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सोमवार, 25 मार्च 2019

BAJARANG KI KENCHI | हनुमान बजरंग की कैंची | प्रयोगों की काट


BAJARANG KI KENCHI | हनुमान बजरंग की कैंची | प्रयोगों की काट


यह भी एक चमत्कारी प्रयोग है जिससे मुसलमानी और तंत्र दोनों को आसानी से काट सकते हैं इसमें कोई खतरा नहीं है | यह साधना 21 दिन की हैं अगर आप खुद नहीं कर सकते तो किसी योग्य साधक से भी इसे करवा सकते हैं |  


फजले बिस्मिल्ला रहमान,
अटल खुरसी तेज खुरान ।
घड़ी-घड़ी में निकलै बान ।
लालो लाल कमान,
राखवाले की जबान ।
खाक माता खाक पिता ।
त्रिलोकी की मिसैली ।
राजा – प्रजा पड़ैमोहिनी ।
जल देखै, थल कतरै ।
राजा इन्द्र की आसन कतरै ।
तलवार की धार कतरै ।
आकाश पाताल,
वायु – मण्डल को कतरै ।
तेंतीस कोटि देवी- देवताओं को कतरै ।
शिव – शंकर को कतरै ।
भीमसेन की गदा कतरै ।
अर्जुन को बाण कतरै ।
कृष्ण को सुदर्शन कतरै ।
सोला हंसा को कतरै ।
पेट में के बावरे को कतरै ।
दौलतपुर के डोमा को कतरै ।
ब्राह्मण के ब्रहम-राक्षस को कतरै ।
धोबी के जिन को कतरै ।
भंगी के जिन को कतरै ।
रमाने के जिन को कतरै ।
मसान के जिन को कतरै ।
मेरे नरसिंह से कतरै ।
गुरु के नरसिंह से कतरै ।
बैलातन चुड़ैल को कतरै ।
जहाँ खुरी नौ खण्ड,
बारह बंगाले की विद्या जा पहुँचे ।
अञ्जनी के पूत हनुमान |
तोहे एक लाख अस्सी हजार पीर-पैगम्बरों की
दुहाई, दुहाई, दुहाई |

 विधिः-

हनुमान जी का पूजन कर नित्य 108 बार जप करें । 21 दिन जप किया जाए |
21वें दिन हनुमान् जी को सिन्दूर, लंगोट, सवा सेर का रोट, नारियल अर्पित करे |
इस विद्या से अभिमन्त्रित नींबू जहाँ लटका दिया जाएगा, वहाँ किसी भी प्रकार का अभिचार, भूत-प्रेतादि नहीं ठहर सकते | दूकान में लटकाने से धन्धा अच्छा चलेगा | 
भूत-प्रेत लगे व्यक्ति को 3, 5 या 7 बार अभिमन्त्रित जल छिड़कने से, मन्त्र पढ़कर लौंग अभिमन्त्रित कर उसे खिला दें तो उस दुष्ट करने वाली की विद्या नष्ट हो जाती है |

रविवार, 3 मार्च 2019

mahashivaratri 2019 | महाशिवरात्रि 2019 | महाशिवरात्रि कथा | कैसे करें भगवान शिव का रुद्राभिषेक | शिव पूजा का महत्व

महाशिवरात्रि का नाम अंतर्मन में आते ही भगवान शिव के अनेकों रूपों शिव, शंकर, रूद्र, महाकाल, महादेव, भोलेनाथ आदि-आदि रूपों के अनंत गुणों की कहानियां स्मरण होने लगती हैं। शिव ही ब्रह्म हैं और यही ब्रह्म जब आमोद-प्रमोद अथवा हास-परिहास के लिए नयापन सोचते हैं तो श्रृष्टि का सृजन करते हैं। महादेव बनकर देव उत्पन्न करते हैं तो ब्रह्मा बनकर मैथुनीक्रिया से श्रृष्टि का सृजन करते हैं। जीवों का भरण-पोषण करने के लिए महादेव श्रीविष्णु बन जाते हैं और इन जीवात्माओं का चिरस्वास्थ्य बना रहे, इसके लिए भगवान मृत्युंजय बनकर रोग हरण भी करते हैं।

जब यही जीवात्माएं अपने शिवमार्ग से भटकती हैं और अनाचार-अत्याचार में लग जाती हैं, तो महाकाल, यम और रूद्र के रूप में इनका संहार भी करते हैं। अतः इस चराचर जगत के आदि और अंत शिव ही हैं। पृथ्वीलोक पर इनके रुद्र रूप कि पूजा सर्वाधिक होती है। पौराणिक मान्यता है कि महादेव श्रृष्टि का सृजन और प्रलय सायंकाल-प्रदोषबेला में ही करते हैं, इसलिए इनकी पूजा आराधना का फल प्रदोष काल में ही श्रेष्ठ माना गया है। त्रयोदशी तिथि का अंत और चतुर्दशी तिथि के आरंभ का संधिकाल ही इनकी परम अवधि है। किसी भी ग्रह, तिथि, वार, नक्षत्र, योग, करण आदि तथा सुबह-शाम के संधिकाल को प्रदोषकाल कहा जाता है। इसलिए चतुर्दशी तिथि के स्वामी स्वयं भगवान शिव ही है।वैसे तो शिवरात्रि हर माह के कृष्ण पक्ष कि चतुर्दशी तिथि को मनाई जाती है, किन्तु फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को महाशिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है।

महाशिवरात्रि कथा 

महाशिवरात्रि के विषय में पुराणों में अनेकों कहानियां मिलती हैं, किन्तु जो शिवपुराण में है, वह इस प्रक्रार है कि पूर्वकाल में चित्रभानु नामक एक शिकारी था। जानवरों की हत्या करके वह अपने परिवार को पालता था। वह एक साहूकार का कर्जदार था, लेकिन उसका ऋण समय पर न चुका सका। क्रोधित साहूकार ने शिकारी को शिवमठ में बंदी बना लिया। संयोग से उस दिन शिवरात्रि थी। शिकारी ध्यानमग्न होकर शिव-संबंधी धार्मिक बातें सुनता रहा। उस चतुर्दशी को उसने शिवरात्रि व्रत की कथा भी सुनी। जिससे उसके मन में शिव के प्रति अनुराग उत्पन्न होने लगा।

शिव कथा सुनने से उसके पाप क्षीण होने लगे। वह यह वचन देकर कि अगले दिन सारा ऋण लौटा दूंगा, जंगल में शिकार के लिए चला गया। शिकार खोजता हुआ, वह बहुत दूर निकल गया। शाम हो गई किन्तु उसे कोई शिकार नहीं मिला तो वह तालाब के किनारे एक बेल के पेड़ पर चढ़कर रात्रि में जल पीने के लिए आने वाले जीवों का इंतज़ार करने लगा। बिल्व वृक्ष के नीचे शिवलिंग था, जो बिल्वपत्रों से ढंका हुआ था। शिकारी को उसका पता न चला। प्रतीक्षा, तनाव और दिनभर भूखा-प्यासा शिकारी बेल के पत्ते तोड़ता और नीचे फेंक देता। इस प्रकार बिल्बपत्र शिवलिंग पर गिरते गए और चूंकि उसने दिनभर कुछ नहीं खाया था, इसलिए भूख-प्यास से व्याकुल शिकारी का व्रत भी हो गया।

रात्रि के प्रथम प्रहर में एक गर्भिणी हिरणी तालाब पर पानी पीने पहुँची। चित्रभानु ज्यों ही उसे धनुष-बाण से मारने चला हिरणी बोली, ‘मैं गर्भिणी हूं। शीघ्र ही प्रसव करूंगी। तुम एक साथ दो जीवों की हत्या करोगे, जो ठीक नहीं है। मैं बच्चे को जन्म देकर शीघ्र ही तुम्हारे समक्ष प्रस्तुत हो जाऊंगी। शिकारी को उस पर दया आ गई और उसने हिरनी को जाने दिया। इस दौरान वह तनाव में बेलपत्र तोड़कर नीचे फेकता गया। अतः अनजाने में ही वह प्रथम प्रहर के शिव पूजा का फलभागी हो गया।

कुछ ही देर बाद एक और हिरणी उधर से निकली। चित्रभानु उसे मारने ही वाला था कि हिरणी ने विनम्रतापूर्वक निवेदन किया कि हे शिकारी! मैं अपने प्रिय की खोज में भटक रही हूं। अपने पति से मिलकर शीघ्र ही तुम्हारे पास आ जाऊंगी। शिकारी ने उसे भी जाने दिया। इस प्रकार चित्रभानु तनावग्रस्त बेलपत्र निचे फेंकता रहा जो शिवलिंग गिरते रहे। उस समय रात्रि का दूसरा प्रहर चल रहा था, अतः अनजाने में इस प्रहर में भी उसके द्वारा बेलपत्र शिवलिंग पर चढ़ गए।

कुछ देर बाद एक और हिरणी अपने बच्चों के साथ तालाब के किनारे जल पीने के लिए आई। जैसे ही उसने हिरनी को मारना चाहा हिरणी बोली, ‘हे शिकारी! मैं इन बच्चों को इनके पिता को सौंप कर लौट आऊंगी। इस समय मुझे मत मारो। हिरणी का दीन स्वर सुनकर शिकारी को उस पर भी दया आ गई। उसने उस हिरनी को भी जाने दिया। शिकार के अभाव में तथा भूख-प्यास से व्याकुल शिकारी अनजाने में ही बेल-वृक्ष पर बैठा बेलपत्र तोड़-तोड़कर नीचे फेंकता जा रहा था। रात्रिभर शिकारी के तनाववश बेलपत्र नीचे फेंकते रहने से शिवलिंग पर अनगिनत पर बेलपत्र चढ़ गए।

सुबह एक मृग उसी रास्ते पर आया। शिकारी ने ज्यों ही उसे मारना चाहा, वह भी करुण स्वर में बोला हे शिकारी! यदि तुमने मुझसे पूर्व आने वाली तीन मृगियों और बच्चों को मार डाला है, तो मुझे भी मार दो ताकि मुझे उनके वियोग का दुःख न सहना पड़े। मैं उन हिरणियों का पति हूं। यदि तुमने उन्हें जीवनदान दिया है, तो मुझे भी कुछ क्षण का जीवन देने की कृपा करो। मैं उनसे मिलकर तुम्हारे समक्ष उपस्थित हो जाऊंगा। शिकारी ने उस हिरण को भी जाने दिया।

सुबह होते-होते उपवास, रात्रि-जागरण तथा शिवलिंग पर अनजाने में चढ़े बेलपत्र के फलस्वरूप शिकारी का हृदय अहिंसक हो गया। उसमें शिव भक्तिभाव जागने लगा थोड़ी ही देर बाद वह मृग सपरिवार शिकारी के समक्ष उपस्थित हो गया, जंगली पशुओं की ऐसी सत्यता, सात्विकता और प्रेम के प्रति समर्पण देखकर शिकारी ने सबको छोड़ दिया। इस प्रकार रात्रि के चारों प्रहर में हुई शिव पूजा से उसे शिवलोक की प्राप्ति हुई। अतः भोलेनाथ की पूजा चाहे जिस अवस्था में करें, उसका फल मिलना निश्चित है। यही परम सत्य भी है।




महाशिवरात्रि में कैसे करें भगवान शिव का रुद्राभिषेक:-

शिवरात्रि को भगवान शिव का रुद्राभिषेक करने से अनंत पुण्य की प्राप्ति होती है।परमपिता को प्रसन्न करने तथा मनोवांछित फल प्राप्त करने के लिए रुद्राभिषेक बहुत ही आवश्यक है।

1- गाय के दुग्ध से रुद्राभिषेक करने से संपन्नता आती है तथा मन में की गई मनोकामना पूर्ण होती है।
2- जो लोग रोग से पीड़ित हैं तथा प्रायः अस्वस्थ रहते हैं या किसी गंभीर महा बीमारी से परेशान हैं उनको कुशोदक से रुद्राभिषेक करना चाहिए। कुश को पीसकर गंगा जल में मिला लीजिए फिर भगवान शिव का नियम तथा श्रद्धा पूर्वक रुद्राभिषेक करें।
3- धन प्राप्ति के लिए देसी घी से रुद्राभिषेक करें।
4- निर्विध्न रूप से किसी विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए तीर्थ स्थान के नदियों के जल से रुद्राभिषेक करें। इससे भक्ति भी प्राप्त होती है।
5- गन्ने के रस से रुद्राभिषेक करने से कार्य बाधाएं समाप्त होती हैं तथा वैभव और सम्पन्नता में वृद्धि होती है।
6- शहद से रुद्राभिषेक करने से जीवन के दुख समाप्त होते हैं तथा खुशियां आती हैं।
7- किसी शिव मंदिर में शिवलिंग पर रुद्राभिषेक करें या घर पर ही पार्थिव का शिवलिंग बनाकर रुद्राभिषेक करें।

महाशिवरात्रि को करें महामृत्युंजय मंत्र का जप –
इस दिन महामृत्युंजय मंत्र के जप से रोगों से मुक्ति मिलती है तथा व्यक्ति दीर्घायु होता है।गंभीर रोग से पीड़ित लोग निश्चित संख्या मवन शिवमंदिर में महामृत्युंजय मंत्र का अनुष्ठान बैठाएं।

त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिंम् पुष्टिवर्धनम् ।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात् ।।


इस प्रकार महाशिवरात्रि को भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त कर अपने जीवन को धन्य बनाएं।निर्मल मन से की गई पूजा पर भगवान शिव मनोवांछित फलों को प्रदान करते हैं।

महा शिवरात्रि के दौरान शिव पूजा का महत्व

भगवान शिव हिंदू देवता और हिंदू धर्म के तीन प्रमुख देवताओं में से एक हैं। वह पूर्णता, योग, ध्यान, आनंद और आध्यात्मिकता का केंद्र है। प्राचीन वैदिक काल में, प्रसिद्ध संतों (ब्राह्मणों) ने मोक्ष के लिए भगवान शिव का आशीर्वाद मांगा, समर्थ योद्धाओं (क्षत्रियों) ने उनसे सम्मान, शक्ति और बहादुरी के लिए प्रार्थना की, व्यापारियों और व्यापारियों (वैश्य) ने उन्हें धन और लाभ के लिए पूजा की। वर्ग (शूद्रों) ने दैनिक रोटी और मकान के लिए उनकी पूजा की। भगवान दोनों प्रकार के भक्तों के लिए अभयारण्य है, जो धन और सांसारिक सुखों की तलाश करते हैं और जो दुनिया के दुखों से मुक्ति चाहते हैं।


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अभी तक हम अपने पाठकों को सभी ईबूक्स अलग अलग भागो में भेजते थे जिसमे समय भी लगता था और  कई बार बहुत से भाईयो को सभी ईबुक्स ढूंढने में भी समय लगता था अत: अब हम प्रस्तुत करते है 

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