नवरात्रि में मां दुर्गा सप्तशती के मंत्रों का जाप करने का खास महत्व होता है | श्री दुर्गा सप्तशती का पाठ मनोरथ सिद्धि के लिए किया जाता है, क्योंकि श्री दुर्गा सप्तशती दैत्यों के संहार की शौर्य गाथा से अधिक कर्म, भक्ति एवं ज्ञान की त्रिवेणी हैं। यह श्री मार्कण्डेय पुराण का अंश है। यह देवी महात्म्य धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष चारों पुरुषार्थों को प्रदान करने में सक्षम है। इस ग्रंथ मे ऐसी शक्ति है जिससे जीवन के सभी कष्ट दूर हो जाते है,रोग दूर होते है,भय नही होता है,सफलता मिलती है, सप्तशती में कुछ ऐसे भी स्रोत एवं मंत्र हैं, जिनके विधिवत पारायण से इच्छित मनोकामना की पूर्ति होती है।
दुर्गा सप्तशती के मंत्रों का महत्व
श्रीमार्कण्डेयपुराणान्तर्गत
देवीमाहात्म्यमें '
श्लोक ' , ' अर्धश्लोक ' और ' उवाच ' आदि को मिलाकर कुल
700 मन्त्र हैं । यह माहात्म्य दुर्गासप्तशती के नामसे प्रसिद्ध है । सप्तशती अर्थ
, धर्म , काम , मोक्ष
- चारों पुरुषार्थोंको प्रदान करनेवाली है । समस्त कामनाओं को पूरी करने वाला है।
जो पुरुष जिस भाव और जिस कामनासे श्रद्धा एवं विधिके साथ सप्तशतीका पारायण करता है
, उसे उसी भावना और कामनाके अनुसार निश्चय ही फल - सिद्धि
होती है । इस बातका अनुभव अगणित पुरुषोंको प्रत्यक्ष हो चुका है । यहाँ हम कुछ ऐसे
चुने हुए मन्त्रोंका उल्लेख करते हैं , जिनका सम्पुट देकर
विधिवत् पारायण करनेसे विभिन्न पुरुषार्थोंकी व्यक्तिगत और सामूहिक रूपसे सिद्धि
होती है । इनमें अधिकांश सप्तशती के ही मन्त्र हैं और कुछ बाहर के भी हैं ।
लेकिन
अगर आप भक्तिभाव तथा निश्वार्थ वश देवी के मंत्रों की आराधना करते है तो आपको मन
चाहा फल प्राप्त होगा। उसे उसी भावना और कामना के अनुसार निश्चय ही फल-सिद्धि होती
है। इस बात का अनुभव अंगिनित पुरुषों को प्रत्यक्ष हो चुका है। यहां हम कुछ ऐसे
चुने हुए मंत्रों का उल्लेख कर रहे हैं, जिसका सम्पुट देकर विधिवत
पारायण करने से विभिन्न पुरुषार्थों की व्यक्तिगत और सामूहिक रूप से सिद्धि होती
है। इनमें अधिकांश सप्तशती के ही मंत्र हैं और कुछ बाहर के भी हैं-
1. सामूहिक कल्याण के लिए मंत्र | Samuhik Kalyan Mantra
देव्या
यया ततमिदं जगदात्मशक्त्या निश्शेषदेवगणशक्तिसमूहमूत्त्या।
तामम्बिकामखिलदेवमहर्षिपूज्यां
भक्त्या नता: स्म विदधातु शुभानि सा नः॥
2. विश्व के अशुभ तथा भय का विनाश करने के लिये | Vishwa ke Ashubh or Bhay ka Vinash ke liye Mantra
यस्याः
प्रभावमतुलं भगवाननन्तो ब्रह्मा हरश्च न हि वक्तुमलं बलं च।
सा
चण्डिकाखिलजगत्परिपालनाय नाशाय चाशुभभयस्य मतिं करोतु॥
3. विश्व की रक्षा के लिये | Vishwa Rakshya Ke liye Mantra
या
श्रीः स्वयं सुकृतिनां भवनेष्वलक्ष्मीः पापात्मनां कृतधियां हृदयेषु बुद्धिः।
श्रद्धा
सतां कुलजनप्रभवस्य लज्जा तां त्वां नताः स्म परिपालय देवि विश्वम्॥
4. विश्व के अभ्युदय के लिये | Vishwa ke Abhyudaya ke liye Mantra
विश्वेश्वरि
त्वं परिपासि विश्वं विश्वात्मिका धारयसीति विश्वम्।
विश्वेशवन्द्या
भवती भवन्ति विश्वाश्रया ये त्वयि भक्तिनम्राः॥
5. विश्वव्यापी विपत्तियों के नाश के लिये | Vishwavyapi Vipatiyon ke liye Mantra
देवि
प्रपन्नार्तिहरे प्रसीद प्रसीद मातर्जगतोऽखिलस्य।
प्रसीद
विश्वेश्वरि पाहि विश्वं त्वमीश्वरी देवि चराचरस्य॥
6. विश्व के पाप-ताप-निवारण के लिये | Vishwa ke Paap Taap Niwaran Ke Liye Mantra
देवि
प्रसीद परिपालय नोऽरिभीतेर्नित्यं यथासुरवधादधुनैव सद्यः।
पापानि
सर्वजगतां प्रशमं नयाशु उत्पातपाकजनितांश्च महोपसर्गान्॥
7. विपत्ति-नाश के लिये | Vipatti Nash ke liye Mantra
शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे।
सर्वस्यार्तिहरे
देवि नारायणि नमोऽस्तु ते॥
8. विपत्तिनाश और शुभ की प्राप्ति के लिये | Vipatti Nash or Shubh Prapti Ke liye Mantra
करोतु
सा नः शुभहेतुरीश्वरी शुभानि भद्राण्यभिहन्तु चापदः॥
9. भय-नाश के लिये | Bhay Naash ke liye Mantra
(क)
सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते।
भयेभ्यस्त्राहि
नो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तु ते॥
(ख)
एतत्ते वदनं सौम्यं लोचनत्रयभूषितम्।
पातु
नः सर्वभीतिभ्यः कात्यायनि नमोऽस्तु ते॥
(ग)
ज्वालाकरालमत्युग्रमशेषासुरसूदनम्।
त्रिशूलं
पातु नो भीतेर्भद्रकालि नमोऽस्तु ते॥
10. पाप-नाश के लिये | Paap Naash ke liye Mantra
हिनस्ति
दैत्यतेजांसि स्वनेनापूर्य या जगत्।
सा
घण्टा पातु नो देवि पापेभ्योऽनः सुतानिव॥
11. रोग-नाश के लिये | Rog Naash ke liye Mantra
रोगानशेषानपहंसि
तुष्टा रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान्।
त्वामाश्रितानां
न विपन्नराणां त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति॥
12. महामारी-नाश के लिये | Mahamari Naash ke Liye Mantra
जयन्ती
मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा
क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते॥
13. आरोग्य और सौभाग्य की प्राप्ति के लिये | Aarogya or Saubhagya Prapti ke liye Mantra
देहि
सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखम्।
रूपं
देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥
14. सुलक्षणा पत्नी की प्राप्ति के लिये | Sulakshna Patni Prapti Ke liye Mantra
पत्नीं
मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारिणीम्।
तारिणीं
दुर्गसंसारसागरस्य कुलोद्भवाम्॥
15. बाधा-शान्ति के लिये | Badha Shanti ke liye Mantra
सर्वाबाधाप्रशमनं
त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि।
एवमेव
त्वया कार्यमस्मद्वैरिविनाशनम्॥
16. सर्वविध अभ्युदय के लिये | Sarv Vidhi Abhyudaya ke liye Mantra
ते
सम्मता जनपदेषु धनानि तेषां तेषां यशांसि न च सीदति धर्मवर्गः।
धन्यास्त
एव निभृतात्मजभृत्यदारा येषां सदाभ्युदयदा भवती प्रसन्ना॥
17. दारिद्र्यदुःखादिनाश के लिये | Dhukh Daridryan Naash ke liye Mantra
दुर्गे
स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तोः
स्वस्थैः
स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि।
दारिद्र्यदुःखभयहारिणि
का त्वदन्या
सर्वोपकारकरणाय
सदाऽऽर्द्रचित्ता॥
18. रक्षा पाने के लिये | Rakshya Pane ke liye Mantra
शूलेन
पाहि नो देवि पाहि खड्गेन चाम्बिके।
घण्टास्वनेन
नः पाहि चापज्यानिःस्वनेन च॥
19. समस्त विद्याओं की और समस्त स्त्रियों में मातृभाव की प्राप्ति के लिये | Vidhya Prapti or MatravBhav ke liye Mantra
विद्याः
समस्तास्तव देवि भेदाः स्त्रियः समस्ताः सकला जगत्सु।
त्वयैकया
पूरितमम्बयैतत् का ते स्तुतिः स्तव्यपरा परोक्तिः॥
20. सब प्रकार के कल्याण के लिये | Sab ke Kalyana ke liye Mantra
सर्वमङ्गलमङ्गल्ये
शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये
त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते॥
21. शक्ति-प्राप्ति के लिये | Shakti Prapti ke liye Mantra
सृष्टिस्थितिविनाशानां
शक्तिभूते सनातनि।
गुणाश्रये
गुणमये नारायणि नमोऽस्तु ते॥
22. प्रसन्नता की प्राप्ति के लिये | Prasannata Prapti Ke liye Mantra
प्रणतानां
प्रसीद त्वं देवि विश्वार्तिहारिणि।
त्रैलोक्यवासिनामीड्ये
लोकानां वरदा भव॥
23. विविध उपद्रवों से बचने के लिये | Updravon se Bachane ke liye Mantra
रक्षांसि
यत्रोग्रविषाश्च नागा यत्रारयो दस्युबलानि यत्र।
दावानलो
यत्र तथाब्धिमध्ये तत्र स्थिता त्वं परिपासि विश्वम्॥
24. बाधामुक्त होकर धन-पुत्रादि की प्राप्ति के लिये | BadhaMukti or Dhan or Putra Prapti ke liye Mantra
सर्वाबाधाविनिर्मुक्तो
धनधान्यसुतान्वितः।
मनुष्यो
मत्प्रसादेन भविष्यति न संशयः॥
25. भुक्ति-मुक्ति की प्राप्ति के लिये | Bhukti – Mukti prapti ke liye Mantra
विधेहि
देवि कल्याणं विधेहि परमां श्रियम्।
रुपं
देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥
26. पापनाश तथा भक्ति की प्राप्ति के लिये | PaapNaash or Bhakti Prapti ke liye Mantra
नतेभ्यः
सर्वदा भक्त्या चण्डिके दुरितापहे।
रुपं
देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥
27. स्वर्ग और मोक्ष की प्राप्ति के लिये | Swarg or Moksh Prapti ke liye Mantra
सर्वभूता
यदा देवी स्वर्गमुक्तिप्रदायिनी।
त्वं
स्तुता स्तुतये का वा भवन्तु परमोक्तयः॥
28. स्वर्ग और मुक्ति के लिये | Swarg or Mukti ke liye Mantra
सर्वस्य
बुद्धिरुपेण जनस्य हृदि संस्थिते।
स्वर्गापवर्गदे
देवि नारायणि नमोऽस्तु ते॥
29. मोक्ष की प्राप्ति के लिये | Moksh Prapti ke liye Mantra
त्वं
वैष्णवी शक्तिरनन्तवीर्या
विश्वस्य
बीजं परमासि माया।
सम्मोहितं
देवि समस्तमेतत्
त्वं
वै प्रसन्ना भुवि मुक्तिहेतुः॥
30. स्वप्न में सिद्धि-असिद्धि जानने के लिये | Swapana me Sidhi – Asidhi janane ke liye Mantra
दुर्गे
देवि नमस्तुभ्यं सर्वकामार्थसाधिके।
मम
सिद्धिमसिद्धिं वा स्वप्ने सर्वं प्रदर्शय॥
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