हमारी साईट पर पधारने के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद | यदि आपके पास कोई सुझाव हो तो हमे जरुर बताये |

मंगलवार, 17 नवंबर 2020

Dev Uthani Ekadashi 2020 | साल 2020 देवउठनी एकादशी कब है | जानिए तारीख एवं पूजा का शुभ मुहूर्त | प्रबोधिनी एकादशी | Dev Uthani Ekadashi 2020

वैदिक, तांत्रिक या शाबर मन्त्र, यंत्र व् तन्त्र की साधना करने वाले साधकों के लिए देवउठनी या देव उत्थान एकादशी का महत्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी यानी देवउठनी या देव उत्थान एकादशी पर भगवान विष्णु की पूरे विधि विधान से पूजा की जाती है। आज हम आपको बताएंगे कि साल 2020 में देवउठनी एकादशी कब है, क्या है पूजा की विधि, देवउठनी एकादशी पर्व की शुरुआत कैसे हुई और देवउठनी एकादशी का शुभ मुहूर्त क्या रहेगा।

 मुस्लिम मन्त्र तन्त्र यंत्र अमल की दुर्लभ पुस्तक

देवी देवता भुत प्रेत वीर बैताल जिन्न सिद्ध आत्मा  जो चाहो वो सिद्ध करके मनचाहा काम करवाओ  

 

Dev Uthani Ekadashi 2020 | साल 2020 देवउठनी एकादशी कब है | जानिए तारीख एवं पूजा का शुभ मुहूर्त | प्रबोधिनी एकादशी | Dev Uthani Ekadashi 2020

क्या आप भी सिद्ध शाबर मन्त्र विद्या सीखना चाहते है ?


पितृदोष या कालसर्प दोष का स्थायी निवारण करें इस तन्त्र के द्वारा


भैरव बाबा को इस सिद्ध शाबर मन्त्र से सिद्ध करके उनकी कृपा पाए 

वैदिक, तांत्रिक या शाबर मन्त्र, यंत्र व् तन्त्र की साधना करने वाले साधकों के लिए देवउठनी या देव उत्थान एकादशी बहुत ही महत्वपूर्ण अवसर है जिसका की आम तांत्रिकों, ओझा, सवारी, गुनिया, बाबा, भगतों को जानकारी नहीं होती | यह अवसर दीपावली, होली, ग्रहण से भी बढकर है लेकिन अफ़सोस की इसकी जानकारी उन्हें आगे से ही नही मिल पाती जिस कारण आम तांत्रिकों, ओझा, सवारी, गुनिया, बाबा, भगत लोग इस दिवस को शून्य में ही गवां देते है |
यदि आप तांत्रिकों, ओझा, सवारी, गुनिया, बाबा, भगत लोग आदि है तो आज हम 
 POWERFULSHABARMANTRA.BLOGSPOT.COM  आपको बताते है की इस दिन (देवउठनी या देव उत्थान एकादशी) आपको क्या काम करना चाहिए जिससे आपकी शक्ति हमेशा बनी रहे |


देवउठनी या देव उत्थान एकादशी के दिन आप व्रत रखें विशेष रूप से अपने इष्टदेव का या श्री विष्णु जी का |


रात्री में अपनी श्री विष्णु जी, आदि त्रिदेवों का, पंच भूतों का, कुल के देवी देवता का, अपने पितृ आदि का पूजन करे और उन्हें जागने की प्रार्थना करके कांसे के बर्तन को खैर की लकड़ी से बजकर शोर उत्पन्न करे और समस्त देवी देवताओं, मन्त्रों के देवी देवता वीर आदि सबसे जागने की प्रार्थना करें |

अपने सभी मन्त्रो को पहले जाग्रति मन्त्र से 21 या अधिक आहुति देकर जागृत करें और फिर अपने सभी सिद्ध मन्त्रों का कम से कम 11 बार जाप करके आहुति प्रदान करें | और पुन: जाग्रति मन्त्र से 21 या अधिक आहुति देकर जागृत करें | 

ऐसा करने से आपके सभी मन्त्र और अधिक शक्ति के साथ जागृत हो जायेंगे और साथ ही मन्त्र के देवी देवता वीर सिद्ध आत्मा और कुल के देवी देवता का, अपने पितृ आदि सब आपके सहायक बने रहेंगे और साथ ही उनको शक्ति बल मिलेगा | आपकी रक्षा सदैव के लिए बनी रहेगी आपको रोज रोज रक्षा मन्त्र आदि की जरूरत नही पड़ेगी | और भी बहुत से प्रयोग व् राज़ है जोकि केवल गुरु-शिष्य परम्परागत ही गुप्त रहते है | वे प्रयोग हम आपको यहाँ नही बता सकते |

Dev Uthani Ekadashi 2020:

कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को लोग दवउठनी एकादशी के नाम से जानते हैं। मान्यता है कि क्षीर सागर में चार महीने की योग निद्रा के बाद भगवान विष्णु इस दिन उठते हैं। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी यानी देवउठनी या देव उत्थान एकादशी पर भगवान विष्णु की पूरे विधि विधान से पूजा की जाती है। आज हम आपको बताएंगे कि साल 2020 में देवउठनी एकादशी कब है, क्या है पूजा की विधि, देवउठनी एकादशी पर्व की शुरुआत कैसे हुई और देवउठनी एकादशी का शुभ मुहूर्त क्या रहेगा। धर्मग्रंथो के अनुसार भाद्रपद मास की शुक्ल एकादशी को भगवान विष्णु दैत्य संखासुर को मारा था। दैत्य और भगवान विष्ण के बीच युद्ध लम्बे समय तक चलता रहा। युद्ध समाप्त होने के बाद भगवान विष्णु बहुत ही थक गए थे और क्षीर सागर में आकर सो गए और कार्तिक की शुक्ल पक्ष की एकादशी को जागे, तब देवताओं द्वारा भगवान विष्णु का पूजन किया गया। जैसे कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की इस एकादशी को प्रबोधिनी एकादशी या देवउठनी एकादशी भी कहा जाता है। देव उठनी एकादशी जिसे प्रबोधनी एकादशी भी कहा जाता हैं |  इसे पापमुक्त करने वाली एकादशी माना जाता है |  सभी एकादशी पापो से मुक्त होने हेतु की जाती हैं |  लेकिन इस एकादशी का महत्व बहुत अधिक माना जाता हैं |  राजसूय यज्ञ करने से जो पुण्य की प्राप्ति होती हैं उससे कई अधिक पुण्य देवउठनी प्रबोधनी एकादशी का होता हैंइस दिन से सभी मंगल कार्यो का प्रारंभ होता हैं

 

साल 2020 में देवउठनी एकादशी कब है | देव दीवाली |

साल 2020 में देवउठनी एकादशी 25 नवंबर 2020 बुधवार को को मनाई जाएगी। देवउठनी एकादशी 2020 का शुभ मुहूर्त एकादशी तिथि का प्रारंभ होगा - 25 नवंबर 2020 बुधवार सुबह 2 बजकर 42 मिनट से एकादशी तिथि की समाप्ति होगी - 26 नवंबर 2020 गुरुवार सुबह 5 बजकर 10 मिनट पर देवशयनी एकादशी पर से ही सभी शुभ कार्य बंद हो जाते है जो देवउठनी एकादशी से शुरू होते हैं। इन चार महीनों के दौरान ही दीवाली मनाई जाती है। जिसमें भगवान विष्णु के बिना ही मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है, लेकिन देवउठनी एकादशी पर भगवान विष्णु को जगाने के बाद देवी देवताओं, भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा करके देव दीवाली मनाते हैं। देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से पूरे परिवार पर भगवान की विशेष कृपा बनी रहती है। इसके साथ ही मां लक्ष्मी घर पर धन सम्पदा और वैभव की वर्षा करती हैं।

 

देव उठनी ग्यारस अथवा प्रबोधिनी एकादशी का महत्व  

(Dev Uthani Gyaras Prabodhini Ekadashi Mahatva)

 

हिन्दू धर्म में एकादशी व्रत का महत्व सबसे अधिक माना जाता हैं |  इसका कारण यह हैं कि उस दिन सूर्य एवम अन्य गृह अपनी स्थिती में परिवर्तन करते हैं, जिसका मनुष्य की इन्द्रियों पर प्रभाव पड़ता हैं |  इन प्रभाव में संतुलन बनाये रखने के लिए व्रत का सहारा लिया जाता हैं |  व्रत एवम ध्यान ही मनुष्य में संतुलित रहने का गुण विकसित करते हैं |

इसे पाप विनाशिनी एवम मुक्ति देने वाली एकादशी कहा जाता हैं |  पुराणों में लिखा हैं कि इस दिन के आने से पहले तक गंगा स्नान का महत्व होता हैं, इस दिन उपवास रखने का पुण्य कई तीर्थ दर्शन, हजार अश्वमेघ यज्ञ एवम सौ राजसूय यज्ञ के तुल्य माना गया हैं |

इस दिन का महत्व स्वयं ब्रम्हा जी ने नारद मुनि को बताया था, उन्होंने कहा था इस दिन एकाश्ना करने से एक जन्म, रात्रि भोज से दो जन्म एवम पूर्ण व्रत पालन से साथ जन्मो के पापो का नाश होता हैं |

इस दिन से कई जन्मो का उद्धार होता हैं एवम बड़ी से बड़ी मनोकामना पूरी होती हैं |

इस दिन रतजगा करने से कई पीढियों को मरणोपरांत स्वर्ग मिलता हैं | जागरण का बहुत अधिक महत्व होता है, इससे मनुष्य इन्द्रियों पर विजय पाने योग्य बनता हैं |

इस व्रत की कथा सुनने एवम पढने से 100 गायो के दान के बराबर पुण्य मिलता हैं |

किसी भी व्रत का फल तब ही प्राप्त होता हैं जब वह नियमावली में रहकर विधि विधान के साथ किया जाये |

इस प्रकार ब्रम्हा जी ने इस उठनी ग्यारस अथवा प्रबोधिनी एकादशी व्रत का महत्व नारद जी को बताया एवम प्रति कार्तिक मास में इस व्रत का पालन करने को कहा |

 

देवउठनी एकादशी व्रत मुहूर्त

देवउठनी एकादशी पारणा मुहूर्त :13:11:37 से 15:17:52 तक 26, नवंबर को अवधि : 2 घंटे 6 मिनट हरि वासर समाप्त होने का समय :11:51:15 पर 26, नवंबर को

कार्तिक मास में आने वाली शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवोत्थान, देवउठनी या प्रबोधिनी एकादशी कहा जाता है। यह एकादशी दीपावली के बाद आती है। आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयन करते हैं और कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन उठते हैं, इसीलिए इसे देवोत्थान एकादशी कहा जाता है।

 

मान्यता है कि देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु क्षीरसागर में 4 माह शयन के बाद जागते हैं। भगवान विष्णु के शयनकाल के चार मास में विवाह आदि मांगलिक कार्य नहीं किये जाते हैं, इसीलिए देवोत्थान एकादशी पर भगवान हरि के जागने के बाद शुभ तथा मांगलिक कार्य शुरू होते हैं। इस दिन तुलसी विवाह का आयोजन भी किया जाता है।

 

देवोत्थान एकादशी व्रत और पूजा विधि

प्रबोधिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु का पूजन और उनसे जागने का आह्वान किया जाता है। इस दिन होने वाले धार्मिक कर्म इस प्रकार हैं-

 ●  इस दिन प्रातःकाल उठकर व्रत का संकल्प लेना चाहिए और भगवान विष्णु का ध्यान करना चाहिए।

  घर की सफाई के बाद स्नान आदि से निवृत्त होकर आंगन में भगवान विष्णु के चरणों की आकृति बनाना चाहिए।

  एक ओखली में गेरू से चित्र बनाकर फल, मिठाई, बेर, सिंघाड़े, ऋतुफल और गन्ना उस स्थान पर रखकर उसे डलिया से ढक देना चाहिए।

  इस दिन रात्रि में घरों के बाहर और पूजा स्थल पर दीये जलाना चाहिए।

  रात्रि के समय परिवार के सभी सदस्य को भगवान विष्णु समेत सभी देवी-देवताओं का पूजन करना चाहिए।

  इसके बाद भगवान को शंख, घंटा-घड़ियाल आदि बजाकर उठाना चाहिए और ये वाक्य दोहराना चाहिए- उठो देवा, बैठा देवा, आंगुरिया चटकाओ देवा, नई सूत, नई कपास, देव उठाये कार्तिक मास


प्रबोधिनी / देव उठनी एकादशी कथा 

भगवान श्रीकृष्ण ने कहा : हे अर्जुन ! मैं तुम्हें मुक्ति देनेवाली कार्तिक मास के शुक्लपक्ष की ‘प्रबोधिनी एकादशी’ के सम्बन्ध में नारद और ब्रह्माजी के बीच हुए वार्तालाप को सुनाता हूँ । एक बार नारादजी ने ब्रह्माजी से पूछा : ‘हे पिता ! ‘प्रबोधिनी एकादशी’ के व्रत का क्या फल होता है, आप कृपा करके मुझे यह सब विस्तारपूर्वक बतायें ।’

ब्रह्माजी बोले : हे पुत्र ! जिस वस्तु का त्रिलोक में मिलना दुष्कर है, वह वस्तु भी कार्तिक मास के शुक्लपक्ष की ‘प्रबोधिनी एकादशी’ के व्रत से मिल जाती है । इस व्रत के प्रभाव से पूर्व जन्म के किये हुए अनेक बुरे कर्म क्षणभर में नष्ट हो जाते है । हे पुत्र ! जो मनुष्य श्रद्धापूर्वक इस दिन थोड़ा भी पुण्य करते हैं, उनका वह पुण्य पर्वत के समान अटल हो जाता है । उनके पितृ विष्णुलोक में जाते हैं । ब्रह्महत्या आदि महान पाप भी ‘प्रबोधिनी एकादशी’ के दिन रात्रि को जागरण करने से नष्ट हो जाते हैं ।

हे नारद ! मनुष्य को भगवान की प्रसन्नता के लिए कार्तिक मास की इस एकादशी का व्रत अवश्य करना चाहिए । जो मनुष्य इस एकादशी व्रत को करता है, वह धनवान, योगी, तपस्वी तथा इन्द्रियों को जीतनेवाला होता है, क्योंकि एकादशी भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय है ।

इस एकादशी के दिन जो मनुष्य भगवान की प्राप्ति के लिए दान, तप, होम, यज्ञ (भगवान्नामजप भी परम यज्ञ है। ‘यज्ञानां जपयज्ञोऽस्मि’ । यज्ञों में जपयज्ञ मेरा ही स्वरुप है।’ - श्रीमद्भगवदगीता ) आदि करते हैं, उन्हें अक्षय पुण्य मिलता है ।

इसलिए हे नारद ! तुमको भी विधिपूर्वक विष्णु भगवान की पूजा करनी चाहिए । इस एकादशी के दिन मनुष्य को ब्रह्ममुहूर्त में उठकर व्रत का संकल्प लेना चाहिए और पूजा करनी चाहिए । रात्रि को भगवान के समीप गीत, नृत्य, कथा-कीर्तन करते हुए रात्रि व्यतीत करनी चाहिए ।

प्रबोधिनी एकादशी’ के दिन पुष्प, अगर, धूप आदि से भगवान की आराधना करनी चाहिए, भगवान को अर्ध्य देना चाहिए । इसका फल तीर्थ और दान आदि से करोड़ गुना अधिक होता है ।

जो गुलाब के पुष्प से, बकुल और अशोक के फूलों से, सफेद और लाल कनेर के फूलों से, दूर्वादल से, शमीपत्र से, चम्पकपुष्प से भगवान विष्णु की पूजा करते हैं, वे आवागमन के चक्र से छूट जाते हैं । इस प्रकार रात्रि में भगवान की पूजा करके प्रात:काल स्नान के पश्चात् भगवान की प्रार्थना करते हुए गुरु की पूजा करनी चाहिए और सदाचारी व पवित्र ब्राह्मणों को दक्षिणा देकर अपने व्रत को छोड़ना चाहिए ।

जो मनुष्य चातुर्मास्य व्रत में किसी वस्तु को त्याग देते हैं, उन्हें इस दिन से पुनः ग्रहण करनी चाहिए । जो मनुष्य ‘प्रबोधिनी एकादशी’ के दिन विधिपूर्वक व्रत करते हैं, उन्हें अनन्त सुख मिलता है और अंत में स्वर्ग को जाते हैं ।


तुलसी विवाह परम्परा

देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी विवाह की परम्परा है। इस दिन भगवान शालिग्राम के साथ तुलसी जी का विवाह होता हैइसके पीछे एक पौराणिक कथा है। जिसमे जालंधर को हराने के लिए भगवान विष्णु ने वृंदा नामक विष्णु भक्ति के साथ छल किया था। इसके बाद वृंदा ने विष्णु जी को श्राप देकर पत्थर बना दियालेकिन मां लक्ष्मी की विनती के बाद उन्हें सही करके सती हो गए थे। उनकी राख से तुलसी के पौधे का जन्म हुआ और उसके साथ साथ शालिग्राम के विवाह का चल शुरू हो गया।


तुलसी विवाह का आयोजन

देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी विवाह का आयोजन भी किया जाता है। तुलसी के वृक्ष और शालिग्राम की यह शादी सामान्य विवाह की तरह पूरे धूमधाम से की जाती है। चूंकि तुलसी को विष्णु प्रिया भी कहते हैं इसलिए देवता जब जागते हैंतो सबसे पहली प्रार्थना हरिवल्लभा तुलसी की ही सुनते हैं। तुलसी विवाह का सीधा अर्थ हैतुलसी के माध्यम से भगवान का आह्वान करना। शास्त्रों में कहा गया है कि जिन दंपत्तियों के कन्या नहीं होतीवे जीवन में एक बार तुलसी का विवाह करके कन्यादान का पुण्य अवश्य प्राप्त करें।

 

तुलसी विवाह कथा (Tulsi Vivah Katha ):

तुलसी, राक्षस जालंधर की पत्नी थी, वह एक पति व्रता सतगुणों वाली नारी थी, लेकिन पति के पापों के कारण दुखी थी| इसलिए उसने अपना मन विष्णु भक्ति में लगा दिया था |  जालंधर का प्रकोप बहुत बढ़ गया था, जिस कारण भगवान विष्णु ने उसका वध किया |  अपने पति की मृत्यु के बाद पतिव्रता तुलसी ने सतीधर्म को अपनाकर सती हो गई |  कहते हैं उन्ही की भस्म से तुलसी का पौधा उत्पन्न हुआ और उनके विचारों एवम गुणों के कारण ही तुलसी का पौधा इतना गुणकारी बना |  तुलसी के सदगुणों के कारण भगवान विष्णु ने उनके अगले जन्म में उनसे विवाह किया |  इसी कारण से हर साल तुलसी विवाह मनाया जाता है|

 

इस प्रकार यह मान्यता हैं कि जो मनुष्य तुलसी विवाह करता हैं, उसे मोक्ष की प्राप्ति होती हैं |  इस प्रकार देव उठनी ग्यारस अथवा प्रबोधिनी एकादशी के दिन तुलसी विवाह का महत्व बताया गया हैं |

 

घरों में कैसे किया जाता हैं तुलसी विवाह ? (Tulsi Vivah Puja Vidhi) :

 

कई लोग इसे बड़े स्वरूप में पूरी विवाह की विधि के साथ तुलसी विवाह करते हैं |

कई लोग प्रति वर्ष कार्तिक ग्यारस के दिन तुलसी विवाह घर में ही करते हैं |

हिन्दू धर्म में सभी के घरो में तुलसी का पौधा जरुर होता हैं |  इस दिन पौधे के गमले अथवा वृद्दावन को सजाया जाता हैं |

विष्णु देवता की प्रतिमा स्थापित की जाती हैं |

चारो तरफ मंडप बनाया जाता हैं |  कई लोग फूलों एवम गन्ने के द्वारा मंडप सजाते हैं |

तुलसी एवम विष्णु जी का गठबंधन कर पुरे विधि विधान से पूजन किया जाता हैं |

कई लोग घरों में इस तरह का आयोजन कर पंडित बुलवाकर पूरी शादी की विधि संपन्न करते हैं |

कई लोग पूजा कर ॐ नमो वासुदेवाय नम: मंत्र का उच्चारण कर विवाह की विधि पूरी करते हैं |

कई प्रकार के पकवान बनाकर कर उत्सव रचा जाता हैं एवम नेवैद्य लगाया जाता हैं |

परिवार जनों के साथ पूजा के बाद आरती करके प्रशाद वितरित किया जाता हैं |

इस प्रकार इस दिन से चार माह से बंद मांगलिक कार्यो का शुभारम्भ होता हैं | तुलसी विवाह के दिन दान का भी महत्व हैं इस दिन कन्या दान को सबसे बड़ा दान माना जाता हैं |  कई लोग तुलसी का दान करके कन्या दान का पुण्य प्राप्त करते हैं |

इस दिन शास्त्रों में गाय दान का भी महत्व होता हैं |  गाय दान कई तीर्थो के पुण्य के बराबर माना जाता हैं |


शाबर मन्त्र महाशस्त्र 
Regular Price:
7280/-
Offer Price : 2551/- Only
Valid for Limited Time Only

                                                                    Click below >>>

शाबर मन्त्र महाशास्त्र 
ऑफर 


दश महाविद्या को सिद्ध करे इन शाबर मन्त्रो से

पाए हर कार्य में सफलता इस मन्त्र की सहायता से

शाबर मन्त्रो से सम्बन्धित सभी सवालों के जवाब  

केवल इस एक मन्त्र से सभी रोगों का नाश करें

जिनके शरीर में देवी देवता आते है उनके जीवन की कड़वी सच्चाई


 


मंगलवार, 10 नवंबर 2020

SHABAR MANTRA DIWALI OFFER

SHABAR MANTRA DIWALI OFFER: 

सभी ऑफर्स केवल सिमित समय तक के लिए है

सभी भौतिक सामग्री/ यंत्र आदि नर्क चतुर्दशी से दीपावली तक के अवसर पर  पूर्णत: अभिमंत्रित और शक्तिकृत किये जायेगे 

केवल पूर्व में आर्डर प्राप्त होने पर ही आप सामग्री प्राप्त कर सकते है | 

जल्दी कीजिये सामग्री सिमित है 

सभी ऑफर्स केवल सिमित समय तक के लिए है

सभी ऑफर निचे दिए गये लिंक में शामिल है

 https://imjo.in/eVrCHW

कृप्या अपनी इच्छानुसार ऑफर का चयन करें

 






रविवार, 8 नवंबर 2020

Mashan Badha Dur Karne Ka Upay | मसान बाधा दूर करना


दोस्तों आज हम आपको एक उपाय बताएंगे जो कि विशेष उस रूप के लिए है जिसका नाम सुनते ही लोग घबराते हैं अगर उसकी बाधा किसी व्यक्ति या घर पर हो जाए तो उस घर को नष्ट होने में ज्यादा समय नहीं लगता और बड़े-बड़े भगत लोग जो होते हैं अगर उनको पता चले कि यहां पर इस बीमारी का रोग है तो वह भी उस काम में हाथ नहीं डालते कोई सॉलिड भगत जो होगा वह जरूर कुछ कर सकता है बाकी सभी के बस का रोग नहीं होता तो हम बात कर रहे हैं मसान रोग के बारे में मसान से तो आप समझ ही चुके होंगे कि यह शमशान की चीज है, मसान रोग, श्मशान बाधा, मरघट बाधा, श्मशानी इलाज़, अस्सी मसान और इसको जो भी शक्ति मिलती है सब श्मशान से ही मिलती हैं यह मसान रोग अधिकतर महिलाओं पर यह स्त्री जाति पर बहुत ज्यादा प्रभावी होता है मसालों की विशेषता यह है कि यह काम उत्तेजना से संबंधित होता है घर की महिलाओं को गलत विचार देता है महिलाएं अपने धर्म को छोड़कर अन्य किसी गलत रास्ते की ओर चल पड़ती है जो कि हम अक्सर देखते हैं सुनते हैं कोई महिला भाग गई या उसका किसी शादीशुदा है उसके बावजूद भी उसका अफेयर है ऐसी महिलाओं को अक्सर घर में नग्न अवस्था में बालक या पुरुष जरूर दिखाई देता है रात को उस महिला के साथ सहवास भी होता है और उस महिला को भी यह पता होता है कि उसके साथ क्या हो रहा है तो चलिए इसके बारे में हम बात करते हैं इससे संबंधित मैं आपको एक बड़ा ही प्रभावशाली और सॉलिड मंत्र बता रहा हूं आप उस मंत्र को ध्यान से सुनिए फिर उसकी विधि क्या है वह भी मैं बताऊंगा यहां YouTube पर मैं सिर्फ आपको मंत्र बोलकर सुना रहा हूं यदि आप चाहते हो कि मंत्र क्या है तो वह आपको डिस्क्रिप्शन बॉक्स में मेरी साइट का जो कि पावरफुल शाबर मंत्र डॉट ब्लॉग स्पॉट डॉट कॉम है उस पर जाकर आपको वह लिख मिल जाएगा जहां पर कि मैंने इस मंत्र को और इसकी विधि को लिखा है तो चलिए मंत्र सुनिए आप मंत्र कुछ इस तरह से है:-

ओम नमो आदेश गुरु को
धतूरा बीज उठा गगन चोटी
परमेश्वर चले होकर बराती
उठा धुआं श्मशान में
मसाण चला आंखों में तेल डालकर
धुँआ चला बाराती बनकर
उठा मसाण को
वापिस चली बरात
मिले गोरक्षनाथ  
मैं भी चलूंगा बराती बनके
संग लूंगा मसाण का साथ
तभी ले उड़ गोरख चले
मसाण चला गोरख के संग
गोरख ने कुएं में छोड़ा मसाण को
और गोरख अपने गुरु मछंदर नाथ के अंस
जय जय गोरखनाथ
चल शब्द मन्त्र की तान
तू ना चले तो गुरु गोरख की आन

तो यह मंत्र मंत्र को सिद्ध करने के लिए सबसे साधारण विधि यह है कि आप एक अस्थाई रूप से किसी बबूल के पेड़ के नीचे एक जगह ज्यादा नहीं कम से कम 21 दिन के लिए एक हवन कुण्ड का निर्माण करें | उस हवन कुण्ड में आपको गूगल की आहुति देते हुए इस मंत्र की कम से कम 21 बार ज्यादा नहीं बता रहा हूं मैं सिर्फ 21 बार आपको इस मंत्र का सख्त नियम के साथ में 21 दिन तक 21 बार गूगल की धूप से बबूल के पेड़ के नीचे आहुति देनी है आपको इतना ही करना है और यह आपका मंत्र एक्टिवेट हो जाएगा, क्रियाशील हो जाएगा | इसके बाद में मसान रोग से संबंधित आप उसका उतारा भी कर सकते हैं या उसे झाड़-फूंक भी दे सकते हैं या उसका गंडा ताबीज भी बना सकते हैं उतारा करने में आपको जिस तरह की पांच मिठाई लड्डू पताशे पान इत्यादि का सहारा लेना होगा झाड़ा लगाने के लिए आप चाकू से या झाड़ू बुहारने वाली झाड़ू जिसका घर में इस्तेमाल किया जाता है सीख वाली उसका इस्तेमाल कर सकते हैं और अगर गंडा ताबीज बनाना है तो भोजपत्र पर इसी मंत्र को लिखकर बाबा गोरखनाथ के नाम की धूनी करके उस में से यह गंडा निकालकर यह रोगी को पहना भी सकते हैं | यह साधारण कोई भी सफेद रंग का धागा उसको इसी मंत्र से अभिमंत्रित कर कर 7 गांठ लगाकर रोगी को पहना सकते हैं इससे रोगी को बहुत फायदा होगा |

क्या आप भी सिद्ध शाबर मन्त्र विद्या सीखना चाहते है ?

पितृदोष या कालसर्प दोष का स्थायी निवारण करें इस तन्त्र के द्वारा

भैरव बाबा को इस सिद्ध शाबर मन्त्र से सिद्ध करके उनकी कृपा पाए

दैनिक जीवन में काम आने वाले टोटके

हनुमान चालीसा का इस तरह से पाठ करके सिद्ध किया है कभी...?

शाबर मन्त्र सिद्ध करना चाहते है तो....

कर्ज से मुक्ति के लिए अपनाएं ये उपाय

दश महाविद्या को सिद्ध करे इन शाबर मन्त्रो से

पाए हर कार्य में सफलता इस मन्त्र की सहायता से

शाबर मन्त्रो से सम्बन्धित सभी सवालों के जवाब  

केवल इस एक मन्त्र से सभी रोगों का नाश करें

जिनके शरीर में देवी देवता आते है उनके जीवन की कड़वी सच्चाई

मुस्लिम मन्त्र तन्त्र यंत्र अमल की दुर्लभ पुस्तक

देवी देवता भुत प्रेत वीर बैताल जिन्न सिद्ध आत्मा  जो चाहो वो सिद्ध करके मनचाहा काम करवाओ  

 


शनिवार, 7 नवंबर 2020

Deepawali 2020 Pooja Vidhi | दीवाली पूजा का मुहूर्त 2020 |

Deepawali 2020 Pooja Vidhi | दीवाली पूजा का मुहूर्त 2020 | दिवाली कब है  

 Deepawali 2020 Pooja Vidhi | दीवाली पूजा का मुहूर्त 2020 | दिवाली कब है


दिवाली हिंदू धर्म में मनाया जाने वाला बड़ा त्योहार है। कार्तिक महीने की अमावस्या के दिन दीपावली यानी दिवाली का त्योहार मनाया जाता है। इस दिन लक्ष्मी पूजन का खास महत्व होता है। इस दिन सभी अपने घर में विधिवत लक्ष्मी गणेश का पूजन करते है और रात्रि के दौरान पुरे घर को दीयों से रोशन करते है। माना जाता है इस दिन देवी लक्ष्मी सभी के यहाँ भ्रमण करने आती है और जो भक्त पूरी श्रद्धा के साथ दिवाली लक्ष्मी पूजन करता है वह उसके घर सदा के लिए वास कर जाती है। बहुत से लोग इस दिन लक्ष्मी पूजन के समाप्त होने तक व्रत भी रखते है। जिसमे सुबह से लेकर शाम के लक्ष्मी पूजन तक कुछ खाया पीया नहीं जाता। इस बार इस बार मां लक्ष्मी और गणेश की पूजा 14 नवंबर (शनिवार को होगी) पूजा का शुभ मुहूर्त 17:28 से 19:24 तक रहेगा मान्यता है कि भगवान राम चौदह साल के वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे। तब अयोध्यावासियों ने घर में घी के दिए जलाए थे और अमावस्या की काली रात भी रोशन हो गई थी। इसलिए दिवाली को प्रकाशोत्सव भी कहा जाता है। दिवाली के दिन मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है। दीपदान, धनतेरस, गोवर्धन पूजा, भैया दूज आदि त्यौहार दिवाली के साथ-साथ ही मनाए जाते हैं।




दीवाली पूजा का मुहूर्त 2020 

दीवाली के दिन लक्ष्मी का पूजा का विशेष महत्व माना गया है, इसलिए यदि इस दिन शुभ मुहूर्त में पूजा की जाए तब लक्ष्मी व्यक्ति के पास ही निवास करती है. “ब्रह्मपुराणके अनुसार आधी रात तक रहने वाली अमावस्या तिथि ही महालक्ष्मी पूजन के लिए श्रेष्ठ होती है. यदि अमावस्या आधी रात तक नहीं होती है तब प्रदोष व्यापिनी तिथि लेनी चाहिए. लक्ष्मी पूजा दीप दानादि के लिए प्रदोषकाल ही विशेष शुभ माने गए हैं.



दिवाली पर्व तिथि मुहूर्त 2020 | दिवाली 2020 | 2020 में दिवाली कब है दिवाली 2020 की तारीख मुहूर्त।

दिवाली या दीपावली हिंदू धर्म का एक प्रमुख त्यौहार है। हिंदू धर्म में दिवाली का विशेष महत्व है। धनतेरस से भाई दूज तक करीब 5 दिनों तक चलने वाला दिवाली का त्यौहार भारत और नेपाल समेत दुनिया के कई देशों में मनाया जाता है। दीपावली को दीप उत्सव भी कहा जाता है। क्योंकि दीपावली का मतलब होता है दीपों की अवली यानि पंक्ति। दिवाली का त्यौहार अंधकार पर प्रकाश की विजय को दर्शाता है।

14 नवंबर

लक्ष्मी पूजा मुहूर्त- 17:28 से 19:23

प्रदोष काल- 17:23 से 20:04

वृषभ काल- 17:28 से 19:23

अमावस्या तिथि आरंभ- 14:17 (14 नवंबर

अमावस्या तिथि समाप्त- 10:36 (15 नवंबर

 

दिवाली पर लक्ष्मी पूजा का मुहूर्त New Delhi, India के लिए

 

लक्ष्मी पूजा मुहूर्त्त :17:30:04 से 19:25:54 तक

अवधि :1 घंटे 55 मिनट

प्रदोष काल :17:27:41 से 20:06:58 तक

वृषभ काल :17:30:04 से 19:25:54 तक

 

दिवाली महानिशीथ काल मुहूर्त

लक्ष्मी पूजा मुहूर्त्त :23:39:20 से 24:32:26 तक

अवधि :0 घंटे 53 मिनट

महानिशीथ काल :23:39:20 से 24:32:26 तक

सिंह काल :24:01:35 से 26:19:15 तक

 

दिवाली शुभ चौघड़िया मुहूर्त

अपराह्न मुहूर्त्त (लाभ, अमृत):14:20:25 से 16:07:08 तक

सायंकाल मुहूर्त्त (लाभ):17:27:41 से 19:07:14 तक

रात्रि मुहूर्त्त (शुभ, अमृत, चल):20:46:47 से 25:45:26 तक

उषाकाल मुहूर्त्त (लाभ):29:04:32 से 30:44:04 तक

 

 

दिवाली पर कब करें लक्ष्मी पूजा?

 

मुहूर्त का नाम                                        महत्व

प्रदोष काल                                    स्थिर लग्न होने से पूजा का विशेष महत्व

महानिशीथ काल                            तांत्रिक पूजा के लिए शुभ समय

 

1.  देवी लक्ष्मी का पूजन प्रदोष काल (सूर्यास्त के बाद के तीन मुहूर्त) में किया जाना चाहिए। प्रदोष काल के दौरान स्थिर लग्न में पूजन करना सर्वोत्तम माना गया है। इस दौरान जब वृषभ, सिंह, वृश्चिक और कुंभ राशि लग्न में उदित हों तब माता लक्ष्मी का पूजन किया जाना चाहिए। क्योंकि ये चारों राशि स्थिर स्वभाव की होती हैं। मान्यता है कि अगर स्थिर लग्न के समय पूजा की जाये तो माता लक्ष्मी अंश रूप में घर में ठहर जाती है।

2.  महानिशीथ काल के दौरान भी पूजन का महत्व है लेकिन यह समय तांत्रिक, पंडित और साधकों के लिए ज्यादा उपयुक्त होता है। इस काल में मां काली की पूजा का विधान है। इसके अलावा वे लोग भी इस समय में पूजन कर सकते हैं, जो महानिशिथ काल के बारे में समझ रखते हों।

 



लक्ष्मी पूजा, दीपावली पूजा  


लक्ष्मी पूजा को प्रदोष काल के दौरान किया जाना चाहिए जो कि सूर्यास्त के बाद प्रारम्भ होता है और लगभग 2 घण्टे 24 मिनट तक रहता है। कुछ स्त्रोत लक्ष्मी पूजा को करने के लिए महानिशिता काल भी बताते हैं। हमारे विचार में महानिशिता काल तांत्रिक समुदायों और पण्डितों, जो इस विशेष समय के दौरान लक्ष्मी पूजा के बारे में अधिक जानते हैं, उनके लिए यह समय ज्यादा उपयुक्त होता है। सामान्य लोगों के लिए हम प्रदोष काल मुहूर्त उपयुक्त बताते हैं।

गृहस्थ और व्यापारी वर्ग के लोगो के लिए लक्ष्मी पूजा को प्रदोष काल के दौरान ही किया जाना शुभ माना जाता है जो कि सूर्यास्त के बाद प्रारम्भ होता है और लगभग 1 घण्टे 05 मिनट तक रहता है

महानिशिता काल तांत्रिक समुदायों और पण्डितों के लिए होता है महानिशीता काल में मुख्यतः तांत्रिक कार्य, ज्योतिषविद, वेद् आरम्भ, कर्मकाण्ड, अघोरी, यंत्र-मंत्र-तंत्र सिद्धि साधना कार्य विभिन्न शक्तियों का पूजन करते हैं एवं शक्तियों का आवाहन करना, मन्त्र शक्ति जागृत करना, मंत्रो को जगाना आदि शुभ रहता है।

लक्ष्मी पूजा को करने के लिए चौघड़िया मुहूर्त विशेषकर व्यापारी समुदाय के लिए और यात्रा के लिए उपयुक्त होता है अतः इस विशेष कल में व्यापारी वर्ग को चाहिए की धन लक्ष्मी का आहवाहन एवं पूजन, गल्ले की पूजा तथा हवन इत्यादि कार्य सम्पूर्ण करें।



लक्ष्मी पूजन सामग्री

यहाँ पर बताई जा रही पूजन आदि की सामग्री की कोई बाध्यता नहीं है, आप अपने श्रद्धा और आर्थिक स्तिथि के अनुसार पूजन सामग्री का चयन कर सकते है क्योंकि भगवान सच्ची भक्ति और भाव के भूखे है की आप के द्वारा चढ़ाये जाने वाले पूजन सामग्री के

लक्ष्मी श्री गणेश की मूर्तियां बैठी हुई मुद्रा में अथवा चित्र।
रोली 10 ग्राम
मौली 2 गोला
लौंग 10 ग्राम
इलायची 10 ग्राम
साबुत सुपारी 11 पीस
इत्र 1 शीशी
देशी घी 250 ग्राम
आम के पत्ते (एक पल्लो)
खील 250 ग्राम
बताशा 250 ग्राम
सिंदूर 10 ग्राम (श्री हनुमान जी वाला )
लाल सिंदूर की डिब्बी-1
कपूर 10 ग्राम
रुई की बत्ती
माचिस
कमल गट्टा 10 ग्राम
साबुत धनिया
तोरण
साबुत चावल 1 किलो
पंच पात्र या 1 गिलास
आचमनी या एक चम्मच
अर्धा या जलपात्र कलश ढ़क्कन सहित
दीप पात्र
धूप पात्र
एक पानी वाला नारियल
लाल कपड़ा 2.5 मीटर चौकी पर बिछाने के लिये एवं नारियल पर लपेटने के लिये 
केसर 2 ग्राम
कुशासन या लाल कम्बल -आसन के लिये
सफेद कपड़ा
सफेद चंदन
लाल चंदन
मिट्टी के 5, 11, 21 या अधिक छोटे दीपक
मिट्टी का एक बडा दीपक
पान के 11 पत्ते डंडी सहित
ऋतु फल
पंचमेवा
दूब या दुर्बा
फूल
फूल माला
गणेश जी के लिये लड्डू
मिठाई
सरसो का तेल
साबुत हल्दी 20 ग्राम
कुमकुम या गुलाल 10 ग्राम
कलम
स्याही की दवात
बही खाता
तिज़ोरी या गुल्लक
एक थाली आरती के लिये
कटोरी दूध दही पंचामृत के लिये
पंचामृत - दूध,दही, शहद,घी ,शक्कर (चीनी) मिलाकर बनाये
धूप का एक पैकेट
पिसी हल्दी
कमल का फूल
आभूषण वस्त्र
गंगाजल
घंटी
गुड़ 100 ग्राम
चांदी का सिक्का
2
थाली या चौकी



दिवाली पर लक्ष्मी पूजा की विधि

दिवाली पर लक्ष्मी पूजा का विशेष विधान है। इस दिन संध्या और रात्रि के समय शुभ मुहूर्त में मां लक्ष्मी, विघ्नहर्ता भगवान गणेश और माता सरस्वती की पूजा और आराधना की जाती है। पुराणों के अनुसार कार्तिक अमावस्या की अंधेरी रात में महालक्ष्मी स्वयं भूलोक पर आती हैं और हर घर में विचरण करती हैं। इस दौरान जो घर हर प्रकार से स्वच्छ और प्रकाशवान हो, वहां वे अंश रूप में ठहर जाती हैं इसलिए दिवाली पर साफ-सफाई करके विधि विधान से पूजन करने से माता महालक्ष्मी की विशेष कृपा होती है। लक्ष्मी पूजा के साथ-साथ कुबेर पूजा भी की जाती है। पूजन के दौरान इन बातों का ध्यान रखना चाहिए।

 

1.  दिवाली के दिन लक्ष्मी पूजन से पहले घर की साफ-सफाई करें और पूरे घर में वातावरण की शुद्धि और पवित्रता के लिए गंगाजल का छिड़काव करें। साथ ही घर के द्वार पर रंगोली और दीयों की एक शृंखला बनाएं।

2.  पूजा स्थल पर एक चौकी रखें और लाल कपड़ा बिछाकर उस पर लक्ष्मी जी और गणेश जी की मूर्ति रखें या दीवार पर लक्ष्मी जी का चित्र लगाएं। चौकी के पास जल से भरा एक कलश रखें।

3.  माता लक्ष्मी और गणेश जी की मूर्ति पर तिलक लगाएं और दीपक जलाकर जल, मौली, चावल, फल, गुड़, हल्दी, अबीर-गुलाल आदि अर्पित करें और माता महालक्ष्मी की स्तुति करें।

4.  इसके साथ देवी सरस्वती, मां काली, भगवान विष्णु और कुबेर देव की भी विधि विधान से पूजा करें।

5.  महालक्ष्मी पूजन पूरे परिवार को एकत्रित होकर करना चाहिए।

6.  महालक्ष्मी पूजन के बाद तिजोरी, बहीखाते और व्यापारिक उपकरण की पूजा करें।

7.  पूजन के बाद श्रद्धा अनुसार ज़रुरतमंद लोगों को मिठाई और दक्षिणा दें।

 

पूजा प्रारम्भ करने से पहले जलपत्र एवं कलश मे गंगा जल मिला लें
ताम्बूल बनाने के लिये पान के पत्ते को उल्टा करके उस पर लौंग इलायची सुपारी एवं कुछ मीठा रखें
दुर्वा में तीनपत्ती होनी चहिये
गणपति पर तुलसी दल ना चढ़ायें
श्री लक्ष्मी जी को कमल का फूल बहुत प्रिय है
जमीन पर गिरा हुआ ,बासी ,कीड़ा खाया हुआ फूल चढ़ायें
टूटी फूटी मुर्तियों को नदी मे, मंदिर में या पीपल के नीचे विसर्जित करे
लक्ष्मी प्राप्ति के लिये लक्ष्मी मंत्र कमलगट्टे की माला पर जपना अधिक उत्तम होता है।
धन प्राप्ति के लिये लाल आसन उत्तम रह्ता है
ध्यान रहे कि पूजा करते समय या मंत्र उच्चारण के समय हाथ कभी भी खाली ना रहे हाथ मे फूल या चावल अवश्य रखें
घी का दीपक भगवान की मूर्ति के दाई ओर एवं तेल का दीपक बाई ओर रखे। धूप जल पात्र बाई ओर ही स्थापित करें।
रक्षा सूत्र (मौली) बांधते समय हाथ मे पैसा एवं अक्षत ले खाली हाथ रक्षा सूत्र ना बांधे
यदि पूजा करते समय कोइ भी चीज़ कम पड़ जाये तो आप उसकी जगह साबुत लाल चावल चढ़ा सकते है
दीपावली पूजन के पश्चात सभी सामग्री देवि एवं देवताओ की स्थापना को सारी रात यथा स्थान रहने दे। विसर्जन अगले दिन करे ध्यान रहे कि गणेश लक्ष्मी जी की मूर्ति को विसर्जन नहीं करना है, एक वर्ष रखना होता है अगले वर्ष नई मूर्तियो के पूजन के बाद ही पुराने वर्ष की मूर्ति को विसर्जन करना चहिये
चढ़ाई हुइ दक्षिणा किसी ब्राह्मण को दे या मंदिर में दान करे

दीपक कहाँ रखने चाहिए

वैसे तो अपनी श्रद्धा के अनुसार दीपक जलाकर रखे जा सकते है लेकिन कुछ जगह दीपक जलाकर अवश्य रखने चाहिए ,जो इस प्रकार है :

घी का दीपक इष्ट देव के यहाँ जहाँ रोज पूजा करते है।

एक दीपक तुलसी के तले।

घर के मुख्य द्वार पर दोनों तरफ एक एक

एक दीपक घर के दक्षिणी पश्चिमी कोने पर।

एक दीपक रसोई घर में।

एक दीपक मटकी वाले परिन्डे पर(जल के जल/पानी स्रोतों पर)

एक दीपक पास में यदि कोई मंदिर है तो वहाँ।

एक दीपक पीपल के पेड़ के नीचे।

 

 

हम आशा करते हैं कि दिवाली का त्यौहार आपके लिए मंगलमय हो। माता लक्ष्मी की कृपा आप पर सदैव बनी रहे और आपके जीवन में सुख-समृद्धि खुशहाली आए।

 

सबसे पहले पूजा स्थल की साफ सफाई कर ले इसके बाद अपने आपको तथा आसन को, पूजन सामग्रियों को इस मंत्र से शुद्धिकरण के लिए इस मंत्र का जाप करे



ऊं अपवित्र : पवित्रोवा सर्वावस्थां गतोऽपिवा।

: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं बाह्याभ्यन्तर: शुचि :
पृथ्विति मंत्रस्य मेरुपृष्ठः षिः सुतलं छन्दःकूर्मोदेवता आसने विनियोगः॥

 

इन मंत्रों से अपने ऊपर तथा आसन पर 3-3 बार कुशा या पुष्पादि से छींटें लगायें फिर आचमन करेंपुष्प, चम्मच या अंजुलि से एक बूंद पानी अपने मुंह में छोड़िए और बोलिए-

केशवाय नमः

और फिर एक बूंद पानी अपने मुंह में छोड़िए और बोलिए-

नारायणाय नमः

फिर एक तीसरी बूंद पानी की मुंह में छोड़िए और बोलिए-

वासुदेवाय नमः


फिर हाथ धोएं, पुन: आसन शुद्धि मंत्र बोलें-

ऊं पृथ्वी त्वयाधृता लोका देवि त्यवं विष्णुनाधृता।
त्वं धारयमां देवि पवित्रं कुरु चासनम्॥

 

शुद्धि और आचमन के बाद चौकी सजाये चौकी पर माँ लक्ष्मी और गणेश की मूर्तियाँ विराजमान करे
मूर्तियों को विराजमान करने से पहले यह सुनश्चित अवश्य कर ले की मूर्तियों का मुख पूर्व या पश्चिम दिशा में हो और भगवान गणेश की मूर्ति माँ लक्ष्मी की बायीं ओर ही हो पूजनकर्ता का मुख मूर्तियों के सामने की तरफ हो।
अब कलश को माँ लक्ष्मी के सामने मुट्ठी भर चावलो के ऊपर स्थापित कर दे कलश के मुख पर रक्षा सूत्र बांध ले और चारो तरफ कलश पर रोली से स्वस्तिक या बना ले।
कलश के अंदर साबुत सुपारी, दूर्वा, फूल, सिक्का डालें
उसके ऊपर आम या अशोक के पत्ते रखने चाहिए उसके ऊपर नारियल, जिस पर लाल कपडा लपेट कर मोली लपेट दें।
अब नारियल को कलश पर रखें।
ध्यान रहे कि नारियल का मुख उस सिरे पर हो, जिस तरफ से वह पेड़ की टहनी से जुड़ा होता है।
कलश वरुण का प्रतीक है
इस प्रक्रिया के बाद गणेशजी की ओर त्रिशूल और माँ लक्ष्मीजी की ओर श्री का चिह्न बनाएँ उसके सामने चावल का ढेर लगाकर नौ ढेरियाँ बनाएँ
छोटी चौकी के सामने तीन थाली जल भरकर कलश रखें
दो दिप को जलायेएक घी की दीपक और दूसरें को तेल से भर कर और एक दीपक को चौकी के दाईं ओर और दूसरें को लक्ष्मी-गणेश की प्रतिमाओं के चरणों में रखें।
तीन थालियों में निम्न सामान रखें।


1.
ग्यारह दीपक (पहली थाली में)
2.
खील, बताशे, मिठाई, वस्त्र, आभूषण, चन्दन का लेप सिन्दूर कुंकुम, सुपारी, पान (दूसरी थाली में)
3.
फूल, दुर्वा चावल, लौंग, इलायची, केसर-कपूर, हल्दी चूने का लेप, सुगंधित पदार्थ, धूप, अगरबत्ती, एक दीपक. (तीसरी थाली में)

इन थालियों के सामने पूजा करने वाला स्वंय बैठे। परिवार के अन्य सदस्य आपकी बाईं ओर बैठें। शेष सभी परिवार के सदस्यों के पीछे बैठे।
आप हाथ में अक्षत, पुष्प और जल ले लीजिए। कुछ द्रव्य (रुपये, पैसे 1, 2, 5, 11 आदि) भी ले लीजिए यह सब हाथ में लेकर संकल्प मंत्र का जाप करे


ऊं विष्णुर्विष्णुर्विष्णु:, ऊं तत्सदद्य श्री पुराणपुरुषोत्तमस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीय पराद्र्धे श्री श्वेतवाराहकल्पे सप्तमे वैवस्वतमन्वन्तरे,अष्टाविंशतितमे कलियुगे, कलिप्रथम चरणे जम्बुद्वीपे भरतखण्डे आर्यावर्तान्तर्गत ब्रह्मवर्तैकदेशे पुण्य (अपने नगर/गांव का नाम लें) क्षेत्रे बौद्धावतारे वीर विक्रमादित्यनृपते : २०७५, तमेऽब्दे शोभन नाम संवत्सरे दक्षिणायने/उत्तरायणे हेमंत ऋतो महामंगल्यप्रदे मासानां मासोत्तमे कार्तिक मासे कृष्ण पक्षे अमावस तिथौ (जो वार हो) शुक्र वासरे स्वाति नक्षत्रे प्रीति योग नाग करणादिसत्सुशुभे योग (गोत्र का नाम लें) गोत्रोत्पन्नोऽहं अमुकनामा (अपना नाम लें) सकलपापक्षयपूर्वकं सर्वारिष्ट शांतिनिमित्तं सर्वमंगलकामनयाश्रुतिस्मृत्यो- क्तफलप्राप्तर्थंनिमित्त महागणपति नवग्रहप्रणव सहितं कुलदेवतानां पूजनसहितं स्थिर लक्ष्मी महालक्ष्मी देवी पूजन निमित्तं एतत्सर्वं शुभ-पूजोपचारविधि सम्पादयिष्ये।


अर्थात संकल्प कीजिए कि मैं अमुक व्यक्ति अमुक स्थान समय पर अमुक देवी-देवता की पूजा करने जा रहा हूं जिससे मुझे शास्त्रोक्त फल प्राप्त हो।
सबसे पहले गणेश जी पूजन करे तब माँ लक्ष्मी का।

दिवाली गणपति पूजन विधि
हाथ में पुष्प और चावल का अक्षत लेकर गणपति का ध्यान करें।
मंत्र पढ़ें-
गजाननम्भूतगणादिसेवितं कपित्थ जम्बू फलचारुभक्षणम्।
उमासुतं शोक विनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपंकजम्।
आवाहन: ऊं गं गणपतये इहागच्छ इह तिष्ठ।।

इतना कहकर पात्र में अक्षत छोड़ें।

अर्घा में जल लेकर बोलें-
एतानि पाद्याद्याचमनीय-स्नानीयं, पुनराचमनीयम् ऊं गं गणपतये नम:

रक्त चंदन लगाएं
इदम रक्त चंदनम् लेपनम् ऊं गं गणपतये नम:

सिन्दूर चढ़ाएं
इदं सिन्दूराभरणं लेपनम् ऊं गं गणपतये नम:
दुर्वा और विल्बपत्र भी गणेश जी को चढ़ाएं।

गणेश जी को वस्त्र पहनाएं
इदं रक्त वस्त्रं ऊं गं गणपतये समर्पयामि।

पूजन के बाद गणेश जी को प्रसाद अर्पित करें-
इदं नानाविधि नैवेद्यानि ऊं गं गणपतये समर्पयामि:

इसी प्रकार से अन्य सभी देवताओं की पूजा करें। जिस देवता की पूजा करनी हो गणेश के स्थान पर उस देवता का नाम लें।

दिवाली लक्ष्मी पूजन विधि
सबसे पहले माता लक्ष्मी का ध्यान करे-


या सा पद्मासनस्था, विपुल-कटि-तटी, पद्म-दलायताक्षी।

गम्भीरावर्त-नाभिः, स्तन-भर-नमिता, शुभ्र-वस्त्रोत्तरीया।।

लक्ष्मी दिव्यैर्गजेन्द्रैः। मणि-गज-खचितैः, स्नापिता हेम-कुम्भैः।

नित्यं सा पद्म-हस्ता, मम वसतु गृहे, सर्व-मांगल्य-युक्ता।।


इसके बाद लक्ष्मी देवी की प्रतिष्ठा (स्थापित) करें। हाथ में अक्षत लेकर बोले-
भूर्भुवः स्वः महालक्ष्मी, इहागच्छ इह तिष्ठ, एतानि पाद्याद्याचमनीय-स्नानीयं, पुनराचमनीयम्।

-
प्रतिष्ठा के बाद स्नान कराएं :

मन्दाकिन्या समानीतैः, हेमाम्भोरुह-वासितैः स्नानं कुरुष्व देवेशि, सलिलं सुगन्धिभिः।। 

लक्ष्म्यै नमः।।



रक्त चंदन लगाए-
इदं रक्त चंदनम् लेपनम्

इदं सिन्दूराभरणं से सिन्दूर लगाएं।

मन्दार-पारिजाताद्यैः, अनेकैः कुसुमैः शुभैः। 

पूजयामि शिवे, भक्तया, कमलायै नमो नमः।। 

लक्ष्म्यै नमः, पुष्पाणि समर्पयामि।


इस मंत्र से पुष्प चढ़ाएं फिर माला पहनाएं।

अब लक्ष्मी देवी को इदं रक्त वस्त्र समर्पयामि कहकर लाल वस्त्र पहनाएं।
लक्ष्मी देवी की पूजा के बाद भगवान विष्णु एवं शिव जी पूजा करनी चाहिए फिर गल्ले की पूजा करें।

लक्ष्मी पूजा के समय लक्ष्मी मंत्र का उच्चारण करते रहें
इस मंत्र का कम से कम 11 माला कमलगट्टे की माला से जप करें और अधिक आपके सामर्थ्यानुसार 51, 108, 11, 121 माला जपें
मन्त्र

श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नम:



पूजन के पश्चात सपरिवार आरती और क्षमा प्रार्थना करें-


Deepawali 2020 Pooja Vidhi | दीवाली पूजा का मुहूर्त 2020 | दिवाली कब है


क्षमा प्रार्थना 

 

मंत्रं नोयंत्रं तदपिच नजाने स्तुतिमहो

चाह्वानं ध्यानं तदपिच नजाने स्तुतिकथाः

नजाने मुद्रास्ते तदपिच नजाने विलपनं

परं जाने मातस्त्व दनुसरणं क्लेशहरणं

 

विधेरज्ञानेन द्रविणविरहेणालसतया

विधेयाशक्यत्वात्तव चरणयोर्याच्युतिरभूत्

तदेतत् क्षंतव्यं जननि सकलोद्धारिणि शिवे

कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता भवति

 

पृथिव्यां पुत्रास्ते जननि बहवः संति सरलाः

परं तेषां मध्ये विरलतरलोहं तव सुतः

मदीयो7यंत्यागः समुचितमिदं नो तव शिवे

कुपुत्रो जायेत् क्वचिदपि कुमाता भवति

 

जगन्मातर्मातस्तव चरणसेवा रचिता

वा दत्तं देवि द्रविणमपि भूयस्तव मया

तथापित्वं स्नेहं मयि निरुपमं यत्प्रकुरुषे

कुपुत्रो जायेत क्वचिदप कुमाता भवति

 

परित्यक्तादेवा विविध सेवाकुलतया

मया पंचाशीतेरधिकमपनीते तु वयसि

इदानींचेन्मातः तव यदि कृपा

नापि भविता निरालंबो लंबोदर जननि कं यामि शरणं

 

श्वपाको जल्पाको भवति मधुपाकोपमगिरा

निरातंको रंको विहरति चिरं कोटिकनकैः

तवापर्णे कर्णे विशति मनुवर्णे फलमिदं

जनः को जानीते जननि जपनीयं जपविधौ

 

चिताभस्म लेपो गरलमशनं दिक्पटधरो

जटाधारी कंठे भुजगपतहारी पशुपतिः

कपाली भूतेशो भजति जगदीशैकपदवीं

भवानि त्वत्पाणिग्रहणपरिपाटीफलमिदं

 

मोक्षस्याकांक्षा भवविभव वांछापिचनमे

विज्ञानापेक्षा शशिमुखि सुखेच्छापि पुनः

अतस्त्वां सुयाचे जननि जननं यातु मम वै

मृडाणी रुद्राणी शिवशिव भवानीति जपतः

 

नाराधितासि विधिना विविधोपचारैः

किं रूक्षचिंतन परैर्नकृतं वचोभिः

श्यामे त्वमेव यदि किंचन मय्यनाधे

धत्से कृपामुचितमंब परं तवैव

 

आपत्सु मग्नः स्मरणं त्वदीयं

करोमि दुर्गे करुणार्णवेशि

नैतच्छदत्वं मम भावयेथाः

क्षुधातृषार्ता जननीं स्मरंति

 

जगदंब विचित्रमत्र किं

परिपूर्ण करुणास्ति चिन्मयि

अपराधपरंपरावृतं नहि माता

समुपेक्षते सुतं

 

मत्समः पातकी नास्ति

पापघ्नी त्वत्समा नहि

एवं ज्ञात्वा महादेवि

यथायोग्यं तथा कुरु

 

 

 

आरती श्री लक्ष्मी जी की

 

जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता

तुमको निशिदिन सेवत, हरि विष्णु धाता |   |  |  |

उमा, रमा, ब्राह्माणी, तुम ही जग-माता

सूर्य-चन्द्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता |   |  |  |

दुर्गा रुप निरन्जनी, सुख सम्पत्ति दाता |

जो कोई तुमको ध्याता, ऋद्धि-सिद्धि धन पाता |  

तुम पाताल निवासिनी, तुम ही शुभ दाता

कर्म प्रभाव प्रकाशिनी, भवनिधि की त्राता |   |  |  |

जिस घर में तुम रहती, सब सद गुण आता

सब सम्भव हो जाता, मन नही घबराता |   |  |  |

तुम बिन यज्ञ होते, वस्त्र कोई पाता |

खान - पान का वैभव, सब तुमसे आता |   |  |  |

शुभ - गुण मंदिर सुन्दर, क्षीरोदधि जाता

रत्न चतुर्दश तुम बिन, कोई नही पाता |   |  |  |

महालक्ष्मी जी की आरती |  जो कोई जन गाता |

उर आनन्द समाता, पाप उतर जाता |   |  |  |

जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता

तुमको निशिदिन सेवत, हरि विष्णु धाता |   |  |  |

 

 


 शाबर मन्त्र महाशास्त्र

Diwali 2024 Laxmi Puja Muhurat Timing | Diwali on 31 Octover ? or 01 November?

  दीपावली  2024  शुभ मुहूर्त हिंदू धर्म में दिवाली का बहुत अधिक महत्व होता है। दिवाली के पावन पर्व की शुरुआत धनतेरस से हो जाती है। धनतेरस ...