हमारी साईट पर पधारने के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद | यदि आपके पास कोई सुझाव हो तो हमे जरुर बताये |

बुधवार, 27 अक्तूबर 2021

Diwali Date & Shubh Muhurat 2021 दीपावली 2021 शुभ मुहूर्त

दीपावली 2021 शुभ मुहूर्त

 

Diwali Date & Shubh Muhurat 2021 दीपावली 2021 शुभ मुहूर्त

हिंदू धर्म में दिवाली का बहुत अधिक महत्व होता है। दिवाली के पावन पर्व की शुरुआत धनतेरस से हो जाती है। धनतेरस से भैय्या दूज तक दिवाली की धूम रहती है। कार्तिक मास की अमावस्या के दिन महालक्ष्मी पूजा होती है। इस दिन विधि- विधान से भगवान गणेश और माता लक्ष्मी की पूजा- अर्चना की जाती है। माता लक्ष्मी को धन की देवी कहा जाता है। मां लक्ष्मी की कृपा से व्यक्ति के सभी दुख- दर्द दूर हो जाते हैं और जीवन सुखमय हो जाता है। आइए जानते हैं महालक्ष्मी पूजा डेट, शुभ मुहूर्त

 Download धनतेरस और दीपावली पूजन विधि pdf

दीपावली 2021 शुभ मुहूर्त

दीपावली 04 नवंबर 2021, दिन गुरूवार को है।

 

लक्ष्मी पूजा का शुभ मुहूर्त

शाम 06:10 बजे से रात्रि 08:06 बजे तक

पूजा की अवधि 01 घंटा 54 मिनट

 

प्रदोष काल मुहूर्त

शाम 05:34 बजे से रात्रि 08:10 बजे तक

 

अमावस्या तिथि प्रारंभ 04 नवबंर 2021, सुबह 06:03 बजे से

 

अमावस्या तिथि समाप्त 05 नवबंर 2021, 02:44 बजे

 

दिवाली का पर्व पांच दिवसीय पर्व होता है, जोकि बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है। इस दौरान मां लक्ष्मी के साथ-साथ भगवान गणेश, कुबेर, धनवंतरि, यमराज, गोवर्धन आदि कई देवी-देवताओं की पूजा की जाती है। तथा सभी घरों में अनेक प्रकार के पकवान और मिष्ठान बनाए जाते हैं। घरों को दुल्हन की तरह सजाया जाता है। तथा मिट्टी के दीये जलाकर घरों को रोशन किया जाता है।

 

दीपावली के चार शुभ मुहूर्त (Deepawali/Diwali Date & Shubh Muhurat)

वृश्चिक लग्न दिवाली मुहूर्त–वृश्चिक लग्न में दिवाली लक्ष्मी पूजा सुबह के समय की जाती है | वृश्चिक लग्न के अंतर्गत मंदिर, हॉस्पिटल, होटल, स्कूल व कॉलेजों में पूजा की जाती है | अधिकांश राजनैतिक, टी.वी. फ़िल्मी कलाकार वृश्चिक लग्न में ही पूजा करते है |

 

कुंभ लग्न दिवाली मुहूर्त–कुंभ लग्न में दीपावली लक्ष्मी पूजा दोपहर के समय में की जाती है | कुंभ लग्न में वे लोग पूजा करते है जो बीमार रहते है जिन पर शनि की दशा ख़राब चल रही है और व्यापर में हानी हो रही है | वे लोग कुंभ लग्न में लक्ष्मी पूजन करते है |

 

 

वृषभ लग्न दिवाली मुहूर्त–वृषभ लग्न में दिवाली लक्ष्मी पूजन शाम के समय की जाती है | शास्त्रों व पुरानो के अनुसार लक्ष्मी पूजन का यहाँ समय बेहद शुभ माना जाता है |

 

सिहं लग्न दिवाली मुहूर्त–सिहं लग्न में दिवाली लक्ष्मी पूजन मध्य रात्रि में किया जाता है | मध्य रात्रि में निशीथ काल संतो व तांत्रिको द्वारा देवी लक्ष्मी का पूजन किया जाता है |

 

दीवाली पूजा हेतु पूजन सामग्री Deepawali Pujan Samagri

दीपावली पूजन सामग्री: दीवाली पूजा के सामान की लगभग सभी चीजें घर में ही मिल जाती हैं | कुछ अतिरिक्त वस्तुए जो बाहर से लाई जाती है | यहाँ आपको दिवाली लक्ष्मी पूजा में काम आने वाली सभी वस्तुओ की सूचि दे दी गई है | जो इस प्रकार है–

लक्ष्मी, सरस्वती व गणेश जी का चित्र या प्रतिमा, कमल व गुलब के फूल, पान का पत्ता, केसर, लाल कपड़ा, रोली, कुमकुम, चावल, पान, सुपारी, लौंग, इलायची, धूप, कपूर, अगरबत्तियां, मिट्टी तथा तांबे के दीपक, रुई, कलावा (मौलि), नारियल, शहद, दही, गंगाजल, गुड़, धनिया, फल, फूल, जौ, गेहूँ, दूर्वा, चंदन, सिंदूर, घृत, पंचामृत, दूध, मेवे, खील, बताशे, गंगाजल, यज्ञोपवीत (जनेऊ), श्वेत वस्त्र, इत्र, चौकी, कलश, कमल गट्टे की माला, शंख, आसन, थाली, चांदी का सिक्का, देवताओं के प्रसाद हेतु मिष्ठान्न (बिना वर्क का)

 

 

मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए इन बातों का रखें ध्यान-

 

मां लक्ष्मी को साफ- सफाई पसंद होती है। दिवाली से पहले घर की अच्छी तरह से साफ- सफाई कर लें। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मां लक्ष्मी का वास वहीं होता है जहां पर स्वच्छता का ध्यान रखा जाता है।

मां लक्ष्मी उन लोगों पर प्रसन्न रहती हैं जो क्रोध नहीं करते हैं और सभी से प्रेम से बात करते हैं। मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने के लिए क्रोध न करें।

किसी भी पूजा से पहले भगवान गणेश की पूजा की जाती है। इस बात का विशेष ध्यान रखें। महालक्ष्मी के पावन दिन माता लक्ष्मी और भगवान गणेश की विधि- विधान से पूजा करें।

 

शस्त्रों में माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु की प्रसन्नता के लिए दीपावली की पूजा के लिए कुछ नियम बताए गए हैं | इन नियमों में गृहस्थों के लिए प्रदोष काल में संध्या के समय स्थिर लग्न में पूजन करना उत्तम माना गया है इससे सुख समृद्धि की वृद्धि होती है | जबकि तंत्र विद्या से माता लक्ष्मी की पूजा करने वालों के लिए मध्य रात्रि का समय उत्तम माना गया है क्योकि मध्य रात्रि में निशीथ काल में देवी लक्ष्मी की पूजा सभी प्रकार की कामना पूर्ण करने वाली मानी जाती है |

 

दीपावली पूजा विधि एवं शुभ मुहूर्त


 Download धनतेरस और दीपावली पूजन विधि pdf

हर वर्ष भारतवर्ष में दिवाली का त्यौहार बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है. प्रतिवर्ष यह कार्तिक माह की अमावस्या को मनाई जाती है. रावण से दस दिन के युद्ध के बाद श्रीराम जी जब अयोध्या वापिस आते हैं तब उस दिन कार्तिक माह की अमावस्या थी, उस दिन घर-घर में दिए जलाए गए थे तब से इस त्योहार को दीवाली के रुप में मनाया जाने लगा और समय के साथ और भी बहुत सी बातें इस त्यौहार के साथ जुड़ती चली गई।

 

“ब्रह्मपुराण” के अनुसार आधी रात तक रहने वाली अमावस्या तिथि ही महालक्ष्मी पूजन के लिए श्रेष्ठ होती है. यदि अमावस्या आधी रात तक नहीं होती है तब प्रदोष व्यापिनी तिथि लेनी चाहिए. लक्ष्मी पूजा व दीप दानादि के लिए प्रदोषकाल ही विशेष शुभ माने गए हैं।

दीपावली पूजन के लिए पूजा स्थल एक दिन पहले से सजाना चाहिए पूजन सामग्री भी दिपावली की पूजा शुरू करने से पहले ही एकत्रित कर लें। इसमें अगर माँ के पसंद को ध्यान में रख कर पूजा की जाए तो शुभत्व की वृद्धि होती है। माँ के पसंदीदा रंग लाल, व् गुलाबी है। इसके बाद फूलों की बात करें तो कमल और गुलाब मां लक्ष्मी के प्रिय फूल हैं। पूजा में फलों का भी खास महत्व होता है। फलों में उन्हें श्रीफल, सीताफल, बेर, अनार व सिंघाड़े पसंद आते हैं। आप इनमें से कोई भी फल पूजा के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं। अनाज रखना हो तो चावल रखें वहीं मिठाई में मां लक्ष्मी की पसंद शुद्ध केसर से बनी मिठाई या हलवा, शीरा और नैवेद्य है।

माता के स्थान को सुगंधित करने के लिए केवड़ा, गुलाब और चंदन के इत्र का इस्तेमाल करें।

 

दीये के लिए आप गाय के घी, मूंगफली या तिल्ली के तेल का इस्तेमाल कर सकते हैं। यह मां लक्ष्मी को शीघ्र प्रसन्न करते हैं। पूजा के लिए अहम दूसरी चीजों में गन्ना, कमल गट्टा, खड़ी हल्दी, बिल्वपत्र, पंचामृत, गंगाजल, ऊन का आसन, रत्न आभूषण, गाय का गोबर, सिंदूर, भोजपत्र शामिल हैं।

 

चौकी सजाना

 

लक्ष्मी

गणेश

मिट्टी के दो बड़े दीपक

कलश, जिस पर नारियल रखेंवरुण 

नवग्रह

षोडशमातृकाएं

कोई प्रतीक

बहीखाता

कलम और दवात

नकदी की संदूक

थालियां, 1, 2, 3, 

जल का पात्र

 

सबसे पहले चौकी पर लक्ष्मी व गणेश की मूर्तियां इस प्रकार रखें कि उनका मुख पूर्व या पश्चिम में रहे। लक्ष्मीजी, गणेशजी की दाहिनी ओर रहें। पूजा करने वाले मूर्तियों के सामने की तरफ बैठे। कलश को लक्ष्मीजी के पास चावलों पर रखें। नारियल को लाल वस्त्र में इस प्रकार लपेटें कि नारियल का अग्रभाग दिखाई देता रहे व इसे कलश पर रखें। यह कलश वरुण का प्रतीक है। दो बड़े दीपक रखें। एक में घी भरें व दूसरे में तेल। एक दीपक चौकी के दाईं ओर रखें व दूसरा मूर्तियों के चरणों में। इसके अलावा एक दीपक गणेशजी के पास रखें।

 

मूर्तियों वाली चौकी के सामने छोटी चौकी रखकर उस पर लाल वस्त्र बिछाएं। कलश की ओर एक मुट्ठी चावल से लाल वस्त्र पर नवग्रह की प्रतीक नौ ढेरियां बनाएं। गणेशजी की ओर चावल की सोलह ढेरियां बनाएं। ये सोलह मातृका की प्रतीक हैं। नवग्रह व षोडश मातृका के बीच स्वस्तिक का चिह्न बनाएं।

 

इसके बीच में सुपारी रखें व चारों कोनों पर चावल की ढेरी। सबसे ऊपर बीचों बीच ॐ लिखें। छोटी चौकी के सामने तीन थाली व जल भरकर कलश रखें। थालियों की निम्नानुसार व्यवस्था करें- 

1. ग्यारह दीपक

2. खील, बताशे, मिठाई, वस्त्र, आभूषण, चन्दन का लेप, सिन्दूर, कुंकुम, सुपारी, पान

3. फूल, दुर्वा, चावल, लौंग, इलायची, केसर-कपूर, हल्दी-चूने का लेप, सुगंधित पदार्थ, धूप, अगरबत्ती, एक दीपक।

 

इन थालियों के सामने पूजा करने वाला बैठे। आपके परिवार के सदस्य आपकी बाईं ओर बैठें। कोई आगंतुक हो तो वह आपके या आपके परिवार के सदस्यों के पीछे बैठे।

 

हर साल दिवाली पूजन में नया सिक्का ले और पुराने सिक्को के साथ इख्ठा रख कर दीपावली पर पूजन करे और पूजन के बाद सभी सिक्को को तिजोरी में रख दे।

 

पूजा की संक्षिप्त विधि स्वयं करने के लिए

 

पवित्रीकरण

-------------------

हाथ में पूजा के जलपात्र से थोड़ा सा जल ले लें और अब उसे मूर्तियों के ऊपर छिड़कें। साथ में नीचे दिया गया पवित्रीकरण मंत्र पढ़ें। इस मंत्र और पानी को छिड़ककर आप अपने आपको पूजा की सामग्री को और अपने आसन को भी पवित्र कर लें।

 

शरीर एवं पूजा सामग्री पवित्रीकरण मन्त्र

ॐ पवित्रः अपवित्रो वा सर्वावस्थांगतोऽपिवा।

यः स्मरेत्‌ पुण्डरीकाक्षं स वाह्यभ्यन्तर शुचिः॥

 

पृथ्वी पवित्रीकरण विनियोग

पृथ्विति मंत्रस्य मेरुपृष्ठः ग षिः सुतलं छन्दः कूर्मोदेवता आसने विनियोगः॥

 

अब पृथ्वी पर जिस जगह आपने आसन बिछाया है, उस जगह को पवित्र कर लें और मां पृथ्वी को प्रणाम करके मंत्र बोलें-

 

पृथ्वी पवित्रीकरण मन्त्र

ॐ पृथ्वी त्वया धृता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता।

त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु चासनम्‌॥

पृथिव्यै नमः आधारशक्तये नमः

 

अब आचमन करें

---------------------------

पुष्प, चम्मच या अंजुलि से एक बूंद पानी अपने मुंह में छोड़िए और बोलिए-

 

ॐ केशवाय नमः

 

और फिर एक बूंद पानी अपने मुंह में छोड़िए और बोलिए-

 

ॐ नारायणाय नमः

 

फिर एक तीसरी बूंद पानी की मुंह में छोड़िए और बोलिए-

 

ॐ वासुदेवाय नमः

 

इसके बाद संभव हो तो किसी किसी ब्राह्मण द्वारा विधि विधान से पूजन करवाना अति लाभदायक रहेगा। ऐसा संभव ना हो तो सर्वप्रथम दीप प्रज्वलन कर गणेश जी का ध्यान कर अक्षत पुष्प अर्पित करने के पश्चात दीपक का गंधाक्षत से तिलक कर निम्न मंत्र से पुष्प अर्पण करें।

 

शुभम करोति कल्याणम,

अरोग्यम धन संपदा,

शत्रु-बुद्धि विनाशायः,

दीपःज्योति नमोस्तुते !

 

पूजन हेतु संकल्प

 

इसके बाद बारी आती है संकल्प की। जिसके लिए पुष्प, फल, सुपारी, पान, चांदी का सिक्का, नारियल (पानी वाला), मिठाई, मेवा, आदि सभी सामग्री थोड़ी-थोड़ी मात्रा में लेकर संकल्प मंत्र बोलें- ऊं विष्णुर्विष्णुर्विष्णु:, ऊं तत्सदद्य श्री पुराणपुरुषोत्तमस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीय पराद्र्धे श्री श्वेतवाराहकल्पे सप्तमे वैवस्वतमन्वन्तरे, अष्टाविंशतितमे कलियुगे, कलिप्रथम चरणे जम्बुद्वीपे भरतखण्डे आर्यावर्तान्तर्गत ब्रह्मवर्तैकदेशे पुण्य (अपने नगर/गांव का नाम लें) क्षेत्रे बौद्धावतारे वीर विक्रमादित्यनृपते : 2070, तमेऽब्दे शोभन नाम संवत्सरे दक्षिणायने/उत्तरायणे हेमंत ऋतो महामंगल्यप्रदे मासानां मासोत्तमे कार्तिक मासे कृष्ण पक्षे अमावस तिथौ (जो वार हो) शनि वासरे स्वाति नक्षत्रे आयुष्मान योग चतुष्पाद करणादिसत्सुशुभे योग (गोत्र का नाम लें) गोत्रोत्पन्नोऽहं अमुकनामा (अपना नाम लें) सकलपापक्षयपूर्वकं सर्वारिष्ट शांतिनिमित्तं सर्वमंगलकामनया– श्रुतिस्मृत्यो- क्तफलप्राप्तर्थं— निमित्त महागणपति नवग्रहप्रणव सहितं कुलदेवतानां पूजनसहितं स्थिर लक्ष्मी महालक्ष्मी देवी पूजन निमित्तं एतत्सर्वं शुभ-पूजोपचारविधि सम्पादयिष्ये।

 

गणेश पूजन

--------------------

किसी भी पूजन की शुरुआत में सर्वप्रथम श्री गणेश को पूजा जाता है। इसलिए सबसे पहले श्री गणेश जी की पूजा करें।

इसके लिए हाथ में पुष्प लेकर गणेश जी का ध्यान करें। मंत्र पढ़े – गजाननम्भूतगणादिसेवितं

कपित्थ जम्बू फलचारुभक्षणम्।

उमासुतं शोक विनाशकारकं

नमामि विघ्नेश्वरपादपंकजम्।

 

गणपति आवाहन:

 ऊं गं गणपतये इहागच्छ इह तिष्ठ।। इतना कहने के बाद पात्र में अक्षत छोड़ दे।

 

इसके पश्चात गणेश जी को पंचामृत से स्नान करवाये पंचामृत स्नान के बाद शुद्ध जल से स्नान कराए अर्घा में जल लेकर बोलें- एतानि पाद्याद्याचमनीय-स्नानीयं, पुनराचमनीयम् ऊं गं गणपतये नम:।

 

रक्त चंदन लगाएं:

 इदम रक्त चंदनम् लेपनम् ऊं गं गणपतये नम:, इसी प्रकार श्रीखंड चंदन बोलकर श्रीखंड चंदन लगाएं। इसके पश्चात सिन्दूर चढ़ाएं “इदं सिन्दूराभरणं लेपनम् ऊं गं गणपतये नम:। दूर्वा और विल्बपत्र भी गणेश जी को अर्पित करें। उन्हें वस्त्र पहनाएं और कहें – इदं रक्त वस्त्रं ऊं गं गणपतये समर्पयामि।

 

पूजन के बाद श्री गणेश को प्रसाद अर्पित करें और बोले – इदं नानाविधि नैवेद्यानि ऊं गं गणपतये समर्पयामि:। मिष्ठान अर्पित करने के लिए मंत्र: इदं शर्करा घृत युक्त नैवेद्यं ऊं गं गणपतये समर्पयामि:। प्रसाद अर्पित करने के बाद आचमन करायें। इदं आचमनयं ऊं गं गणपतये नम:। इसके बाद पान सुपारी चढ़ायें: इदं ताम्बूल पुगीफल समायुक्तं ऊं गं गणपतये समर्पयामि:। अब एक फूल लेकर गणपति पर चढ़ाएं और बोलें: एष: पुष्पान्जलि ऊं गं गणपतये नम:

 

इसी प्रकार अन्य देवताओं का भी पूजन करें बस जिस देवता की पूजा करनी हो गणेश जी के स्थान पर उस देवता का नाम लें।

 

कलश पूजन

इसके लिए लोटे या घड़े पर मोली बांधकर कलश के ऊपर आम के पत्ते रखें। कलश के अंदर सुपारी, दूर्वा, अक्षत व् मुद्रा रखें। कलश के गले में मोली लपेटे। नारियल पर वस्त्र लपेट कर कलश पर रखें। अब हाथ में अक्षत और पुष्प लेकर वरुण देव का कलश में आह्वान करें। ओ३म् त्तत्वायामि ब्रह्मणा वन्दमानस्तदाशास्ते यजमानो हविभि:। अहेडमानो वरुणेह बोध्युरुशंस मान आयु: प्रमोषी:। (अस्मिन कलशे वरुणं सांगं सपरिवारं सायुध सशक्तिकमावाहयामि, ओ३म्भूर्भुव: स्व:भो वरुण इहागच्छ इहतिष्ठ। स्थापयामि पूजयामि॥)

 

इसके बाद इस प्रकार श्री गणेश जी की पूजन की है उसी प्रकार वरुण देव की भी पूजा करें। इसके बाद इंद्र और फिर कुबेर जी की पूजा करें। एवं वस्त्र सुगंध अर्पण कर भोग लगाये इसके बाद इसी प्रकार क्रम से कलश का पूजन कर लक्ष्मी पूजन आरम्भ करे

 

लक्ष्मी पूजन

--------------------

सर्वप्रथम निम्न मंत्र कहते हुए माँ लक्ष्मी का ध्यान करें।

 

ॐ या सा पद्मासनस्था,

विपुल-कटि-तटी, पद्म-दलायताक्षी।

गम्भीरावर्त-नाभिः,

स्तन-भर-नमिता, शुभ्र-वस्त्रोत्तरीया।।

लक्ष्मी दिव्यैर्गजेन्द्रैः। मणि-गज-खचितैः, स्नापिता हेम-कुम्भैः।

नित्यं सा पद्म-हस्ता, मम वसतु गृहे, सर्व-मांगल्य-युक्ता।।

 

अब माँ लक्ष्मी की प्रतिष्ठा करें

 हाथ में अक्षत लेकर मंत्र कहें – “ॐ भूर्भुवः स्वः महालक्ष्मी, इहागच्छ इह तिष्ठ, एतानि पाद्याद्याचमनीय-स्नानीयं, पुनराचमनीयम्।”

 

प्रतिष्ठा के बाद स्नान कराएं और मंत्र बोलें – ॐ मन्दाकिन्या समानीतैः, हेमाम्भोरुह-वासितैः स्नानं कुरुष्व देवेशि, सलिलं च सुगन्धिभिः।। ॐ लक्ष्म्यै नमः।। इदं रक्त चंदनम् लेपनम् से रक्त चंदन लगाएं। इदं सिन्दूराभरणं से सिन्दूर लगाएं। ‘ॐ मन्दार-पारिजाताद्यैः, अनेकैः कुसुमैः शुभैः। पूजयामि शिवे, भक्तया, कमलायै नमो नमः।। ॐ लक्ष्म्यै नमः, पुष्पाणि समर्पयामि।’इस मंत्र से पुष्प चढ़ाएं फिर माला पहनाएं। अब लक्ष्मी देवी को इदं रक्त वस्त्र समर्पयामि कहकर लाल वस्त्र पहनाएं। इसके बाद मा लक्ष्मी के क्रम से अंगों की पूजा करें।

 

माँ लक्ष्मी की अंग पूजा

--------------------------------

बाएं हाथ में अक्षत लेकर दाएं हाथ से थोड़े थोड़े छोड़ते जाए और मंत्र कहें – 

ऊं चपलायै नम: पादौ पूजयामि 

ऊं चंचलायै नम: जानूं पूजयामि

ऊं कमलायै नम: कटि पूजयामि

ऊं कात्यायिन्यै नम: नाभि पूजयामि

ऊं जगन्मातरे नम: जठरं पूजयामि

ऊं विश्ववल्लभायै नम: वक्षस्थल पूजयामि

ऊं कमलवासिन्यै नम: भुजौ पूजयामि

ऊं कमल पत्राक्ष्य नम: नेत्रत्रयं पूजयामि

ऊं श्रियै नम: शिरं: पूजयामि।

 

अष्टसिद्धि पूजा

----------------------

अंग पूजन की ही तरह हाथ में अक्षत लेकर मंतोच्चारण करते रहे। मंत्र इस प्रकर है – 

ऊं अणिम्ने नम:, ओं महिम्ने नम:, ऊं गरिम्णे नम:, ओं लघिम्ने नम:, ऊं प्राप्त्यै नम: ऊं प्राकाम्यै नम:, ऊं ईशितायै नम: ओं वशितायै नम:।

 

अष्टलक्ष्मी पूजन

----------------------

अंग पूजन एवं अष्टसिद्धि पूजा की ही तरह हाथ में अक्षत लेकर मंत्रोच्चारण करें। 

ऊं आद्ये लक्ष्म्यै नम:, ओं विद्यालक्ष्म्यै नम:, ऊं सौभाग्य लक्ष्म्यै नम:, ओं अमृत लक्ष्म्यै नम:, ऊं लक्ष्म्यै नम:, ऊं सत्य लक्ष्म्यै नम:, ऊं भोगलक्ष्म्यै नम:, ऊं योग लक्ष्म्यै नम:

 

नैवैद्य अर्पण

--------------------

पूजन के बाद देवी को 

“इदं नानाविधि नैवेद्यानि ऊं महालक्ष्मियै समर्पयामि” 

मंत्र से नैवैद्य अर्पित करें। 

मिष्टान अर्पित करने के लिए मंत्र: 

“इदं शर्करा घृत समायुक्तं नैवेद्यं ऊं महालक्ष्मियै समर्पयामि” बालें। 

प्रसाद अर्पित करने के बाद आचमन करायें। इदं आचमनयं ऊं महालक्ष्मियै नम:। 

इसके बाद पान सुपारी चढ़ायें: इदं ताम्बूल पुगीफल समायुक्तं ऊं महालक्ष्मियै समर्पयामि। 

अब एक फूल लेकर लक्ष्मी देवी पर चढ़ाएं और बोलें: एष: पुष्पान्जलि ऊं महालक्ष्मियै नम:।

 

माँ को यथा सामर्थ वस्त्र, आभूषण, नैवेद्य अर्पण कर दक्षिणा चढ़ाए दूध, दही, शहद, देसी घी और गंगाजल मिलकर चरणामृत बनाये और गणेश लक्ष्मी जी के सामने रख दे। इसके बाद 5 तरह के फल, मिठाई खील-पताशे, चीनी के खिलोने लक्ष्मी माता और गणेश जी को चढ़ाये और प्राथना करे की वो हमेशा हमारे घरो में विराजमान रहे। इनके बाद एक थाली में विषम संख्या में दीपक 11,21 अथवा यथा सामर्थ दीप रख कर इनको भी कुंकुम अक्षत से पूजन करे इसके बाद माँ को श्री सूक्त अथवा ललिता सहस्त्रनाम का पाठ सुनाये पाठ के बाद माँ से क्षमा याचना कर माँ लक्ष्मी जी की आरती कर बड़े-बुजुर्गों का आशीर्वाद लेने के बाद थाली के दीपो को घर में सब जगह रखे। लक्ष्मी-गणेश जी का पूजन करने के बाद, सभी को जो पूजा में शामिल हो, उन्हें खील, पताशे, चावल दे।

सब फिर मिल कर प्राथना करे की माँ लक्ष्मी हमने भोले भाव से आपका पूजन किया है! उसे स्वीकार करे और गणेशा, माँ सरस्वती और सभी देवताओं सहित हमारे घरो में निवास करे। प्रार्थना करने के बाद जो सामान अपने हाथ में लिया था वो मिटटी के लक्ष्मी गणेश, हटड़ी और जो लक्ष्मी गणेश जी की फोटो लगायी थी उस पर चढ़ा दे।

लक्ष्मी पूजन के बाद आप अपनी तिजोरी की पूजा भी करे रोली को देसी घी में घोल कर स्वस्तिक बनाये और धुप दीप दिखा करे मिठाई का भोग लगाए।

लक्ष्मी माता और सभी भगवानो को आपने अपने घर में आमंत्रित किया है अगर हो सके तो पूजन के बाद शुद्ध बिना लहसुन-प्याज़ का भोजन बना कर गणेश-लक्ष्मी जी सहित सबको भोग लगाए। दीपावली पूजन के बाद आप मंदिर, गुरद्वारे और चौराहे में भी दीपक और मोमबतियां जलाएं।

रात को सोने से पहले पूजा स्थल पर मिटटी का चार मुह वाला दिया सरसो के तेल से भर कर जगा दे और उसमे इतना तेल हो की वो सुबह तक जग सके

 

माँ लक्ष्मी जी की आरती

---------------------------------

ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता

तुम को निस दिन सेवत, मैयाजी को निस दिन सेवत

हर विष्णु विधाता

ॐ जय लक्ष्मी माता ...

 

उमा रमा ब्रह्माणी, तुम ही जग माता

ओ मैया तुम ही जग माता .

सूर्य चन्द्र माँ ध्यावत, नारद ऋषि गाता

ॐ जय लक्ष्मी माता ..

 

दुर्गा रूप निरन्जनि, सुख सम्पति दाता

ओ मैया सुख सम्पति दाता .

जो कोई तुम को ध्यावत, ऋद्धि सिद्धि धन पाता

ॐ जय लक्ष्मी माता ..

 

तुम पाताल निवासिनि, तुम ही शुभ दाता

ओ मैया तुम ही शुभ दाता .

कर्म प्रभाव प्रकाशिनि, भव निधि की दाता

ॐ जय लक्ष्मी माता ..

 

जिस घर तुम रहती तहँ सब सद्गुण आता

ओ मैया सब सद्गुण आता .

सब संभव हो जाता, मन नहीं घबराता

ॐ जय लक्ष्मी माता ..

 

तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न कोई पाता

ओ मैया वस्त्र न कोई पाता .

ख़ान पान का वैभव, सब तुम से आता

ॐ जय लक्ष्मी माता ..

 

शुभ गुण मंदिर सुंदर, क्षीरोदधि जाता

ओ मैया क्षीरोदधि जाता .

रत्न चतुर्दश तुम बिन, कोई नहीं पाता

ॐ जय लक्ष्मी माता ..

 

महा लक्ष्मीजी की आरती, जो कोई जन गाता

ओ मैया जो कोई जन गाता .

उर आनंद समाता, पाप उतर जाता

ॐ जय लक्ष्मी माता ..




Download धनतेरस और दीपावली पूजन विधि pdf

Narak Chaturdashi 2021 | नरक चतुर्दशी 2021

कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की चतुर्दशी को नरक चतुर्दशी मनाई जाती है। इस बार नरक चतुर्दशी और दिवाली 4 नवंबर, गुरुवार को पड़ेगी। धार्मिक मान्यता के अनुसार नरक चतुर्दशी के दिन यम के नाम से दीपदान की परंपरा है। इस दिन यम के लिए आटे का चौमुखा दीपक बनाकर घर के मुख्य द्वार पर रखा जाता है। घर की महिलाएं रात के समय दीपक में तेल डालकर चार बत्तियां जलाती है।  इसके बाद विधि-विधान से पूजा करने के बाद दीपक जलाकर दक्षिण दिशा की ओर मुख कर 

‘मृत्युनां दण्डपाशाभ्यां कालेन श्यामया सह। 

त्रयोदश्यां दीपदानात् सूर्यजः प्रीयतां मम्’ 

मंत्र का जाप  करते हुए यम का पूजन करती है।  

 

धनतेरस महूर्त जानें 

Narak Chaturdashi 2021 |  नरक चतुर्दशी 2021

 

नरक चतुर्दशी पर तिल के तेल में दीपक जलाया जाता है और घर के बाहर मुख्य द्वार के पास अनाज के ढेर पर इस दिए को रखा जाता है जिसे 
रातभर जलाते हैं।

 Download धनतेरस और दीपावली पूजन विधि pdf

पुराणों के अनुसार नरक चतुर्दशी की कथा 

पुराणों में नरक चतुर्दशी से संबंधित एक कथा का उल्लेख है। उसके अनुसार एक समय यमराज ने अपने दूतों से पूछा कि क्या कभी तुम्हें प्राणियों के प्राण हरण करते समय किसी पर दया नहीं आती है। पहले यमदूत संकोच में पड़ गए और कहा कि नहीं महाराज। परंतु दोबारा आग्रह करने पर दूतों ने एक घटना का उल्लेख किया। उन्होंने आगे उस घटना का आगे उल्लेख करते हुए बताया, हेम नामक राजा की पत्नी ने एक पुत्र को जन्म दिया। उसके जन्म के बाद ज्योतिषियों ने नक्षत्र गणना करके राजा को बताया कि यह बालक जब भी विवाह करेगा, उसके चार दिन बाद ही इसकी मृत्यु हो जाएगी।

 कुबेर मन्त्र साधना 

राजकुमार का पालन पोषण 

यह जानने के पश्चात उस राजा ने बालक को यमुना तट की एक गुफा में ब्रह्मचारी के रूप में रखकर उसका लालन पालन किया। एक दिन उसी यमुना तट के किनारे महाराज हंस की युवा पुत्री यमुना तट पर घूम रही थी। जब राजकुमार ने उस राजकुमारी को देखा तो वह उस पर मोहित हो गया और उन्होंने गंधर्व विवाह कर  लिया। 

 

विवाह के बाद मृत्यु चार दिन में

ज्योतिष गणना के अनुसार जैसे ही विवाह के बाद चौथा दिन पूरा हुआ राजकुमार की मृत्यु हो गई। अपने पति की मृत्यु देखकर राजकुमारी बिलख-बिलखकर विलाप करने लगी। यमदूतों ने यमराज को कहा कि महाराज उस नवविवाहिता का करुण विलाप सुनकर हमारा हृदय भी कांप उठा।

 

यमराज ने बताया अकाल मृत्यु का उपाय 

यमदूतों ने कहा कि उस राजकुमार के प्राण हरण करते समय हमारे भी आंसू नहीं रुक पा रहे थे। तभी एक यमदूत ने यमराज से पूछा कि क्या अकाल मृत्यु से बचने का कोई उपाय नहीं है? इस पर यमराज ने उन्हें एक उपाय के बारे में बताया। नरक चतुर्दशी के दिन अकाल मृत्यु से छुटकारा पाने के लिए व्यक्ति को पूजन और दीपदान विधि-विधान के साथ करना चाहिए। जिस जगह नरक चतुर्दशी पर दीपदान किया जाता है वहां के लोगों को अकाल मृत्यु का भय नहीं सताता है। इस कारण ही नरक चतुर्दशी पर यम के नाम का दीपदान करने की परंपरा है।  

Download धनतेरस और दीपावली पूजन विधि pdf


Dhanteras Mahurat 2021 | धनतेरस 2021 मुहूर्त

धनतेरस 2021 मुहूर्त Download धनतेरस और दीपावली पूजन विधि pdf

धनतेरस से पांच दिवसीय दीपावली त्योहार की शुरुआत हो जाती है, हिंदू पंचाग के अनुसार यह हर वर्ष कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि पर मनाया जाता है। कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी पर धन्वंतरि देव का अवतरण हुआ था और इस दिन धन्वंतरि देव की पूजा की जाती है।

 

Dhanteras Mahurat 2021 | धनतेरस 2021 मुहूर्त

धनतेरस का महत्व

माना जाता है कि जब धन्वंतरि देव प्रकट हुए थे तब उनके हाथों में अमृत से भरा कलश मौजूद था। इसीलिए इस दिन धन्वंतरि देव की पूजा करना बहुत शुभ माना गया है। कहा जाता है कि इस दिन धन्वंतरि देव और मां लक्ष्मी की पूजा करने से जीवन में कभी धन- धान्य की कमी नहीं होती। साथ ही इस दिन कुबेर देव की पूजा करना भी शुम होता है। हिंदू विचारधारा के अनुसार, धनतेरस को खरीदारी के लिए साल का सबसे शुभ दिन माना जाता है। जानें इस साल किस दिन मनाया जाएगा यह त्योहार और क्या है खरीदारी करने का शुभ मुहूर्त।

धनतेरस के दिन मां लक्ष्मी जी की पूजा करने से वह प्रसन्न हो जाती हैं।

धनतेरस पर शॉपिंग (खरीदारी) का शुभ मुहूर्त (Dhanteras Shopping Muhurat)

धनतेरस का दिन खरीदारी के लिए सर्वोत्तम माना गया है। मान्यता है कि इस दिन खरीदारी करने से घर में सुख-समृद्धि आती है। धनतेरस के दिन बर्तन, सोना-चांदी, गहने और झाड़ू खरीदना शुभ माना जाता है। धनतेरस के दिन झाड़ू खरीदने से घर में लक्ष्मी का प्रवेश होता है। इस दिन मिट्टी के दीये खरीदना भी बहुत शुभ माना गया है। इस साल धनतेरस पर खरीदारी करने के लिए ये हैं शुभ मुहूर्त:

 Download धनतेरस और दीपावली पूजन विधि pdf

किस दिन मनाई जाएगी धनतेरस (Dhanteras 2021 date and time)

धनतेरस तिथि: 02 नवंबर 2021, मंगलवार


अभिजीत मुहूर्त- 11:42 AM से 12:26 AM


गोधूलि मुहूर्त - 05:05 से 05:29 शाम तक


प्रदोष काल: शाम 05:35 से 08:11 तक


वृषभ काल: शाम 06:18 से शाम 08:14 तक


निशिता मुहूर्त - रात 11:16 से 12:07 बजे तक

 

Dhanteras 2021 Puja time Muhurat, धनतेरस 2021

पूजन शुभ मुहूर्त: शाम 06:18 से 08:11 तक

शनिवार, 2 अक्तूबर 2021

Navratri starts from 07 October 2021 on 14 October is | 07 अक्टूबर से शुरू हो रहे नवरात्रि 14 अक्टूबर को

Navratri starts from 07 October 2021 on 14 October is  07 अक्टूबर से शुरू हो रहे नवरात्रि 14 अक्टूबर को

पितृ पक्ष के अंतिम दिन यानी सर्व पितृ अमावस्या के अगले दिन से शारदीय नवरात्रि का प्रारंभ होता है। हिन्दी पंचांग के अनुसार
, आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से मां दुर्गा की आराधना का महापर्व नवरात्रि शुरु होती है। नवरात्रि में मां दुर्गा के नौ स्वरुपों मां शैलपुत्री, मां ब्रह्मचारिणी, मां चंद्रघंटा, मां कुष्मांडा, मां स्कंदमाता, मां कात्यायनी, मां कालरात्रि, मां महागौरी और मां सिद्धिदात्री की पूजा क्रमश: की जाती है। इस नवरात्रि में ही बंगाल, बिहार, झारखंड समेत देश कई राज्यों में दुर्गा पूजा का आयोजन होता है, तो कई स्थानों पर रामलीला का आयोजन होता है। दुर्गाष्टमी या महानवमी को कन्या पूजा की जाती है। महानवमी को नवरात्रि हवन का भी आयोजन होता है। दशहरा के दिन रावण, मेघनाद और कुंभकर्ण का पुतला दहन भी किया जाता है, वहीं विजयादशमी के दिन मां दुर्गा की मूर्तियों का विधि विधान से विसर्जन भी होता है। इस दिन शस्त्र पूजा भी की जाती है।

 

शारदीय नवरात्रि 2021 का प्रारंभ

इस वर्ष शारदीय नवरात्रि का प्रारंभ 07 अक्टूबर दिन गुरुवार को आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से हो रहा है। इस दिन ही कलश स्थापना या घट स्थापना होगा और मां शैलपुत्री की पूजा की जाएगी। जिन लोगों को नौ दिन व्रत रखना होगा, वे कलश स्थापना के साथ नवरात्रि व्रत एवं मां दुर्गा की पूजा का संकल्प लेंगे और व्रत शुरू करेंगे। जो लोग एक दिन का नवरात्रि व्रत रहेंगे, वो अगले दिन व्रत का पारण कर लेंगे और फिर दुर्गाष्टमी के दिन व्रत रखेंगे एवं कन्या पूजन करेंगे।

 

8 दिन की है नवरात्रि 2021

इस वर्ष की नवरात्रि आठ दिनों की है क्योंकि आश्विन शुक्ल षष्ठी तिथि का क्षय हो रहा है। इस कारण से आठ दिनों की नवरात्रि है।

 

दुर्गाष्टमी 2021 या महाष्टमी 2021

नवरात्रि में प्रथम दिन के बाद अष्टमी का बहुत महत्व होता है। इसे दुर्गाष्टमी या महाष्टमी कहते हैं। इस वर्ष दुर्गाष्टमी 13 अक्टूबर दिन बुधवार को है। इस दिन मां महागौरी की पूजा होती है। जो लोग प्रथम दिन व्रत रखते हैं, वे महाष्टमी का भी व्रत रखते हैं।

 

महानवमी 2021

इस वर्ष शारदीय नवरात्रि की महानवमी 14 अक्टूबर दिन गुरुवार को है। इस दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है और हवन किया जाता है।

 

दशहरा 2021 या विजशदशमी 2021

इस वर्ष दशहरा या विजशदशमी 15 अक्टूबर दिन शुक्रवार को है। इस दिन रावण, मेघनाद और कुंभकर्ण के पुतलों का दहन होता है। रामलीला में रावण वध का मंचन होता है। विजयादशमी के दिन दुर्गा मूर्ति का विसर्जन भी किया जाता है। हालांकि यह मुहूर्त पर निर्भर करता है। दशहरा या विजयादशमी बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।

 

शारदीय नवरात्रि 2021 : कलश स्थापना

7 अक्टूबर 2021 दिन गुरुवार को कलश स्थापना होगी | इस दौरान दौरान तुला राशि का चंद्रमा, चित्रा नक्षत्र, करण किस्तुन रहेगा | कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त सुबह 6 बजकर 17 मिनट से लेकर सुबह 07 बजकर 07 मिनट तक रहेगा |

शारदीय नवरात्रि 2021 तिथियां

7 अक्टूबर (पहला दिन) मां शैलपुत्री की पूजा

8 अक्टूबर (दूसरा दिन)- मां ब्रह्मचारिणी की पूजा

9 अक्टूबर (तीसरा दिन)- मां चंद्रघंटा व मां कुष्मांडा की पूजा

10 अक्टूबर (चौथा दिन)- मां स्कंदमाता की पूजा

11 अक्टूबर (पांचवां दिन)- मां कात्यायनी की पूजा

12 अक्टूबर (छठवां दिन)- मां कालरात्रि की पूजा

13 अक्टूबर (सातवां दिन)- मां महागौरी की पूजा

14 अक्टूबर (आठवां दिन)- मां सिद्धिदात्री की पूजा

15 अक्टूबर- दशमी तिथि, नवरात्रि व्रत परायण, विजयादशमी या दशहरा

 

नवरात्रि के पीछे पौराणिक कहानी

इस त्योहार से संबंधित कई कहानियां हैं, लेकिन उनमें से दो बहुत लोकप्रिय और प्रचलित हैं। पहले एक राक्षस महिषासुर के बारे में है और वह देवी दुर्गा के हाथों से कैसे मिला। ये रहा:

महिषासुर नाम का एक दानव भगवान शिव का बड़ा उपासक था। दानव की भक्ति से प्रभावित होकर, भगवान शिव खुश हो गए और उन्हें किसी भी व्यक्ति या भगवान द्वारा मारे नहीं जाने का वरदान दिया। यह आशीर्वाद महिषासुर के सिर पर चढ़ गया, जिससे वह अभिमानी और अभिमानी हो गया। उसने मूल निवासियों को आतंकित करना शुरू कर दिया, उनके घरों पर हमला किया और सभी के लिए समस्याएं पैदा कीं। पृथ्वी को नष्ट करने के बाद, उसने स्वर्ग को निशाना बनाया और देवताओं को भी डराया। देवता त्रिदेव के पास गए; ब्रह्मा, विष्णु और शिव; एक समाधान प्राप्त करने के लिए, जिसने माँ दुर्गा को बनाया। लुका-छिपी के एक जोरदार खेल के बाद, मां दुर्गा ने आखिरकार राक्षस को ढूंढ निकाला और उसे मार डाला। इसने बुराई पर अच्छाई की जीत पर टिप्पणी की।

 

दूसरी कहानी इस प्रकार है:

 

भगवान राम, परम महाशक्ति देवी भगवती के बहुत बड़े उपासक थे। उन्होंने नौ दिनों तक सीधे अपनी पूजा में खुद को समर्पित किया ताकि रावण के खिलाफ जीत हासिल की जा सके। नौवें दिन, देवी भगवती उनके सामने प्रकट हुईं और उन्हें आशीर्वाद दिया और दसवें दिन भगवान राम ने दशानन का वध किया। तब से, देवी भगवती के विभिन्न रूपों को नौ दिनों के लिए सीधा किया जाता है और विजयादशमी के दसवें दिन मनाया जाता है।

 

DURGA POOJA NAVRATRI BEEJ MANTRA RAM NAVAMI

शक्ति की उपासना का पर्व चैत्र नवरात्र 13 अप्रैल से शुरू हो रहा है। इस बार कोई तिथि क्षय नहीं है। नवरात्र का पावन पर्व पूरे नौ दिनों तक मनाया जाएगा। समापन 21 अप्रैल को होगा। नवरात्र के साथ ही हिन्दू नववर्ष की शुरुआत भी होगी। नवरात्र में मां दुर्गा की पूजा जीवन में सुख समृद्धि और शांति लाती है। कलश स्थापना, जौ बोने, दुर्गा सप्तशती का पाठ करने, हवन और कन्या पूजन से मां प्रसन्न होती हैं। चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से नवरात्र शुरू हो रहे हैं। चंद्रमा मेष राशि में रहेगा। अश्वनी नक्षत्र व स्वार्थसिद्ध और अमृतसिद्ध योग बन रहे हैं। अमृतसिद्धि योग में कोई कार्य शुरू करने पर शुभ फल मिलता है। साथ ही स्थायित्व की प्राप्ति होती है। वहीं स्वार्थ सिद्धि योग में जो भी कार्य किए जाते हैं वह बिना बाधा के पूर्ण होते हैं और सुख समृद्धि आती है। 

 

 

नवरात्रि के लिए पूजा सामग्री (Navratri Poojan Samagri)

नवरात्रि के व्रत रखने और पूजा करने का तभी लाभ होता है जब सब कार्य विधिपूर्वक किये जाएंआज हम आपको नवरात्रि के लिए पूजा सामग्री बता रहे हैं।

मां दुर्गा की प्रतिमा या फोटो, कपूर, धूप, दीपक, दीपबत्ती, नैवेद्य, केसर, चौकी, रोली, मौली, सुगंधित तेलबेलपत्र, कमलगट्टा, मेंहदी, हल्दी की गांठ और पिसी हुई हल्दी, सुपारी साबुत, पटरा, आसन, पुष्प, दूर्वा, बंदनवार आम के पत्तों का, पुष्पहार, वस्त्र, दर्पण, कंघी, कंगन-चूड़ी, बिंदी, लाल रंग की गोटेदार चुनरीलाल, रेशमी चूड़ियां, सिंदूर, मधु, शक्कर, पंचमेवा, जायफल, आदिकी आवश्यकता होती है।

 

 

घर पर नवरात्रि पूजा विधि  (Navratri Ghat Sthapna Pooja Vidhi)

चैत्र नवरात्रि कलश स्थापन पूजा

चैत्र नवरात्रि आमतौर पर मार्च-अप्रैल की अवधि में शुरू होती है। लोग अपने घर और कार्यस्थल पर कलश स्थापन पूजा करना पसंद करते हैं। एक कलश को पूजा स्थल पर रखा जाता है और लोग कलश पूजा के अनुष्ठान को करने के लिए एक पुजारी को बुलाते हैं। नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापित करने का एक सही तरीका है।

 

सुबह जल्दी उठना और शॉवर लेना पहली गतिविधि होनी चाहिए।

मूर्तियों को साफ करने के बाद, आपको सबसे पहले उस स्थान की सफाई करनी होगी, जहां कलश रखा जाना है।

अगली चीज़ जो आपको करने की ज़रूरत है, वह है लकड़ी के आसन पर लाल रंग का कपड़ा बिछाना और लाल कपड़े पर कच्चा चावल डालते हुए भगवान गणेश के मंत्रों का जाप करना।

कुछ मिट्टी का उपयोग करके, आपको एक वेदी बनाने और उसमें जौ के बीज बोने की आवश्यकता है।

अब, मिट्टी पर कलश स्थापित करें और उसमें थोड़ा पानी डालें।

कलश पर स्वस्तिक चिन्ह बनाने के लिए सिंदूर के पेस्ट का उपयोग करें और कलश के गले में एक पवित्र धागा बाँधें।

कलश में सुपारी और सिक्का डालें और उसमें कुछ आम के पत्ते रखें।

अब, एक नारियल लें, उसके चारों ओर एक पवित्र धागा और एक लाल चुनरी बाँध लें।

इस नारियल को कलश के ऊपर रख दें और सर्वशक्तिमान ईश्वर से प्रार्थना करें।

देवताओं को फूल चढ़ाएं और धार्मिक मन और आत्मा से पूजा करें।

 

 

 

नवरात्रि में माँ दुर्गा के नौ रूपों की पूजा का विधान (Nav Durga ke Nav Roop)

●  दिन 1- 7 अक्टूबर 2021 :मां शैलपुत्री पूजा घटस्थापना:यह देवी दुर्गा के नौ रूपों में से प्रथम रूप है। मां शैलपुत्री चंद्रमा को दर्शाती हैं और इनकी पूजा से चंद्रमा से संबंधित दोष समाप्त हो जाते हैं। शैलपुत्री माता पार्वती का ही दूसरा रूप है। इन्हें हिमालय राज की पुत्री कहा जाता है। इनके दाएं हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल होता है तथा यह मां नंदी की सवारी करती है। शक्ति और कर्म इनके प्रतीक हैं।

 

●  दिन 2- 8 अक्टूबर 2021 :माँ ब्रह्मचारिणी पूजा :ज्योतिषीय मान्यता के अनुसार देवी ब्रह्मचारिणी मंगल ग्रह को नियंत्रित करती हैं। देवी की पूजा से मंगल ग्रह के बुरे प्रभाव कम होते हैं। ऐसा कहा जाता है कि जब मां पार्वती अविवाहित थी तब उन्हेंब्रह्मचारिणी कहा जाता था। यानि कि यह दिन भी मां पार्वती का ही होता है। ये मां श्वेत वस्त्र धारण किए हुए होती हैं और इनके दाएं हाथ में कमण्डल और बाएं हाथ में जपमाला होती है। देवी का स्वरूप अत्यंत तेज़ और ज्योतिर्मय है। ये मां शांति और सकारात्मकता की प्रतीक है।

 

●  दिन 3- 9 अक्टूबर 2021 :माँ चंद्रघंटा पूजा :देवी चंद्रघण्टा शुक्र ग्रह को नियंत्रित करती हैं। देवी की पूजा से शुक्र ग्रह के बुरे प्रभाव कम होते हैं। पौराणिक कथा के अनुसार ऐसा माना जाता है कि माँ पार्वती और भगवान शिव के विवाह के दौरान उनका यह नाम पड़ा था। मां चंद्रघण्टा का प्रिय रंग पीला होता है इसलिए इस दिन पीले रंग धारण किए जाते हैं। यह रंग साहस का प्रतीक है।

 

●  दिन 3 - 9 अक्टूबर 2021 :माँ कूष्मांडा पूजा :माँ कूष्माण्डा सूर्य का मार्गदर्शन करती हैं अतः इनकी पूजा से सूर्य के कुप्रभावों से बचा जा सकता है। मां कुष्मांडा शेर की सवारी करती हैं और उनकी आठ भुजाएं होती हैं। ऐसी मान्यता है कि पृथ्वी पर होने वाली हरियाली माँ के इसी रूप के कारण है। इस दिन हरे कपड़े पहनने को शुभ माना जाता है।

 

●  दिन 4 : 10 अक्टूबर 2021 :माँ स्कंदमाता पूजा :देवी स्कंदमाता बुध ग्रह को नियंत्रित करती हैं। देवी की पूजा से बुध ग्रह के बुरे प्रभाव कम होते हैं। भगवान कार्तिकेय का एक नाम स्कंद भी है। इनकी चार भुजाएं होती हैं। माता अपने पुत्र को लेकर शेर की सवारी करती है। इस दिन ग्रे रंग के कपड़े पहनने की मान्यता है।

 

●  दिन 5- 11 अक्टूबर 2021 :माँ कात्यायनी पूजा :देवी कात्यायनी बृहस्पति ग्रह को नियंत्रित करती हैं। देवी की पूजा से बृहस्पति के बुरे प्रभाव कम होते हैं। माता कात्यायिनी साहस का प्रतीक हैं। ये शेर की सवारी करती हैं और उनकी चार भुजाएं हैं। इस दिन केसरिया रंग का महत्व होता है।

 

●  दिन 6 : 12 अक्टूबर 2021 :माँ कालरात्रि पूजा :देवी कालरात्रि शनि ग्रह को नियंत्रित करती हैं। देवी की पूजा से शनि के बुरे प्रभाव कम होते हैं। और ऐसा कहा जाता है कि जब मां पार्वती ने शुंभ निशुंभ नामक दो राक्षसों का वध किया था तब उनका रंग काला हो गया था। इसके बावजूद इस दिन काले के बजाय सफेद रंग पहना जाता है।

 

●  दिन 7 : 13 अक्टूबर 2021 :माँ महागौरी पूजा :देवी महागौरी राहु ग्रह को नियंत्रित करती हैं। देवी की पूजा से राहु के बुरे प्रभाव कम होते हैं। माता का यह रूप शांति और ज्ञान की देवी का प्रतीक है। इस दिन पिंक कपड़े पहने जाते हैं।

 

●  दिन 8 - 14 अक्टूबर 2021 :माँ सिद्धिदात्री पूजा :देवी सिद्धिदात्री केतु ग्रह को नियंत्रित करती हैं। देवी की पूजा से केतु के बुरे प्रभाव कम होते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस दिन सच्चे मन से पूजा करने वालों को सिद्धि प्राप्त होती है। मां सिद्धिदात्री कमल के फूल पर विराजमान हैं और उनकी चार भुजाएं होती हैं।

 

•  दिन 9 - 14 अक्टूबर 2021 : दशमी तिथि, नवरात्रि व्रत परायण, विजयादशमी या दशहरा 

 

 

 

 

 

9 दुर्गा के बीज मंत्र (Nav Durga Beej Mantra)

नवरात्रि के समय में मां दुर्गा के बीज मंत्रों का जाप कल्याणकारी और प्रभावी माना जाता है। इस नवरात्रि आप 9 दुर्गा के बीज मंत्रों का जाप कर सकते हैं। इसमें शब्दों के उच्चारण का विशेष ध्यान रखा जाता है। आइए मां दुर्गा के 9 स्वरुपों के बीज मंत्रों के बारे में जानते हैं।

 

1. शैलपुत्री: ह्रीं शिवायै नम:।

2. ब्रह्मचारिणी: ह्रीं श्री अम्बिकायै नम:।

3. चन्द्रघण्टा: ऐं श्रीं शक्तयै नम:।

4. कूष्मांडा: ऐं ह्री देव्यै नम:।

5. स्कंदमाता: ह्रीं क्लीं स्वमिन्यै नम:।

6. कात्यायनी: क्लीं श्री त्रिनेत्रायै नम:।

7. कालरात्रि: क्लीं ऐं श्री कालिकायै नम:।

8. महागौरी: श्री क्लीं ह्रीं वरदायै नम:।

9. सिद्धिदात्री: ह्रीं क्लीं ऐं सिद्धये नम:।

 

 

मां दुर्गा के 108 नाम (Maa Durga Ke 108 Naam)

1. सती:अग्नि में जल कर भी जीवित होने वाली 

2. साध्वी:आशावादी 

3. भवप्रीता:भगवान शिव पर प्रीति रखने वाली 

4. भवानी:ब्रह्मांड में निवास करने वाली 

5. भवमोचनी:संसारिक बंधनों से मुक्त करने वाली 

6. आर्या:देवी 

7. दुर्गा:अपराजेय 

8. जया:विजयी 

9. आद्य:शुरुआत की वास्तविकता 

10. त्रिनेत्र:तीन आंखों वाली 

11. शूलधारिणी:शूल धारण करने वाली 

12. पिनाकधारिणी:शिव का त्रिशूल धारण करने वाली 

13. चित्रा:सुरम्य, सुंदर 

14. चण्डघण्टा:प्रचण्ड स्वर से घण्टा नाद करने वाली, घंटे की आवाज निकालने वाली 

15. सुधा:अमृत की देवी 

16. मन:मनन-शक्ति 

17. बुद्धि:सर्वज्ञाता 

18. अहंकारा:अभिमान करने वाली 

19. चित्तरूपा:वह जो सोच की अवस्था में है 

20. चिता:मृत्युशय्या 

21. चिति:चेतना 

22. सर्वमन्त्रमयी:सभी मंत्रों का ज्ञान रखने वाली 

23. सत्ता:सत-स्वरूपा, जो सब से ऊपर है 

24. सत्यानंद स्वरूपिणी:अनन्त आनंद का रूप 

25. अनन्ता:जिनके स्वरूप का कहीं अंत नहीं 

26. भाविनी:सबको उत्पन्न करने वाली, खूबसूरत औरत 

27. भाव्या:भावना एवं ध्यान करने योग्य 

28. भव्या:कल्याणरूपा, भव्यता के साथ 

29. अभव्या:जिससे बढ़कर भव्य कुछ नहीं 

30. सदागति:हमेशा गति में, मोक्ष दान 

31. शाम्भवी:शिवप्रिया, शंभू की पत्नी 

32. देवमाता:देवगण की माता 

33. चिन्ता:चिन्ता 

34. रत्नप्रिया:गहने से प्यार करने वाली 

35. सर्वविद्या:ज्ञान का निवास 

36. दक्षकन्या:दक्ष की बेटी 

37. दक्षयज्ञविनाशिनी:दक्ष के यज्ञ को रोकने वाली 

38. अपर्णा:तपस्या के समय पत्ते को भी न खाने वाली 

39. अनेकवर्णा:अनेक रंगों वाली 

40. पाटला:लाल रंग वाली 

41. पाटलावती:गुलाब के फूल 

42. पट्टाम्बरपरीधाना:रेशमी वस्त्र पहनने वाली 

43. कलामंजीरारंजिनी:पायल को धारण करके प्रसन्न रहने वाली 

44. अमेय:जिसकी कोई सीमा नहीं 

45. विक्रमा:असीम पराक्रमी 

46. क्रूरा:दैत्यों के प्रति कठोर 

47. सुन्दरी:सुंदर रूप वाली 

48. सुरसुन्दरी:अत्यंत सुंदर 

49. वनदुर्गा:जंगलों की देवी 

50. मातंगी:मतंगा की देवी 

51. मातंगमुनिपूजिता:बाबा मतंगा द्वारा पूजनीय 

52. ब्राह्मी:भगवान ब्रह्मा की शक्ति 

53. माहेश्वरी:प्रभु शिव की शक्ति 

54. इंद्री:इंद्र की शक्ति 

55. कौमारी:किशोरी 

56. वैष्णवी:अजेय 

57. चामुण्डा:चंड और मुंड का नाश करने वाली 

58. वाराही:वराह पर सवार होने वाली 

59. लक्ष्मी:सौभाग्य की देवी 

60. पुरुषाकृति:वह जो पुरुष धारण कर ले 

61. विमिलौत्त्कार्शिनी:आनन्द प्रदान करने वाली 

62. ज्ञाना:ज्ञान से भरी हुई 

63. क्रिया:हर कार्य में होने वाली 

64. नित्या:अनन्त 

65. बुद्धिदा:ज्ञान देने वाली 

66. बहुला:विभिन्न रूपों वाली 

67. बहुलप्रेमा:सर्व प्रिय 

68. सर्ववाहनवाहना:सभी वाहन पर विराजमान होने वाली 

69. निशुम्भशुम्भहननी:शुम्भ, निशुम्भ का वध करने वाली 

70. महिषासुरमर्दिनि:महिषासुर का वध करने वाली 

71. मसुकैटभहंत्री:मधु व कैटभ का नाश करने वाली 

72. चण्डमुण्ड विनाशिनि:चंड और मुंड का नाश करने वाली 

73. सर्वासुरविनाशा:सभी राक्षसों का नाश करने वाली 

74. सर्वदानवघातिनी:संहार के लिए शक्ति रखने वाली 

75. सर्वशास्त्रमयी:सभी सिद्धांतों में निपुण 

76. सत्या:सच्चाई 

77. सर्वास्त्रधारिणी:सभी हथियारों धारण करने वाली 

78. अनेकशस्त्रहस्ता:कई हथियार धारण करने वाली 

79. अनेकास्त्रधारिणी:अनेक हथियारों को धारण करने वाली 

80. कुमारी:सुंदर किशोरी 

81. एककन्या:कन्या 

82. कैशोरी:जवान लड़की 

83. युवती:नारी 

84. यति:तपस्वी 

85. अप्रौढा:जो कभी पुराना ना हो 

86. प्रौढा:जो पुराना है 

87. वृद्धमाता:शिथिल 

88. बलप्रदा:शक्ति देने वाली 

89. महोदरी:ब्रह्मांड को संभालने वाली 

90. मुक्तकेशी:खुले बाल वाली 

91. घोररूपा:एक भयंकर दृष्टिकोण वाली 

92. महाबला:अपार शक्ति वाली 

93. अग्निज्वाला:मार्मिक आग की तरह 

94. रौद्रमुखी:विध्वंसक रुद्र की तरह भयंकर चेहरा 

95. कालरात्रि:काले रंग वाली 

96. तपस्विनी:तपस्या में लगे हुए 

97. नारायणी:भगवान नारायण की विनाशकारी रूप 

98. भद्रकाली:काली का भयंकर रूप 

99. विष्णुमाया:भगवान विष्णु का जादू 

100. जलोदरी:ब्रह्मांड में निवास करने वाली 

101. शिवदूती:भगवान शिव की राजदूत 

102. करली:हिंसक 

103. अनन्ता:विनाश रहित 

104. परमेश्वरी:प्रथम देवी 

105. कात्यायनी:ऋषि कात्यायन द्वारा पूजनीय 

106. सावित्री:सूर्य की बेटी 

107. प्रत्यक्षा:वास्तविक 

108.ब्रह्मवादिनी:वर्तमान में हर जगह वास करने वाली

 

मां दुर्गा की आरती जय अम्बे गौरी

(Maa Durga Ki Aarti Jai Ambe Gauri)

जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी.....

जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी।

तुमको निशदिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिव री।। जय अम्बे गौरी,...

मांग सिंदूर बिराजत, टीको मृगमद को।

उज्ज्वल से दोउ नैना, चंद्रबदन नीको।। जय अम्बे गौरी,...

कनक समान कलेवर, रक्ताम्बर राजै।

रक्तपुष्प गल माला, कंठन पर साजै।। जय अम्बे गौरी,...

केहरि वाहन राजत, खड्ग खप्परधारी।

सुर-नर मुनिजन सेवत, तिनके दुःखहारी।। जय अम्बे गौरी,...

कानन कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती।

कोटिक चंद्र दिवाकर, राजत समज्योति।। जय अम्बे गौरी,...

शुम्भ निशुम्भ बिडारे, महिषासुर घाती।

धूम्र विलोचन नैना, निशिदिन मदमाती।। जय अम्बे गौरी,...

चण्ड-मुण्ड संहारे, शौणित बीज हरे।

मधु कैटभ दोउ मारे, सुर भयहीन करे।। जय अम्बे गौरी,...

ब्रह्माणी, रुद्राणी, तुम कमला रानी।

आगम निगम बखानी, तुम शिव पटरानी।। जय अम्बे गौरी,...

चौंसठ योगिनि मंगल गावैं, नृत्य करत भैरू।

बाजत ताल मृदंगा, अरू बाजत डमरू।। जय अम्बे गौरी,...

तुम ही जग की माता, तुम ही हो भरता।

भक्तन की दुःख हरता, सुख सम्पत्ति करता।। जय अम्बे गौरी,...

भुजा चार अति शोभित, खड्ग खप्परधारी।

मनवांछित फल पावत, सेवत नर नारी।। जय अम्बे गौरी,...

श्री मालकेतु में राजत, कोटि रतन ज्योति।। जय अम्बे गौरी,...

अम्बेजी की आरती जो कोई नर गावै।

कहत शिवानंद स्वामी, सुख-सम्पत्ति पावै।। जय अम्बे गौरी,...

 

मां दुर्गा की आरती (माँ !जगजननी जय !जय!!)
(Maa Durga Ki Aarti Maa Jag janni Jay Jay)

जगजननी जय !जय!! (माँ !जगजननी जय !जय!!)

भयहारिणी, भवतारिणी ,भवभामिनि जय ! जय !!

माँ जग जननी जय जय …………

तू ही सत-चित-सुखमय शुद्ध ब्रह्मरूपा ।

सत्य सनातन सुंदर पर – शिव सुर-भूपा ।। माँ जग ………….

आदि अनादि अनामय अविचल अविनाशी ।

अमल अनंत अगोचर अज आनंदराशि।। माँ जग ………….

अविकारी , अघहारीअकल , कलाधारी ।

कर्ता विधि , भर्ता हरि , हर सँहारकारी ।। माँ जग…………

तू विधिवधू , रमा ,तू उमा , महामाया ।

मूल प्रकृति विद्या तू , तू। जननी ,जाया ।। माँ जग ……….

राम , कृष्ण तू , सीता , व्रजरानी राधा ।

तू वाञ्छाकल्पद्रुम , हारिणी सब बाधा ।। माँ जग……….

दश विद्या , नव दुर्गा , नानाशास्त्रकरा ।

अष्टमात्रका ,योगिनी , नव नव रूप धरा ।। माँ जग ………..

तू परधामनिवासिनि , महाविलासिनी तू ।

तू ही श्मशानविहारिणि , ताण्डवलासिनि तू ।।

माँ जग जननी जय जय …………

सुर – मुनि – मोहिनी सौम्या तू शोभा  धारा ।

विवसन विकट -सरूपा , प्रलयमयी धारा ।। माँ जग ………..

तू ही स्नेह – सुधामयि, तू अति गरलमना ।

रत्नविभूषित तू ही , तू  ही अस्थि- तना ।।माँ जग ………….

मूलाधारनिवासिनी , इह – पर – सिद्धिप्रदे ।

कालातीता       काली , कमला तू वरदे ।। माँ जग ……….

शक्ति शक्तिधर  तू ही नित्य अभेदमयी ।

भेदप्रदर्शिनि वाणी    विमले ! वेदत्रयी ।। माँ जग ………..

हम अति दीन दुखी मा ! विपत – जाल घेरे ।

हैं कपूत अति कपटी , पर बालक तेरे ।। माँ  जग ….…..

निज स्वभाववश जननी ! दयादृष्टि कीजै ।

करुणा कर करुणामयि ! चरण – शरण दीजै ।।

माँ जग जननी जय जय , माँ जग जननी जय जय

 

नवरात्रि में माँ दुर्गा की मन्त्र साधना 

नवरात्रि के समय में माँ दुर्गा की मन्त्र साधना करने का अपना अलग ही पुन्य है और मन्त्र सिद्धि के साथ ही माँ की भक्ति, अनुकम्पा प्राप्ति भी सहज है | माँ की भक्ति, मन्त्र साधना करने के लिए आप सभी पाठको के लिए हम FREE eBOOK प्रदान कर रहे है | आप इसे डाउनलोड करे और साथ ही अपने परिचित लोगो, भक्तो तक इसे पहुचाएं ताकि सभी इन नवरात्रि में माँ की कृपा पा सके और और मनोवांछित फल की प्राप्ति कर सकें |

 

 

 

navratri 2021 ashtami date navratri 2021 date with tithi navratri 2021 april diwali 2021 date navratri 2021 date colors navratri 2021 muhurat time navratri 2021 date time dussehra 2021 NAVRATRI 2021 नवरात्रि 2021, चैत्र नवरात्रि 2021 कब है, Shardiya नवरात्रि 2021, नवरात्रि: कब है 2021, नवरात्रि 2021, नवरात्रि 2021 October, navratri 2021 april muhurat chaitra navratri 2021 muhurat navratri 2021 muhurat time october navratri 2021 date colors navratri 2021 date october list navratri 2021 april kalash sthapana muhurat kalash sthapana 2021 time kalash sthapana muhurat 2021 aprilआश्विन नवरात्रि 2021, Navratri 2021, नवरात्रि 2021 अप्रैल, navratri, navratri 2021, garba, gujarati garba, navratri colours of 2021, happy Navratri, navratri colours, dandiya, navratri 2021,  date navratri 2021, garba dance, navratri 2021 start date, navratri colors 2021, navratri color 2021, navratri 2021 colours, navratri colours 2021, chaitra navratri 2021, navratri 2021 date october, navratri date, navratri garba, navratri wishes, dandiya dance, navarathri 2021, navratri date 2021, colours of navratri 2021, navratri colors 2021, chaitra navratri, navratri special, navratri 2021 after holi, happy navratri wishes, navratri colours 2021 october, navratri 2021 colours, happy navratri 2021,  navratri 2021, chaitra navratri date 2021,  2021 navratri, 2021 navratri colours, navratri 2021 october, navratri 2021 colour, colour of navratri 2021, 9 colours of navratri 2021, navratri in 2021, navratri 2021 date, garba dandiya,navratri vrat katha, ghatasthapana 2021, navratri 2021 colours with date, navratri wishes in hindi, falguni pathak garba, navratri date 2021,  new garba, united way garba, 2021 navratri date, 7th day of Navratri, navaratri days 2021, navratri colours 2021, dandiya night, garba 2021, 6th day of navratri, chaitra navratri 2021 date, 8th day of Navratri, navratri colour 2021, navratri 2021 colours with date, hemant chauhan garba, ghatasthapana, navratri katha, jignesh kaviraj garba, maiya ka churma, navratri puja vidhi, gupt navratri 2021 dates, atul purohit garba, colors of navratri 2021, colours of navratri 2021,  9th day of Navratri, 5th day of Navratri, nine colours of navratri 2021, 4th day of navratri, nine days of Navratri, navratri puja, gujarati garba 2021, navratri festival, garba 2021,  garba near me, navratri 2021, 9 colours of navratri 2021, navarathri 2021 dates, navarathri pooja 2021, navratri dussehra 2021, navratri ki aarti, navratri dussehra 2021, durga puja 2021 navratri date, geeta rabari garba, navratri start 2021, goddess durga Navratri, navratri sthapna, navratri start, kalaratri, navratri start date 2021, navratri 9 colours, navarathri Pooja, Navratri, navratri 2021, garba, gujarati garba, navratri colours of 2021, happy Navratri, navratri coloursdandiya, navratri 2021 date, navratri 2021, garba dance, navratri 2021 start date, navratri colors 2021, navratri color 2021,  navratri 2021 colours, navratri colours 2021, chaitra navratri 2021, navratri 2021 date October, navratri date, navratri garba, navratri wishes, dandiya dance, navarathri 2021, navratri date 2021, colours of navratri 2021, navratri colors 2021, chaitra Navratri, navratri special, navratri 2021 after holi, happy navratri wishes, navratri colours 2021 october, navratri 2021 colours, happy navratri 2021, navratri 2021, chaitra navratri date 2021, 2021 navratri, 2021 navratri colours, navratri 2021 october, navratri 2021 colour, colour of navratri 2021, 9 colours of navratri 2021, navratri in 2021, navratri 2021 date, garba dandiya, navratri vrat katha, ghatasthapana 2021, navratri 2021 colours with date, navratri wishes in hindi, falguni pathak garba, navratri date 2021, new garba, united way garba, 2021 navratri date, 7th day of Navratri, navaratri days 2021, navratri colours 2021, dandiya night, garba 2021, 6th day of Navratri, chaitra navratri 2021 date, 8th day of Navratri, navratri colour 2021, navratri 2021 colours with date, hemant chauhan garba, ghatasthapana, navratri katha, jignesh kaviraj garba, maiya ka churma, navratri puja vidhi, gupt navratri 2021 dates, atul purohit garba, colors of navratri 2021, colours of navratri 2021, 9th day of Navratri, 5th day of Navratri, nine colours of navratri 2021, 4th day of Navratri, nine days of Navratri, navratri puja, gujarati garba 2021 navratri festival, garba 2021,  garba near me, navratri 2021, .,9 colours of navratri 2021,  navarathri 2021,  dates, navarathri pooja 2021,  navratri dussehra 2021,  navratri ki aarti, navratri dussehra 2021,  durga puja 2021,  navratri date, geeta rabari garba, navratri start 2021, , goddess durga Navratri, navratri sthapna, navratri start, kalaratri, navratri start date 2021, , navratri 9 colours, navarathri Pooja

 

Chaitra navratri 2024 muhurat, pooja

चैत्र नवरात्रि 2024: तिथियाँ, महत्व, और धार्मिक अनुष्ठान हिन्दू धर्म में चैत्र नवरात्रि का आयोजन 9 अप्रैल से 17 अप्रैल तक होगा। इस महत्वपूर्...