वैदिक, तांत्रिक या शाबर मन्त्र, यंत्र व् तन्त्र की साधना करने वाले साधकों के लिए देवउठनी या देव उत्थान एकादशी का महत्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी यानी देवउठनी या देव उत्थान एकादशी पर भगवान विष्णु की पूरे विधि विधान से पूजा की जाती है। आज हम आपको बताएंगे कि साल 2020 में देवउठनी एकादशी कब है, क्या है पूजा की विधि, देवउठनी एकादशी पर्व की शुरुआत कैसे हुई और देवउठनी एकादशी का शुभ मुहूर्त क्या रहेगा।
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यदि आप तांत्रिकों, ओझा, सवारी, गुनिया, बाबा, भगत लोग आदि है तो आज हम POWERFULSHABARMANTRA.BLOGSPOT.COM आपको बताते है की इस दिन (देवउठनी या देव उत्थान एकादशी) आपको क्या काम करना चाहिए जिससे आपकी शक्ति हमेशा बनी रहे |
देवउठनी या देव उत्थान एकादशी के दिन आप व्रत रखें विशेष रूप से अपने इष्टदेव का या श्री विष्णु जी का |
रात्री में अपनी श्री विष्णु जी, आदि त्रिदेवों का, पंच भूतों का, कुल के देवी देवता का, अपने पितृ आदि का पूजन करे और उन्हें जागने की प्रार्थना करके कांसे के बर्तन को खैर की लकड़ी से बजकर शोर उत्पन्न करे और समस्त देवी देवताओं, मन्त्रों के देवी देवता वीर आदि सबसे जागने की प्रार्थना करें |
अपने सभी मन्त्रो को पहले जाग्रति मन्त्र से 21 या अधिक आहुति देकर जागृत करें और फिर अपने सभी सिद्ध मन्त्रों का कम से कम 11 बार जाप करके आहुति प्रदान करें | और पुन: जाग्रति मन्त्र से 21 या अधिक आहुति देकर जागृत करें |
ऐसा करने से आपके सभी मन्त्र और अधिक शक्ति के साथ जागृत हो जायेंगे और साथ ही मन्त्र के देवी देवता वीर सिद्ध आत्मा और कुल के देवी देवता का, अपने पितृ आदि सब आपके सहायक बने रहेंगे और साथ ही उनको शक्ति बल मिलेगा | आपकी रक्षा सदैव के लिए बनी रहेगी आपको रोज रोज रक्षा मन्त्र आदि की जरूरत नही पड़ेगी | और भी बहुत से प्रयोग व् राज़ है जोकि केवल गुरु-शिष्य परम्परागत ही गुप्त रहते है | वे प्रयोग हम आपको यहाँ नही बता सकते |
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Dev Uthani Ekadashi 2020:
कार्तिक मास के
शुक्ल पक्ष की एकादशी को लोग दवउठनी एकादशी के नाम से जानते हैं। मान्यता है कि क्षीर
सागर में चार महीने की योग निद्रा के बाद भगवान विष्णु इस दिन उठते हैं। कार्तिक
मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी यानी देवउठनी या देव उत्थान एकादशी पर भगवान विष्णु
की पूरे विधि विधान से पूजा की जाती है। आज हम आपको बताएंगे कि साल 2020 में देवउठनी एकादशी कब है, क्या है पूजा की विधि, देवउठनी एकादशी पर्व की शुरुआत कैसे हुई और देवउठनी एकादशी का शुभ मुहूर्त
क्या रहेगा। धर्मग्रंथो के अनुसार भाद्रपद मास की शुक्ल एकादशी को भगवान विष्णु
दैत्य संखासुर को मारा था। दैत्य और भगवान विष्ण के बीच युद्ध लम्बे समय तक चलता
रहा। युद्ध समाप्त होने के बाद भगवान विष्णु बहुत ही थक गए थे और क्षीर सागर में
आकर सो गए और कार्तिक की शुक्ल पक्ष की एकादशी को जागे, तब देवताओं द्वारा भगवान विष्णु का पूजन किया गया। जैसे कार्तिक मास के शुक्ल
पक्ष की इस एकादशी को प्रबोधिनी एकादशी या देवउठनी एकादशी भी कहा जाता है।
साल 2020 में देवउठनी एकादशी कब है | देव दीवाली |
साल 2020 में देवउठनी एकादशी 25 नवंबर 2020 बुधवार को को मनाई जाएगी। देवउठनी एकादशी 2020 का शुभ मुहूर्त एकादशी तिथि का प्रारंभ होगा - 25 नवंबर 2020 बुधवार सुबह 2 बजकर 42 मिनट से एकादशी तिथि की समाप्ति होगी - 26 नवंबर 2020 गुरुवार सुबह 5 बजकर 10 मिनट पर देवशयनी एकादशी पर से ही सभी शुभ कार्य बंद हो जाते है जो देवउठनी
एकादशी से शुरू होते हैं। इन चार महीनों के दौरान ही दीवाली मनाई जाती है। जिसमें
भगवान विष्णु के बिना ही मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है, लेकिन देवउठनी एकादशी पर भगवान विष्णु को जगाने के बाद देवी देवताओं, भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा करके देव दीवाली मनाते हैं। देवउठनी
एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से पूरे परिवार पर भगवान की विशेष कृपा
बनी रहती है। इसके साथ ही मां लक्ष्मी घर पर धन सम्पदा और वैभव की वर्षा करती हैं।
देव उठनी ग्यारस अथवा प्रबोधिनी एकादशी का महत्व
(Dev Uthani Gyaras Prabodhini Ekadashi Mahatva)
हिन्दू धर्म
में एकादशी व्रत का महत्व सबसे अधिक माना जाता हैं | इसका कारण यह हैं कि उस दिन सूर्य
एवम अन्य गृह अपनी स्थिती में परिवर्तन करते हैं, जिसका मनुष्य की इन्द्रियों पर प्रभाव पड़ता हैं | इन प्रभाव में संतुलन बनाये रखने
के लिए व्रत का सहारा लिया जाता हैं | व्रत एवम ध्यान ही मनुष्य में संतुलित रहने का
गुण विकसित करते हैं |
इसे पाप विनाशिनी एवम मुक्ति देने वाली एकादशी कहा जाता हैं | पुराणों में लिखा हैं कि इस दिन के आने से पहले तक गंगा स्नान का महत्व होता हैं, इस दिन उपवास रखने का पुण्य कई तीर्थ दर्शन, हजार अश्वमेघ यज्ञ एवम सौ राजसूय यज्ञ के तुल्य माना गया हैं |
इस दिन का
महत्व स्वयं ब्रम्हा जी ने नारद मुनि को बताया था, उन्होंने कहा था इस दिन एकाश्ना करने से एक जन्म, रात्रि भोज से दो जन्म एवम पूर्ण व्रत पालन से साथ जन्मो के पापो का नाश होता
हैं |
इस दिन से कई
जन्मो का उद्धार होता हैं एवम बड़ी से बड़ी मनोकामना पूरी होती हैं |
इस दिन रतजगा
करने से कई पीढियों को मरणोपरांत स्वर्ग मिलता हैं | जागरण का बहुत अधिक महत्व होता है, इससे मनुष्य इन्द्रियों पर विजय पाने योग्य बनता हैं |
इस व्रत की कथा
सुनने एवम पढने से 100 गायो के दान के बराबर पुण्य मिलता हैं |
किसी भी व्रत
का फल तब ही प्राप्त होता हैं जब वह नियमावली में रहकर विधि विधान के साथ किया
जाये |
इस प्रकार ब्रम्हा जी ने इस उठनी ग्यारस अथवा प्रबोधिनी एकादशी व्रत का महत्व नारद जी को बताया एवम प्रति कार्तिक मास में इस व्रत का पालन करने को कहा |
देवउठनी एकादशी व्रत मुहूर्त
देवउठनी एकादशी
पारणा मुहूर्त :13:11:37 से 15:17:52 तक 26,
नवंबर को अवधि : 2 घंटे 6 मिनट हरि वासर समाप्त होने का समय :11:51:15 पर 26,
नवंबर को
कार्तिक मास
में आने वाली शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवोत्थान, देवउठनी या प्रबोधिनी एकादशी कहा जाता है। यह एकादशी दीपावली के बाद आती है।
आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयन करते हैं और कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी
के दिन उठते हैं,
इसीलिए इसे देवोत्थान एकादशी कहा जाता है।
मान्यता है कि
देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु क्षीरसागर में 4 माह शयन के बाद जागते हैं। भगवान विष्णु के शयनकाल के चार मास में विवाह आदि
मांगलिक कार्य नहीं किये जाते हैं, इसीलिए
देवोत्थान एकादशी पर भगवान हरि के जागने के बाद शुभ तथा मांगलिक कार्य शुरू होते
हैं। इस दिन तुलसी विवाह का आयोजन भी किया जाता है।
देवोत्थान एकादशी व्रत और पूजा विधि
प्रबोधिनी
एकादशी के दिन भगवान विष्णु का पूजन और उनसे जागने का आह्वान किया जाता है। इस दिन
होने वाले धार्मिक कर्म इस प्रकार हैं-
● घर की सफाई के बाद स्नान आदि से निवृत्त होकर आंगन में भगवान विष्णु के चरणों
की आकृति बनाना चाहिए।
● एक ओखली में गेरू से चित्र बनाकर फल, मिठाई, बेर,
सिंघाड़े, ऋतुफल और गन्ना उस
स्थान पर रखकर उसे डलिया से ढक देना चाहिए।
● इस दिन रात्रि में घरों के बाहर और पूजा स्थल पर दीये जलाना चाहिए।
● रात्रि के समय परिवार के सभी सदस्य को भगवान विष्णु समेत सभी देवी-देवताओं का
पूजन करना चाहिए।
● इसके बाद भगवान को शंख,
घंटा-घड़ियाल आदि बजाकर उठाना चाहिए और ये वाक्य दोहराना
चाहिए- उठो देवा,
बैठा देवा, आंगुरिया चटकाओ देवा, नई सूत,
नई कपास, देव उठाये कार्तिक मास
प्रबोधिनी / देव उठनी एकादशी कथा
भगवान
श्रीकृष्ण ने कहा : हे अर्जुन ! मैं तुम्हें मुक्ति देनेवाली कार्तिक मास के
शुक्लपक्ष की ‘प्रबोधिनी एकादशी’ के सम्बन्ध में नारद और ब्रह्माजी के बीच हुए
वार्तालाप को सुनाता हूँ । एक बार नारादजी ने ब्रह्माजी से पूछा : ‘हे पिता !
‘प्रबोधिनी एकादशी’ के व्रत का क्या फल होता है, आप कृपा करके मुझे यह सब विस्तारपूर्वक बतायें ।’
ब्रह्माजी बोले
: हे पुत्र ! जिस वस्तु का त्रिलोक में मिलना दुष्कर है, वह वस्तु भी कार्तिक मास के शुक्लपक्ष की ‘प्रबोधिनी एकादशी’ के व्रत से मिल
जाती है । इस व्रत के प्रभाव से पूर्व जन्म के किये हुए अनेक बुरे कर्म क्षणभर में
नष्ट हो जाते है । हे पुत्र ! जो मनुष्य श्रद्धापूर्वक इस दिन थोड़ा भी पुण्य करते
हैं, उनका वह पुण्य पर्वत के समान अटल हो जाता है । उनके पितृ विष्णुलोक में जाते
हैं । ब्रह्महत्या आदि महान पाप भी ‘प्रबोधिनी एकादशी’ के दिन रात्रि को जागरण
करने से नष्ट हो जाते हैं ।
हे नारद !
मनुष्य को भगवान की प्रसन्नता के लिए कार्तिक मास की इस एकादशी का व्रत अवश्य करना
चाहिए । जो मनुष्य इस एकादशी व्रत को करता है, वह धनवान, योगी,
तपस्वी तथा इन्द्रियों को जीतनेवाला होता है, क्योंकि एकादशी भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय है ।
इस एकादशी के
दिन जो मनुष्य भगवान की प्राप्ति के लिए दान, तप, होम,
यज्ञ (भगवान्नामजप भी परम यज्ञ है। ‘यज्ञानां जपयज्ञोऽस्मि’
। यज्ञों में जपयज्ञ मेरा ही स्वरुप है।’ - श्रीमद्भगवदगीता ) आदि करते हैं, उन्हें अक्षय पुण्य मिलता है ।
इसलिए हे नारद
! तुमको भी विधिपूर्वक विष्णु भगवान की पूजा करनी चाहिए । इस एकादशी के दिन मनुष्य
को ब्रह्ममुहूर्त में उठकर व्रत का संकल्प लेना चाहिए और पूजा करनी चाहिए । रात्रि
को भगवान के समीप गीत,
नृत्य, कथा-कीर्तन करते हुए
रात्रि व्यतीत करनी चाहिए ।
‘प्रबोधिनी
एकादशी’ के दिन पुष्प,
अगर,
धूप आदि से भगवान की आराधना करनी चाहिए, भगवान को अर्ध्य देना चाहिए । इसका फल तीर्थ और दान आदि से करोड़ गुना अधिक
होता है ।
जो गुलाब के
पुष्प से,
बकुल और अशोक के फूलों से, सफेद और लाल कनेर के फूलों से, दूर्वादल से, शमीपत्र से,
चम्पकपुष्प से भगवान विष्णु की पूजा करते हैं, वे आवागमन के चक्र से छूट जाते हैं । इस प्रकार रात्रि में भगवान की पूजा करके
प्रात:काल स्नान के पश्चात् भगवान की प्रार्थना करते हुए गुरु की पूजा करनी चाहिए
और सदाचारी व पवित्र ब्राह्मणों को दक्षिणा देकर अपने व्रत को छोड़ना चाहिए ।
जो मनुष्य
चातुर्मास्य व्रत में किसी वस्तु को त्याग देते हैं, उन्हें इस दिन से पुनः ग्रहण करनी चाहिए । जो मनुष्य ‘प्रबोधिनी एकादशी’ के
दिन विधिपूर्वक व्रत करते हैं, उन्हें अनन्त सुख
मिलता है और अंत में स्वर्ग को जाते हैं ।
तुलसी विवाह परम्परा
देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी विवाह की परम्परा है। इस दिन भगवान शालिग्राम के साथ तुलसी जी का विवाह होता है, इसके पीछे एक पौराणिक कथा है। जिसमे जालंधर को हराने के लिए भगवान विष्णु ने वृंदा नामक विष्णु भक्ति के साथ छल किया था। इसके बाद वृंदा ने विष्णु जी को श्राप देकर पत्थर बना दिया, लेकिन मां लक्ष्मी की विनती के बाद उन्हें सही करके सती हो गए थे। उनकी राख से तुलसी के पौधे का जन्म हुआ और उसके साथ साथ शालिग्राम के विवाह का चल शुरू हो गया।
तुलसी विवाह का आयोजन
देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी विवाह का आयोजन भी किया जाता है। तुलसी के वृक्ष और शालिग्राम की यह शादी सामान्य विवाह की तरह पूरे धूमधाम से की जाती है। चूंकि तुलसी को विष्णु प्रिया भी कहते हैं इसलिए देवता जब जागते हैं, तो सबसे पहली प्रार्थना हरिवल्लभा तुलसी की ही सुनते हैं। तुलसी विवाह का सीधा अर्थ है, तुलसी के माध्यम से भगवान का आह्वान करना। शास्त्रों में कहा गया है कि जिन दंपत्तियों के कन्या नहीं होती, वे जीवन में एक बार तुलसी का विवाह करके कन्यादान का पुण्य अवश्य प्राप्त करें।
तुलसी विवाह
कथा (Tulsi
Vivah Katha ):
तुलसी, राक्षस जालंधर की पत्नी थी, वह एक पति व्रता सतगुणों वाली नारी थी, लेकिन पति के पापों के कारण दुखी थी| इसलिए उसने अपना मन विष्णु भक्ति में लगा दिया था | जालंधर का प्रकोप बहुत बढ़ गया था, जिस कारण भगवान विष्णु ने उसका वध किया | अपने पति की मृत्यु के बाद पतिव्रता तुलसी ने सतीधर्म को अपनाकर सती हो गई | कहते हैं उन्ही की भस्म से तुलसी का पौधा उत्पन्न हुआ और उनके विचारों एवम गुणों के कारण ही तुलसी का पौधा इतना गुणकारी बना | तुलसी के सदगुणों के कारण भगवान विष्णु ने उनके अगले जन्म में उनसे विवाह किया | इसी कारण से हर साल तुलसी विवाह मनाया जाता है|
इस प्रकार यह
मान्यता हैं कि जो मनुष्य तुलसी विवाह करता हैं, उसे मोक्ष की प्राप्ति होती हैं | इस प्रकार देव उठनी ग्यारस अथवा प्रबोधिनी
एकादशी के दिन तुलसी विवाह का महत्व बताया गया हैं |
घरों में कैसे
किया जाता हैं तुलसी विवाह ? (Tulsi Vivah Puja Vidhi) :
कई लोग इसे बड़े
स्वरूप में पूरी विवाह की विधि के साथ तुलसी विवाह करते हैं |
कई लोग प्रति
वर्ष कार्तिक ग्यारस के दिन तुलसी विवाह घर में ही करते हैं |
हिन्दू धर्म
में सभी के घरो में तुलसी का पौधा जरुर होता हैं | इस दिन पौधे के गमले अथवा
वृद्दावन को सजाया जाता हैं |
विष्णु देवता
की प्रतिमा स्थापित की जाती हैं |
चारो तरफ मंडप
बनाया जाता हैं | कई लोग फूलों एवम गन्ने के द्वारा मंडप सजाते
हैं |
तुलसी एवम
विष्णु जी का गठबंधन कर पुरे विधि विधान से पूजन किया जाता हैं |
कई लोग घरों
में इस तरह का आयोजन कर पंडित बुलवाकर पूरी शादी की विधि संपन्न करते हैं |
कई लोग पूजा कर
ॐ नमो वासुदेवाय नम: मंत्र का उच्चारण कर विवाह की विधि पूरी करते हैं |
कई प्रकार के
पकवान बनाकर कर उत्सव रचा जाता हैं एवम नेवैद्य लगाया जाता हैं |
परिवार जनों के
साथ पूजा के बाद आरती करके प्रशाद वितरित किया जाता हैं |
इस प्रकार इस
दिन से चार माह से बंद मांगलिक कार्यो का शुभारम्भ होता हैं | तुलसी विवाह के दिन दान का भी महत्व हैं इस दिन कन्या दान को
सबसे बड़ा दान माना जाता हैं | कई लोग तुलसी का दान करके कन्या दान का पुण्य
प्राप्त करते हैं |
इस दिन शास्त्रों में गाय दान का भी महत्व होता हैं | गाय दान कई तीर्थो के पुण्य के बराबर माना जाता हैं |
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जिनके
शरीर में देवी देवता आते है उनके जीवन की कड़वी सच्चाई