हमारी साईट पर पधारने के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद | यदि आपके पास कोई सुझाव हो तो हमे जरुर बताये |

सोमवार, 31 दिसंबर 2018

लोग हमारे विषय में क्या कहते है ? Shabar Mantra Review by users

हमने इस सप्ताह को हमारी ईबुक्स खरीदने वाले सभी मित्रो को एक सर्वे फॉर्म भेजा था जिसमे से अभी केवल कुछ ही लोगो का जवाब आया है जिनको की हम आपके साथ साँझा कर रहे है ताकि आप सभी को अनुमान हो सके की हमारी ईबुक्स कैसी है और इनसे क्या फायदा लोगो को पहुंचा है |
इसके लिए एक सभी लोगो के जवाब एक साथ एक फोटो (स्क्रीनशॉट) के रूप में और अलग अलग  फोटो (स्क्रीनशॉट) के रूप में आपके साथ साँझा का रहे है ताकि आप भी आंकलन कर सके |
आज तक आपने कई तन्त्र मन्त्र की पुस्तकें देखि और पढ़ी होगी लेकिन जेसा की मैं आपको EBOOK मैं मत्रों का संग्रह दे रहा हूँ वेसी आपने ना तो देखि होगी और ना ही सुनी होगी | ऐसे ऐसे मन्त्र, तन्त्र, यन्त्र प्रयोग इस पुस्तक में दियें गये है जोकि कई हजारों रुपये खर्च करने पर भी सिद्ध महापुरुष / भगत लोग किसी को नही बताते | ये मन्त्र ऐसे है जोकि छोटी से छोटी साधना की पूर्ति करने व जप करने से ही मन्त्र के वीर / सिद्ध आत्मा अपना प्रभाव तुरंत ही दिखाने लगते है |


शाबर मंत्र अत्यंत ही अटपटे शब्दों की रचना होती है | जिनके बार बार आवृति से यह अत्यंत ही तीक्ष्ण प्रभावशाली बनकर तनाव चिंता से मुक्ति दिलाते ही है | साथ में मानवी इच्छा को पूर्ण करते है | इन मंत्रो के मूलभूत स्रष्टा गुरु गोरखनाथ जी है | जिन्होंने इन मंत्रो की रचना कर अध्यात्म के क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन लाया था | वस्तुतः वैदिक मन्त्र कीलित होते है जिनको की जनसाधारण द्वारा सिद्ध करना बहुत ही मुस्किल कार्य है | तथा इनको बिना गुरु के ना ही समझा जा सकता है और ना ही इन्हें सिद्ध करने का अधिकारी हो सकता है | मन्त्र उच्चारण भी बहुत कठिन होते है जिनको की बिना व्याकरण ज्ञान के ठीक ढंग से उच्चारित नहीं किया जा सकता है | तब जाकर शिव जी, गुरु गोरखनाथ, नाथ पंथी, सिद्ध साधको आदि ने लोक कल्याण के लिए इन शाबर मंत्रो का निर्माण किया जिनका कोई भी व्यक्ति किसी भी धर्म, जाति, उम्र, स्त्री, पुरुष कोई भी इनका प्रयोग बड़ी ही आसानी से खुद ही कर सकता है |
शाबर मंत्रो की सिद्धी के लिए वैदिक तांत्रिक मन्त्रो जैसे कड़े एंव समस्या पूर्ण विधान नहीं होते है |इनके साथ समय, स्थान, पात्र, सामग्री, जप संख्या, हवन आदि की ज्यादा जरूरत नहीं पड़ती | कहीं भी, कभी भी, किसी भी स्थिति में कोई भी इन शाबर मंत्रो का प्रयोग कर सकता है |



शाबर मन्त्रो की उत्पत्ति
    ‘साबरया शबरशब्द का पर्यायवाची अर्थ ग्रामीण, अपरिष्कृत, असभ्य आदि होता है | ‘साबर-तन्त्र’ – तन्त्र की ग्राम्य (ग्रामीण) शाखा है | इसके प्रवर्तक भगवान् शंकर स्वयं प्रत्यक्षतया नहीं है, किन्तु जिन सिद्ध-साधको ने इसका आविष्कार किया, वे जरुर परम-शिव-भक्त अवश्य थे | गुरु गोरखनाथ तथा गुरु मछिन्दर नाथ साबर-मन्त्रके जनक माने जाते हैं | तथा गोरखनाथ जी ही मुख्यतः शाबर मन्त्रो के प्रचारक माने जाते है | वे   अपने तपोबल से वे भगवान् शंकर के समान पूज्य माने जाते हैं | अपनी साधना के कारण वे मन्त्र-प्रवर्तक ऋषियों के समान विश्वास और श्रद्धा के पात्र हैं | ‘सिद्धऔर नाथसम्प्रदायों ने मिलकर परम्परागत मन्त्रों के मूल सिद्धान्तों को लेकर आम बोल-चाल की भाषा को अटपटे स्वरूप देकर उन शब्दों को शाबर मन्त्रो का दर्जा दिया गया |
साबर’-मन्त्रों में दुहाई’, ‘गाली’, ‘आनऔर शाप’, ‘श्रद्धाऔर धमकीइन सबका  प्रयोग किया जाता है | साधक अपने शाबर मन्त्र के देव के समक्ष बालकया याचकबनकर देवता को सब कुछ कहता है और उसी से सब कुछ कराना चाहता है | जिस प्रकार एक बालक अपने माता पिता से अपनी इच्छित वस्तु प्राप्त करने के लिए कुछ भी अनाप-शनाप कह देता है | और तो और आश्चर्य यह है कि उस साधक की यह दुहाई’, ‘गाली’, ‘आनऔर शाप’, ‘श्रद्धाऔर धमकीभी काम करती है | ‘दुहाई’, ‘आनका अर्थ है सौगन्ध, कसम देकर कार्य करवाने को बाध्य करना |

तांत्रिक व् शास्त्रीय प्रयोगों में इस प्रकार की दुहाई’, ‘गाली’, ‘आनऔर शाप’, ‘श्रद्धाऔर धमकीआदि नहीं दी जाती है | ‘साबर’-मन्त्रों की रचना में हमे संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, और कई क्षेत्रीय भाषाओं का समायोजन मिलता है तो कुछ मन्त्रों में संस्कृत और मलयालय, कन्नड़, गुजराती, बंगाली या तमिल भाषाओं का मिश्रित रुप मिलेगा, तो किन्हीं में शुद्ध क्षेत्रीय भाषाओं की ग्राम्य-शैली भी मिल जाती है |

हालाँकि हिन्दुस्तान में कई तरह की भाषाओ का प्रयोग व्यवहार में लाया जाता है फिर भी इसके बड़े भू-भाग में बोली जाने वाली भाषा हिन्दीही है | अतः अधिकांश साबरमन्त्र हिन्दी में ही देखने-सुनने को मिलते हैं | इस मन्त्रों में शास्त्रीय मन्त्रों के समान षड्न्गन्यास’ – ऋषि, छन्द, बीज, शक्ति, कीलक और देवता आदि की प्रक्रिया अलग से नहीं रहती, अपितु इन अंगों का वर्णन मन्त्र में ही सम,समाहित रहता है | इसलिए प्रत्येक साबरमन्त्र अपने आप में पूर्ण होते है | उपदेष्टा ऋषिके रुप में गोरखनाथ, लोना चमारिन, योगिनी, मरही माता, असावरी देवी, सुलेमान जैसे सिद्ध-पुरुष हैं | कई मन्त्रों में इनके नाम लिए जाते हैं और कईयों में केवल गुरु के नाम से ही काम चल जाता है |
पल्लव’ (शास्त्रीय मन्त्रो के अन्त में लगाए जाने वाले शब्द आदि) के स्थान पर 
शब्द साँचा पिण्ड काचा, फुरो मन्त्र ईश्वरी वाचा
वाक्य ही सामान्यतः रहता है | इस वाक्य का अर्थ है-

शब्द (अक्षर/ध्वनि) ही सत्य है, नष्ट नहीं होती |
यह देह (शरीर) अनित्य (हमेशा न रहने वाला) है, बहुत कच्चा है |
हे मन्त्र | तुम ईश्वर की वाणी हो (ईश्वर के वचन से प्रकट होवो)


इसी प्रकार
मेरी भक्ति गुरु की शक्ति
फुरो मन्त्र ईश्वरी वाचा
और उपरोक्त वाक्य का अर्थ है
मेरी भक्ति (विश्वास/ श्रद्धा) की ताकत से |
मेरे गुरु की शक्ति से |
हे मन्त्र | तुम ईश्वर की वाणी होकर चलो (ईश्वर के वचन से प्रकट होवो)

या इससे मिलते-जुलते दूसरे शब्द आदि शाबर मन्त्रों के पल्लवहोते है |








शाबर मन्त्र | हमारे बारे में लोगो की राय, विचार

शाबर मन्त्र | हमारे बारे में लोगो की राय, विचार

शाबर मन्त्र | हमारे बारे में लोगो की राय, विचार

शाबर मन्त्र | हमारे बारे में लोगो की राय, विचार

शाबर मन्त्र | हमारे बारे में लोगो की राय, विचार

शाबर मन्त्र | हमारे बारे में लोगो की राय, विचार

शाबर मन्त्र | हमारे बारे में लोगो की राय, विचार

शाबर मन्त्र | हमारे बारे में लोगो की राय, विचार

शाबर मन्त्र | हमारे बारे में लोगो की राय, विचार

शाबर मन्त्र | हमारे बारे में लोगो की राय, विचार

विशेष: यहाँ हमने हमारे ईबुक्स खरीददारो की ईमेल-पता छिपाया है |

रविवार, 2 दिसंबर 2018

शाबर मन्त्र संग्रह भाग-15 श्री कामाक्षा देवी मन्त्र तन्त्र साधना | KAMAKSHA DEVI MANTRA TANTRA SADHNA

शाबर मन्त्र संग्रह भाग-15 श्री कामाक्षा देवी मन्त्र तन्त्र साधना


शाबर मन्त्र संग्रह भाग-15 श्री कामाक्षा देवी मन्त्र तन्त्र साधना

योनि मात्र शरीराय कुंजवासिनि कामदा।
रजोस्वला महातेजा कामाक्षी ध्येताम सदा॥
इस बारे में `राजराजेश्वरी कामाख्या रहस्यएवं `दस महाविद्याओंनामक ग्रंथ के रचयिता एवं मां कामाख्या के अनन्य भक्त ज्योतिषी एवं वास्तु विशेषज्ञ डॉ॰ दिवाकर शर्मा ने बताया कि अम्बूवाची योग पर्व के दौरान मां भगवती के गर्भगृह के कपाट स्वत ही बंद हो जाते हैं और उनका दर्शन भी निषेध हो जाता है। इस पर्व की महत्ता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पूरे विश्व से इस पर्व में तंत्र-मंत्र-यंत्र साधना हेतु सभी प्रकार की सिद्धियाँ एवं मंत्रों के पुरश्चरण हेतु उच्च कोटियों के तांत्रिकों-मांत्रिकोंअघोरियों का बड़ा जमघट लगा रहता है। तीन दिनों के उपरांत मां भगवती की रजस्वला समाप्ति पर उनकी विशेष पूजा एवं साधना की जाती है।

पौराणिक सत्य है कि अम्बूवाची पर्व के दौरान माँ भगवती रजस्वला होती हैं और मां भगवती की गर्भ गृह स्थित महामुद्रा (योनि-तीर्थ) से निरंतर तीन दिनों तक जल-प्रवाह के स्थान से रक्त प्रवाहित होता है। यह अपने आप मेंइस कलिकाल में एक अद्भुत आश्चर्य का विलक्षण नजारा है।

कामाख्या मंदिर असम की राजधानी दिसपुर के पास गुवाहाटी से 8 किलोमीटर दूर कामाख्या में है। कामाख्या से भी 10 किलोमीटर दूर नीलाचल पव॑त पर स्थित है। यह मंदिर शक्ति की देवी सती का मंदिर है। यह मंदिर एक पहाड़ी पर बना है  व इसका महत् तांत्रिक महत्व है। प्राचीन काल से सतयुगीन तीर्थ कामाख्या वर्तमान में तंत्र सिद्धि का सर्वोच्च स्थल है। पूर्वोत्तर के मुख्य द्वार कहे जाने वाले असम राज्य की राजधानी दिसपुर से 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित नीलांचल अथवा नीलशैल पर्वतमालाओं पर स्थित मां भगवती कामाख्या का सिद्ध शक्तिपीठ सती के इक्यावन शक्तिपीठों में सर्वोच्च स्थान रखता है। यहीं भगवती की महामुद्रा (योनि-कुण्ड) स्थित है।


अम्बुवाची पर्व विश्व के सभी तांत्रिकोंमांत्रिकों एवं सिद्ध-पुरुषों के लिये वर्ष में एक बार पड़ने वाला अम्बूवाची योग पर्व वस्तुत एक वरदान है। यह अम्बूवाची पर्वत भगवती (सती) का रजस्वला पर्व होता है। पौराणिक शास्त्रों के अनुसार सतयुग में यह पर्व 16 वर्ष में एक बारद्वापर में 12 वर्ष में एक बारत्रेता युग में 7 वर्ष में एक बार तथा कलिकाल में प्रत्येक वर्ष जून माह में तिथि के अनुसार मनाया जाता है। इस बार अम्बूवाची योग पर्व जून की 222324 तिथियों में मनाया गया।

कामाख्या-मन्त्र का महत्त्व कामाख्या तन्त्र’ के अनुसार सिद्धि की हानि’ एवं विघ्न-निवारण’ हेतु कामाख्या-मन्त्र’ का जप आवश्यक है। सभी साधकों को सभी देवताओं के उपासकों को कामाख्या-मन्त्र की साधना’ अवश्य करनी चाहिए। शक्ति के उपासकों के लिए कामाख्या-मन्त्र’ की साधना अत्यन्त आवश्यक है। यह कामाख्या-मन्त्र’ कल्प-वृक्ष के समान है। सभी साधकों को एकदो या चार बार इसका साधना एक वर्ष मे अवश्य करना चाहिए।

भाषा: हिंदी    मूल्य: 201 / -

गाय भैंस का दूध बढ़ाने का मन्त्र | Spell to increase Cow & Buffalo milk

गाय भैंस का दूध बढ़ाने का मन्त्र | Spell to increase Cow & Buffalo milk 

घर में दुग्धारी पशुओं जैसे की गाय, भैंस, बकरी आदि का दूध बढ़ाने के लिए आज हम आपको दो अनुभूत शाबर मन्त्र साधना दे रहे है जिससे की आपके दुग्धारी पशुओं जैसे की गाय, भैंस, बकरी आदि का दूध बढ़ने लगेगा | और आपको आशातीत से भी अधिक लाभ प्राप्ति होगी |

जैसा की पहले भी कई पोस्टों में यह दर्शाया गया है की शाबर मन्त्र की साधना करने से पहले कुछ जरूरी उपाय भी करने होने है जिनसे की आपकी साधना सफल
हो सके और आपका समय-पैसा-मेहनत आदि व्यर्थ ना जाये | और वो सभी जरूरी उपाय शाबर मन्त्र भाग 1 में दर्शाए गये है जिनका की आप भी फायदा उठा सकते है और एक सफल साधक बन सकते है चाहे आपके श्री गुरुदेव है या अभी तक आपको कोई गुरु नही मिला हो |

अभी तक हमने सिद्ध शक्तिशाली शाबर मन्त्रो  से सम्बन्धित 15 ईबूक्स का प्रकाशन किया है और अन्य और भी विषयों पर ई-पुस्तको का प्रकाशन कार्य प्रगति पर है | आपके प्रेम, प्रोत्साहनों, सुझावों की मदद से हम ईबुक्स के कार्यो को और भी प्रभावी बनाने का प्रयत्न कर रहे है और उन सभी ईबुक्स में गुप्त गुरु-शिष्य परम्परा से चलने वाले उपाय, शाबर मन्त्र तन्त्र टोटके, व् अन्य तांत्रिक उपाय, साधना, तर्क, बातो का समावेश किया गया है |

शाबर मन्त्र 1:

|| ॐ ह्रीं कराली पुरुष मुख रूपा ठ: ठ: ||

इस मन्त्र को रोज पानी पर 21 बार जाप करके अभिमंत्रित करे | फिर इसी अभिमंत्रित जल के द्वारा अपने घरेलू दुग्धारी पशुओं जैसे की गाय, भैंस, बकरी आदि के आंचल को धोएं | ऐसा रोज करते रहे और ध्यान देते रहे, रोज आपके दुग्धारी पशुओं के दूध में वृद्धि होती रहेगी |


शाबर मन्त्र 2:

|| ॐ हुंकारीणे प्रसर शतीत ||

इस मन्त्र   को पहले कार्तिक शुक्ल की चौदस को केवल एक माला जाप करके सिद्ध कर लीजिये फिर इसी मन्त्र के द्वारा दुग्धारी पशुओं जैसे की गाय, भैंस, बकरी आदि का चारा- घास, खल आदि को अभिमंत्रित करके खिलाये |



शनिवार, 1 दिसंबर 2018

A real Bhagtaai Life Story | भगताई जीवन की एक सच्ची घटना


A real Bhagtaai Life Story | भगताई जीवन की  एक सच्ची घटना
यह घटना दिल्ली के *** नगर के होली चौक नामक स्थान की है वहा एक महिला थी मितभाषीसभी पर दया करने वाली और लोग उसे माँमाता जी कहकर पुकारते थे उस महिला में कई देविया की सवारी आती थी और लगभग 10-15 साल से उस महिला ( उस महिला में आने वाली देवी की सवारी) ने कई लोगो का भला कियाकई ही लोगो को सही रास्ता दिखायाबहुत से लोगो के काम में हाथ डाला और वह देवी पर विश्वास के कारण किसी को भी गुरु बनानाशिक्षा दीक्षा लेना जरूरी नहीं समझा क्योंकि वाही बात है की जब शक्ति (शक्तियों) खुद ही उसके पास आ गई है तो उसे कही ओर जाने की जरूरत ही क्या थीपरन्तु ऐसे भगत से कुछ अपने-पराये लोग अक्सर द्वेषभाव भी रखते है जो की उन भगतो कोबर्बाद करना चाहते है सो उस महिला के साथ भी कुछ वैसा ही हुआ की उस पर किसी ने अभिचार कर्म कर दिया बस फिर क्या थाअभिचार कर्म अपना काम करता रहा और निगुरीय दैवीय शक्ति (शक्तियों) अपने बल से जहाँ तक सम्भव हो सका रोकती रहती और बाकी भार भगत पर पड़ताधीरे-धीरे उस महिला की शक्ति (शक्तियों) बंधन में आ गई और उस महिला से वो शक्ति (शक्तियों) दूर होने लगी फिर पूरा परिवार बर्बादी की ओर अग्रसर होने लगा और देखते ही देखते वो महिला भगत बीमार पड़ने लगी और अंत को प्राप्त हो गई |
अगर उस महिला पर किसी अच्छे साधक या गुरु का हाथ होता तो ऐसी नौबत ही नहीं आती क्योंकि गुरु पहले से ही सब सम्भावित खतरों से बचाव का उपाय कर देता है या फिर हर एक उपाय भगत को बता देता है जिससे की भगत पर आगे भविष्य में किसी का वार या अभिचार कर्म हानि ना पहुंचा पाए|
तो प्रिय भगतो अब आप समझ ही चुके होगे की एक भगत के लिया गुरु की जरुरत कितनी है अगर गुरु अच्छा मिला तो समझे की जिंदगी सफल हो गई और अगर किसी ऐसे ही गुरु के चक्कर में फँस गये तो वो आपकी शक्ति (शक्तियों) को अपने काम में प्रयोग करेगा और आप को किसी भी तरह का ज्ञान-विद्या नही देगा बल्कि यही कहेगा की पूजा-पाठ करो और शक्ति (शक्तियों) को याद करो जबकि एक अच्छा और सच्चा गुरु आपको हर चीज़ की काट करनाबचाव करना और भी कई बाते है वो सब आपको बता देता है जिससे की आप किसी भी तरह की परेशानी को सहज ही हल कर सको |
पानी पियो छान के |
गुरु करो जान के ||


जैसा की आप अभी पढ़ ही चुके है की गुरु का एक भगत के जीवन में कितना महत्पूर्ण स्थान है |  तो जैसा की आपको बताया गया है उसके बावजूद भी कई बार ऐसा होता है कि एक गुरु होता है वह अपने शिष्य को पूरा ज्ञान नहीं देता है और अक्सर 99 प्रतिशत स्थिति में यही होता है कि वह गुरु अपने शिष्य को कभी भी पूरा ज्ञान ध्यान नहीं देता है खासकर की भगताई लाइन की ऐसा इसलिए होता है क्योंकि गुरु यह सोचता है कि यदि मैंने इसको पूरा ज्ञान दे दिया तो बाद में गुरु की शीशे को कोई जरुरत नहीं पड़ेगी क्योंकि उसमें वही बात हो गई गुरु गुड रहा और चेला चीनी हो गया और अधिकतर ऐसा होता भी है कि चेले लोग अपने गुरु से सेवा पूछ लेते हैं कैसे क्या करना है और फिर बाद में जैसे उनको थोड़ा सा आगे रास्ता दिखता है खुद बखुद यहाँ वहां से पढ़ लेते हैं और सिर्फ वही से समस्या खड़ी हो जाती है कि आपके काम धीरे धीरे रुकने शुरू हो जाते हैं और एक समय ऐसा था कि आपने यदि किसी देवता की सवारी भी आती है तो आप पूर्णतया  ही निष्क्रिय हो जाते हैं आपके देवता कोई काम नहीं करते वक्त जरूर देते हैं कि फलाना काम इस विधी से हो जायेगा या  मैं इतने समय में कर दूंगा लेकिन होता कुछ भी नहीं है सिर्फ देखते रहो देवता झूठ बोलता रहता है और कब तक आपको आगे का टाइम देता रहता है इतने दिन में हो जाएगा इसमें टाइम में हो जायेगा पुरे होता क्यों नही है और ऐसा होता क्यों है क्योंकि चैला जो है थोड़ा बोलते ही सोचने लगता है कि हम उसे सब कुछ आ गया और कुछ गुरु लोग भी ऐसे होते हैं जोकि अपने चेले को पूरा ध्यान ज्ञान विधि पूरी विधि से नहीं बताते हैं |

वैसे आपके गुरु का कोई स्वार्थ भी हो सकता है कि इन में गुरु का अपना कोई स्वार्थ हो कि वह आपको पूरी विधि नहीं बताता है और परिणाम स्वरुप आपको भटकना पड़ता है आपके सभी रास्ते बंद हो जाते हैं आपको समझ नहीं आता कि क्या किया जाए आपके सभी काम रुक जाते हैं और परेशानियां शुरू हो जाती है समझ नहीं आता है ऐसा क्यों हो रहा है |

Chaitra navratri 2024 muhurat, pooja

चैत्र नवरात्रि 2024: तिथियाँ, महत्व, और धार्मिक अनुष्ठान हिन्दू धर्म में चैत्र नवरात्रि का आयोजन 9 अप्रैल से 17 अप्रैल तक होगा। इस महत्वपूर्...