काता गया सूत लेकर 101 अभिमंत्रित करके रोगी की कमर में बांधे | कमर दर्द दूर होगा |

रविवार, 26 मार्च 2017

पानी से वशीकरण शाबर मंत्र





जल द्वारा वशीकरण



|| लाइलाह इल्लिलाह
धरती से आसमान तक
लाइलाह इल्लिलाह
अर्श से कुर्सी तक
लाइलाह इल्लिलाह
लोह से कलम तक
लाइलाह इल्लिलाह
मुहम्मद रसूलिल्लाह
अमुकी के बेटे/बेटी अमुक को
मेरे वश मे कर ||

प्रयोग करने से पहले मन्त्र का पर्व रात्रि में 10000 बार मन्त्र जप करके सिद्ध करे  फिर जिसे वश में करना है उसकी माँ के नाम के साथ उसका नाम जोड़ कर मन्त्र को 31 बार उच्चारित करे साफ़ पानी के उपर और वो पानी साध्य स्त्री/पुरुष को किसी भी तरह से पिला दे पिने वाला वश में रहेगा |
पुरुष या स्त्री का वशीकरण के लिए माँ का नाम पहले लेना है |



बुधवार, 22 मार्च 2017

सर्व-रोग नाशक महाशक्तिशाली मन्त्र

सर्व-रोग नाशक महाशक्तिशाली मन्त्र

अच्युतानन्त गोविन्द,
नामोच्चारण भेषजात |
नश्यन्ति सकलाः रोगाः,
सत्यं सत्यं वदाम्यहम् ||
सबसे पहले तो इस मन्त्र को अश्विन मास में धन्वन्तरी-त्रयोदशी के दिन स्नान करके शुद्ध कुश के आसन पर बैठकर गाय के घी का दीपक जलाकर इस मन्त्र का एक लाख अट्ठाईस हजार जप करके सिद्ध कर ले | यदि इतना जप एक दिन में सम्भव न हो सके तो लगातार 3, 7, 9 दिन में जप पूरा करके मन्त्र सिद्ध करे |
फिर जब कभी प्रयोग करना हो तब रोगी का हाथ अपने हाथ में लेकर संकल्प सहित मन्त्र को जप करे | 1 घंटे के भीतर ही रोगी को राहत मिलना शुरू हो जाएगी और रोगी को एक अलग ही शक्ति का अहसाह होने लगेगा | फिरि इसी मन्त्र से दूध, पानी, भस्म, औषधि आदि दे रोगी पूरी तरह ठीक हो जायेगा |


यदि मन्त्र को सिद्ध भी नही किया गया हो तो भी इसका प्रयोग किया जा सकता है और परिणाम भी उचित ही आयेंगे | स्नान आदि करके परोपकार की भावना से प्रयोग करे | सफलता जरुर मिलेगी |

कमर दर्द निवारण मन्त्र

कमर दर्द निवारण मन्त्र

|| चलता आवे उछलता जाय
भस्म करता उह उह जाय
सिद्ध गुरु की आन
मन्त्र सांचा
फुरो मन्त्र
इश्वरो वाचा ||

विधि:- 1008 बार मन्त्र का जप करके सिद्ध करे|

कंवारी कन्या के द्वारा शुक्ल-पक्ष में काता गया सूत लेकर 101 अभिमंत्रित करके रोगी की कमर में बांधे | कमर दर्द दूर होगा |

रोग निवारण (दवाई का ना लगने पर)

रोग निवारण (दवाई का ना लगने पर)
यदि किसी भी रोग (शारीरिक) का दवाई द्वारा इलाज़ न हो पा रहा हो या दवाई रोगी को आराम न दे पा रही हो तो एसे में इसी मन्त्र का प्रयोग करे| रोगी की दवाइयों को इसी मन्त्र से अभिमंत्रित करके (11, 21 बार) सेवन के लिय दे तो रोगी ठीक होगा |
|| ॐ नमो महा-विनायकाय
अमृतं रक्ष रक्ष,
मम फल-सिद्धि देहि,

रूद्र वचनेन स्वाहा ||

अनेक रोग शांति मन्त्र

अनेक रोग शांति मन्त्र
|| सींक बांधू, सींक बान
अर्जुन सांधे धनुष बान
बन में जाई अन्जनी
जूँ जन्मे हनुमन्त
अटठोरी कटठोरी
बद कखयारी
झीनवा लिकाश सा
बेल बाहला
बिस्सी थनैला
कर्णमुल कर्णफूल
कण्ठे लिकाड़ा
मै न झाड़ू
झाडे निम् की डाल
तिन चीज़ मेरे
अक्कड़ मक्कड़ न्योल का पित्ता
एबिस तू गर मन गित्ता
इस बिसवा की लम्बी चोब
बिसवारा पौह्चा पताल
राजा बासक की आन
हनुमान जती की आन
भद्र काली की आन
भुमिया चामुण्डा की आन
नुना चमारी की आन  ||
किसी शुभ दिन, महूर्त में हनुमान जी की पंचोपचार पूजन करके मन्त्र का 1008 जप करके सिद्ध करले | फिर आवश्कयता पड़ने पर निम् की डाली से झारे  11 या 21 बार मन्त्र पढकर | मन्त्र में वर्णित सभी रोग शांत होंगे |


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