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शुक्रवार, 10 अगस्त 2018

शनैश्चरी हरियाली अमावस्या विशेष


शनि अमावस्या के दिन श्री शनिदेव की आराधना करने से समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होंती हैं। इस वर्ष 11 अगस्त 2018 को शनिवार के दिन शनि अमावस्या मनाई जाएगी, इस दिन हरियाली अमावस्या भी साथ होने से अधिक शुभ संयोग बन रहा है। यह पितृकार्येषु अमावस्या के रुप में भी जानी जाती है |  कालसर्प योग, ढैय्या तथा साढ़ेसाती सहित शनि संबंधी अनेक बाधाओं से मुक्ति पाने का यह दुर्लभ समय होता है जब शनिवार के दिन अमावस्या का समय हो जिस कारण इसे शनि अमावस्या कहा जाता है।

श्री शनिदेव भाग्य विधाता हैं, यदि निश्छल भाव से शनिदेव का नाम लिया जाये तो व्यक्ति के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। श्री शनिदेव तो इस चराचर जगत में कर्मफल दाता हैं जो व्यक्ति के कर्म के आधार पर उसके भाग्य का फैसला करते हैं। इस दिन शनिदेव का पूजन सफलता प्राप्त करने एवं दुष्परिणाम से छुटकारा पाने हेतु बहुत उत्तम होता है। इस दिन शनि देव का पूजन सभी मनोकामनाएं पूरी करता है।

शनिश्चरी अमावस्या पर शनिदेव का विधिवत पूजन कर सभी लोग पर्याप्त लाभ उठा सकते हैं। इस दिन विशेष अनुष्ठान द्वारा पितृ दोष और कालसर्प दोषों से मुक्ति पाई जा सकती है |  इसके अलावा शनि का पूजन और तैलाभिषेक कर शनि की साढेसाती, ढैय्या और महादशा जनित संकट और आपदाओं से भी मुक्ति पाई जा सकती है|


शनि अमावस्या महत्व 

शनि अमावस्या ज्योतिषशास्त्र के अनुसार साढ़ेसाती एवं ढ़ैय्या के दौरान शनि व्यक्ति को अपना शुभाशुभ फल प्रदान करता है |  शनि अमावस्या बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है |  इस दिन शनि देव को प्रसन्न करके व्यक्ति शनि के कोप से अपना बचाव कर सकते हैं |  पुराणों के अनुसार शनि अमावस्या के दिन शनि देव को प्रसन्न करना बहुत आसान होता है |  शनि अमावस्या के दिन शनि दोष की शांति बहुत ही सरलता कर सकते हैं |

इस दिन महाराज दशरथ द्वारा लिखा गया शनि स्तोत्र का पाठ करके शनि की कोई भी वस्तु जैसे काला तिल, लोहे की वस्तु, काला चना, कंबल, नीला फूल दान करने से शनि साल भर कष्टों से बचाए रखते हैं |  जो लोग इस दिन यात्रा में जा रहे हैं और उनके पास समय की कमी है वह सफर में शनि नवाक्षरी मंत्र अथवा 
कोणस्थ: पिंगलो बभ्रु: कृष्णौ रौद्रोंतको यम:। 
सौरी: शनिश्चरो मंद:पिप्पलादेन संस्तुत:।।” 

मंत्र का जप करने का प्रयास करते हैं करें तो शनि देव की पूर्ण कृपा प्राप्त होती है|



पितृदोष से मुक्ति

शनि अमावस्या पितृदोष मुक्ति के लिये उत्तम दिन है। पितृ शांति के लिये अमावस्या तिथि का विशेष महत्व है और अमावस्या अगर शनिवार के दिन पड़े तो इसका महत्व और अधिक बढ़ जाता है |  शनिदेव को अमावस्या अधिक प्रिय है |  शनि देव की कृपा का पात्र बनने के लिए शनिश्चरी अमावस्या को सभी को विधिवत आराधना करनी चाहिए |  भविष्यपुराण के अनुसार शनिश्चरी अमावस्या शनिदेव को अधिक प्रिय रहती है |  

शनैश्चरी अमावस्या के दिन पितरों का श्राद्ध अवश्य करना चाहिए |  जिन व्यक्तियों की कुण्डली में पितृदोष या जो भी कोई पितृ दोष की पिडा़ को भोग रहे होते हैं उन्हें इस दिन दान इत्यादि विशेष कर्म करने चाहिए |  यदि पितरों का प्रकोप न हो तो भी इस दिन किया गया श्राद्ध आने वाले समय में मनुष्य को हर क्षेत्र में सफलता प्रदान करता है, क्योंकि शनिदेव की अनुकंपा से पितरों का उद्धार बडी सहजता से हो जाता है |



शनि अमावस्या पूजन

पवित्र नदी के जल से या नदी में स्नान कर शनि देव का आवाहन और दर्शन करना चाहिए |  शनिदेव का पर नीले पुष्प, बेल पत्र, अक्षत अर्पण करें |  शनिदेव को प्रसन्न करने हेतु शनि मंत्र “ॐ शं शनैश्चराय नम:, अथवा “ॐ प्रां प्रीं प्रौं शं शनैश्चराय नम:” मंत्र का जाप करना चाहिए |  इस दिन सरसों के तेल, उडद, काले तिल, कुलथी, गुड शनियंत्र और शनि संबंधी समस्त पूजन सामग्री को शनिदेव पर अर्पित करना चाहिए और शनि देव का तैलाभिषेक करना चाहिए |  शनि अमावस्या के दिन शनि चालीसाहनुमान चालीसा या बजरंग बाण का पाठ अवश्य करना चाहिए |  जिनकी कुंडली या राशि पर शनि की साढ़ेसाती व ढैया का प्रभाव हो उन्हें शनि अमावस्या के दिन पर शनिदेव का विधिवत पूजन करना चाहिए |



शनैश्चरी अमावस्या पर शनि मंत्र- स्रोत्र द्वारा उपाय

शनैश्चरी अमावस्या के दिन शनि मंत्र का अधिक से अधिक जाप करना परम कल्याणकारक माना गया है जप से पहले शरीर और आसान शुद्धि के बाद निम्न विनियोग करे इसके बाद जप आरम्भ करें।

विनियोग: 
शन्नो देवीति मंत्रस्य सिन्धुद्वीप ऋषि: गायत्री छंद:, आपो देवता, शनि प्रीत्यर्थे जपे विनियोग:
नीचे लिखे गये कोष्ठकों के अन्गों को उंगलियों से छुयें |  

अथ देहान्गन्यास:-
शन्नो शिरसि (सिर), देवी: ललाटे (माथा) | अभिषटय मुखे (मुख), आपो कण्ठे (कण्ठ), भवन्तु ह्रदये (ह्रदय), पीतये नाभौ (नाभि), शं कट्याम (कमर), यो: ऊर्वो: (छाती), अभि जान्वो: (घुटने), स्त्रवन्तु गुल्फ़यो: (गुल्फ़), न: पादयो: (पैर)

अथ करन्यास:-
शन्नो देवी: अंगुष्ठाभ्याम नम: | अभिष्टये तर्ज्जनीभ्याम नम: | आपो भवन्तु मध्यमाभ्याम नम: | पीतये अनामिकाभ्याम नम: | शंय्योरभि कनिष्ठिकाभ्याम नम: | स्त्रवन्तु न: करतलकरपृष्ठाभ्याम नम: | अथ ह्रदयादिन्यास:-शन्नो देवी ह्रदयाय नम: | अभिष्टये शिरसे स्वाहा | आपो भवन्तु शिखायै वषट | पीतये कवचाय हुँ | (दोनो कन्धे) | शंय्योरभि नेत्रत्राय वौषट | स्त्रवन्तु न: अस्त्राय फ़ट

ध्यानम:-
नीलाम्बर: शूलधर: किरीटी गृद्ध्स्थितस्त्रासकरो धनुश्मान
चतुर्भुज: सूर्यसुत: प्रशान्त: सदाअस्तु मह्यं वरदोअल्पगामी | 

शनि गायत्री:-
औम कृष्णांगाय विद्य्महे रविपुत्राय धीमहि तन्न: सौरि: प्रचोदयात

वेद मंत्र:- 
औम प्राँ प्रीँ प्रौँ स: भूर्भुव: स्व: औम शन्नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये शंय्योरभिस्त्रवन्तु न: | औम स्व: भुव: भू: प्रौं प्रीं प्रां औम शनिश्चराय नम: |


शनि बीज जप मंत्र   ऊँ प्रां प्रीं प्रौं स: शनिश्चराय नम:। संख्या 23000 जाप ।



शनि स्तोत्रम

शनि अष्टोत्तरशतनामावलि 
ॐ शनैश्चराय नमः ॥ ॐ शान्ताय नमः ॥ ॐ सर्वाभीष्टप्रदायिने नमः ॥ ॐ शरण्याय नमः ॥ ॐ वरेण्याय नमः ॥ ॐ सर्वेशाय नमः ॥ ॐ सौम्याय नमः ॥ ॐ सुरवन्द्याय नमः ॥ ॐ सुरलोकविहारिणे नमः ॥ ॐ सुखासनोपविष्टाय नमः ॥ ॐ सुन्दराय नमः ॥ ॐ घनाय नमः ॥ ॐ घनरूपाय नमः ॥ ॐ घनाभरणधारिणे नमः ॥ ॐ घनसारविलेपाय न मः ॥ ॐ खद्योताय नमः ॥ ॐ मन्दाय नमः ॥ ॐ मन्दचेष्टाय नमः ॥ ॐ महनीयगुणात्मने नमः ॥ ॐ मर्त्यपावनपदाय नमः ॥ ॐ महेशाय नमः ॥ ॐ छायापुत्राय नमः ॥ ॐ शर्वाय नमः ॥ ॐ शततूणीरधारिणे नमः ॥ ॐ चरस्थिरस्वभा वाय नमः ॥ ॐ अचञ्चलाय नमः ॥ ॐ नीलवर्णाय नमः ॥ ॐ नित्याय नमः ॥ ॐ नीलाञ्जननिभाय नमः ॥ ॐ नीलाम्बरविभूशणाय नमः ॥ ॐ निश्चलाय नमः ॥ ॐ वेद्याय नमः ॥ ॐ विधिरूपाय नमः ॥ ॐ विरोधाधारभूमये नमः ॥ ॐ भेदास्पदस्वभावाय नमः ॥ ॐ वज्रदेहाय नमः ॥ ॐ वैराग्यदाय नमः ॥ ॐ वीराय नमः ॥ ॐ वीतरोगभयाय नमः ॥ ॐ विपत्परम्परेशाय नमः ॥ ॐ विश्ववन्द्याय नमः ॥ ॐ गृध्नवाहाय नमः ॥ ॐ गूढाय नमः ॥ ॐ कूर्माङ्गाय नमः ॥ ॐ कुरूपिणे नमः ॥ ॐ कुत्सिताय नमः ॥ ॐ गुणाढ्याय नमः ॥ ॐ गोचराय नमः ॥ ॐ अविद्यामूलनाशाय नमः ॥ ॐ विद्याविद्यास्वरूपिणे नमः ॥ ॐ आयुष्यकारणाय नमः ॥ ॐ आपदुद्धर्त्रे नमः ॥ ॐ विष्णुभक्ताय नमः ॥ ॐ वशिने नमः ॥ ॐ विविधागमवेदिने नमः ॥ ॐ विधिस्तुत्याय नमः ॥ ॐ वन्द्याय नमः ॥ ॐ विरूपाक्षाय नमः ॥ ॐ वरिष्ठाय नमः ॥ ॐ गरिष्ठाय नमः ॥ ॐ वज्राङ्कुशधराय नमः ॥ ॐ वरदाभयहस्ताय नमः ॥ ॐ वामनाय नमः ॥ ॐ ज्येष्ठापत्नीसमेताय नमः ॥ ॐ श्रेष्ठाय नमः ॥ ॐ मितभाषिणे नमः ॥ ॐ कष्टौघनाशकर्त्रे नमः ॥ ॐ पुष्टिदाय नमः ॥ ॐ स्तुत्याय नमः ॥ ॐ स्तोत्रगम्याय नमः ॥ ॐ भक्तिवश्याय नमः ॥ ॐ भानवे नमः ॥ ॐ भानुपुत्राय नमः ॥ ॐ भव्याय नमः ॥ ॐ पावनाय नमः ॥ ॐ धनुर्मण्डलसंस्थाय नमः ॥ ॐ धनदाय नमः ॥ ॐ धनुष्मते नमः ॥ ॐ तनुप्रकाशदेहाय नमः ॥ ॐ तामसाय नमः ॥ ॐ अशेषजनवन्द्याय नमः ॥ ॐ विशेशफलदायिने नमः ॥ ॐ वशीकृतजनेशाय नमः ॥ ॐ पशूनां पतये नमः ॥ ॐ खेचराय नमः ॥ ॐ खगेशाय नमः ॥ ॐ घननीलाम्बराय नमः ॥ ॐ काठिन्यमानसाय नमः ॥ ॐ आर्यगणस्तुत्याय नमः ॥ ॐ नीलच्छत्राय नमः ॥ ॐ नित्याय नमः ॥ ॐ निर्गुणाय नमः ॥ ॐ गुणात्मने नमः ॥ ॐ निरामयाय नमः ॥ ॐ निन्द्याय नमः ॥ ॐ वन्दनीयाय नमः ॥ ॐ धीराय नमः ॥ ॐ दिव्यदेहाय नमः ॥ ॐ दीनार्तिहरणाय नमः ॥ ॐ दैन्यनाशकराय नमः ॥ ॐ आर्यजनगण्याय नमः ॥ ॐ क्रूराय नमः ॥ ॐ क्रूरचेष्टाय नमः ॥ ॐ कामक्रोधकराय नमः ॥ ॐ कलत्रपुत्रशत्रुत्वकारणाय नमः ॥ ॐ परिपोषितभक्ताय नमः ॥ ॐ परभीतिहराय न मः ॥ ॐ भक्तसंघमनोऽभीष्टफलदाय नमः ॥

इसका 108 पाठ करने से शनि सम्बन्धी सभी पीडायें समाप्त हो जाती हैं। तथा पाठ कर्ता धन धान्य समृद्धि वैभव से पूर्ण हो जाता है। और उसके सभी बिगडे कार्य बनने लगते है। यह सौ प्रतिशत अनुभूत है।
इसके अतिरिक्त दशरथकृत शनि स्तोत्र का यथा सामर्थ्य पाठ भी शनि जनित अरिष्ट से शांति दिलाता है।

दशरथकृत शनि स्तोत्र

नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठ निभाय च।
नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम:।

नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च ।
नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते। 2

नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णेऽथ वै नम:।
नमो दीर्घाय शुष्काय कालदंष्ट्र नमोऽस्तु ते। 3

नमस्ते कोटराक्षाय दुर्नरीक्ष्याय वै नम: ।
नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने। 4

नमस्ते सर्वभक्षाय बलीमुख नमोऽस्तु ते।
सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करेऽभयदाय च। 5

अधोदृष्टे: नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तु ते।
नमो मन्दगते तुभ्यं निस्त्रिंशाय नमोऽस्तुते। 6

तपसा दग्ध-देहाय नित्यं योगरताय च ।
नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम:।7

ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज-सूनवे ।
तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात्। 8

देवासुरमनुष्याश्च सिद्ध-विद्याधरोरगा:।
त्वया विलोकिता: सर्वे नाशं यान्ति समूलत:। 9

प्रसाद कुरु मे सौरे ! वारदो भव भास्करे।
एवं स्तुतस्तदा सौरिर्ग्रहराजो महाबल: ।10



शनैश्चरी अमावस्या पर शनि देव को प्रसन्न करने के शास्त्रोक्त  उपाय।

ज्योतिषशास्त्र के अनुसार सभी व्यक्ति की कुंडली में 9 ग्रह होते है जो अपना प्रभाव दिखाते है।

इन ग्रहों की स्थिति परिवर्तन के वजह से मनुष्य को समय समय पर अच्छे व बुरे दोनों परिणाम प्राप्त होते है।

इन 9 ग्रह में से केवल शनि देव ऐसे है जिनके प्रभाव से मनुष्य घबरा जाता है। 

हिन्दू धर्मशास्‍त्रों में भी शनिदेव का चरित्र भी दण्डाधिकारी के रूप में माना गया है जो कि कर्म और सत्य को जीवन में अपनाने की ही प्रेरणा देता है।

लेकिन अगर आप शनिदेव को प्रसन्न करना चाहते हैं तो शास्‍त्रों में बहुत सारे उपाय बताए गए हैं जिससे शनिदेव प्रसन्‍न हो जाएंगे।

शनिदेव के प्रसन्‍न होने से आपका जीवन सफल हो जाएगा। तो आइए जानते हैं उन उपायों को

अगर आप शनि को प्रसन्न करना चाहते हैं तो शनैश्चरी अमावस्या के दिन पीपल के वृक्ष के नीचे दीपक जलाएं और दोनों हाथों से पीपल के पेड़ को स्‍पर्श करें।

इस दौरान पीपल के पेड़ की परिक्रमा करें और शनि मंत्र ‘ऊं शं शनैश्‍चराय नम:’ का जाप करते रहना चाहिए, यह आपकी साढ़ेसाती की सभी परेशानियों को दूर ले जाता है।

साढ़ेसाती के प्रकोप से बचने के लिए इस दिन उपवास रखने वाले व्यक्ति को दिन में एक बार नमक विहीन भोजन करना चाहिए।


उपाय

अगर आपकी कोई विशेष मनोकामना है तो शनैश्चरी अमावस्या के दिन आप अपने लंबाई का लाल रंग का धागा लेकर इसे आम के पत्‍ते पर लपेट दें।

इस पत्‍ते और लपेटे हुए धागे को लेकर अपनी मनोकामना को मन में आवाहन करें और उसके बाद इस पत्‍ते और धागे को बहते हुए जल में प्रवाहित कर दें। इससे आपकी मनोकामना जल्‍द पूरी होगी।


उपाय

अक्‍सर ऐसा होता है कि लोग बहुत संघर्ष व मेहनत करते हैं लेकिन उन्‍हें सफलता हाथ नहीं लगती या लोग जो सोचते हैं वो हो नहीं पाता ऐसे में लोग न चाहते हुए भी अपने भाग्‍य को कोसने लगते हैं।

कहते हैं कि भाग्य बिल्कुल भी साथ नहीं देता और दुर्भाग्य निरन्तर पीछा कर रहा है।

कहा जाता है कि इंसान के पिछले कर्मों के अच्छे-बुरे परिणामों का फल भी आपके भाग्‍य का निर्धारण करता है इसलिए आपको इन सभी बातों को छोड़कर निष्काम भाव से सच्चे मन से प्रयास करना चाहिए।

लेकिन आज एक उपाय जो हम आपको बताने जा रहे हैं उसे करने से आपका सोया हुआ भाग्‍य जाग जाएगा।

शनैचरी अमावस्या से आरंभ कर लगातार 41 दिन रोज सुबह गाय का दुध लेकर नहाने से पहले इसे अपने सिर पर थोड़ा सा रख लें।

और फिर नहा लें अगर आप ऐसा रोज करेंगे तो आपका सोया हुआ भाग्‍य जाग जाएगा।

इतना ही नहीं आप जो भी काम सोचेंगे वो पूरा हो जाएगा। आपकी जीवन में आ रही रूकावटें खत्‍म हो जाएगी। बस अधिक से अधिक संयम रखने का प्रयास करें।


बुधवार, 8 अगस्त 2018

Shabar Mantra eBook 14 Mahakali Sadhna

शाबर मन्त्र भाग 14 "महाकाली सिद्धि" में महाकाली माँ की सिद्धि के शक्तिशाली शाबर मंत्रो, तंत्रोक्त मन्त्र तंत्रों व यंत्रो का संकलन किया गया हैं जिनके नियम से साधना करने से माँ काली की कृपा प्राप्त करना सम्भव है |

इस eBook में दिए गये मन्त्रो, विधानों का कोई भी साधारण इंसान. भगत, साधक सभी कर सकते है | यदि गुरु नही बनाया गया है तो आप शाबर मन्त्र भाग 1 को पढ़िए, उसे पढने के बाद उस पर अच्छे से चिन्तन करिये फिर फिर आप स्वयम में ही साधना करने को तैयार हो जायेंगे, आपके सभी प्रश्नों का हल मिल जायेगा और फिर आप किसी भी मन्त्र साधना को बड़े ही आसानी से सम्पन्न कर पाएंगे |

शाबर मन्त्र भाग-14 महाकाली सिद्धि यह ईबुक माँ काली की विशेष कृपा, सिद्धि प्राप्त करने के लिए एक साधन है जिससे की आप स्वयं का और अन्य लोगू के दुःख-दर्द दूर करने के काबिल बनोंगे और जो महाकाली माँ का भगत है या माँ महाकाली जिनकी इष्ट है उनके लिए तो यह eBook महाकाली का आशीर्वाद स्वरूप है |

महाकाली सचमुच के रूप में अनुवाद महान काली , है हिन्दू देवी के समय और मौत , की पत्नी माना महाकाल , चेतना के देवता, के आधार वास्तविकता और अस्तित्व। संस्कृत में महाकाली हिंदू धर्म में भगवान शिव का एक प्रतीक है, जो महाकाला या महान समय (जिसे मृत्यु के रूप में भी समझा जाता है ) का व्युत्पन्न रूप है । महाकाली आदि पराशक्ति का रूप है , जो समय और स्थान से परे है।काली आदि पैरशक्ति के क्रोध का बल है और इसलिए उसका रंग काला है। वह काली का सबसे बड़ा पहलू है, जिसे कई हिंदू दिव्य माता के रूप में रखते हैं।

महाकाली का इतिहास विभिन्न पुराणिक और तांत्रिक हिंदू शास्त्रों ( शास्त्र ) में निहित है । इन में वह नाना प्रकार से के रूप में चित्रित किया गया है आदि-शक्ति - देवी दुर्गा , ब्रह्मांड के आदिम सेना, परम सत्य या के साथ समान ब्राह्मण । उन्हें (पुरुष) पुराकृति या विश्व के रूप में भी जाना जाता है (पुरुष) पुरुष या चेतना, या महादेवी दुर्गा (महान देवी) के तीन अभिव्यक्तियों में से एक के रूप में जो सांख्य दर्शन में तीन गुना या गुणों का प्रतिनिधित्व करते हैं । इस व्याख्या में महाकाली तामस का प्रतिनिधित्व करती हैया जड़ता की शक्ति। देवी महात्मा ("देवी की महानता") की एक आम समझ , मार्कंडेय पुराण में बाद में हस्तक्षेप , शक्तिवाद का एक मुख्य पाठ माना जाता है (हिंदू धर्म की शाखा जो देवी दुर्गा को भगवान के सर्वोच्च पहलू के रूप में मानती है ) इसमें तीनों एपिसोड में से प्रत्येक के लिए देवी ( महासरस्वती , महालक्ष्मी , और महाकाली) का एक अलग रूप है। यहां महाकाली को पहले एपिसोड में सौंपा गया है। उन्हें एक अमूर्त ऊर्जा, विष्णु के योगानिद्रा के रूप में वर्णित किया गया है । ब्रह्मा ने उसे बुलाया और वह विष्णु से निकल गई और वह जागृत हो गया। उसके बाद राक्षसों को मारता है |

काली नाम का मतलब कला या समय का बल है। जब न तो सृजन, न ही सूर्य, चंद्रमा, ग्रह और पृथ्वी थी, वहां केवल अंधेरा था और अंधकार से सब कुछ बनाया गया था। काली की अंधेरी उपस्थिति अंधेरे का प्रतिनिधित्व करती है जिससे सब कुछ पैदा हुआ था। उसका रंग गहरा नीला है, जैसे आकाश और समुद्र के पानी नीले रंग के रूप में। चूंकि वह संरक्षण की देवी भी है, काली को प्रकृति के संरक्षक के रूप में पूजा की जाती है । काली शिव पर शांत खड़ा है , उसकी उपस्थिति मां प्रकृति के संरक्षण का प्रतिनिधित्व करती है। उसके मुक्त, लंबे और काले बाल सभ्यता से प्रकृति की आजादी का प्रतिनिधित्व करते हैं। काली की तीसरी आंखों के नीचे, सूर्य, चंद्रमा और आग दोनों के संकेत दिखाई दे रहे हैं जो प्रकृति की चालक शक्तियों का प्रतिनिधित्व करते हैं । काली हमेशा अंधेरे देवी के रूप में नहीं सोचा जाता है। काली की उत्पत्ति युद्ध के बावजूद, वह अपनी रचनात्मक, पोषण और भस्म करने वाले पहलुओं में मां प्रकृति के पूर्ण प्रतीक के रूप में विकसित हुई। हिंदू तांत्रिक परंपरा में उन्हें एक महान और प्रेमपूर्ण प्रामाणिक मां देवी के रूप में जाना जाता है। इस पहलू में, मां देवी के रूप में, उन्हें काली मां के रूप में जाना जाता है, जिसका अर्थ काली मां है, और लाखों हिंदू इस तरह के सम्मान में हैं।

इस eBook को बनाने में बहुत ही ज्यादा समय लगा है और इसमें ऐसे प्रयोग, मन्त्र, तन्त्र आदि दर्शाए गये है जिनका प्रयोग कई बार किया जा चूका है तथा जो दुखी अपनी समस्याओ के समाधान के लिए हमे ईमेल या कमेंट करते है उन्हें भी हम इसी eBook से साधना बताते है जिसका की परिणाम भी उचित आता है |




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