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रविवार, 27 दिसंबर 2020

Billi Ki Jer Sidh Karne Ki Vidhi| the umbilical cord of cat for money | अति दुर्लभ धन वृद्धि कारक बिल्ली की जेर

Billi Ki Jer Sidh Karne Ki Vidhi| the umbilical cord of cat for money | अति दुर्लभ धन वृद्धि कारक बिल्ली की जेर

यदि आप मालामाल होने के लिए कई उपाय और प्रयोग कर चुके हैं और अभी तक सफलता आपके हाथ नहीं लगी तो आज का यह उपाय भी करके देखें जरुर ही आपकी किस्मत बदल जाएगी और आप धनवान हो जाएंगे। हम बता रहे हैं बिल्ली की ज़ेर (गर्भनाल) के बारे में जिसके बारे में कहा जाता है कि यह बड़ी मुश्किल से और किस्मत वालों को ही मिलती है पर जिसके हाथ लग जाती है उसकी कंगाली और बेहाली दूर हो जाती है और वह मालामाल हो जाता है| बिल्ली के प्रसव के समय बिल्ली के द्वारा एक प्रकार की थैली त्यागी जाती है, जिसे आंवल या जेर कहते है | प्रायः सभी पशुओँ में प्रसव के समय आंवल निकलता है, परन्तु बिल्ली की विशेषता यह है की बिल्ली अपना आंवल तुरंत खा जाती है | पालतू बिल्ली का आंवल किसी कपड़े से ढक कर प्राप्त कर लिया जाये तो इसका तांत्रिक प्रभाव धन-धान्य में वृद्धि करता है |


कैसे प्राप्त करे बिल्ली की जेर 

पालतू बिल्ली का प्रसव काल निकट हो तो उस पर नजर रखें और उसके रहने और खाने की ऐसी व्यवस्था करें कि वह आपके कमरे में ही रहे। वैसे पालतू बिल्लियां घरों में कुर्सी, बिस्तर और मालिक की गोद तक में बैठी रहती हैं। जिस समय वह बच्चों को जन्म दे रही हो, सावधानी से उसकी रखवाली करें। बच्चों को जन्म देने के तुरंत बाद ही उसके पेट से नाल (झिल्ली) निकलती है। यह पॉलिथीन की थैली की तरह पारदर्शी लिजलिजी, रक्त और पानी के मिश्रण से तर होती है। इसे नाल या आँवल कहा जाता है। स्वभावत: बिल्ली उसे तुरंत खा जाती है अत: जैसे ही बिल्ली के पेट से नाल बाहर आए, उस पर कपड़ा ढंक दें जिससे बिल्ली उसे तुरंत खा नहीं सकेगी। प्रसव के दौरान बिल्ली कुछ शिथिल रहती है, इसलिए तेजी से झपट नहीं सकती। अब किसी तरह उसकी नाल उठा लें और सावधानी से सुखा लें।

धूप में सुखाते समय उसकी रखवाली जरूरी है अन्यथा कोआ, चील, कुत्ता आदि कोई भी उसे उठाकर ले जा सकता है। तेज धूप में दो-तीन दिनों तक रखने से वह चमड़े की तरह सूख जाएगी। सूख जाने पर उसके चौकोर टुकड़े दो या तीन वर्ग इंच के कर लें और उन पर हल्दी लगाकर रख दें। हल्दी का चूर्ण अथवा लेप कुछ भी लगाया जा सकता है। इस प्रकार हल्दी लगाया हुआ बिल्ली की नाल का टुकड़ा लक्ष्मी यंत्र का अचूक घटक होता है।


सिद्ध बिल्ली की जेर से होने वाले लाभ 


अगर कुसी भी शुभ मुहूर्त में बिल्ली जेर घर में स्थापित करली जाये तो यह बहुत शुभ मन जाता है ।अपने घर की तिजोरी में सिद्ध की हुई बिल्ली की जेर रख ले तो आपको धन की कभी कमी नहीं आने देगी ।


1. इच्छायें अपने आप पूरी होने लगती है थोड़े से प्रयास से बिल्ली जेर की मदद से ।

2. अगर व्यापार न चल पा रहा हो यां जीवन में उन्नति न हो पा रही हो ,कई बार इर्षा के कारण कुछ लोग तंत्र प्रयोग कर देते हैं जिससे दूकान में ग्राहक नहीं आते यां कार्य सफल नहीं होते. इन परस्थितियों में बिल्ली जेर राम बाण की तरह असर करता है|

3. बिल्ली जेर कोर्ट केस में साथ लेके जाना बहुत लाभदायक है|

4. अनुशासन तथा विनम्रता पैदा करती है। साथ रखने से ज्ञान तथा धैर्य की वृद्धि होती है। बिल्ली जेर व्यापार या नौकरी में उन्नति के लिए सहायक है

5. जीवन में सफलता न मिल रही हो बनते बनते काम बिगड़ जाते हो मेहनत करने पे भी धन की प्राप्ति न हो तो आप अपने पास बिल्ली जेर आवश्य रखे|

6. यदि आप लगातार कर्जों से परेशान हों या व्यवसाय में बाधा आ रही हो, या किसी भी प्रकार आय में वृद्धि नहीं हो पा रही हो, तो एक बिल्ली जेर रखे । ऐसा करने से आप की उपर्युक्त सभी समस्याएं दूर हो जाएंगी व शीघ्र ही धन की प्राप्ति होगी। और व्यवसाय बढ़ने लगेगा , अगर नौकरी में है तो तरकी का मार्ग बनेगा |

7. अगर प्रेमी यां प्रेमिका का मन बदल गया हो , कोई अधिकारी आपके विरोध में कार्य कर रहा हो, परिवार में कोई सदस्य गलत रास्ते पर जा रहा हो तो बिल्ली जेर से वशीकरण प्रयोग करके उसका मन बदला जा सकता है.पति- पत्नी में अगर कलह रहती हो तो वशीकरण से आपस में विवाद ख़तम किये जा सकते हैं . इस प्रयोग को आजमाने के लिए नहीं करना चाहिए. जब कोई और चारा ना बचे तब इसको करें|

8. अगर किसी व्यक्ति के पास सियार सिंगी या हाथाजोड़ी हो तो वह बिल्ली जेर उसके साथ रख दे ऐसा करने से उसकी शक्ति दुगनी हो जाएगी|

9. बिल्ली जेर बहुत ही चमत्कारी होती है , इसे घर में रखने से सकारात्मक उर्जा का अनुभव होता है ! वशीकरण की अद्भुत शक्ति होती है , यदि इसे सिद्ध कर लिया जाए तो यह शक्ति कई गुना बढ़ जाती है ! इसके द्वारा आप किसी से भी अपना मनोवांछित काम करवा सकते है ! इसे सिद्ध किया जाए तो इसका चमत्कार बड़ी जल्दी नज़र आता है |


बिल्ली की जेर पूजा करने की विधि :

 

सर्वप्रथम बिल्ली की जेर को उचित नक्षत्र में इसको गंगा जल से स्नान करा लें और लाल कपड़े में लपेट कर उचित स्थान में रख लें | जब इसका पानी सूख जाये तो अबूझ मुहूर्त में विधिवत सिद्ध करने के पश्चात इसे चांदी की डिब्बी में  रखना चाहिए |

 

इसे 11 दिन तक पूजा मंदिर में रखना है, 11 दिन बाद इसे अपनी तिजोरी या गल्ले में छिपा कर रखना है | बिल्ली की जेर सिन्दूर के साथ रखने से घर में सूख शांति आती है, धन धान्य और संपत्ति में अपार वृद्धि होती है, घर पर किये गए अभिचार प्रयोग असर नहीं करते, घर को किसी की नजर नहीं लगती और बाधाएं दूर रहती हैं |

 

इसके साथ ही मनोकामना पूर्ति के लिए और आकर्षण, मोहन, वशीकरण अन्य अभिचार कार्यो के लिए बिल्ली की जेर कुछ ही दिनों में सिद्ध हो जाती हैं और अति शीघ्र असर दिखने लगता हैं |

 

 सिद्ध करने के लिए मंत्र :

 

ॐ श्रीम मार्जारी मम कराया कुरु कुरु नमः 

 

इस मंत्र को 108 बार 11 दिन नित्य पढ़ने से कार्य सिद्ध हो जाता हैं |

शुक्रवार, 4 दिसंबर 2020

Shabar Mantra Membership Programme

 

पावरफुल शाबर मन्त्र प्रस्तुत करते है स्थायी सदस्यता कार्यक्रम

अब हमारे द्वारा स्थायी सदस्यता कार्यक्रम की शुरूआत की गयी है जिसमे आप शामिल होकर पावरफुल शाबर मन्त्र द्वारा समस्त प्रकाशित एवम् भविष्य में प्रकाशित होने वाली समस्त ईबुक्स प्रति प्राप्ति के हकदार होंगे | अभी तक हमारे द्वारा कुल 22 भाग शाबर मन्त्र की ईबुक्स के प्रकाशित किये गये है और इनके अलावा अभी और भी ईबुक्स प्रकाशित होने वाली है जिनका कार्य अभी ज़ारी है और साथ ही कुछ समय पहले मासिक पत्रिका को भी जारी रखा था जिसको हम अब निकट भविष्य में पुनः शुरू करने वाले है | और विशेष अवसरों पर भी हम एकांकी साधना की ईबुक्स को भी प्रकाशित करते रहते हैं |

 


उपयोगिता:

Ø सदस्यता लेने पर हमारे द्वारा प्रकाशित सभी ईबुक्स शाबर मन्त्र भाग 1 से 22 / शाबर मन्त्रमहाशास्त्र आपको प्रदान की जाएगी | जिसकी राशी न्यूनतम 3251/- (एक साथ सभी ईबुक्स खरीदने पर) व् अधिकतम राशी 7280/- (एक-एक प्रति अलग –अलग खरीदने पर) हैं|

Ø हमारे द्वारा मासिक पत्रिकाएँ, एकांकी साधना पत्रिका आपको प्रदान की जाएगी |

Ø हमारे द्वारा भविष्य में प्रकाशित होने वाली सभी ईबुक्स, पत्रिकाएँ, UPDATES, विशेष साधना आपको प्रदान की जाएगी | चाहे ईबुक्स, पत्रिकाओं की राशी व् संख्या कितनी भी हो |

Ø कुछ विशेष साधनाए जोकि हम वेबसाइट पर प्रकाशित नही करते है और ना ही ईबुक्स के माध्यम से प्रकाशित करते है वें साधनाए केवल हमसे शाबर मन्त्र दीक्षा लेने वालो को मिलती है वें साधनाए अब हम स्थायी सदस्यों को भी प्रदान करेंगे |

Ø विशेष अवसरों पर सिद्ध होने वाली विशेष फलदायी मन्त्र साधना, साधना दिवस से पूर्व ही आपको भेजी जाएगी |

Ø मासिक पत्रिका में यदि आप चाहे तो नि:शुल्क अपने व्यवसाय अथवा सेवा सम्बन्धित विज्ञापन प्रकाशित करवा सकते हैं | (वेबसाइट पर इस सेवा का समयावधि के अनुसार न्यूनतम शुल्क रखा गया है जोकि आप हमसे ईमेल पर सम्पर्क करके अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं )

Ø साधना से सम्बन्धित शंका-समाधान तुरंत ही प्राप्त होगा |

Ø CALLME4 मोबाइल एप्प के द्वारा आप नि:शुल्क हमसे सम्पर्क कर सकते है जिसके लिए हम आपको हमारी नि:शुल्क ID प्रदान करेंगे |

 

तो आज ही इस कार्यक्रम का लाभ उठाए और हमारे द्वारा भविष्य में प्रकाशित होने वाली सभी ईबुक्स, पत्रिकाएँ, UPDATES, विशेष मन्त्र साधना अभी सुनिश्चित करें |

  

हमारी वेबसाइट, यू-ट्यूब चैनल के द्वारा हम अधिक से अधिक सदस्य जोड़ने का प्रयास कर रहे है जिससे इस प्राचीन ग्रामीण मन्त्र विद्या को और अधिक प्रचारित-प्रसारित कर सकें और साथ ही हम इस कार्यक्रम को और अधिक बड़े स्तर पर पहुंचा सके |

 

 

 

 

 

मंगलवार, 17 नवंबर 2020

Dev Uthani Ekadashi 2020 | साल 2020 देवउठनी एकादशी कब है | जानिए तारीख एवं पूजा का शुभ मुहूर्त | प्रबोधिनी एकादशी | Dev Uthani Ekadashi 2020

वैदिक, तांत्रिक या शाबर मन्त्र, यंत्र व् तन्त्र की साधना करने वाले साधकों के लिए देवउठनी या देव उत्थान एकादशी का महत्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी यानी देवउठनी या देव उत्थान एकादशी पर भगवान विष्णु की पूरे विधि विधान से पूजा की जाती है। आज हम आपको बताएंगे कि साल 2020 में देवउठनी एकादशी कब है, क्या है पूजा की विधि, देवउठनी एकादशी पर्व की शुरुआत कैसे हुई और देवउठनी एकादशी का शुभ मुहूर्त क्या रहेगा।

 मुस्लिम मन्त्र तन्त्र यंत्र अमल की दुर्लभ पुस्तक

देवी देवता भुत प्रेत वीर बैताल जिन्न सिद्ध आत्मा  जो चाहो वो सिद्ध करके मनचाहा काम करवाओ  

 

Dev Uthani Ekadashi 2020 | साल 2020 देवउठनी एकादशी कब है | जानिए तारीख एवं पूजा का शुभ मुहूर्त | प्रबोधिनी एकादशी | Dev Uthani Ekadashi 2020

क्या आप भी सिद्ध शाबर मन्त्र विद्या सीखना चाहते है ?


पितृदोष या कालसर्प दोष का स्थायी निवारण करें इस तन्त्र के द्वारा


भैरव बाबा को इस सिद्ध शाबर मन्त्र से सिद्ध करके उनकी कृपा पाए 

वैदिक, तांत्रिक या शाबर मन्त्र, यंत्र व् तन्त्र की साधना करने वाले साधकों के लिए देवउठनी या देव उत्थान एकादशी बहुत ही महत्वपूर्ण अवसर है जिसका की आम तांत्रिकों, ओझा, सवारी, गुनिया, बाबा, भगतों को जानकारी नहीं होती | यह अवसर दीपावली, होली, ग्रहण से भी बढकर है लेकिन अफ़सोस की इसकी जानकारी उन्हें आगे से ही नही मिल पाती जिस कारण आम तांत्रिकों, ओझा, सवारी, गुनिया, बाबा, भगत लोग इस दिवस को शून्य में ही गवां देते है |
यदि आप तांत्रिकों, ओझा, सवारी, गुनिया, बाबा, भगत लोग आदि है तो आज हम 
 POWERFULSHABARMANTRA.BLOGSPOT.COM  आपको बताते है की इस दिन (देवउठनी या देव उत्थान एकादशी) आपको क्या काम करना चाहिए जिससे आपकी शक्ति हमेशा बनी रहे |


देवउठनी या देव उत्थान एकादशी के दिन आप व्रत रखें विशेष रूप से अपने इष्टदेव का या श्री विष्णु जी का |


रात्री में अपनी श्री विष्णु जी, आदि त्रिदेवों का, पंच भूतों का, कुल के देवी देवता का, अपने पितृ आदि का पूजन करे और उन्हें जागने की प्रार्थना करके कांसे के बर्तन को खैर की लकड़ी से बजकर शोर उत्पन्न करे और समस्त देवी देवताओं, मन्त्रों के देवी देवता वीर आदि सबसे जागने की प्रार्थना करें |

अपने सभी मन्त्रो को पहले जाग्रति मन्त्र से 21 या अधिक आहुति देकर जागृत करें और फिर अपने सभी सिद्ध मन्त्रों का कम से कम 11 बार जाप करके आहुति प्रदान करें | और पुन: जाग्रति मन्त्र से 21 या अधिक आहुति देकर जागृत करें | 

ऐसा करने से आपके सभी मन्त्र और अधिक शक्ति के साथ जागृत हो जायेंगे और साथ ही मन्त्र के देवी देवता वीर सिद्ध आत्मा और कुल के देवी देवता का, अपने पितृ आदि सब आपके सहायक बने रहेंगे और साथ ही उनको शक्ति बल मिलेगा | आपकी रक्षा सदैव के लिए बनी रहेगी आपको रोज रोज रक्षा मन्त्र आदि की जरूरत नही पड़ेगी | और भी बहुत से प्रयोग व् राज़ है जोकि केवल गुरु-शिष्य परम्परागत ही गुप्त रहते है | वे प्रयोग हम आपको यहाँ नही बता सकते |

Dev Uthani Ekadashi 2020:

कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को लोग दवउठनी एकादशी के नाम से जानते हैं। मान्यता है कि क्षीर सागर में चार महीने की योग निद्रा के बाद भगवान विष्णु इस दिन उठते हैं। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी यानी देवउठनी या देव उत्थान एकादशी पर भगवान विष्णु की पूरे विधि विधान से पूजा की जाती है। आज हम आपको बताएंगे कि साल 2020 में देवउठनी एकादशी कब है, क्या है पूजा की विधि, देवउठनी एकादशी पर्व की शुरुआत कैसे हुई और देवउठनी एकादशी का शुभ मुहूर्त क्या रहेगा। धर्मग्रंथो के अनुसार भाद्रपद मास की शुक्ल एकादशी को भगवान विष्णु दैत्य संखासुर को मारा था। दैत्य और भगवान विष्ण के बीच युद्ध लम्बे समय तक चलता रहा। युद्ध समाप्त होने के बाद भगवान विष्णु बहुत ही थक गए थे और क्षीर सागर में आकर सो गए और कार्तिक की शुक्ल पक्ष की एकादशी को जागे, तब देवताओं द्वारा भगवान विष्णु का पूजन किया गया। जैसे कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की इस एकादशी को प्रबोधिनी एकादशी या देवउठनी एकादशी भी कहा जाता है। देव उठनी एकादशी जिसे प्रबोधनी एकादशी भी कहा जाता हैं |  इसे पापमुक्त करने वाली एकादशी माना जाता है |  सभी एकादशी पापो से मुक्त होने हेतु की जाती हैं |  लेकिन इस एकादशी का महत्व बहुत अधिक माना जाता हैं |  राजसूय यज्ञ करने से जो पुण्य की प्राप्ति होती हैं उससे कई अधिक पुण्य देवउठनी प्रबोधनी एकादशी का होता हैंइस दिन से सभी मंगल कार्यो का प्रारंभ होता हैं

 

साल 2020 में देवउठनी एकादशी कब है | देव दीवाली |

साल 2020 में देवउठनी एकादशी 25 नवंबर 2020 बुधवार को को मनाई जाएगी। देवउठनी एकादशी 2020 का शुभ मुहूर्त एकादशी तिथि का प्रारंभ होगा - 25 नवंबर 2020 बुधवार सुबह 2 बजकर 42 मिनट से एकादशी तिथि की समाप्ति होगी - 26 नवंबर 2020 गुरुवार सुबह 5 बजकर 10 मिनट पर देवशयनी एकादशी पर से ही सभी शुभ कार्य बंद हो जाते है जो देवउठनी एकादशी से शुरू होते हैं। इन चार महीनों के दौरान ही दीवाली मनाई जाती है। जिसमें भगवान विष्णु के बिना ही मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है, लेकिन देवउठनी एकादशी पर भगवान विष्णु को जगाने के बाद देवी देवताओं, भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा करके देव दीवाली मनाते हैं। देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से पूरे परिवार पर भगवान की विशेष कृपा बनी रहती है। इसके साथ ही मां लक्ष्मी घर पर धन सम्पदा और वैभव की वर्षा करती हैं।

 

देव उठनी ग्यारस अथवा प्रबोधिनी एकादशी का महत्व  

(Dev Uthani Gyaras Prabodhini Ekadashi Mahatva)

 

हिन्दू धर्म में एकादशी व्रत का महत्व सबसे अधिक माना जाता हैं |  इसका कारण यह हैं कि उस दिन सूर्य एवम अन्य गृह अपनी स्थिती में परिवर्तन करते हैं, जिसका मनुष्य की इन्द्रियों पर प्रभाव पड़ता हैं |  इन प्रभाव में संतुलन बनाये रखने के लिए व्रत का सहारा लिया जाता हैं |  व्रत एवम ध्यान ही मनुष्य में संतुलित रहने का गुण विकसित करते हैं |

इसे पाप विनाशिनी एवम मुक्ति देने वाली एकादशी कहा जाता हैं |  पुराणों में लिखा हैं कि इस दिन के आने से पहले तक गंगा स्नान का महत्व होता हैं, इस दिन उपवास रखने का पुण्य कई तीर्थ दर्शन, हजार अश्वमेघ यज्ञ एवम सौ राजसूय यज्ञ के तुल्य माना गया हैं |

इस दिन का महत्व स्वयं ब्रम्हा जी ने नारद मुनि को बताया था, उन्होंने कहा था इस दिन एकाश्ना करने से एक जन्म, रात्रि भोज से दो जन्म एवम पूर्ण व्रत पालन से साथ जन्मो के पापो का नाश होता हैं |

इस दिन से कई जन्मो का उद्धार होता हैं एवम बड़ी से बड़ी मनोकामना पूरी होती हैं |

इस दिन रतजगा करने से कई पीढियों को मरणोपरांत स्वर्ग मिलता हैं | जागरण का बहुत अधिक महत्व होता है, इससे मनुष्य इन्द्रियों पर विजय पाने योग्य बनता हैं |

इस व्रत की कथा सुनने एवम पढने से 100 गायो के दान के बराबर पुण्य मिलता हैं |

किसी भी व्रत का फल तब ही प्राप्त होता हैं जब वह नियमावली में रहकर विधि विधान के साथ किया जाये |

इस प्रकार ब्रम्हा जी ने इस उठनी ग्यारस अथवा प्रबोधिनी एकादशी व्रत का महत्व नारद जी को बताया एवम प्रति कार्तिक मास में इस व्रत का पालन करने को कहा |

 

देवउठनी एकादशी व्रत मुहूर्त

देवउठनी एकादशी पारणा मुहूर्त :13:11:37 से 15:17:52 तक 26, नवंबर को अवधि : 2 घंटे 6 मिनट हरि वासर समाप्त होने का समय :11:51:15 पर 26, नवंबर को

कार्तिक मास में आने वाली शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवोत्थान, देवउठनी या प्रबोधिनी एकादशी कहा जाता है। यह एकादशी दीपावली के बाद आती है। आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयन करते हैं और कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन उठते हैं, इसीलिए इसे देवोत्थान एकादशी कहा जाता है।

 

मान्यता है कि देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु क्षीरसागर में 4 माह शयन के बाद जागते हैं। भगवान विष्णु के शयनकाल के चार मास में विवाह आदि मांगलिक कार्य नहीं किये जाते हैं, इसीलिए देवोत्थान एकादशी पर भगवान हरि के जागने के बाद शुभ तथा मांगलिक कार्य शुरू होते हैं। इस दिन तुलसी विवाह का आयोजन भी किया जाता है।

 

देवोत्थान एकादशी व्रत और पूजा विधि

प्रबोधिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु का पूजन और उनसे जागने का आह्वान किया जाता है। इस दिन होने वाले धार्मिक कर्म इस प्रकार हैं-

 ●  इस दिन प्रातःकाल उठकर व्रत का संकल्प लेना चाहिए और भगवान विष्णु का ध्यान करना चाहिए।

  घर की सफाई के बाद स्नान आदि से निवृत्त होकर आंगन में भगवान विष्णु के चरणों की आकृति बनाना चाहिए।

  एक ओखली में गेरू से चित्र बनाकर फल, मिठाई, बेर, सिंघाड़े, ऋतुफल और गन्ना उस स्थान पर रखकर उसे डलिया से ढक देना चाहिए।

  इस दिन रात्रि में घरों के बाहर और पूजा स्थल पर दीये जलाना चाहिए।

  रात्रि के समय परिवार के सभी सदस्य को भगवान विष्णु समेत सभी देवी-देवताओं का पूजन करना चाहिए।

  इसके बाद भगवान को शंख, घंटा-घड़ियाल आदि बजाकर उठाना चाहिए और ये वाक्य दोहराना चाहिए- उठो देवा, बैठा देवा, आंगुरिया चटकाओ देवा, नई सूत, नई कपास, देव उठाये कार्तिक मास


प्रबोधिनी / देव उठनी एकादशी कथा 

भगवान श्रीकृष्ण ने कहा : हे अर्जुन ! मैं तुम्हें मुक्ति देनेवाली कार्तिक मास के शुक्लपक्ष की ‘प्रबोधिनी एकादशी’ के सम्बन्ध में नारद और ब्रह्माजी के बीच हुए वार्तालाप को सुनाता हूँ । एक बार नारादजी ने ब्रह्माजी से पूछा : ‘हे पिता ! ‘प्रबोधिनी एकादशी’ के व्रत का क्या फल होता है, आप कृपा करके मुझे यह सब विस्तारपूर्वक बतायें ।’

ब्रह्माजी बोले : हे पुत्र ! जिस वस्तु का त्रिलोक में मिलना दुष्कर है, वह वस्तु भी कार्तिक मास के शुक्लपक्ष की ‘प्रबोधिनी एकादशी’ के व्रत से मिल जाती है । इस व्रत के प्रभाव से पूर्व जन्म के किये हुए अनेक बुरे कर्म क्षणभर में नष्ट हो जाते है । हे पुत्र ! जो मनुष्य श्रद्धापूर्वक इस दिन थोड़ा भी पुण्य करते हैं, उनका वह पुण्य पर्वत के समान अटल हो जाता है । उनके पितृ विष्णुलोक में जाते हैं । ब्रह्महत्या आदि महान पाप भी ‘प्रबोधिनी एकादशी’ के दिन रात्रि को जागरण करने से नष्ट हो जाते हैं ।

हे नारद ! मनुष्य को भगवान की प्रसन्नता के लिए कार्तिक मास की इस एकादशी का व्रत अवश्य करना चाहिए । जो मनुष्य इस एकादशी व्रत को करता है, वह धनवान, योगी, तपस्वी तथा इन्द्रियों को जीतनेवाला होता है, क्योंकि एकादशी भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय है ।

इस एकादशी के दिन जो मनुष्य भगवान की प्राप्ति के लिए दान, तप, होम, यज्ञ (भगवान्नामजप भी परम यज्ञ है। ‘यज्ञानां जपयज्ञोऽस्मि’ । यज्ञों में जपयज्ञ मेरा ही स्वरुप है।’ - श्रीमद्भगवदगीता ) आदि करते हैं, उन्हें अक्षय पुण्य मिलता है ।

इसलिए हे नारद ! तुमको भी विधिपूर्वक विष्णु भगवान की पूजा करनी चाहिए । इस एकादशी के दिन मनुष्य को ब्रह्ममुहूर्त में उठकर व्रत का संकल्प लेना चाहिए और पूजा करनी चाहिए । रात्रि को भगवान के समीप गीत, नृत्य, कथा-कीर्तन करते हुए रात्रि व्यतीत करनी चाहिए ।

प्रबोधिनी एकादशी’ के दिन पुष्प, अगर, धूप आदि से भगवान की आराधना करनी चाहिए, भगवान को अर्ध्य देना चाहिए । इसका फल तीर्थ और दान आदि से करोड़ गुना अधिक होता है ।

जो गुलाब के पुष्प से, बकुल और अशोक के फूलों से, सफेद और लाल कनेर के फूलों से, दूर्वादल से, शमीपत्र से, चम्पकपुष्प से भगवान विष्णु की पूजा करते हैं, वे आवागमन के चक्र से छूट जाते हैं । इस प्रकार रात्रि में भगवान की पूजा करके प्रात:काल स्नान के पश्चात् भगवान की प्रार्थना करते हुए गुरु की पूजा करनी चाहिए और सदाचारी व पवित्र ब्राह्मणों को दक्षिणा देकर अपने व्रत को छोड़ना चाहिए ।

जो मनुष्य चातुर्मास्य व्रत में किसी वस्तु को त्याग देते हैं, उन्हें इस दिन से पुनः ग्रहण करनी चाहिए । जो मनुष्य ‘प्रबोधिनी एकादशी’ के दिन विधिपूर्वक व्रत करते हैं, उन्हें अनन्त सुख मिलता है और अंत में स्वर्ग को जाते हैं ।


तुलसी विवाह परम्परा

देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी विवाह की परम्परा है। इस दिन भगवान शालिग्राम के साथ तुलसी जी का विवाह होता हैइसके पीछे एक पौराणिक कथा है। जिसमे जालंधर को हराने के लिए भगवान विष्णु ने वृंदा नामक विष्णु भक्ति के साथ छल किया था। इसके बाद वृंदा ने विष्णु जी को श्राप देकर पत्थर बना दियालेकिन मां लक्ष्मी की विनती के बाद उन्हें सही करके सती हो गए थे। उनकी राख से तुलसी के पौधे का जन्म हुआ और उसके साथ साथ शालिग्राम के विवाह का चल शुरू हो गया।


तुलसी विवाह का आयोजन

देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी विवाह का आयोजन भी किया जाता है। तुलसी के वृक्ष और शालिग्राम की यह शादी सामान्य विवाह की तरह पूरे धूमधाम से की जाती है। चूंकि तुलसी को विष्णु प्रिया भी कहते हैं इसलिए देवता जब जागते हैंतो सबसे पहली प्रार्थना हरिवल्लभा तुलसी की ही सुनते हैं। तुलसी विवाह का सीधा अर्थ हैतुलसी के माध्यम से भगवान का आह्वान करना। शास्त्रों में कहा गया है कि जिन दंपत्तियों के कन्या नहीं होतीवे जीवन में एक बार तुलसी का विवाह करके कन्यादान का पुण्य अवश्य प्राप्त करें।

 

तुलसी विवाह कथा (Tulsi Vivah Katha ):

तुलसी, राक्षस जालंधर की पत्नी थी, वह एक पति व्रता सतगुणों वाली नारी थी, लेकिन पति के पापों के कारण दुखी थी| इसलिए उसने अपना मन विष्णु भक्ति में लगा दिया था |  जालंधर का प्रकोप बहुत बढ़ गया था, जिस कारण भगवान विष्णु ने उसका वध किया |  अपने पति की मृत्यु के बाद पतिव्रता तुलसी ने सतीधर्म को अपनाकर सती हो गई |  कहते हैं उन्ही की भस्म से तुलसी का पौधा उत्पन्न हुआ और उनके विचारों एवम गुणों के कारण ही तुलसी का पौधा इतना गुणकारी बना |  तुलसी के सदगुणों के कारण भगवान विष्णु ने उनके अगले जन्म में उनसे विवाह किया |  इसी कारण से हर साल तुलसी विवाह मनाया जाता है|

 

इस प्रकार यह मान्यता हैं कि जो मनुष्य तुलसी विवाह करता हैं, उसे मोक्ष की प्राप्ति होती हैं |  इस प्रकार देव उठनी ग्यारस अथवा प्रबोधिनी एकादशी के दिन तुलसी विवाह का महत्व बताया गया हैं |

 

घरों में कैसे किया जाता हैं तुलसी विवाह ? (Tulsi Vivah Puja Vidhi) :

 

कई लोग इसे बड़े स्वरूप में पूरी विवाह की विधि के साथ तुलसी विवाह करते हैं |

कई लोग प्रति वर्ष कार्तिक ग्यारस के दिन तुलसी विवाह घर में ही करते हैं |

हिन्दू धर्म में सभी के घरो में तुलसी का पौधा जरुर होता हैं |  इस दिन पौधे के गमले अथवा वृद्दावन को सजाया जाता हैं |

विष्णु देवता की प्रतिमा स्थापित की जाती हैं |

चारो तरफ मंडप बनाया जाता हैं |  कई लोग फूलों एवम गन्ने के द्वारा मंडप सजाते हैं |

तुलसी एवम विष्णु जी का गठबंधन कर पुरे विधि विधान से पूजन किया जाता हैं |

कई लोग घरों में इस तरह का आयोजन कर पंडित बुलवाकर पूरी शादी की विधि संपन्न करते हैं |

कई लोग पूजा कर ॐ नमो वासुदेवाय नम: मंत्र का उच्चारण कर विवाह की विधि पूरी करते हैं |

कई प्रकार के पकवान बनाकर कर उत्सव रचा जाता हैं एवम नेवैद्य लगाया जाता हैं |

परिवार जनों के साथ पूजा के बाद आरती करके प्रशाद वितरित किया जाता हैं |

इस प्रकार इस दिन से चार माह से बंद मांगलिक कार्यो का शुभारम्भ होता हैं | तुलसी विवाह के दिन दान का भी महत्व हैं इस दिन कन्या दान को सबसे बड़ा दान माना जाता हैं |  कई लोग तुलसी का दान करके कन्या दान का पुण्य प्राप्त करते हैं |

इस दिन शास्त्रों में गाय दान का भी महत्व होता हैं |  गाय दान कई तीर्थो के पुण्य के बराबर माना जाता हैं |


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मंगलवार, 10 नवंबर 2020

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रविवार, 8 नवंबर 2020

Mashan Badha Dur Karne Ka Upay | मसान बाधा दूर करना


दोस्तों आज हम आपको एक उपाय बताएंगे जो कि विशेष उस रूप के लिए है जिसका नाम सुनते ही लोग घबराते हैं अगर उसकी बाधा किसी व्यक्ति या घर पर हो जाए तो उस घर को नष्ट होने में ज्यादा समय नहीं लगता और बड़े-बड़े भगत लोग जो होते हैं अगर उनको पता चले कि यहां पर इस बीमारी का रोग है तो वह भी उस काम में हाथ नहीं डालते कोई सॉलिड भगत जो होगा वह जरूर कुछ कर सकता है बाकी सभी के बस का रोग नहीं होता तो हम बात कर रहे हैं मसान रोग के बारे में मसान से तो आप समझ ही चुके होंगे कि यह शमशान की चीज है, मसान रोग, श्मशान बाधा, मरघट बाधा, श्मशानी इलाज़, अस्सी मसान और इसको जो भी शक्ति मिलती है सब श्मशान से ही मिलती हैं यह मसान रोग अधिकतर महिलाओं पर यह स्त्री जाति पर बहुत ज्यादा प्रभावी होता है मसालों की विशेषता यह है कि यह काम उत्तेजना से संबंधित होता है घर की महिलाओं को गलत विचार देता है महिलाएं अपने धर्म को छोड़कर अन्य किसी गलत रास्ते की ओर चल पड़ती है जो कि हम अक्सर देखते हैं सुनते हैं कोई महिला भाग गई या उसका किसी शादीशुदा है उसके बावजूद भी उसका अफेयर है ऐसी महिलाओं को अक्सर घर में नग्न अवस्था में बालक या पुरुष जरूर दिखाई देता है रात को उस महिला के साथ सहवास भी होता है और उस महिला को भी यह पता होता है कि उसके साथ क्या हो रहा है तो चलिए इसके बारे में हम बात करते हैं इससे संबंधित मैं आपको एक बड़ा ही प्रभावशाली और सॉलिड मंत्र बता रहा हूं आप उस मंत्र को ध्यान से सुनिए फिर उसकी विधि क्या है वह भी मैं बताऊंगा यहां YouTube पर मैं सिर्फ आपको मंत्र बोलकर सुना रहा हूं यदि आप चाहते हो कि मंत्र क्या है तो वह आपको डिस्क्रिप्शन बॉक्स में मेरी साइट का जो कि पावरफुल शाबर मंत्र डॉट ब्लॉग स्पॉट डॉट कॉम है उस पर जाकर आपको वह लिख मिल जाएगा जहां पर कि मैंने इस मंत्र को और इसकी विधि को लिखा है तो चलिए मंत्र सुनिए आप मंत्र कुछ इस तरह से है:-

ओम नमो आदेश गुरु को
धतूरा बीज उठा गगन चोटी
परमेश्वर चले होकर बराती
उठा धुआं श्मशान में
मसाण चला आंखों में तेल डालकर
धुँआ चला बाराती बनकर
उठा मसाण को
वापिस चली बरात
मिले गोरक्षनाथ  
मैं भी चलूंगा बराती बनके
संग लूंगा मसाण का साथ
तभी ले उड़ गोरख चले
मसाण चला गोरख के संग
गोरख ने कुएं में छोड़ा मसाण को
और गोरख अपने गुरु मछंदर नाथ के अंस
जय जय गोरखनाथ
चल शब्द मन्त्र की तान
तू ना चले तो गुरु गोरख की आन

तो यह मंत्र मंत्र को सिद्ध करने के लिए सबसे साधारण विधि यह है कि आप एक अस्थाई रूप से किसी बबूल के पेड़ के नीचे एक जगह ज्यादा नहीं कम से कम 21 दिन के लिए एक हवन कुण्ड का निर्माण करें | उस हवन कुण्ड में आपको गूगल की आहुति देते हुए इस मंत्र की कम से कम 21 बार ज्यादा नहीं बता रहा हूं मैं सिर्फ 21 बार आपको इस मंत्र का सख्त नियम के साथ में 21 दिन तक 21 बार गूगल की धूप से बबूल के पेड़ के नीचे आहुति देनी है आपको इतना ही करना है और यह आपका मंत्र एक्टिवेट हो जाएगा, क्रियाशील हो जाएगा | इसके बाद में मसान रोग से संबंधित आप उसका उतारा भी कर सकते हैं या उसे झाड़-फूंक भी दे सकते हैं या उसका गंडा ताबीज भी बना सकते हैं उतारा करने में आपको जिस तरह की पांच मिठाई लड्डू पताशे पान इत्यादि का सहारा लेना होगा झाड़ा लगाने के लिए आप चाकू से या झाड़ू बुहारने वाली झाड़ू जिसका घर में इस्तेमाल किया जाता है सीख वाली उसका इस्तेमाल कर सकते हैं और अगर गंडा ताबीज बनाना है तो भोजपत्र पर इसी मंत्र को लिखकर बाबा गोरखनाथ के नाम की धूनी करके उस में से यह गंडा निकालकर यह रोगी को पहना भी सकते हैं | यह साधारण कोई भी सफेद रंग का धागा उसको इसी मंत्र से अभिमंत्रित कर कर 7 गांठ लगाकर रोगी को पहना सकते हैं इससे रोगी को बहुत फायदा होगा |

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