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रविवार, 25 मई 2025

Bhagat Ki Bhagtai eBook Download | Sharir Me Devi Devta Pitru Ki Swari/Chaawa Aana

 

भगत की भग्ताई:

देवी-देवताओं की सवारी और भगतों की विडंबना

 

शरीर में देवी देवता सवार होना || क्या भूत प्रेत सच में है|Possession Syndrome माता सच में आती है?? क्या भूत प्रेत सच में है||क्या सिर पर माता सच में आती है शरीर में देवी देवता सवार होते हैं 

इस पुस्तक का नाम "भगत की भग्ताई" इसलिए रखा गया है क्योंकि यह उन भगतों (भक्तों) की कहानी है जिन पर देवी-देवताओं, पितरों या बाबाओं की सवारी आती है, लेकिन वे अपने निजी जीवन में असफलता और निराशा का सामना करते हैं। ये भगत दूसरों का काम तो गारंटी से करवा देते हैं, पर जब अपने घर की बात आती है, तो ऐसा लगता है कि देवता उनकी सुन ही नहीं रहे।

इस अध्याय में हम इसी विषय पर विस्तार से चर्चा करेंगे कि आखिर क्यों भगतों के साथ ऐसा होता है, इसके पीछे कौन-कौन से कारण हो सकते हैं, और इन समस्याओं का समाधान कैसे किया जा सकता है।


पहाड़ी क्षेत्रों में जागर और बैसी लगाई जाती है, जिसमें देवी-देवताओं को बुलाकर उनसे आशीर्वाद लिया जाता है और घर-परिवार और गांव आदि की खुशहाली के लिए कामना की जाती है. स्थानीय बुजुर्गों की मानें तो बैसी और जागर 


भगतों की दुविधा: देवता दूसरों का काम करते हैं, अपना नहीं

कई भगतों को यह शिकायत होती है कि वे दूसरों के लिए मन्नतें मांगते हैं, पूजा-पाठ करते हैं, और उनका काम बन जाता है, लेकिन जब उनकी अपनी कोई मनोकामना होती है, तो वह पूरी नहीं होती। इससे उनके मन में निम्न भावनाएँ उत्पन्न होती हैं:

1.  देवता से मन हटना – भगत को लगने लगता है कि अब उसका विश्वास डगमगा रहा है।

2.  चिड़चिड़ापन और क्रोध – वह देवता पर गुस्सा करने लगता है।

3.  ईर्ष्या की भावना – उसे लगता है कि दूसरों की मनोकामनाएँ पूरी हो रही हैं, लेकिन उसकी नहीं।

4.  देवता को कोसना – निराशा में वह देवी-देवताओं को दोष देने लगता है।

5.  परीक्षा का भाव – वह यह समझाने लगता है कि शायद देवता उसकी परीक्षा ले रहे हैं।

लेकिन सच यह है कि ऐसा होने के पीछे कुछ गहरे कारण होते हैं, जिन्हें समझना जरूरी है।

 

देवी-देवताओं की सवारी और भगतों की स्थिति के मुख्य कारण

1. कर्मफल और प्रारब्ध का प्रभाव

हिंदू धर्म के अनुसार, प्रत्येक व्यक्ति का जीवन उसके पूर्वजन्म के कर्मों (प्रारब्ध) और वर्तमान कर्मों से चलता है। हो सकता है कि भगत के पिछले जन्म के कुछ ऐसे कर्म हों जो उसकी वर्तमान इच्छाओं को पूरा होने से रोकते हों। देवता उसके भक्ति भाव को देखकर दूसरों का काम तो कर देते हैं, लेकिन उसके अपने कर्मफल को बदलने की शक्ति सीमित होती है।

2. भक्ति में स्वार्थ का भाव

कई बार भगत की भक्ति में "मैं" और "मेरा" का भाव आ जाता है। वह देवता से केवल अपनी मनोकामनाएँ पूरी करने की अपेक्षा रखता है, जबकि सच्ची भक्ति तो निस्वार्थ होती है। जब भक्ति स्वार्थ से भर जाती है, तो देवी-देवता उसकी परीक्षा लेते हैं या उसे धीरज धरने का संदेश देते हैं।

3. पितृदोष या कुलदेवता का असंतुष्ट होना

कई बार भगत के परिवार में पितृदोष (पूर्वजों का असंतोष) या कुलदेवता की अनदेखी होती है। ऐसे में भले ही भगत किसी देवी-देवता की पूजा करे, लेकिन जब तक पितरों की शांति नहीं होती, उसके अपने काम अटके रहते हैं।

4. देवी-देवताओं की लीला

देवता भक्त की भक्ति की परीक्षा लेते हैं। वे जानबूझकर उसे कठिनाइयों में डालते हैं ताकि उसकी श्रद्धा और दृढ़ता बढ़े। जैसे हनुमानजी ने भी भक्तों को कई बार विपदाओं में डालकर उनकी भक्ति की परीक्षा ली है।

5. गलत साधना या मंत्र-जाप में त्रुटि

कुछ भगत बिना गुरु के मार्गदर्शन के ही मंत्र जाप या तांत्रिक साधनाएँ करने लगते हैं। अगर मंत्र सही उच्चारण से नहीं बोले जाते या साधना में कोई भूल होती है, तो इसका उल्टा प्रभाव पड़ता है।

6. नकारात्मक शक्तियों का प्रभाव

कई बार कोई नकारात्मक शक्ति (भूत-प्रेत, टोना-टोटका, काला जादू) भगत के जीवन में बाधा डालती है। ऐसे में देवी-देवता उसकी रक्षा तो करते हैं, लेकिन उसके कामों में विलंब होता है।

 

समाधान: भगत अपनी भग्ताई कैसे सुधारे?

1. निस्वार्थ भक्ति का भाव रखें

देवता को केवल माँगने के लिए नहीं, बल्कि प्रेम से पूजने के लिए तैयार होना चाहिए। जैसे मीरा ने कृष्ण को अपना सब कुछ माना, वैसे ही भाव रखें।

2. पितृदोष और कुलदेवता की शांति करें

  • पितृ श्राद्ध, तर्पण करें।
  • कुलदेवता की नियमित पूजा करें।
  • पीपल के पेड़ पर जल चढ़ाएँ और पितरों का आशीर्वाद माँगें।

3. सही गुरु का मार्गदर्शन लें

बिना गुरु के साधना करने से बचें। किसी योग्य साधु-संत से दीक्षा लें और सही मंत्रों का जाप करें।

4. धैर्य रखें और देवता पर विश्वास बनाए रखें

देवता भक्त की परीक्षा लेते हैं, इसलिए धैर्य रखें। जैसे श्रवण कुमार ने अपने माता-पिता की सेवा की, वैसे ही निष्काम भाव से भक्ति करें।

5. नकारात्मक ऊर्जा से बचाव करें

  • हनुमान चालीसा का नियमित पाठ करें।
  • नमक-मिर्च का उपाय करके नजर दोष दूर करें।
  • शनिवार को हनुमानजी को सिंदूर चढ़ाएँ और बजरंगबाण का पाठ करें।

 

"देवी-देवताओं की सवारी: आशीर्वाद या अभिशाप?"

सवारी क्या होती है?

देवी-देवताओं, पितरों या अन्य दिव्य शक्तियों की "सवारी" का अर्थ है कि कोई अलौकिक शक्ति व्यक्ति के शरीर या मन पर अपना प्रभाव डालती है। यह प्रभाव कई रूपों में दिखाई देता है:

  • समाधि या ट्रान्स की अवस्था में व्यक्ति देवता का संदेश देने लगता है।
  • अचानक ऊर्जा का संचार होता है—कभी नाचने, गाने या जोर-जोर से मंत्र बोलने लगता है।
  • दूसरों का काम करने की शक्ति आ जाती है, पर अपना काम नहीं बनता।
  • कभी-कभी अजीब लक्षणजैसे बिना खाए-पिए रहना, अत्यधिक गर्मी या ठंड महसूस करना।

लेकिन सवाल यह है कि यह सवारी किसी के लिए आशीर्वाद कैसे बन जाती है और किसी के लिए अभिशाप क्यों हो जाती है?

 

सवारी कब आशीर्वाद बनती है?

जब देवी-देवताओं की सवारी सही तरीके से और सही उद्देश्य से होती है, तो यह व्यक्ति के लिए वरदान साबित होती है। निम्नलिखित स्थितियों में सवारी आशीर्वाद बनती है:

1. जब भक्त की निष्काम भावना हो

जो भक्त बिना किसी स्वार्थ के, केवल प्रेम और श्रद्धा से देवता की पूजा करता है, उस पर आई सवारी उसे ज्ञान, शांति और आध्यात्मिक उन्नति देती है। जैसे संत कबीर, मीराबाई, या रामकृष्ण परमहंस—इन सभी पर दिव्य शक्तियों का प्रभाव था, लेकिन यह उनके लिए मोक्ष का मार्ग बना।

2. जब सवारी गुरु-परंपरा से जुड़ी हो

अगर कोई सिद्ध गुरु या परिवार के कुलगुरु की कृपा से सवारी आती है, तो यह व्यक्ति को सिद्धियाँ, रोगमुक्ति और दिव्य ज्ञान देती है। ऐसे लोगों को देवता स्पष्ट मार्गदर्शन देते हैं और उनका जीवन सफल बनाते हैं।

3. जब सवारी सेवा-भाव से जुड़ी हो

कुछ लोगों पर देवता इसलिए सवारी करते हैं ताकि वे समाज की सेवा कर सकें। ऐसे भक्तों को देवता चमत्कारिक शक्तियाँ देते हैं—जैसे बीमारों को ठीक करना, भूत-प्रेत बाधा दूर करना, या लोगों को सही मार्ग दिखाना।

 

सवारी कब अभिशाप बन जाती है?

वहीं, कई बार यही सवारी किसी के लिए जीवनभर का कष्ट बन जाती है। निम्न स्थितियों में सवारी अभिशाप का रूप ले लेती है:

1. जब भक्त का अहंकार बढ़ जाए

कुछ लोगों को देवता की सवारी आते ही लगने लगता है कि वे साधारण मनुष्य नहीं, बल्कि देवता के अवतार हैं। वे लोगों को धमकाने लगते हैं, दान-दक्षिणा की माँग करते हैं, और अपनी शक्तियों का गलत उपयोग करते हैं। ऐसे में देवता उन्हें छोड़ देते हैं, और नकारात्मक शक्तियाँ उन पर हावी हो जाती हैं।

2. जब सवारी अनियंत्रित हो जाए

कुछ लोग बिना गुरु के मार्गदर्शन के ही तांत्रिक साधनाएँ करने लगते हैं। ऐसे में अधूरी साधना या गलत मंत्र-जाप के कारण उन पर किसी अशुभ शक्ति की सवारी हो जाती है, जो उन्हें मानसिक और शारीरिक रूप से कमजोर कर देती है।

3. जब पितर या ब्रह्मराक्षस सवारी करें

कई बार असंतुष्ट पितर या ब्रह्मराक्षस जैसी नकारात्मक शक्तियाँ भी सवारी करती हैं। ये शक्तियाँ भक्त को भ्रम में डालकर उससे गलत काम करवाती हैं, जैसे—

  • बिना वजह क्रोध आना
  • अपने ही परिवार से नफरत होना
  • अनजाने में ही किसी को श्राप दे देना

ऐसे में व्यक्ति का जीवन नरक बन जाता है, क्योंकि वह समझ ही नहीं पाता कि उसके साथ क्या हो रहा है।

 

समाधान: सवारी को आशीर्वाद कैसे बनाएँ?

अगर आप पर या आपके किसी परिचित पर देवी-देवताओं की सवारी है, तो निम्न उपाय करके इसे आशीर्वाद में बदला जा सकता है:

1. नियमित पूजा-पाठ और संयम

  • हनुमान चालीसा, दुर्गा सप्तशती या शिव चालीसा का नियमित पाठ करें।
  • शुद्ध आहार लें—मांस, मदिरा और तामसिक भोजन से दूर रहें।

2. गुरु की शरण लें

किसी सच्चे सद्गुरु की शरण में जाएँ, जो आपको सही मार्गदर्शन दे सके। बिना गुरु के साधना करना खतरनाक हो सकता है।

3. पितृदोष और नकारात्मक शक्तियों से मुक्ति

  • गया जाकर पिंडदान करें।
  • महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें।
  • हनुमानजी की कृपा से भूत-प्रेत बाधा दूर करें।

4. सेवा-भाव को बनाए रखें

अगर देवता ने आपको कुछ शक्तियाँ दी हैं, तो उनका उपयोग लोगों की मदद के लिए करें, न कि धन या प्रसिद्धि के लिए।

 

"भगत की परीक्षा: देवता क्यों इंतज़ार करवाते हैं?"

 

देवता परीक्षा क्यों लेते हैं?

1. भक्ति की शुद्धता जाँचने के लिए

देवता सबसे पहले यह देखना चाहते हैं कि भक्ति स्वार्थ के लिए है या निस्वार्थ प्रेम के लिए। जैसे सोने को आग में तपाकर ही खरा सोना पहचाना जाता है, वैसे ही भक्त की श्रद्धा को विलंब और कठिनाइयों से परखा जाता है।

2. भक्त के संस्कार बदलने के लिए

कई बार हमारे पुराने संस्कार (कर्मों का प्रभाव) हमारी मनोकामना पूरी होने में बाधा बनते हैं। देवता जानबूझकर समय लेते हैं ताकि हमारे अंदर धैर्य, विश्वास और आत्मसुधार आ सके।

3. सही समय का इंतज़ार

देवता जानते हैं कि हर चीज़ का एक सही समय होता है। जिसे हम "विलंब" समझते हैं, वह वास्तव में हमारे लिए सर्वोत्तम समय की तैयारी है।

4. भक्त की क्षमता बढ़ाने के लिए

जब तक हम छोटी इच्छाओं (धन, सुख) के लिए व्याकुल रहेंगे, तब तक देवता हमें बड़ी दिव्य अनुभूतियाँ (आत्मज्ञान, मोक्ष) कैसे देंगे? इसलिए वे पहले हमें छोटी इच्छाओं से मुक्त करते हैं।

 

परीक्षा के प्रमुख प्रकार

देवता भक्तों की अलग-अलग तरह से परीक्षा लेते हैं:

1. धन की परीक्षा

  • भक्त को धन मिलता ही नहीं, या मिलकर भी नष्ट हो जाता है।
  • उद्देश्य: यह जाँचना कि क्या भक्त धन मिलने पर भी देवता को याद रखेगा?

2. स्वास्थ्य की परीक्षा

  • लंबी बीमारी या शारीरिक कष्ट दिया जाता है।
  • उद्देश्य: भक्त के धैर्य और आत्मबल को मजबूत करना।

3. अपमान की परीक्षा

  • भक्त को समाज या परिवार में अपमान सहना पड़ता है।
  • उद्देश्य: अहंकार को खत्म करना और दिव्य गुण विकसित करना।

4. विश्वास की परीक्षा

  • भक्त की सारी मनोकामनाएँ अधूरी रह जाती हैं।
  • उद्देश्य: यह देखना कि क्या वह निराश हुए बिना भक्ति जारी रखता है?

 

परीक्षा में सफल होने के उपाय

1. "तथास्तु" का भाव रखें

भगवान कृष्ण ने गीता में कहा है – "सुख दुःख में समान रहो।" जब हम हर स्थिति में "जो होगा, अच्छा ही होगा" का भाव रखते हैं, तो देवता स्वयं हमारे कष्ट हर लेते हैं।

2. नियमित साधना जारी रखें

चाहे कितनी भी मुश्किलें आएँनित्य पूजा, मंत्र जाप और ध्यान न छोड़ें। यही साधना अंत में फल देती है।

3. सेवा और दान करें

अपने कष्टों को भूलकर गरीबों की मदद, अन्नदान, ज्ञानदान करें। सेवा भाव से देवता जल्दी प्रसन्न होते हैं।

4. गुरु का सहारा लें

अगर परीक्षा बहुत कठिन लगे, तो किसी सच्चे सद्गुरु की शरण में जाएँ। गुरु ही आपको सही मार्ग दिखा सकते हैं।

 

विशेष: भगवान कब मनोकामना पूरी करते हैं?

देवता तभी मनोकामना पूरी करते हैं जब:
भक्त का हृदय शुद्ध हो जाता है।
उसमें अहंकार शून्य हो जाता है।
वह फल की इच्छा छोड़कर केवल भगवान को पाना चाहता है।

"जब भक्त कहता है - 'प्रभु, तुम्हारी इच्छा'... तब देवता कहते हैं - 'ले भक्त, मेरी इच्छा अब तेरी इच्छा है।'"

 

 

"भगत का उद्धार: देवी-देवताओं से सीधा संवाद कैसे करें?"

भक्ति के मार्ग पर चलते हुए हर साधक का एक गहरा प्रश्न होता है - "क्या मैं सीधे देवी-देवताओं से बात कर सकता हूँ? क्या वे मेरी सुनते हैं?" इस अध्याय में हम गहराई से जानेंगे कि कैसे एक सच्चा भक्त दिव्य शक्तियों से सीधा संपर्क स्थापित कर सकता है और उनका मार्गदर्शन प्राप्त कर सकता है।

देव संवाद: कल्पना या वास्तविकता?

1. ऐतिहासिक उदाहरण

  • मीराबाई और कृष्ण का संवाद
  • तुलसीदासजी द्वारा हनुमानजी के दर्शन
  • रामकृष्ण परमहंस और माँ काली का साक्षात्कार

2. आधुनिक युग में दिव्य अनुभूतियाँ

क्या आज के युग में भी ऐसा संभव है? हमारे आसपास कई ऐसे साधक हैं जिन्हें:

  • स्वप्न में दिव्य संदेश
  • ध्यानावस्था में आकाशवाणी
  • प्रतीकों के माध्यम से मार्गदर्शन

संवाद के तीन स्तर

1. भौतिक स्तर पर संवाद

  • मूर्तियों से आँसू या चमत्कारिक घटनाएँ
  • पूजा के समय अगरबत्ती की राख में दिव्य आकृतियाँ
  • फूलों का स्वतः चढ़ जाना

2. सूक्ष्म स्तर पर संवाद

  • स्वप्न मार्गदर्शन
  • अंतरआवाज (अंतर्ज्ञान)
  • संकेतों की भाषा (पक्षी, प्रकृति के संदेश)

3. आध्यात्मिक स्तर पर संवाद

  • समाधि अवस्था में सीधा संपर्क
  • मंत्रों के माध्यम से ऊर्जा संचार
  • योग द्वारा चक्रों का जागरण

संवाद स्थापित करने के पाँच सोपान

1. शुद्धिकरण प्रक्रिया

  • त्रिकाल संध्या का पालन
  • सात्विक आहार (मसाले, मांस, मदिरा त्याग)
  • मन की शुद्धि (क्रोध, ईर्ष्या, लोभ का त्याग)

2. नियमित साधना

  • प्रातः 4-6 बजे (ब्रह्म मुहूर्त) में जप
  • एकाग्र मन से मंत्र साधना
  • नित्य दीपदान और आरती

3. गुरु कृपा प्राप्ति

  • सच्चे गुरु की खोज
  • गुरु मंत्र की दीक्षा
  • गुरु के निर्देशों का पालन

4. भाव की गहराई

  • मंत्र जप में भावना
  • आँखें बंद कर देवता का ध्यान
  • हृदय से प्रार्थना

5. धैर्य और विश्वास

  • तुरंत फल की अपेक्षा न रखें
  • निरंतर अभ्यास
  • दिव्य संकेतों के प्रति सजगता

संवाद के लिए विशेष साधनाएँ

1. गायत्री महामंत्र साधना

  • 1 माला (108 बार) नित्य जप
  • सूर्योदय के समय जल अर्पण

2. हनुमान चालीसा का निश्चय

  • 40 दिन लगातार पाठ
  • हनुमानजी को सिंदूर चढ़ाना

3. शिव पंचाक्षर मंत्र

  • "ॐ नमः शिवाय" का 1 लाख जप
  • रुद्राक्ष धारण कर साधना

संवाद के संकेत कैसे पहचानें?

सकारात्मक संकेत

  • मन में अचानक शांति
  • अनायास प्रसन्नता
  • अप्रत्याशित सहायता

सावधानी के संकेत

  • अहंकार का उदय
  • भ्रम की स्थिति
  • नकारात्मक शक्तियों का प्रभाव

विशेष सूत्र: त्राटक विधि

1.  शिव या कृष्ण की तस्वीर सामने रखें

2.  टिमटिमाते दीपक के सामने बैठें

3.  निरंतर दृष्टि जमाकर ध्यान करें

4.  21 दिनों तक अभ्यास करें

देवी-देवताओं से सीधा संवाद कोई चमत्कार नहीं, बल्कि शुद्ध भक्ति का प्राकृतिक फल है। जब भक्त का हृदय पूर्णतः शुद्ध हो जाता है, तो देवता स्वयं उससे संवाद स्थापित करते हैं। याद रखें:

"जब भक्त की जिह्वा पर मंत्र हो, हृदय में प्रेम हो और कर्मों में पवित्रता हो - तो देवता उसके निकटतम सलाहकार बन जाते हैं।"

 

"भक्ति का शिखर: जब देवता स्वयं भक्त के घर आते हैं"

भक्ति के उच्चतम स्तर पर पहुँचने वाले साधकों के जीवन में वे पवित्र क्षण आते हैं जब देवता स्वयं साक्षात रूप में प्रकट होते हैं। यह अध्याय उन्हीं दिव्य अनुभूतियों की गहन व्याख्या प्रस्तुत करता है - कैसे, कब और क्यों देवता भक्त के घर पधारते हैं, और इन अलौकिक घटनाओं को कैसे पहचानें।

देवदर्शन: पौराणिक आधार एवं आधुनिक उदाहरण

1. पौराणिक प्रमाण

  • प्रह्लाद के समक्ष नृसिंह अवतार
  • द्रौपदी की रक्षा में कृष्ण का चीर विस्तार
  • अंजनी के समक्ष पवनदेव का प्रकटन

2. समकालीन अनुभव

  • शिरडी के साईं बाबा के भक्तों के संस्मरण
  • वृंदावन के संतों द्वारा कृष्ण दर्शन
  • हिमालयी योगियों के तिब्बती मठों में देवी दर्शन

देवागमन के पाँच स्वरूप

1. भौतिक रूप में अवतरण

  • मूर्ति से जीवंत हो उठना
  • प्रकाश स्तंभ के रूप में प्रकट होना
  • सुगंध और पुष्प वर्षा के साथ आगमन

2. स्वप्न दर्शन

  • त्रिकालज्ञानी स्वरूप में मार्गदर्शन
  • भविष्यवाणी करने वाले दिव्य संदेश
  • चेतावनी या आशीर्वाद के रूप में

3. साधना-कक्ष में साक्षात्कार

  • ध्यानावस्था में दिव्य मुखारविंद दर्शन
  • मंत्र जप के समय ऊर्जा का स्पर्श
  • आकाशवाणी के माध्यम से संवाद

4. लीला पुरुष के रूप में

  • सामान्य मनुष्य वेष में परीक्षा लेने
  • संत/साधु के रूप में आकर कृपा करना
  • विपत्ति के समय रक्षक बनकर आना

5. नित्य दर्शन की अवस्था

  • सर्वत्र देवदर्शन का अनुभव
  • प्रकृति के माध्यम से सतत संवाद
  • चेतना के स्तर पर निरंतर उपस्थिति

देवागमन के लिए सात पूर्वाभास

1.  अनहद नाद - कानों में दिव्य घंटियों की ध्वनि

2.  दिव्य गंध - अकस्मात कमल/चंदन की सुगंध

3.  प्रकाश पुंज - आँखें बंद करने पर दिव्य ज्योति

4.  शरीर में स्पंदन - अचानक ऊर्जा का संचार

5.  अश्रुधारा - भक्तिरस में डूबे हुए नेत्र

6.  प्रकृति के संकेत - पक्षियों का विशेष व्यवहार

7.  हृदय की गति - प्रेमाभक्ति में विशेष ताल


सावधानियाँ एवं सचेतक संकेत

भ्रम के लक्षण

  • अहंकारी भाव ("मैं विशेष हूँ")
  • वाणी में कठोरता आना
  • दूसरों की भक्ति में बाधा डालना

सत्य दर्शन के चिह्न

  • विनम्रता में वृद्धि
  • सेवा भाव का प्रसार
  • सभी प्राणियों में दिव्य दृष्टि

 

निष्कर्ष: भग्ताई का सही अर्थ

"भगत की भग्ताई" का अर्थ यह नहीं कि देवता उसके साथ अन्याय कर रहे हैं, बल्कि यह कि भगत को अपनी भक्ति को शुद्ध और निष्काम बनाना है। जब भक्ति में स्वार्थ समाप्त हो जाता है, तो देवता स्वयं उसके सभी कष्ट हर लेते हैं।

इसलिए, यदि आप भी ऐसी स्थिति से गुजर रहे हैं, तो धैर्य रखें, अपनी भक्ति को शुद्ध करें और देवता के निर्णय पर विश्वास रखें। "जो होता है, अच्छे के लिए होता है" – यही भगत की सच्ची भग्ताई है।

 

सवारी का सही उपयोग

देवी-देवताओं की सवारी आशीर्वाद भी हो सकती है और अभिशाप भीयह इस बात पर निर्भर करता है कि भक्त उस शक्ति का उपयोग कैसे करता है। अगर भक्त निष्काम भाव से, गुरु के मार्गदर्शन में और सेवा-भाव से आगे बढ़े, तो सवारी उसके लिए मोक्ष का मार्ग बन जाती है। लेकिन अगर वह अहंकार, लालच या गलत साधना में फँस जाए, तो यही सवारी उसके पतन का कारण बन सकती है।

"देवता कभी भक्त का अहित नहीं चाहते, लेकिन भक्त का स्वयं का अहंकार ही उसके पतन का कारण बनता है।"

जब भक्त का हृदय पूर्णतः शुद्ध हो जाता है, तो देवता स्वयं उसके द्वार पर आकर खड़े हो जाते हैं। यह कोई कल्पना नहीं, बल्कि भक्ति के शिखर का वास्तविक अनुभव है।

"जिस घर में भक्ति की दीपक जलती है, उसके द्वार पर देवता अपने चरण धरने को व्याकुल रहते हैं।"

 

 भगत की भग्ताई” इस पुस्तक का नाम इसी लिए रखा है ताकि वे लोग जिन पर किसी देवी देवता पितर या बाबा आदि की सवारी आती है और वे अपने स्वयं के काम में असफल होते है | जो भगत लोग परेशान है, उन पर किसी देवी देवता या घर के पितर देव की सवारी आती है और ऐसे भगत लोग सब का गारंटी से और समय पर काम करते है परन्तु जब स्वयं की या स्वघर की बात आती है तो ऐसा लगता है मानो देवता कुछ कर ही नही रहा फिर अपने देवता से मन का हटना, चिडचिडापन आना, इर्ष्या होना आम बात है | देवी देवता को कोसना, देवी देवता परीक्षा ले रहे है इत्यादि कहकर अपने आप को सांत्वना देते है | तो इसी विषय पर कुछ चर्चा करते हैं और देखते है कि कौन कौन से कारण होते हैं और अपनी परेशानियों के समाधान किस प्रकार से हो सकते हैं |

  

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  भगत की भग्ताई: देवी-देवताओं की सवारी और भगतों की विडंबना   शरीर में देवी देवता सवार होना || क्या भूत प्रेत सच में है|Possession Syndro...