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शनिवार, 24 सितंबर 2022

SaptShaloki Durga 108 Durga Names | सप्तश्‍लोकी दुर्गा, श्रीदुर्गाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम्

 ॥ अथ सप्तश्‍लोकी दुर्गा ॥

SaptShaloki Durga 108 Durga Names | सप्तश्‍लोकी दुर्गा, श्रीदुर्गाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम्
॥ शिव उवाच ॥

देवि त्वं भक्तसुलभेसर्वकार्यविधायिनी।

कलौ हि कार्यसिद्ध्यर्थमुपायंब्रूहि यत्नतः॥


॥ देव्युवाच ॥

श्रृणु देव प्रवक्ष्यामिकलौ सर्वेष्टसाधनम्।

मया तवैव स्नेहेनाप्यम्बास्तुतिः प्रकाश्यते॥


॥ विनियोगः ॥

ॐ अस्य श्रीदुर्गासप्तश्‍लोकीस्तोत्रमन्त्रस्यनारायण ऋषिः, अनुष्टुप्‌ छन्दः,श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वत्यो देवताः, श्रीदुर्गाप्रीत्यर्थं सप्तश्‍लोकीदुर्गापाठे विनियोगः।

ॐ ज्ञानिनामपि चेतांसिदेवी भगवती हि सा।

बलादाकृष्य मोहायमहामाया प्रयच्छति॥1॥

दुर्गे स्मृताहरसि भीतिमशेषजन्तोः

स्वस्थैः स्मृतामतिमतीव शुभां ददासि।

दारिद्र्‌यदुःखभयहारिणिका त्वदन्या

सर्वोपकारकरणायसदार्द्रचित्ता॥2॥

सर्वमङ्गलमङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।

शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते॥3॥

शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे।

सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोऽस्तु ते॥4॥

सर्वस्वरूपे सर्वेशेसर्वशक्तिसमन्विते।

भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गेदेवि नमोऽस्तु ते॥5॥

रोगानशेषानपहंसि तुष्टा रूष्टातु कामान्‌ सकलानभीष्टान्‌।

त्वामाश्रितानां न विपन्नराणांत्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति॥6॥

सर्वाबाधाप्रशमनंत्रैलोक्यस्याखिलेश्‍वरि।

एवमेव त्वयाकार्यमस्मद्वैरिविनाशनम्‌॥7॥

॥ इति श्रीसप्तश्‍लोकी दुर्गा सम्पूर्णा ॥

रविवार, 18 सितंबर 2022

Durga Saptashati Mantras For Remove Illness And Virus On Navratri 2022

नवरात्रि में मां दुर्गा सप्तशती के मंत्रों का जाप करने का खास महत्व होता है | श्री दुर्गा सप्तशती का पाठ मनोरथ सिद्धि के लिए किया जाता है, क्योंकि श्री दुर्गा सप्तशती दैत्यों के संहार की शौर्य गाथा से अधिक कर्म, भक्ति एवं ज्ञान की त्रिवेणी हैं। यह श्री मार्कण्डेय पुराण का अंश है। यह देवी महात्म्य धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष चारों पुरुषार्थों को प्रदान करने में सक्षम है। इस ग्रंथ मे ऐसी शक्ति है जिससे जीवन के सभी कष्ट दूर हो जाते है,रोग दूर होते है,भय नही होता है,सफलता मिलती है, सप्तशती में कुछ ऐसे भी स्रोत एवं मंत्र हैं, जिनके विधिवत पारायण से इच्छित मनोकामना की पूर्ति होती है।

 

दुर्गा सप्तशती के मंत्रों का महत्व

श्रीमार्कण्डेयपुराणान्तर्गत देवीमाहात्म्यमें ' श्लोक ' , ' अर्धश्लोक ' और ' उवाच ' आदि को मिलाकर कुल 700 मन्त्र हैं । यह माहात्म्य दुर्गासप्तशती के नामसे प्रसिद्ध है । सप्तशती अर्थ , धर्म , काम , मोक्ष - चारों पुरुषार्थोंको प्रदान करनेवाली है । समस्त कामनाओं को पूरी करने वाला है। जो पुरुष जिस भाव और जिस कामनासे श्रद्धा एवं विधिके साथ सप्तशतीका पारायण करता है , उसे उसी भावना और कामनाके अनुसार निश्चय ही फल - सिद्धि होती है । इस बातका अनुभव अगणित पुरुषोंको प्रत्यक्ष हो चुका है । यहाँ हम कुछ ऐसे चुने हुए मन्त्रोंका उल्लेख करते हैं , जिनका सम्पुट देकर विधिवत् पारायण करनेसे विभिन्न पुरुषार्थोंकी व्यक्तिगत और सामूहिक रूपसे सिद्धि होती है । इनमें अधिकांश सप्तशती के ही मन्त्र हैं और कुछ बाहर के भी हैं ।

 

लेकिन अगर आप भक्तिभाव तथा निश्वार्थ वश देवी के मंत्रों की आराधना करते है तो आपको मन चाहा फल प्राप्त होगा। उसे उसी भावना और कामना के अनुसार निश्चय ही फल-सिद्धि होती है। इस बात का अनुभव अंगिनित पुरुषों को प्रत्यक्ष हो चुका है। यहां हम कुछ ऐसे चुने हुए मंत्रों का उल्लेख कर रहे हैं, जिसका सम्पुट देकर विधिवत पारायण करने से विभिन्न पुरुषार्थों की व्यक्तिगत और सामूहिक रूप से सिद्धि होती है। इनमें अधिकांश सप्तशती के ही मंत्र हैं और कुछ बाहर के भी हैं-

 

1. सामूहिक कल्याण के लिए मंत्र | Samuhik Kalyan Mantra

देव्या यया ततमिदं जगदात्मशक्त्या निश्शेषदेवगणशक्तिसमूहमूत्त्या।

तामम्बिकामखिलदेवमहर्षिपूज्यां भक्त्या नता: स्म विदधातु शुभानि सा नः॥

 

2. विश्व के अशुभ तथा भय का विनाश करने के लिये | Vishwa ke Ashubh or Bhay ka Vinash ke liye Mantra

यस्याः प्रभावमतुलं भगवाननन्तो ब्रह्मा हरश्‍च न हि वक्तुमलं बलं च।

सा चण्डिकाखिलजगत्परिपालनाय नाशाय चाशुभभयस्य मतिं करोतु॥

 

3.  विश्‍व की रक्षा के लिये | Vishwa Rakshya Ke liye Mantra

या श्रीः स्वयं सुकृतिनां भवनेष्वलक्ष्मीः पापात्मनां कृतधियां हृदयेषु बुद्धिः।

श्रद्धा सतां कुलजनप्रभवस्य लज्जा तां त्वां नताः स्म परिपालय देवि विश्‍वम्॥

 

4. विश्‍व के अभ्युदय के लिये | Vishwa ke Abhyudaya ke liye Mantra

विश्‍वेश्‍वरि त्वं परिपासि विश्‍वं विश्‍वात्मिका धारयसीति विश्‍वम्।

विश्‍वेशवन्द्या भवती भवन्ति विश्‍वाश्रया ये त्वयि भक्तिनम्राः॥

 

5. विश्‍वव्यापी विपत्तियों के नाश के लिये | Vishwavyapi Vipatiyon ke liye Mantra

देवि प्रपन्नार्तिहरे प्रसीद प्रसीद मातर्जगतोऽखिलस्य।

प्रसीद विश्‍वेश्‍वरि पाहि विश्‍वं त्वमीश्‍वरी देवि चराचरस्य॥

 

6. विश्‍व के पाप-ताप-निवारण के लिये | Vishwa ke Paap Taap Niwaran Ke Liye Mantra

देवि प्रसीद परिपालय नोऽरिभीतेर्नित्यं यथासुरवधादधुनैव सद्यः।

पापानि सर्वजगतां प्रशमं नयाशु उत्पातपाकजनितांश्‍च महोपसर्गान्॥

 

7. विपत्ति-नाश के लिये | Vipatti Nash ke liye Mantra

शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे।

सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोऽस्तु ते॥

 

8. विपत्तिनाश और शुभ की प्राप्ति के लिये | Vipatti Nash or Shubh Prapti Ke liye Mantra

करोतु सा नः शुभहेतुरीश्‍वरी शुभानि भद्राण्यभिहन्तु चापदः॥

 

9. भय-नाश के लिये | Bhay Naash ke liye Mantra

(क) सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते।

भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तु ते॥

 

(ख) एतत्ते वदनं सौम्यं लोचनत्रयभूषितम्।

पातु नः सर्वभीतिभ्यः कात्यायनि नमोऽस्तु ते॥

 

(ग) ज्वालाकरालमत्युग्रमशेषासुरसूदनम्।

त्रिशूलं पातु नो भीतेर्भद्रकालि नमोऽस्तु ते॥

 

10. पाप-नाश के लिये | Paap Naash ke liye Mantra

हिनस्ति दैत्यतेजांसि स्वनेनापूर्य या जगत्।

सा घण्टा पातु नो देवि पापेभ्योऽनः सुतानिव॥

 

11. रोग-नाश के लिये | Rog Naash ke liye Mantra

रोगानशेषानपहंसि तुष्टा रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान्।

त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति॥

 

12. महामारी-नाश के लिये | Mahamari Naash ke Liye Mantra

जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी।

दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते॥

 

13. आरोग्य और सौभाग्य की प्राप्ति के लिये | Aarogya or Saubhagya Prapti ke liye Mantra

देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखम्।

रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥

 

14. सुलक्षणा पत्‍‌नी की प्राप्ति के लिये | Sulakshna Patni Prapti Ke liye Mantra

पत्‍‌नीं मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारिणीम्।

तारिणीं दुर्गसंसारसागरस्य कुलोद्भवाम्॥

 

15. बाधा-शान्ति के लिये | Badha Shanti ke liye Mantra

सर्वाबाधाप्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्‍वरि।

एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरिविनाशनम्॥

 

16. सर्वविध अभ्युदय के लिये | Sarv Vidhi Abhyudaya ke liye Mantra

ते सम्मता जनपदेषु धनानि तेषां तेषां यशांसि न च सीदति धर्मवर्गः।

धन्यास्त एव निभृतात्मजभृत्यदारा येषां सदाभ्युदयदा भवती प्रसन्ना॥

 

17. दारिद्र्यदुःखादिनाश के लिये | Dhukh Daridryan Naash ke liye Mantra

दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तोः

स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि।

दारिद्र्यदुःखभयहारिणि का त्वदन्या

सर्वोपकारकरणाय सदाऽऽ‌र्द्रचित्ता॥

 

18. रक्षा पाने के लिये | Rakshya Pane ke liye Mantra

शूलेन पाहि नो देवि पाहि खड्गेन चाम्बिके।

घण्टास्वनेन नः पाहि चापज्यानिःस्वनेन च॥

 

19. समस्त विद्याओं की और समस्त स्त्रियों में मातृभाव की प्राप्ति के लिये | Vidhya Prapti or MatravBhav ke liye Mantra

विद्याः समस्तास्तव देवि भेदाः स्त्रियः समस्ताः सकला जगत्सु।

त्वयैकया पूरितमम्बयैतत् का ते स्तुतिः स्तव्यपरा परोक्तिः॥

 

20. सब प्रकार के कल्याण के लिये | Sab ke Kalyana ke liye Mantra

सर्वमङ्गलमङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।

शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते॥

 

21. शक्ति-प्राप्ति के लिये | Shakti Prapti ke liye Mantra

सृष्टिस्थितिविनाशानां शक्तिभूते सनातनि।

गुणाश्रये गुणमये नारायणि नमोऽस्तु ते॥

 

22. प्रसन्नता की प्राप्ति के लिये | Prasannata Prapti Ke liye Mantra

प्रणतानां प्रसीद त्वं देवि विश्‍वार्तिहारिणि।

त्रैलोक्यवासिनामीड्ये लोकानां वरदा भव॥

 

23. विविध उपद्रवों से बचने के लिये | Updravon se Bachane ke liye Mantra

रक्षांसि यत्रोग्रविषाश्‍च नागा यत्रारयो दस्युबलानि यत्र।

दावानलो यत्र तथाब्धिमध्ये तत्र स्थिता त्वं परिपासि विश्‍वम्॥

 

24. बाधामुक्त होकर धन-पुत्रादि की प्राप्ति के लिये | BadhaMukti or Dhan or Putra Prapti ke liye Mantra

सर्वाबाधाविनिर्मुक्तो धनधान्यसुतान्वितः।

मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशयः॥

 

25. भुक्ति-मुक्ति की प्राप्ति के लिये | Bhukti – Mukti prapti ke liye Mantra

विधेहि देवि कल्याणं विधेहि परमां श्रियम्।

रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥

 

26. पापनाश तथा भक्ति की प्राप्ति के लिये | PaapNaash or Bhakti Prapti ke liye Mantra

नतेभ्यः सर्वदा भक्त्‍‌या चण्डिके दुरितापहे।

रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥

 

27. स्वर्ग और मोक्ष की प्राप्ति के लिये | Swarg or Moksh Prapti ke liye Mantra

सर्वभूता यदा देवी स्वर्गमुक्तिप्रदायिनी।

त्वं स्तुता स्तुतये का वा भवन्तु परमोक्तयः॥

 

28. स्वर्ग और मुक्ति के लिये | Swarg or Mukti ke liye Mantra

सर्वस्य बुद्धिरुपेण जनस्य हृदि संस्थिते।

स्वर्गापवर्गदे देवि नारायणि नमोऽस्तु ते॥

 

29. मोक्ष की प्राप्ति के लिये | Moksh Prapti ke liye Mantra

त्वं वैष्णवी शक्तिरनन्तवीर्या

विश्‍वस्य बीजं परमासि माया।

सम्मोहितं देवि समस्तमेतत्

त्वं वै प्रसन्ना भुवि मुक्तिहेतुः॥

 

30. स्वप्न में सिद्धि-असिद्धि जानने के लिये | Swapana me Sidhi – Asidhi janane ke liye Mantra

दुर्गे देवि नमस्तुभ्यं सर्वकामार्थसाधिके।

मम सिद्धिमसिद्धिं वा स्वप्ने सर्वं प्रदर्शय॥




शनिवार, 10 सितंबर 2022

Navratri 2022 Kab Hai Kalash Sthapana Shubh Muhurat time Ghatsthapna Pujan Vidhi Durga Vart Katha Nawaran Mantra

शारदीय नवरात्रि 2022 का प्रारंभ

शारदीय नवरात्रि का प्रारंभ पितृ पक्ष के अंतिम दिन यानी सर्व पितृ अमावस्या के अगले दिन से होता है। हिन्दी पंचांग के अनुसार, अश्विन मास में शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से शारदीय नवरात्रि आरंभ हो जाती हैं। नवरात्रि के पूरे नौ दिनों तक मां आदिशक्ति के नौ स्वरूपों शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री देवी की पूजा की जाती है। मान्यता है कि नवरात्रि के नौ दिनों में माता रानी धरती लोक पर विचरण करती हैं। साथ ही अपने भक्तों के कष्टों को हरकर उनकी मनोकामनाओं को पूर्ण करती हैं। मनोकामना पूर्ति के लिए नवरात्रि के दिन बहुत महत्वपूर्ण माने जाते हैं। तो चलिए जानते हैं इस साल शारदीय नवरात्रि कब से शुरू हो रहे हैं|

 


शारदीय नवरात्रि 2022 का प्रारंभ

इस वर्ष शारदीय नवरात्रि का प्रारंभ 26 सितंबर से शुरू होंगे, जो कि 05 अक्टूबर तक चलेंगे। इस दिन ही कलश स्थापना या घट स्थापना होगा और मां शैलपुत्री की पूजा की जाएगी। जिन लोगों को नौ दिन व्रत रखना होगावे कलश स्थापना के साथ नवरात्रि व्रत एवं मां दुर्गा की पूजा का संकल्प लेंगे और व्रत शुरू करेंगे। जो लोग एक दिन का नवरात्रि व्रत रहेंगेवो अगले दिन व्रत का पारण कर लेंगे और फिर दुर्गाष्टमी के दिन व्रत रखेंगे एवं कन्या पूजन करेंगे।

 

Navratri 2022 Kab Hai Kalash Sthapana Shubh Muhurat time Ghatsthapna Pujan Vidhi Durga Vart Katha Nawaran Mantra

दुर्गाष्टमी 2022 या महाष्टमी 2022

नवरात्रि में प्रथम दिन के बाद अष्टमी का बहुत महत्व होता है। इसे दुर्गाष्टमी या महाष्टमी कहते हैं। इस वर्ष दुर्गाष्टमी 03 अक्टूबर को है। इस दिन मां महागौरी की पूजा होती है। जो लोग प्रथम दिन व्रत रखते हैंवे महाष्टमी का भी व्रत रखते हैं।

 

महानवमी 2022

इस वर्ष शारदीय नवरात्रि की महानवमी 04 अक्टूबर को है। इस दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है और हवन किया जाता है।

 

दशहरा 2022 या विजशदशमी 2022

दशहरा या विजशदशमी इस दिन रावणमेघनाद और कुंभकर्ण के पुतलों का दहन होता है। रामलीला में रावण वध का मंचन होता है। विजयादशमी के दिन दुर्गा मूर्ति का विसर्जन भी किया जाता है। हालांकि यह मुहूर्त पर निर्भर करता है। दशहरा या विजयादशमी बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।

दशमी तिथि प्रारंभ - 4 अक्टूबर 2022, दोपहर 2:20 से

दशमी तिथि समाप्ति - 5 अक्टूबर 2022, दोपहर 12:00

श्रवण नक्षत्र प्रारंभ - 4 अक्टूबर 2022, रात 10:51 से

श्रवण नक्षत्र समाप्ति - 5 अक्टूबर 2022, रात 09:15 तक

विजय मुहूर्त - 5 अक्टूबर 2022, दोपहर  02:13 से 2: 54 तक

अमृत काल- 5 अक्टूबर 2022,  सुबह 11:33 से दोपहर 01:02 मिनट तक

दुर्मुहूर्त- 5 अक्टूबर 2022, सुबह 11:51 से 12:38 तक

 

शारदीय नवरात्रि 2022 : कलश स्थापना

शुक्ल पक्ष प्रतिपदा तिथि - प्रतिपदा तिथि की शुरुआत 26 सितंबर को सुबह 03 बजकर 24 मिनट से हो रही है, जो कि 27 सितंबर सुबह 03 बजकर 08 मिनट तक रहेगी। 

घटस्थापना मुहूर्त- इस साल घटस्थापना का मुहूर्त 26 सितंबर को सुबह 06 बजकर 20 मिनट से शुरू होकर 10 बजकर 19 मिनट तक है। 

शारदीय नवरात्रि 2022 तिथियां

1.  नवरात्रि प्रथम दिन: प्रतिपदा तिथि, मां शैलपुत्री पूजा और घटस्थापना - 26 सितंबर 2022 दिन सोमवार

2.  नवरात्रि दूसरा दिन: मां ब्रह्मचारिणी पूजा - 27 सितंबर 2022 दिन मंगलवार

3.  नवरात्रि तीसरा दिन: मां चंद्रघण्टा पूजा - 28 सितंबर 2022 दिन बुधवार

4.  नवरात्रि चौथा दिन: मां कुष्माण्डा पूजा - 29 सितंबर 2022 दिन गुरुवार

5.  नवरात्रि पांचवां दिन: मां स्कंदमाता पूजा - 30 सितंबर 2022 दिन शुक्रवार

6.  नवरात्रि छठा दिन: मां कात्यायनी पूजा -01 अक्टूबर 2022 दिन शनिवार

7.  नवरात्रि सातवां दिन: मां कालरात्री पूजा - 02 अक्टूबर 2022 दिन रविवार

8.  नवरात्रि आठवां दिन (अष्टमी तिथि):  मां महागौपूजा, 03 अक्टूबर 2022 दिन सोमवार (दुर्गा महाष्टमी)

9.  नवरात्रि नवां दिन (नवमी तिथि): मां सिद्धरात्री पूजा, दुर्गा महानवमी पूजा - 04 अक्टूबर 2022 दिन मंगलवार

 

नवरात्रि के पीछे पौराणिक कहानी

इस त्योहार से संबंधित कई कहानियां हैंलेकिन उनमें से दो बहुत लोकप्रिय और प्रचलित हैं। पहले एक राक्षस महिषासुर के बारे में है और वह देवी दुर्गा के हाथों से कैसे मिला। ये रहा:

महिषासुर नाम का एक दानव भगवान शिव का बड़ा उपासक था। दानव की भक्ति से प्रभावित होकरभगवान शिव खुश हो गए और उन्हें किसी भी व्यक्ति या भगवान द्वारा मारे नहीं जाने का वरदान दिया। यह आशीर्वाद महिषासुर के सिर पर चढ़ गयाजिससे वह अभिमानी और अभिमानी हो गया। उसने मूल निवासियों को आतंकित करना शुरू कर दियाउनके घरों पर हमला किया और सभी के लिए समस्याएं पैदा कीं। पृथ्वी को नष्ट करने के बादउसने स्वर्ग को निशाना बनाया और देवताओं को भी डराया। देवता त्रिदेव के पास गएब्रह्माविष्णु और शिवएक समाधान प्राप्त करने के लिएजिसने माँ दुर्गा को बनाया। लुका-छिपी के एक जोरदार खेल के बादमां दुर्गा ने आखिरकार राक्षस को ढूंढ निकाला और उसे मार डाला। इसने बुराई पर अच्छाई की जीत पर टिप्पणी की।

 

दूसरी कहानी इस प्रकार है:

भगवान रामपरम महाशक्ति देवी भगवती के बहुत बड़े उपासक थे। उन्होंने नौ दिनों तक सीधे अपनी पूजा में खुद को समर्पित किया ताकि रावण के खिलाफ जीत हासिल की जा सके। नौवें दिनदेवी भगवती उनके सामने प्रकट हुईं और उन्हें आशीर्वाद दिया और दसवें दिन भगवान राम ने दशानन का वध किया। तब सेदेवी भगवती के विभिन्न रूपों को नौ दिनों के लिए सीधा किया जाता है और विजयादशमी के दसवें दिन मनाया जाता है।

 

 

नवरात्रि 2022 के लिए पूजा सामग्री (Navratri 2022 Poojan Samagri)

नवरात्रि के व्रत रखने और पूजा करने का तभी लाभ होता है जब सब कार्य विधिपूर्वक किये जाएंआज हम आपको नवरात्रि के लिए पूजा सामग्री बता रहे हैं।

मां दुर्गा की प्रतिमा या फोटोकपूरधूपदीपकदीपबत्तीनैवेद्यकेसरचौकीरोलीमौलीसुगंधित तेलबेलपत्रकमलगट्टामेंहदीहल्दी की गांठ और पिसी हुई हल्दीसुपारी साबुतपटराआसनपुष्पदूर्वाबंदनवार आम के पत्तों कापुष्पहारवस्त्रदर्पणकंघीकंगन-चूड़ीबिंदीलाल रंग की गोटेदार चुनरीलालरेशमी चूड़ियांसिंदूरमधुशक्करपंचमेवाजायफलआदिकी आवश्यकता होती है।

 

 

घर पर नवरात्रि 2022 पूजा विधि  (Navratri 2022 Ghat Sthapna Pooja Vidhi)
नवरात्रि 2022 कलश स्थापन पूजा

एक कलश को पूजा स्थल पर रखा जाता है और लोग कलश पूजा के अनुष्ठान को करने के लिए एक पुजारी को बुलाते हैं। नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापित करने का एक सही तरीका है।  

ü सुबह जल्दी उठना और शॉवर लेना पहली गतिविधि होनी चाहिए।

ü मूर्तियों को साफ करने के बादआपको सबसे पहले उस स्थान की सफाई करनी होगीजहां कलश रखा जाना है।

ü अगली चीज़ जो आपको करने की ज़रूरत हैवह है लकड़ी के आसन पर लाल रंग का कपड़ा बिछाना और लाल कपड़े पर कच्चा चावल डालते हुए भगवान गणेश के मंत्रों का जाप करना।

ü कुछ मिट्टी का उपयोग करकेआपको एक वेदी बनाने और उसमें जौ के बीज बोने की आवश्यकता है।

ü अबमिट्टी पर कलश स्थापित करें और उसमें थोड़ा पानी डालें।

ü कलश पर स्वस्तिक चिन्ह बनाने के लिए सिंदूर के पेस्ट का उपयोग करें और कलश के गले में एक पवित्र धागा बाँधें।

ü कलश में सुपारी और सिक्का डालें और उसमें कुछ आम के पत्ते रखें।

ü अबएक नारियल लेंउसके चारों ओर एक पवित्र धागा और एक लाल चुनरी बाँध लें।

ü इस नारियल को कलश के ऊपर रख दें और सर्वशक्तिमान ईश्वर से प्रार्थना करें।

ü देवताओं को फूल चढ़ाएं और धार्मिक मन और आत्मा से पूजा करें।

  

नवरात्रि में माँ दुर्गा के नौ रूपों की पूजा का विधान (Nav Durga ke Nav Roop)

v दिन 1- 26 सितंबर 2022 दिन सोमवार :मां शैलपुत्री पूजा घटस्थापना:यह देवी दुर्गा के नौ रूपों में से प्रथम रूप है। मां शैलपुत्री चंद्रमा को दर्शाती हैं और इनकी पूजा से चंद्रमा से संबंधित दोष समाप्त हो जाते हैं। शैलपुत्री माता पार्वती का ही दूसरा रूप है। इन्हें हिमालय राज की पुत्री कहा जाता है। इनके दाएं हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल होता है तथा यह मां नंदी की सवारी करती है। शक्ति और कर्म इनके प्रतीक हैं।

 

v दिन 2- 27 सितंबर 2022 दिन मंगलवार :माँ ब्रह्मचारिणी पूजा :ज्योतिषीय मान्यता के अनुसार देवी ब्रह्मचारिणी मंगल ग्रह को नियंत्रित करती हैं। देवी की पूजा से मंगल ग्रह के बुरे प्रभाव कम होते हैं। ऐसा कहा जाता है कि जब मां पार्वती अविवाहित थी तब उन्हेंब्रह्मचारिणी कहा जाता था। यानि कि यह दिन भी मां पार्वती का ही होता है। ये मां श्वेत वस्त्र धारण किए हुए होती हैं और इनके दाएं हाथ में कमण्डल और बाएं हाथ में जपमाला होती है। देवी का स्वरूप अत्यंत तेज़ और ज्योतिर्मय है। ये मां शांति और सकारात्मकता की प्रतीक है।

 

v दिन 3- 28 सितंबर 2022 दिन बुधवार :माँ चंद्रघंटा पूजा :देवी चंद्रघण्टा शुक्र ग्रह को नियंत्रित करती हैं। देवी की पूजा से शुक्र ग्रह के बुरे प्रभाव कम होते हैं। पौराणिक कथा के अनुसार ऐसा माना जाता है कि माँ पार्वती और भगवान शिव के विवाह के दौरान उनका यह नाम पड़ा था। मां चंद्रघण्टा का प्रिय रंग पीला होता है इसलिए इस दिन पीले रंग धारण किए जाते हैं। यह रंग साहस का प्रतीक है।

 

v दिन 4 - 29सितंबर 2022 दिन गुरूवार :माँ कूष्मांडा पूजा :माँ कूष्माण्डा सूर्य का मार्गदर्शन करती हैं अतः इनकी पूजा से सूर्य के कुप्रभावों से बचा जा सकता है। मां कुष्मांडा शेर की सवारी करती हैं और उनकी आठ भुजाएं होती हैं। ऐसी मान्यता है कि पृथ्वी पर होने वाली हरियाली माँ के इसी रूप के कारण है। इस दिन हरे कपड़े पहनने को शुभ माना जाता है।

 

v दिन 5 : 30 सितंबर 2022 दिन शुक्रवार:माँ स्कंदमाता पूजा :देवी स्कंदमाता बुध ग्रह को नियंत्रित करती हैं। देवी की पूजा से बुध ग्रह के बुरे प्रभाव कम होते हैं। भगवान कार्तिकेय का एक नाम स्कंद भी है। इनकी चार भुजाएं होती हैं। माता अपने पुत्र को लेकर शेर की सवारी करती है। इस दिन ग्रे रंग के कपड़े पहनने की मान्यता है।

 

v दिन 6- 01 अक्टूबर 2022 दिन शनिवार :माँ कात्यायनी पूजा :देवी कात्यायनी बृहस्पति ग्रह को नियंत्रित करती हैं। देवी की पूजा से बृहस्पति के बुरे प्रभाव कम होते हैं। माता कात्यायिनी साहस का प्रतीक हैं। ये शेर की सवारी करती हैं और उनकी चार भुजाएं हैं। इस दिन केसरिया रंग का महत्व होता है।

 

v दिन 7 : 02 अक्टूबर 2022 दिन रविवार :माँ कालरात्रि पूजा :देवी कालरात्रि शनि ग्रह को नियंत्रित करती हैं। देवी की पूजा से शनि के बुरे प्रभाव कम होते हैं। और ऐसा कहा जाता है कि जब मां पार्वती ने शुंभ निशुंभ नामक दो राक्षसों का वध किया था तब उनका रंग काला हो गया था। इसके बावजूद इस दिन काले के बजाय सफेद रंग पहना जाता है।

 

v दिन 8 : 03 अक्टूबर 2022 दिन सोमवार (दुर्गा महाष्टमी) :माँ महागौरी पूजा :देवी महागौरी राहु ग्रह को नियंत्रित करती हैं। देवी की पूजा से राहु के बुरे प्रभाव कम होते हैं। माता का यह रूप शांति और ज्ञान की देवी का प्रतीक है। इस दिन पिंक कपड़े पहने जाते हैं।

 

v दिन 9 - 04 अक्टूबर 2022 दिन मंगलवार : मां सिद्धरात्री पूजा, दुर्गा महानवमी पूजा :देवी सिद्धिदात्री केतु ग्रह को नियंत्रित करती हैं। देवी की पूजा से केतु के बुरे प्रभाव कम होते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस दिन सच्चे मन से पूजा करने वालों को सिद्धि प्राप्त होती है। मां सिद्धिदात्री कमल के फूल पर विराजमान हैं और उनकी चार भुजाएं होती हैं।

 

v दिन 10 - : दशमी तिथिनवरात्रि व्रत परायणविजयादशमी या दशहरा 

दशमी तिथि प्रारंभ - 4 अक्टूबर 2022, दोपहर 2:20 से

दशमी तिथि समाप्ति - 5 अक्टूबर 2022, दोपहर 12:00

  

 

 

 

 

 

नवरात्रि व्रत रखने का सही Method

 

पूजा की विधि और विधान:-

वर्ष में दो बार चैत्र एवं आश्विन महीने के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से शुरू होकर नवमी तिथि को मनाये जाने वाले पर्व को नवरात्रि का पर्व कहा जाता हैं, नवरात्रि के पर्व में श्रीदुर्गा माता के नव स्वरूपों की पूजा की जाती हैं और नव दिनों तक पूजा होने से इसे नवरात्र कहा जाता है। चैत्र मास में आने वाले नवरात्र को "वार्षिक नवरात्र या चैत्रीय नवरात्र" और आश्विन मास में आने वाले नवरात्र को "शारदीय नवरात्र" कहा जाता हैं, इसलिए श्रीदुर्गा पूजा का बहुत महत्व दिया जाता हैं।

v माता श्रीदुर्गाजी का भक्त या साधक सूर्योदय से पूर्व उठकर अपनी दैनिकचर्या स्नानादि से निवृत होकर स्वच्छ कपड़े को पहनकर पूजा की जगह की सफाई करके पूजा जगह को सजाना चाहिए।

v सबसे पहले पवित्र स्थान पर मिट्टी से बेदी बनाकर उसमें जौ, गेहूँ बोये। प्रतिपदा के दिन सुबह विधि-विधान से घट स्थापना करके लगातार नौ दिन तक अखण्ड ज्योत करनी चाहिए।

v नवरात्रि व्रत के आरम्भ में स्वास्तिवाचन-शांति पाठ करके संकल्प करें।

v फिर सर्वप्रथम गणपतिजी पूजा करके, मातृका की पूजा, क्षेत्रपाल, नवग्रह एवं वरुणदेव का सविधि पूजन करना चाहिए।

v फि र एक लकड़ी का बाजोट या मिट्टी से निर्मित एक चौकी को बनानी चाहिए।उस चौकी पर लाल व पिले वस्त्र को बिछाकर कर उस पर अक्षत की ढ़ेरी बनाकर उस पर देवी दुर्गाजी की मूर्ति को स्थापित करना चाहिए।

v मूर्ति के दा हिनी तरफ जल से भरे तांबे के कलश को गेहूं या अक्षत की ढ़ेरी बनाकर स्थापित करना चाहिए उस कलश में सुपारी, पाँच धन्य, फूल, सिक्का, धनिया, अक्षत आदि डालना चाहिए।

v फिर उस कलश पर पंच पल्लव या जो भी उपलब्ध पेड़ के पत्तो को ऊपर रख देना चाहिए।

v उसके बाद उस पर एक पानी वाला श्रीफल को लाल कपड़े में इस तरह मौली से बांधना चाहिए कि उस श्रीफल का थोड़ा सा अग्र भाग ही दिखाई देवे उस श्रीफल को उस तांबे के कलश पर वरुणदेव के रूप में स्थापित करना चाहिए।

v उसके बाद में मिट्टी का कटोरा पत्र लेकर उसमें मिट्ठी भरकर उसमें पानी डालकर जौ के दानों को बोना चाहिए इसे जवारा बोना कहते हैं, इस मिट्टी के कटोरे को उस चौकी पर रख देना चाहिए।

v चौ की के पूर्व कोने पर एक शुद्ध घी का दीपक को भरकर माता दुर्गाजी के सामने रखना चाहिए। सबसे पहले विघ्नहर्ता श्रीगणपति जी की पूजा षोड़शोपचार विधि से करनी चाहिए, उसके बाद सभी देवी-देवताओं की पूजा करनी चाहिए।

v सबसे अंत में माता दुर्गाजी पूजा करनी चाहिए।

 

नवरात्रि व्रत रखने का विशेष महत्त्व बताया गया है| वैसे तो यह अपनी श्रद्धा के ऊपर निर्भर करता है| यह नौ दिनों तक चलने वाला त्योहार है क्योंकि ये नौ दिन नौ देवियों को समर्पित हैं| कुछ लोग पूरे नौ दिन का व्रत रखते हैं व कुछ लोग पहले और आखिरी दिन का व्रत रखते हैं| इसमें लोग नौ दिन की अखंड जोत जलाते हैं अर्थात दीया जलाते हैं जिसको नौ दिनों तक नहीं बुझने दिया जाता| व्रत को रखने के लिए हर एक व्यक्ति के अपने अलग-अलग उद्देश्य होते हैं| शास्त्रानुसार व्रत या उपवास करने से माँ की कृपा सदा उनपे बनी रहती है व सारे कार्य सिद्ध होते हैं| व्रत को रखने के कुछ नियम हैं, जैसे व्रत में क्या खाना चाहिए, पूजा किस प्रकार करनी चाहिए आदि| आइये जानते हैं व्रत से जुड़ी बातें व कथा –

 

ब्रह्माजी द्वारा सुनाया गया वृतांत

धार्मिक कथाओं के अनुसार एक बार ब्रहस्पति जी ने ब्रह्माजी से सवाल किया कि चैत्र व आश्विन मास की शुक्लपक्ष की नवरात्रि का व्रत और त्योहार क्यों मनाया जाता है, इस व्रत को करने से क्या फल मिलता है और इसे किस प्रकार करना चाहिए और सर्व प्रथम ये व्रत किसने किया था, बताइए?

तब फिर ब्रह्माजी ने ब्रहस्पति जी के इस सवाल का जबाव दिया, हे ब्रहस्पति, प्राणियों की अच्छाई की इच्छा रखने के लिए तुमने बहुत अच्छा प्रश्न किया है, ये नवरात्रि का व्रत मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाला होता है, संतान की कामना करने वाले को संतान प्राप्ति होती है, दरिद्र लोगों को धन की प्राप्ति होती है, लोग धन-धान्य से पूर्ण हो जाते हैं और लोगों के सारे कष्ट नष्ट हो जाते हैं|

 

नवरात्रि व्रत कथा

प्राचीन काल में मनोहर नामक नगर में पीठत नाम का एक अनाथ ब्राह्मण रहता था, वह दुर्गा माँ का परम भक्त था| उसके यहाँ एक कन्या उत्पन्न हुई जिसका नाम सुमति रखा गया| सुमति, अपनी सहेलियों के साथ खेलते-कूदते बढ़ी होने लगी, जैसे शुक्ल पक्ष में चन्द्रमा की कला बढ़ती है|

ब्राह्मण पीठत, प्रतिदिन माँ दुर्गा की पूजा किया करता था और पूजा के समय वह कन्या सुमति, हमेशा वहां उपस्थित रहती थी| लेकिन एक दिन वह सहेलियों के साथ खेल-कूद में इतनी मगन हो गई कि उसे पूजा का ध्यान न रहा| इस वजह से पिता को अत्यंत क्रोध आया| उसके पिता ने उसे कहा कि आज तू भगवती की पूजा में शामिल नहीं हुई, अब में तेरा विवाह एक दरिद्र और कुष्ठ रोगी से कर दूँगा| तब सुमति ने कहा अपने पिता से कहा, “आप मेरे पिता हैं, आप जैसा उचित समझे, लेकिन मेरे भाग्य में जो लिखा है वही होगा”|

ऐसे वचन सुनकर पिता को और भी अधिक क्रोद्ध आया और उसने अपनी पुत्री का विवाह कुष्ठ रोगी के साथ करा दिया और बोला कि देखता हूँ कि अब तेरा भाग्य तेरा कितना साथ देगा| ऐसे वचन सुनकर सुमति सोचने लगी कि मेरा दुर्भाग्य ही ऐसा है इसीलिए मुझे ऐसा वर मिला है और इस प्रकार अपने पति के साथ वन को चली गयी|

एक दिन वन में इस कन्या के पूर्व जन्म के कर्म से प्रसन्न होकर माँ दुर्गा वहां प्रकट हो गयीं और कहने लगीं कि जो भी वर तुम्हे चाहिए वह मांगों| कन्या ने कहा कि आप कौन हैं, तब माता ने उत्तर दिया कि मैं भगवती हूँ, मैं तुम्हारे पिछले जन्म के कर्मों से अत्यंत प्रसन्न हूँ इसीलिए तुम्हारी जो इच्छा है वैसा वरदान मैं तुम्हे दूँगी| माता ने कहा कि मैं तुम्हारे पिछले जन्म का वृतांत बताती हूँ – तुम पिछले जन्म में अति पतिव्रता नारी थी, तुम्हारा पति चोरी करते पकड़ा गया था, तब तुम दोनों को सिपाहियों ने कारागाह में बंद कर दिया था और उस दौरान तुम दोनों को कुछ भी खाने को भोजन नहीं दिया गया था, इस प्रकार तुमने नौ दिनों तक नवदुर्गा का व्रत कर लिया था और उस व्रत के प्रभाव से मैं अत्यंत प्रसन्न हूँ इसीलिए जो वर मांगना है माँग सकती हो|

तब सुमति बोली “मुझे धन-धान्य कुछ नहीं चाहिए बस मेरे पति का कुष्ठ रोग दूर कर दीजिये”| तब माता ने उसे वरदान दिया कि तुम्हारा पति कुष्ठरोग मुक्त हो जाये और तू सदा खुश रहे| ऐसा कहकर वे अंतर्ध्यान हो गयीं और सुमति अत्यंत प्रसन्न हो उठी|

अर्थात यह फल सुमति को उन नौ दिनों के व्रत रखने से ही प्राप्त हुआ| तभी से व्रत रखने की परम्परा चली आयी|

 

 

 

नवरात्रि व्रत में क्या नहीं खाया जाता है ? और क्या खाया जाता है ?

नवरात्रि व्रत में क्या नहीं खाएं –

इस व्रत में हल्दी, लाल मिर्च पाउडर, हींग, सरसों का तेल, मेथी दाना, गर्म मसाला और धनिया पाउडर का इस्तेमाल नहीं किया जाता है| नमक में केवल सेंधा नमक ही खाएं| रिफाइंड तेल या सोयाबीन ऑयल में खाना न पकाएं, घी में पका हुआ भोजन कर सकते हैं| फली, दाल, चावल, गेहूँ का आटारवा और मैदे का इस्तेमाल करने से बचें| प्याज, लहसुन का सेवन पूरी तरह से वर्जित है|

 

नवरात्रि व्रत में क्या खाना चाहिए –

उपवास-व्रत में रामदाना, आलू से बना हलवा या आलू से बनी चिप्स खा सकते हैं, हम आलू को उबाल कर उसमें दही मिला कर और सेंधा नमक, हरा धनिया डाल कर खा सकते हैं और हाँ हम उपवास की किसी भी चीज में सेंधा नामक डाल कर खा सकते हैं| मेवा, फल, दूध, दही, साबूदाना, मूंगफली, कुट्टू, सिंगाड़े के आटे से बने पकवान आदि ग्रहण कर सकते हैं| हो सके तो चीनी की जगह गुड़ का सेवन करें|

 

नवरात्रि  में व्रत (उपवास) करने की विधी | Navratri Vrat Vidhi 2022

इस नवरात्रि के दौरान ब्रह्म मुहूर्त में उठ जाएँ और स्नान करके मन ही मन माता का स्मरण करें| उसके बाद मातारानी की पूजा की तैयारी करें| पूजा में शुद्ध जल और दूध से माता का अभिषेक करें| दीपक जलाएं, माता के मंत्रो का जाप करें, साथ ही दुर्गासप्ताशी का पाठ करें, पूजा में कुमकुम, हल्दी, चन्दन, अक्षत्, पुष्प और अन्य सुगन्धित, चीज़ें जैसे की इत्र, धूप आदि का प्रयोग करें| पकवान, फल, मिठाईयों का भोग लगा कर के आरती करें|

नवरात्रि के पहले ही दिन से लोग अखंड ज्योति जलाते हैं जो कि पूरे नौ दिनों तक जलती है| याद रहे ये ज्योति नौ दिन तक बुझ न पाए| इसमें निरंतर घी डालते रहें| व्रत में फलाहार करने का एक समय निर्धारित करें, अतिशय भोजन न करें, अपने शरीर को हल्का रखें जिससे आप अपना ध्यान माँ की भक्ति में लगा सकें| इस प्रकार नियमों का पालन करते हुए नौ दिनों के व्रत को पूर्ण करें

देवी व्रत में कुमारी पूजन:- का परम आवश्यक माना गया है। सामर्थ्य होने पर नवरात्रि में प्रतिदिन या समाप्ति के दिन नौ कुमारियों के चरण धोकर उन्हें देवी रूप मानकर गन्ध, पुष्पादि से पूजा-अर्चना करके आदर के साथ यथा रुचि मिष्ठान भोजन करवाना चाहिए एवं श्रद्धानुसार वस्त्राभूषण से अलंकृत करके दक्षिणा देनी चाहिए।

शास्त्रों के अनुसार:-शास्त्रों के अनुसार नौ कन्याओं का पूजन करने का महत्व होता हैं, वह इस तरह हैं:

v एक कन्या की पूजा करने से ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।

v दो कन्याओं की पूजा करने से मोक्ष और भोग की प्राप्ति होती है।

v तीन कन्याओं की पूजा करने से धर्म, अर्थ, काम और त्रिवर्ग की प्राप्ति होती हैं।

v चार कन्याओं की पूजा करने से राज्यपद की प्राप्ति होती हैं।

v पांच कन्याओं की पूजा करने से विद्या की प्राप्ति होती है।

v छः कन्याओं की पूजा करने से षट्कर्म सिद्धि की प्राप्ति होती हैं।

v सात कन्याओं की पूजा करने से राज्य की प्राप्ति होती है।

v आठ कन्याओं की पूजा करने से सम्पदा की प्राप्ति होती हैं।

v नौ कन्याओं की पूजा करने से पृथ्वी के प्रभुत्व की प्राप्ति होती हैं।

v कुमारी पूजन में दस वर्ष की कन्याओं की पूजा-अर्चना करनी चाहिए। दस वर्ष से ऊपर की आयु वाली कन्या कुमार पूजन में वर्णन किया गया है।

दो वर्ष की कल्याणी, पांच वर्ष की रोहिणी, छः वर्ष की काली, सात वर्ष की कन्या चण्डिका, आठ वर्ष की कन्या शाम्भवी, नौ वर्ष की कन्या दुर्गा और दस वर्ष की कन्या सुभद्रा स्वरूपा होती हैं। नौ दिन तक देवी का विधिवत पूजन करके विजय दशमी को विसर्जन तथा नवरात्रि का पारणा करना चाहिए।

 

कुमारी पूजन:-

आठ या नौ दिन ऊपर बताई गई विधि से माता दुर्गाजी की पूजा करनी चाहिए। उसके महाष्टमी या रामनवमी की पूजा करनी चाहिए। उसके बाद कुमारी कन्याओं को माता दुर्गाजी के नव स्वरूपों के रूप में नव कन्याओं को अपने घर पर बुलाकर भोजन करवाना चाहिए। यदि नव कन्याऐं नहीं होने कम से कम दो तो अवश्य हो नी चाहिए। इन कुमारियों की उम्र एक वर्ष से लेकर दश वर्ष तक कि होनी चाहिए।

माता दुर्गाजी के नवस्वरूपों के प्रतीकात्मक रूप:- इन सभी कुमारियों के नमस्कार मन्त्र क्रमशः निम्न है-

(1) कुमाय्यै नमः ।

(2)त्रिमूत्यै नमः ।

(3) कल्याण्यै नमः ।

(4) रोहिण्यै नमः ।

(5) कालिकायें नमः ।

(6) चाण्डिकायै नमः ।

(7) शाम्भव्यै नमः ।

(8) दुर्गायै नमः ।

(9) सभादायै नमः ।

पूजन करने के लिए सभी कुमारियों को बाजोट पर बिठाकर उनके पैर को जल से धोना चाहिए उसके बाद पूजन होने के बाद सभी को भो जन करवाना चाहिए जब उन सभी कुमारी देवी का भोजन होने पर उनसे अपने सिर पर अक्षत छुड़वायें और उनको दक्षिणा देनी चाहिए। इस तरह से करने से महामाया भगवती बहुत ज्यादा प्रसन्न होकर सभी तरह की इच्छाओं को पूरा करती है।

 

दुर्गा के बीज मंत्र (Nav Durga Beej Mantra)

नवरात्रि के समय में मां दुर्गा के बीज मंत्रों का जाप कल्याणकारी और प्रभावी माना जाता है। इस नवरात्रि आप 9 दुर्गा के बीज मंत्रों का जाप कर सकते हैं। इसमें शब्दों के उच्चारण का विशेष ध्यान रखा जाता है। आइए मां दुर्गा के 9 स्वरुपों के बीज मंत्रों के बारे में जानते हैं।

 

1. शैलपुत्री: ह्रीं शिवायै नम:।

2. ब्रह्मचारिणी: ह्रीं श्री अम्बिकायै नम:।

3. चन्द्रघण्टा: ऐं श्रीं शक्तयै नम:।

4. कूष्मांडा: ऐं ह्री देव्यै नम:।

5. स्कंदमाता: ह्रीं क्लीं स्वमिन्यै नम:।

6. कात्यायनी: क्लीं श्री त्रिनेत्रायै नम:।

7. कालरात्रि: क्लीं ऐं श्री कालिकायै नम:।

8. महागौरी: श्री क्लीं ह्रीं वरदायै नम:।

9. सिद्धिदात्री: ह्रीं क्लीं ऐं सिद्धये नम:।

 

 

मां दुर्गा के 108 नाम (Maa Durga Ke 108 Naam)

1. सती:अग्नि में जल कर भी जीवित होने वाली 

2. साध्वी:आशावादी 

3. भवप्रीता:भगवान शिव पर प्रीति रखने वाली 

4. भवानी:ब्रह्मांड में निवास करने वाली 

5. भवमोचनी:संसारिक बंधनों से मुक्त करने वाली 

6. आर्या:देवी 

7. दुर्गा:अपराजेय 

8. जया:विजयी 

9. आद्य:शुरुआत की वास्तविकता 

10. त्रिनेत्र:तीन आंखों वाली 

11. शूलधारिणी:शूल धारण करने वाली 

12. पिनाकधारिणी:शिव का त्रिशूल धारण करने वाली 

13. चित्रा:सुरम्यसुंदर 

14. चण्डघण्टा:प्रचण्ड स्वर से घण्टा नाद करने वालीघंटे की आवाज निकालने वाली 

15. सुधा:अमृत की देवी 

16. मन:मनन-शक्ति 

17. बुद्धि:सर्वज्ञाता 

18. अहंकारा:अभिमान करने वाली 

19. चित्तरूपा:वह जो सोच की अवस्था में है 

20. चिता:मृत्युशय्या 

21. चिति:चेतना 

22. सर्वमन्त्रमयी:सभी मंत्रों का ज्ञान रखने वाली 

23. सत्ता:सत-स्वरूपाजो सब से ऊपर है 

24. सत्यानंद स्वरूपिणी:अनन्त आनंद का रूप 

25. अनन्ता:जिनके स्वरूप का कहीं अंत नहीं 

26. भाविनी:सबको उत्पन्न करने वालीखूबसूरत औरत 

27. भाव्या:भावना एवं ध्यान करने योग्य 

28. भव्या:कल्याणरूपाभव्यता के साथ 

29. अभव्या:जिससे बढ़कर भव्य कुछ नहीं 

30. सदागति:हमेशा गति मेंमोक्ष दान 

31. शाम्भवी:शिवप्रियाशंभू की पत्नी 

32. देवमाता:देवगण की माता 

33. चिन्ता:चिन्ता 

34. रत्नप्रिया:गहने से प्यार करने वाली 

35. सर्वविद्या:ज्ञान का निवास 

36. दक्षकन्या:दक्ष की बेटी 

37. दक्षयज्ञविनाशिनी:दक्ष के यज्ञ को रोकने वाली 

38. अपर्णा:तपस्या के समय पत्ते को भी न खाने वाली 

39. अनेकवर्णा:अनेक रंगों वाली 

40. पाटला:लाल रंग वाली 

41. पाटलावती:गुलाब के फूल 

42. पट्टाम्बरपरीधाना:रेशमी वस्त्र पहनने वाली 

43. कलामंजीरारंजिनी:पायल को धारण करके प्रसन्न रहने वाली 

44. अमेय:जिसकी कोई सीमा नहीं 

45. विक्रमा:असीम पराक्रमी 

46. क्रूरा:दैत्यों के प्रति कठोर 

47. सुन्दरी:सुंदर रूप वाली 

48. सुरसुन्दरी:अत्यंत सुंदर 

49. वनदुर्गा:जंगलों की देवी 

50. मातंगी:मतंगा की देवी 

51. मातंगमुनिपूजिता:बाबा मतंगा द्वारा पूजनीय 

52. ब्राह्मी:भगवान ब्रह्मा की शक्ति 

53. माहेश्वरी:प्रभु शिव की शक्ति 

54. इंद्री:इंद्र की शक्ति 

55. कौमारी:किशोरी 

56. वैष्णवी:अजेय 

57. चामुण्डा:चंड और मुंड का नाश करने वाली 

58. वाराही:वराह पर सवार होने वाली 

59. लक्ष्मी:सौभाग्य की देवी 

60. पुरुषाकृति:वह जो पुरुष धारण कर ले 

61. विमिलौत्त्कार्शिनी:आनन्द प्रदान करने वाली 

62. ज्ञाना:ज्ञान से भरी हुई 

63. क्रिया:हर कार्य में होने वाली 

64. नित्या:अनन्त 

65. बुद्धिदा:ज्ञान देने वाली 

66. बहुला:विभिन्न रूपों वाली 

67. बहुलप्रेमा:सर्व प्रिय 

68. सर्ववाहनवाहना:सभी वाहन पर विराजमान होने वाली 

69. निशुम्भशुम्भहननी:शुम्भनिशुम्भ का वध करने वाली 

70. महिषासुरमर्दिनि:महिषासुर का वध करने वाली 

71. मसुकैटभहंत्री:मधु व कैटभ का नाश करने वाली 

72. चण्डमुण्ड विनाशिनि:चंड और मुंड का नाश करने वाली 

73. सर्वासुरविनाशा:सभी राक्षसों का नाश करने वाली 

74. सर्वदानवघातिनी:संहार के लिए शक्ति रखने वाली 

75. सर्वशास्त्रमयी:सभी सिद्धांतों में निपुण 

76. सत्या:सच्चाई 

77. सर्वास्त्रधारिणी:सभी हथियारों धारण करने वाली 

78. अनेकशस्त्रहस्ता:कई हथियार धारण करने वाली 

79. अनेकास्त्रधारिणी:अनेक हथियारों को धारण करने वाली 

80. कुमारी:सुंदर किशोरी 

81. एककन्या:कन्या 

82. कैशोरी:जवान लड़की 

83. युवती:नारी 

84. यति:तपस्वी 

85. अप्रौढा:जो कभी पुराना ना हो 

86. प्रौढा:जो पुराना है 

87. वृद्धमाता:शिथिल 

88. बलप्रदा:शक्ति देने वाली 

89. महोदरी:ब्रह्मांड को संभालने वाली 

90. मुक्तकेशी:खुले बाल वाली 

91. घोररूपा:एक भयंकर दृष्टिकोण वाली 

92. महाबला:अपार शक्ति वाली 

93. अग्निज्वाला:मार्मिक आग की तरह 

94. रौद्रमुखी:विध्वंसक रुद्र की तरह भयंकर चेहरा 

95. कालरात्रि:काले रंग वाली 

96. तपस्विनी:तपस्या में लगे हुए 

97. नारायणी:भगवान नारायण की विनाशकारी रूप 

98. भद्रकाली:काली का भयंकर रूप 

99. विष्णुमाया:भगवान विष्णु का जादू 

100. जलोदरी:ब्रह्मांड में निवास करने वाली 

101. शिवदूती:भगवान शिव की राजदूत 

102. करली:हिंसक 

103. अनन्ता:विनाश रहित 

104. परमेश्वरी:प्रथम देवी 

105. कात्यायनी:ऋषि कात्यायन द्वारा पूजनीय 

106. सावित्री:सूर्य की बेटी 

107. प्रत्यक्षा:वास्तविक 

108.ब्रह्मवादिनी:वर्तमान में हर जगह वास करने वाली

 

मां दुर्गा की आरती जय अम्बे गौरी

(Maa Durga Ki Aarti Jai Ambe Gauri)

जय अम्बे गौरीमैया जय श्यामा गौरी.....

जय अम्बे गौरीमैया जय श्यामा गौरी।

तुमको निशदिन ध्यावतहरि ब्रह्मा शिव री।। जय अम्बे गौरी,...

मांग सिंदूर बिराजतटीको मृगमद को।

उज्ज्वल से दोउ नैनाचंद्रबदन नीको।। जय अम्बे गौरी,...

कनक समान कलेवररक्ताम्बर राजै।

रक्तपुष्प गल मालाकंठन पर साजै।। जय अम्बे गौरी,...

केहरि वाहन राजतखड्ग खप्परधारी।

सुर-नर मुनिजन सेवततिनके दुःखहारी।। जय अम्बे गौरी,...

कानन कुण्डल शोभितनासाग्रे मोती।

कोटिक चंद्र दिवाकरराजत समज्योति।। जय अम्बे गौरी,...

शुम्भ निशुम्भ बिडारेमहिषासुर घाती।

धूम्र विलोचन नैनानिशिदिन मदमाती।। जय अम्बे गौरी,...

चण्ड-मुण्ड संहारेशौणित बीज हरे।

मधु कैटभ दोउ मारेसुर भयहीन करे।। जय अम्बे गौरी,...

ब्रह्माणीरुद्राणीतुम कमला रानी।

आगम निगम बखानीतुम शिव पटरानी।। जय अम्बे गौरी,...

चौंसठ योगिनि मंगल गावैंनृत्य करत भैरू।

बाजत ताल मृदंगाअरू बाजत डमरू।। जय अम्बे गौरी,...

तुम ही जग की मातातुम ही हो भरता।

भक्तन की दुःख हरतासुख सम्पत्ति करता।। जय अम्बे गौरी,...

भुजा चार अति शोभितखड्ग खप्परधारी।

मनवांछित फल पावतसेवत नर नारी।। जय अम्बे गौरी,...

श्री मालकेतु में राजतकोटि रतन ज्योति।। जय अम्बे गौरी,...

अम्बेजी की आरती जो कोई नर गावै।

कहत शिवानंद स्वामीसुख-सम्पत्ति पावै।। जय अम्बे गौरी,...

 

मां दुर्गा की आरती (माँ !जगजननी जय !जय!!)

(Maa Durga Ki Aarti Maa Jag janni Jay Jay)

जगजननी जय !जय!! (माँ !जगजननी जय !जय!!)

भयहारिणीभवतारिणी ,भवभामिनि जय ! जय !!

माँ जग जननी जय जय …………

तू ही सत-चित-सुखमय शुद्ध ब्रह्मरूपा ।

सत्य सनातन सुंदर पर – शिव सुर-भूपा ।। माँ जग ………….

आदि अनादि अनामय अविचल अविनाशी ।

अमल अनंत अगोचर अज आनंदराशि।। माँ जग ………….

अविकारी , अघहारी,  अकल , कलाधारी ।

कर्ता विधि , भर्ता हरि , हर सँहारकारी ।। माँ जग…………

तू विधिवधू , रमा ,तू उमा , महामाया ।

मूल प्रकृति विद्या तू , तू। जननी ,जाया ।। माँ जग ……….

राम , कृष्ण तू , सीता , व्रजरानी राधा ।

तू वाञ्छाकल्पद्रुम , हारिणी सब बाधा ।। माँ जग……….

दश विद्या , नव दुर्गा , नानाशास्त्रकरा ।

अष्टमात्रका ,योगिनी , नव नव रूप धरा ।। माँ जग ………..

तू परधामनिवासिनि , महाविलासिनी तू ।

तू ही श्मशानविहारिणि , ताण्डवलासिनि तू ।।

माँ जग जननी जय जय …………

सुर – मुनि – मोहिनी सौम्या तू शोभा  धारा ।

विवसन विकट -सरूपा , प्रलयमयी धारा ।। माँ जग ………..

तू ही स्नेह – सुधामयितू अति गरलमना ।

रत्नविभूषित तू ही , तू  ही अस्थि- तना ।।माँ जग ………….

मूलाधारनिवासिनी , इह – पर – सिद्धिप्रदे ।

कालातीता       काली , कमला तू वरदे ।। माँ जग ……….

शक्ति शक्तिधर  तू ही नित्य अभेदमयी ।

भेदप्रदर्शिनि वाणी    विमले ! वेदत्रयी ।। माँ जग ………..

हम अति दीन दुखी मा ! विपत – जाल घेरे ।

हैं कपूत अति कपटी , पर बालक तेरे ।। माँ  जग ….…..

निज स्वभाववश जननी ! दयादृष्टि कीजै ।

करुणा कर करुणामयि ! चरण – शरण दीजै ।।

माँ जग जननी जय जय , माँ जग जननी जय जय

 

 

 

 

 

 

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