बातें छोटी-छोटी तो अवश्य हैं, परन्तु आपको यदि इन बातों का ज्ञान नहीं है तो आपको साधना में असफलता का मुँह देखना पड़ सकता है। अतः इन्हें अवश्य याद रखें |
- जिस आसन पर आप अनुष्ठान, पूजा या साधना करते हैं, उसे कभी पैर से नहीं सरकाना चाहिए। कुछ लोगों की आदत होती है कि आसन पर बैठने के पहले खड़े-खड़े ही आसन को पैर से सरका कर अपने बैठने के लिए व्यवस्थित करते हैं। ऐसा करने से आसन दोष लगता है और उस आसन पर की जाने वाली साधनाएँ सफल नहीं होती है। अतः आसन को केवल हाथों से ही बिछाएं।
- अपनी जप माला को कभी खूँटी या कील पर न टाँगे, इससे माला की सिद्धि समाप्त हो जाती है। जप के पश्चात् या तो माला को किसी डिब्बी में रखे, गौमुखी में रखे या किसी वस्त्र आदि में भी लपेट कर रखी जा सकती है। जिस माला पर आप जाप कर रहे हैं, उस पर किसी अन्य की दृष्टि या स्पर्श न हो, इसलिए उसे साधना के बाद वस्त्र में लपेट कर रखे। इससे वो दोष मुक्त रहेगी। साथ ही कुछ लोगों की आदत होती है कि जिस माला से जप करते हैं, उसे ही दिन भर गले में धारण करके भी रहते हैं। जब तक किसी साधना में धारण करने का आदेश न हो, जप माला को कभी धारण ना करे।
- साधना के मध्य जम्हाई आना, छींक आना, गैस के कारण वायु दोष होना, इन सभी से दोष लगता है और जाप का पुण्य क्षीण होता है। इस दोष से मुक्ति हेतु आप जप करते समय किसी ताम्र पात्र में थोडा जल तथा कुछ तुलसी पत्र डालकर रखे। जब भी आपको जम्हाई या छींक आए या वायु प्रवाह की समस्या हो तो इसके तुरन्त बाद पात्र में रखे जल को मस्तक तथा दोनों नेत्रों से लगाए, इससे ये दोष समाप्त हो जाता है। साथ ही साधकों को नित्य सूर्य दर्शन कर साधना में उत्पन्न हुए दोषों की निवृत्ति के लिए प्रार्थना करनी चाहिए।इससे भी दोष समाप्त हो जाते हैं, साथ ही यदि साधना काल में हल्का भोजन लिया जाए तो इस प्रकार की समस्या कम ही उत्पन्न होती है।
- ज्यादातर देखा जाता है कि कुछ लोग बैठे-बैठे बिना कारण पैर हिलाते रहते हैं या एक पैर के पंजे से दूसरे पैर के पंजे या पैर को आपस में अकारण रगड़ते रहते हैं। ऐसा करने से साधकों को सदा बचना चाहिए। क्यूँकि जप के समय आपकी ऊर्जा मूलाधार से सहस्त्रार की ओर बढ़ती है, परन्तु सतत पैर हिलाने या आपस में रगड़ने से वो ऊर्जा मूलाधार पर पुनः गिरने लगती है। क्यूँकि आप देह के निचले हिस्से में मर्दन कर रहे हैं और ऊर्जा का सिद्धान्त है, जहाँ अधिक ध्यान दिया जाए, ऊर्जा वहाँ जाकर स्थिर हो जाती है। इसलिए ही तो कहा जाता है कि जप करते समय आज्ञा चक्र या मणिपुर चक्र पर ध्यान लगाना चाहिए। अतः अपने इस दोष को सुधारे।
- साधना काल में अकारण क्रोध करने से बचे, साथ ही यथा सम्भव मौन धारण करे और क्रोध में अधिक ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने से बचे। इससे संचित ऊर्जा का नाश होता है और सफलता शंका के घेरे में आ जाती है।
- साधक जितना भोजन खा सकते हैं, उतना ही थाली में ले। यदि आपकी आदत है अन्न जूठा फेंकने की तो इस आदत में सुधार करे। क्यूँकि अन्नपूर्णा शक्ति तत्त्व है, अन्न जूठा फेंकने वालों से शक्ति तत्त्व सदा रुष्ट रहता है और शक्ति तत्त्व की जिसके जीवन में कमी हो जाए, वो साधना में सफल हो ही नहीं सकता है। क्यूँकि शक्ति ही सफलता का आधार है।
- हाथ पैर की हड्डियों को बार-बार चटकाने से बचे। ऐसा करने वाले व्यक्ति अधिक मात्रा में जाप नहीं कर पाते हैं, क्यूँकि उनकी उँगलियाँ माला के भार को अधिक समय तक सहन करने में सक्षम नहीं होती है और थोड़े जाप के बाद ही उँगलियों में दर्द आरम्भ हो जाता है। साथ ही पुराणों के अनुसार बार-बार हड्डियों को चटकाने वाला रोगी तथा दरिद्री होता है। अतः ऐसा करने से बचे।
- मल त्याग करते समय बोलने से बचे। आज के समय में लोग मल त्याग करते समय भी बोलते हैं, गाने गुनगुनाते हैं, गुटखा खाते हैं या मोबाइल से बातें करते हैं। यदि आपकी आदत ऐसी है तो ये सब करने से बचे, क्यूँकि ऐसा करने से जिह्वा संस्कार समाप्त हो जाता है और ऐसी जिह्वा से जपे गए मन्त्र कभी सफल नहीं होते हैं। आयुर्वेद तथा स्वास्थ्य की दृष्टि से भी ऐसा करना ठीक नहीं है। अतः ऐसा ना करे।
- यदि आप कोई ऐसी साधना कर रहे है, जिसमें त्राटक करने का नियम है तो आप नित्य बादाम के तैल की मालिश अपने सर में करे और नाक के दोनों नथुनो में एक-एक बूँद बादाम का तेल डाले। इससे सर में गर्मी उत्पन्न नहीं होगी और नेत्रों पर पड़े अतिरक्त भार की थकान भी समाप्त हो जाएगी।साथ ही आँवला या त्रिफला चूर्ण का सेवन भी नित्य करे तो सोने पर सुहागा।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें