दीपावली 2024 शुभ मुहूर्त
हिंदू
धर्म में दिवाली का बहुत अधिक महत्व होता है। दिवाली के पावन पर्व की शुरुआत
धनतेरस से हो जाती है। धनतेरस से भैय्या दूज तक दिवाली की धूम रहती है। कार्तिक
मास की अमावस्या के दिन महालक्ष्मी पूजा होती है। इस दिन विधि विधान से भगवान गणेश
और माता लक्ष्मी की पूजा अर्चना की जाती है। माता लक्ष्मी को धन की देवी कहा जाता
है। मां लक्ष्मी की कृपा से व्यक्ति के सभी दुख दर्द दूर हो जाते हैं और जीवन
सुखमय हो जाता है। आइए जानते हैं महालक्ष्मी पूजा डेट, शुभ
मुहूर्त
दिनांक |
दीपावली के दिन |
29 अक्तूबर |
धन तेरस |
30 अक्तूबर |
नरक चौदस |
31 अक्तूबर |
दीपावली |
02 नवंबर |
गोवर्धन पूजा |
03 नवंबर |
भाई दूज |
दिवाली 2024 शुभ मुहूर्त:
दिवाली 2024 लक्ष्मी पूजन
शुभ मूहूर्त (Diwali 2024 Laxmi Puja Muhurta)
दिवाली पूजन का शुभ मुहूर्त- 31 अक्तूबर को शाम 6 बजकर 27 मिनट से रात लेकर 8 बजकर 32 बजे तक।
दिवाली 2024 लक्ष्मी पूजन मुहूर्त:
दिवाली पूजन का निशिता मुहूर्त- रात 11 बजकर 39 मिनट से देर रात तक 12 बजकर 31 मिनट तक।
प्रदोष व वृषभ काल में करें दिवाली पूजन:
प्रदोष काल-17: 35 से 20:11 तक
वृषभ काल-18: 21से 20:17 तक
दिवाली का पर्व पांच दिवसीय पर्व होता है, जोकि
बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है। इस दौरान मां लक्ष्मी के साथसाथ भगवान गणेश, कुबेर, धनवंतरि, यमराज, गोवर्धन
आदि कई देवीदेवताओं की पूजा की जाती है। तथा सभी घरों में अनेक प्रकार के पकवान और
मिष्ठान बनाए जाते हैं। घरों को दुल्हन की तरह सजाया जाता है। तथा मिट्टी के दीये
जलाकर घरों को रोशन किया जाता है।
दीपावली के चार शुभ मुहूर्त
वृश्चिक लग्न दिवाली
मुहूर्त–वृश्चिक लग्न में दिवाली लक्ष्मी पूजा सुबह के समय की जाती है | वृश्चिक लग्न के अंतर्गत मंदिर, हॉस्पिटल, होटल, स्कूल
व कॉलेजों में पूजा की जाती है | अधिकांश राजनैतिक, टी.वी.
फ़िल्मी कलाकार वृश्चिक लग्न में ही पूजा करते है |
कुंभ लग्न दिवाली
मुहूर्त–कुंभ लग्न में दीपावली लक्ष्मी पूजा दोपहर के समय में की जाती है | कुंभ लग्न में वे लोग पूजा करते है जो बीमार रहते है जिन पर शनि की
दशा ख़राब चल रही है और व्यापर में हानी हो रही है | वे लोग कुंभ लग्न में लक्ष्मी पूजन करते है |
वृषभ लग्न दिवाली
मुहूर्त–वृषभ लग्न में दिवाली लक्ष्मी पूजन शाम के समय की जाती है | शास्त्रों व पुरानो के अनुसार लक्ष्मी पूजन का यहाँ समय बेहद शुभ
माना जाता है |
सिहं लग्न दिवाली
मुहूर्त–सिहं लग्न में दिवाली लक्ष्मी पूजन मध्य रात्रि में किया जाता है | मध्य रात्रि में निशीथ काल संतो व तांत्रिको द्वारा देवी लक्ष्मी का
पूजन किया जाता है |
दिवाली पूजा
हेतु पूजन सामग्री
दिवाली पूजा के लिए आवश्यक सामग्री की
एक लंबी सूची होती है, जो
आमतौर पर घर पर ही मिल जाती है। यह सामग्री निम्नलिखित है:
- लक्ष्मी, सरस्वती, और गणेश जी की चित्र या मूर्ति
- कमल और गुलाब के फूल
- पान का पत्ता,
केसर
- लाल कपड़ा,
रोली, कुमकुम, चावल
- पान, सुपारी, लौंग, इलायची
- धूप, कपूर, अगरबत्तियाँ
- मिट्टी और तांबे के दीपक,
रुई,
कलावा (मौलि)
- नारियल, शहद, दही, गंगाजल
- गुड़, धनिया, फल, फूल, जौ, गेहूँ, दूर्वा, चंदन
- सिंदूर, घृत, पंचामृत, दूध, मेवे
- खील, बताशे, यज्ञोपवीत (जनेऊ)
- श्वेत वस्त्र,
इत्र, चौकी, कलश, कमल
गट्टे की माला
- शंख, आसन, थाली, चांदी का सिक्का
- देवताओं के प्रसाद हेतु मिष्ठान्न (बिना वर्क का)
मां लक्ष्मी
को प्रसन्न करने के उपाय
1.
स्वच्छता का ध्यान: मां लक्ष्मी को
स्वच्छता अत्यंत प्रिय है। इसलिए, दिवाली से पहले घर की अच्छी तरह सफाई करें।
2.
क्रोध न करें: मां लक्ष्मी उन पर
प्रसन्न रहती हैं जो शांत स्वभाव के होते हैं। इसलिए क्रोध से बचें और सभी से
प्रेम से बात करें।
3.
गणेश पूजा: किसी भी पूजा से पहले
भगवान गणेश की पूजा अवश्य करें। यह शुभता को बढ़ाता है।
4.
सही समय का चयन: लक्ष्मी पूजन के लिए
प्रदोष काल और निशीथ काल का चयन करना उत्तम माना जाता है।
मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए इन बातों का रखें ध्यान
मां लक्ष्मी को साफ सफाई पसंद होती है। दिवाली से पहले घर की अच्छी
तरह से साफ सफाई कर लें। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मां लक्ष्मी का वास वहीं
होता है जहां पर स्वच्छता का ध्यान रखा जाता है।
मां लक्ष्मी उन लोगों पर प्रसन्न रहती हैं जो क्रोध नहीं करते हैं और
सभी से प्रेम से बात करते हैं। मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने के लिए क्रोध न
करें।
किसी भी पूजा से पहले भगवान गणेश की पूजा की जाती है। इस बात का
विशेष ध्यान रखें। महालक्ष्मी के पावन दिन माता लक्ष्मी और भगवान गणेश की विधि
विधान से पूजा करें।
शस्त्रों में माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु की प्रसन्नता के लिए
दीपावली की पूजा के लिए कुछ नियम बताए गए हैं | इन नियमों में गृहस्थों
के लिए प्रदोष काल में संध्या के समय स्थिर लग्न में पूजन करना उत्तम माना गया है
इससे सुख समृद्धि की वृद्धि होती है | जबकि तंत्र विद्या से
माता लक्ष्मी की पूजा करने वालों के लिए मध्य रात्रि का समय उत्तम माना गया है
क्योकि मध्य रात्रि में निशीथ काल में देवी लक्ष्मी की पूजा सभी प्रकार की कामना
पूर्ण करने वाली मानी जाती है |
दीपावली पूजा विधि एवं शुभ मुहूर्त
हर वर्ष भारतवर्ष में दिवाली का त्यौहार बड़े ही धूमधाम से मनाया
जाता है. प्रतिवर्ष यह कार्तिक माह की अमावस्या को मनाई जाती है. रावण से दस दिन
के युद्ध के बाद श्रीराम जी जब अयोध्या वापिस आते हैं तब उस दिन कार्तिक माह की
अमावस्या थी, उस दिन घरघर में दिए जलाए
गए थे तब से इस त्योहार को दीवाली के रुप में मनाया जाने लगा और समय के साथ और भी
बहुत सी बातें इस त्यौहार के साथ जुड़ती चली गई।
“ब्रह्मपुराण”
के अनुसार आधी रात तक रहने वाली अमावस्या तिथि ही महालक्ष्मी पूजन के लिए श्रेष्ठ
होती है. यदि अमावस्या आधी रात तक नहीं होती है तब प्रदोष व्यापिनी तिथि लेनी
चाहिए. लक्ष्मी पूजा व दीप दानादि के लिए प्रदोषकाल ही विशेष शुभ माने गए हैं।
दीपावली पूजन के लिए पूजा स्थल एक दिन पहले से सजाना चाहिए पूजन
सामग्री भी दिपावली की पूजा शुरू करने से पहले ही एकत्रित कर लें। इसमें अगर माँ
के पसंद को ध्यान में रख कर पूजा की जाए तो शुभत्व की वृद्धि होती है। माँ के
पसंदीदा रंग लाल, व् गुलाबी है। इसके बाद
फूलों की बात करें तो कमल और गुलाब मां लक्ष्मी के प्रिय फूल हैं। पूजा में फलों
का भी खास महत्व होता है। फलों में उन्हें श्रीफल, सीताफल, बेर, अनार
व सिंघाड़े पसंद आते हैं। आप इनमें से कोई भी फल पूजा के लिए इस्तेमाल कर सकते
हैं। अनाज रखना हो तो चावल रखें वहीं मिठाई में मां लक्ष्मी की पसंद शुद्ध केसर से
बनी मिठाई या हलवा, शीरा और नैवेद्य है।
माता के स्थान को सुगंधित करने के लिए केवड़ा, गुलाब
और चंदन के इत्र का इस्तेमाल करें।
दीये के लिए आप गाय के घी, मूंगफली या तिल्ली के तेल
का इस्तेमाल कर सकते हैं। यह मां लक्ष्मी को शीघ्र प्रसन्न करते हैं। पूजा के लिए
अहम दूसरी चीजों में गन्ना, कमल गट्टा, खड़ी
हल्दी, बिल्वपत्र, पंचामृत, गंगाजल, ऊन
का आसन, रत्न आभूषण, गाय का गोबर, सिंदूर, भोजपत्र
शामिल हैं।
चौकी सजाना
लक्ष्मी, गणेश, मिट्टी
के दो बड़े दीपक, कलश, जिस
पर नारियल रखें, वरुण, नवग्रह, षोडशमातृकाएं, कोई
प्रतीक, बहीखाता, कलम और दवात, नकदी
की संदूक, थालियां, 1, 2, 3, जल का पात्र
सबसे पहले चौकी पर लक्ष्मी व गणेश की मूर्तियां इस प्रकार रखें कि
उनका मुख पूर्व या पश्चिम में रहे। लक्ष्मीजी, गणेशजी की दाहिनी ओर
रहें। पूजा करने वाले मूर्तियों के सामने की तरफ बैठे। कलश को लक्ष्मीजी के पास
चावलों पर रखें। नारियल को लाल वस्त्र में इस प्रकार लपेटें कि नारियल का अग्रभाग
दिखाई देता रहे व इसे कलश पर रखें। यह कलश वरुण का प्रतीक है। दो बड़े दीपक रखें।
एक में घी भरें व दूसरे में तेल। एक दीपक चौकी के दाईं ओर रखें व दूसरा मूर्तियों
के चरणों में। इसके अलावा एक दीपक गणेशजी के पास रखें।
मूर्तियों वाली चौकी के सामने छोटी चौकी रखकर उस पर लाल वस्त्र
बिछाएं। कलश की ओर एक मुट्ठी चावल से लाल वस्त्र पर नवग्रह की प्रतीक नौ ढेरियां
बनाएं। गणेशजी की ओर चावल की सोलह ढेरियां बनाएं। ये सोलह मातृका की प्रतीक हैं।
नवग्रह व षोडश मातृका के बीच स्वस्तिक का चिह्न बनाएं।
इसके बीच में सुपारी रखें व चारों कोनों पर चावल की ढेरी। सबसे ऊपर
बीचों बीच ॐ लिखें। छोटी चौकी के सामने तीन थाली व जल भरकर कलश रखें। थालियों की
निम्नानुसार व्यवस्था करें
1. ग्यारह दीपक,
2. खील, बताशे, मिठाई, वस्त्र, आभूषण, चन्दन
का लेप, सिन्दूर, कुंकुम, सुपारी, पान,
3. फूल, दुर्वा, चावल, लौंग, इलायची, केसरकपूर, हल्दीचूने
का लेप, सुगंधित पदार्थ, धूप, अगरबत्ती, एक
दीपक।
इन थालियों के सामने पूजा करने वाला बैठे। आपके परिवार के सदस्य आपकी
बाईं ओर बैठें। कोई आगंतुक हो तो वह आपके या आपके परिवार के सदस्यों के पीछे बैठे।
हर साल दिवाली पूजन में नया सिक्का ले और पुराने सिक्को के साथ इख्ठा
रख कर दीपावली पर पूजन करे और पूजन के बाद सभी सिक्को को तिजोरी में रख दे।
पूजा की संक्षिप्त विधि स्वयं
करने के लिए
पवित्रीकरण : हाथ में पूजा के जलपात्र से थोड़ा सा जल ले लें और अब उसे मूर्तियों
के ऊपर छिड़कें। साथ में नीचे दिया गया पवित्रीकरण मंत्र पढ़ें। इस मंत्र और पानी को
छिड़ककर आप अपने आपको पूजा की सामग्री को और अपने आसन को भी पवित्र कर लें।
शरीर एवं पूजा सामग्री पवित्रीकरण मन्त्र
ॐ पवित्रः अपवित्रो वा सर्वावस्थांगतोऽपिवा।
यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स वाह्यभ्यन्तर शुचिः॥
पृथ्वी पवित्रीकरण विनियोग
पृथ्विति मंत्रस्य मेरुपृष्ठः ग षिः सुतलं छन्दः कूर्मोदेवता
आसने विनियोगः॥
अब पृथ्वी पर जिस जगह आपने आसन बिछाया है, उस
जगह को पवित्र कर लें और मां पृथ्वी को प्रणाम करके मंत्र बोलें
पृथ्वी पवित्रीकरण मन्त्र
ॐ पृथ्वी त्वया धृता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता।
त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु चासनम्॥
पृथिव्यै नमः आधारशक्तये नमः
अब आचमन करें
पुष्प, चम्मच या अंजुलि से एक
बूंद पानी अपने मुंह में छोड़िए और बोलिए
ॐ केशवाय नमः
और फिर एक बूंद पानी अपने मुंह में छोड़िए और बोलिए
ॐ नारायणाय नमः
फिर एक तीसरी बूंद पानी की मुंह में छोड़िए और बोलिए
ॐ वासुदेवाय नमः
इसके बाद संभव हो तो किसी किसी ब्राह्मण द्वारा विधि विधान से पूजन
करवाना अति लाभदायक रहेगा। ऐसा संभव ना हो तो सर्वप्रथम दीप प्रज्वलन कर गणेश जी
का ध्यान कर अक्षत पुष्प अर्पित करने के पश्चात दीपक का गंधाक्षत से तिलक कर निम्न
मंत्र से पुष्प अर्पण करें।
शुभम करोति कल्याणम, अरोग्यम धन संपदा,
शत्रुबुद्धि विनाशायः, दीपःज्योति नमोस्तुते !
पूजन हेतु संकल्प
इसके बाद बारी आती है संकल्प की। जिसके लिए पुष्प, फल, सुपारी, पान, चांदी
का सिक्का, नारियल (पानी वाला), मिठाई, मेवा, आदि
सभी सामग्री थोड़ीथोड़ी मात्रा में लेकर संकल्प मंत्र बोलें ऊं
विष्णुर्विष्णुर्विष्णु:, ऊं तत्सदद्य श्री
पुराणपुरुषोत्तमस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीय पराद्र्धे
श्री श्वेतवाराहकल्पे सप्तमे वैवस्वतमन्वन्तरे, अष्टाविंशतितमे कलियुगे, कलिप्रथम
चरणे जम्बुद्वीपे भरतखण्डे आर्यावर्तान्तर्गत ब्रह्मवर्तैकदेशे पुण्य (अपने
नगर/गांव का नाम लें) क्षेत्रे बौद्धावतारे वीर विक्रमादित्यनृपते : 2070, तमेऽब्दे शोभन नाम संवत्सरे दक्षिणायने/उत्तरायणे हेमंत ऋतो महामंगल्यप्रदे
मासानां मासोत्तमे कार्तिक मासे कृष्ण पक्षे अमावस तिथौ (जो वार हो) शनि वासरे
स्वाति नक्षत्रे आयुष्मान योग चतुष्पाद करणादिसत्सुशुभे योग (गोत्र का नाम लें)
गोत्रोत्पन्नोऽहं अमुकनामा (अपना नाम लें) सकलपापक्षयपूर्वकं सर्वारिष्ट
शांतिनिमित्तं सर्वमंगलकामनया– श्रुतिस्मृत्यो क्तफलप्राप्तर्थं— निमित्त महागणपति
नवग्रहप्रणव सहितं कुलदेवतानां पूजनसहितं स्थिर लक्ष्मी महालक्ष्मी देवी पूजन
निमित्तं एतत्सर्वं शुभपूजोपचारविधि सम्पादयिष्ये।
गणेश पूजन
किसी भी पूजन की शुरुआत में सर्वप्रथम श्री गणेश को पूजा जाता है।
इसलिए सबसे पहले श्री गणेश जी की पूजा करें।
इसके लिए हाथ में पुष्प लेकर गणेश जी का ध्यान करें। मंत्र पढ़े –
गजाननम्भूतगणादिसेवितं कपित्थ जम्बू
फलचारुभक्षणम्।
उमासुतं शोक विनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपंकजम्।
गणपति आवाहन:
ऊं गं गणपतये इहागच्छ इह
तिष्ठ। इतना
कहने के बाद पात्र में अक्षत छोड़ दे।
इसके पश्चात गणेश जी को पंचामृत से स्नान करवाये पंचामृत स्नान के
बाद शुद्ध जल से स्नान कराए अर्घा में जल लेकर बोलें एतानि पाद्याद्याचमनीयस्नानीयं, पुनराचमनीयम्
ऊं गं गणपतये नम:।
रक्त चंदन लगाएं:
इदम रक्त चंदनम् लेपनम् ऊं
गं गणपतये नम:, इसी प्रकार श्रीखंड चंदन
बोलकर श्रीखंड चंदन लगाएं।
इसके पश्चात सिन्दूर चढ़ाएं “इदं सिन्दूराभरणं लेपनम् ऊं गं गणपतये नम:।
दूर्वा और विल्बपत्र भी गणेश जी को अर्पित करें।
उन्हें वस्त्र पहनाएं और कहें – इदं रक्त वस्त्रं ऊं गं गणपतये
समर्पयामि।
पूजन के बाद श्री गणेश को प्रसाद अर्पित करें और बोले – इदं नानाविधि नैवेद्यानि ऊं
गं गणपतये समर्पयामि:।
मिष्ठान अर्पित करने के लिए मंत्र: इदं शर्करा घृत युक्त नैवेद्यं ऊं गं
गणपतये समर्पयामि:।
प्रसाद अर्पित करने के बाद आचमन करायें। इदं आचमनयं ऊं गं गणपतये नम:।
इसके बाद पान सुपारी चढ़ायें: इदं ताम्बूल पुगीफल समायुक्तं ऊं गं
गणपतये समर्पयामि:।
अब एक फूल लेकर गणपति पर चढ़ाएं और बोलें: एष: पुष्पान्जलि ऊं गं गणपतये नम:
इसी प्रकार अन्य देवताओं का भी पूजन करें बस जिस देवता की पूजा करनी
हो गणेश जी के स्थान पर उस देवता का नाम लें।
कलश पूजन
इसके लिए लोटे या घड़े पर मोली बांधकर कलश के ऊपर आम के पत्ते रखें।
कलश के अंदर सुपारी, दूर्वा, अक्षत
व् मुद्रा रखें। कलश के गले में मोली लपेटे। नारियल पर वस्त्र लपेट कर कलश पर रखें।
अब हाथ में अक्षत और पुष्प लेकर वरुण देव का कलश में आह्वान करें।
ओ३म् त्तत्वायामि ब्रह्मणा वन्दमानस्तदाशास्ते यजमानो हविभि:।
अहेडमानो वरुणेह बोध्युरुशंस मान आयु: प्रमोषी:।
(अस्मिन कलशे वरुणं सांगं सपरिवारं सायुध सशक्तिकमावाहयामि,
ओ३म्भूर्भुव: स्व:भो वरुण इहागच्छ इहतिष्ठ। स्थापयामि पूजयामि॥)
इसके बाद इस प्रकार श्री गणेश जी की पूजन की है उसी प्रकार वरुण देव
की भी पूजा करें। इसके बाद इंद्र और फिर कुबेर जी की पूजा करें। एवं वस्त्र सुगंध
अर्पण कर भोग लगाये इसके बाद इसी प्रकार क्रम से कलश का पूजन कर लक्ष्मी पूजन
आरम्भ करे
लक्ष्मी पूजन
सर्वप्रथम निम्न मंत्र कहते हुए माँ लक्ष्मी का ध्यान करें।
ॐ या सा पद्मासनस्था, विपुलकटितटी, पद्मदलायताक्षी।
गम्भीरावर्तनाभिः, स्तनभरनमिता, शुभ्रवस्त्रोत्तरीया।।
लक्ष्मी दिव्यैर्गजेन्द्रैः। मणिगजखचितैः, स्नापिता
हेमकुम्भैः।
नित्यं सा पद्महस्ता, मम वसतु गृहे, सर्वमांगल्ययुक्ता।।
अब माँ लक्ष्मी की प्रतिष्ठा करें
हाथ में अक्षत लेकर मंत्र
कहें –
“ॐ भूर्भुवः स्वः महालक्ष्मी, इहागच्छ इह तिष्ठ, एतानि
पाद्याद्याचमनीयस्नानीयं, पुनराचमनीयम्।”
प्रतिष्ठा के बाद स्नान कराएं और मंत्र बोलें –
ॐ मन्दाकिन्या समानीतैः, हेमाम्भोरुहवासितैः स्नानं
कुरुष्व देवेशि, सलिलं च सुगन्धिभिः।।
ॐ लक्ष्म्यै नमः।। इदं रक्त चंदनम् लेपनम् से रक्त चंदन लगाएं।
इदं सिन्दूराभरणं से सिन्दूर लगाएं।
‘ॐ मन्दारपारिजाताद्यैः, अनेकैः कुसुमैः शुभैः।
पूजयामि शिवे, भक्तया, कमलायै
नमो नमः।।
ॐ लक्ष्म्यै नमः, पुष्पाणि समर्पयामि।
इस मंत्र से पुष्प चढ़ाएं फिर माला पहनाएं।
अब लक्ष्मी देवी को इदं रक्त वस्त्र समर्पयामि कहकर लाल वस्त्र पहनाएं।
इसके बाद मा लक्ष्मी के क्रम से अंगों की पूजा करें।
माँ लक्ष्मी की अंग पूजा
बाएं हाथ में अक्षत लेकर दाएं हाथ से थोड़े थोड़े छोड़ते जाए और मंत्र
कहें –
ऊं चपलायै नम: पादौ पूजयामि
ऊं चंचलायै नम: जानूं पूजयामि,
ऊं कमलायै नम: कटि पूजयामि,
ऊं कात्यायिन्यै नम: नाभि पूजयामि,
ऊं जगन्मातरे नम: जठरं पूजयामि,
ऊं विश्ववल्लभायै नम: वक्षस्थल पूजयामि,
ऊं कमलवासिन्यै नम: भुजौ पूजयामि,
ऊं कमल पत्राक्ष्य नम: नेत्रत्रयं पूजयामि,
ऊं श्रियै नम: शिरं: पूजयामि।
अष्टसिद्धि पूजा
अंग पूजन की ही तरह हाथ में अक्षत लेकर मंतोच्चारण करते रहे। मंत्र
इस प्रकर है –
ऊं अणिम्ने नम:, ओं महिम्ने नम:, ऊं गरिम्णे
नम:, ओं लघिम्ने नम:,
ऊं प्राप्त्यै नम: ऊं प्राकाम्यै नम:, ऊं
ईशितायै नम: ओं वशितायै नम:।
अष्टलक्ष्मी पूजन
अंग पूजन एवं अष्टसिद्धि पूजा की ही तरह हाथ में अक्षत लेकर
मंत्रोच्चारण करें।
ऊं आद्ये लक्ष्म्यै नम:, ओं विद्यालक्ष्म्यै नम:, ऊं
सौभाग्य लक्ष्म्यै नम:, ओं अमृत लक्ष्म्यै नम:,
ऊं लक्ष्म्यै नम:, ऊं सत्य लक्ष्म्यै नम:, ऊं
भोगलक्ष्म्यै नम:, ऊं योग लक्ष्म्यै नम:
नैवैद्य अर्पण
पूजन के बाद देवी को
“इदं नानाविधि नैवेद्यानि ऊं महालक्ष्मियै समर्पयामि”
मंत्र से नैवैद्य अर्पित करें।
मिष्टान अर्पित करने के लिए मंत्र:
“इदं शर्करा घृत समायुक्तं नैवेद्यं ऊं महालक्ष्मियै समर्पयामि” बालें।
प्रसाद अर्पित करने के बाद आचमन करायें। इदं आचमनयं ऊं महालक्ष्मियै नम:।
इसके बाद पान सुपारी चढ़ायें: इदं ताम्बूल पुगीफल समायुक्तं ऊं
महालक्ष्मियै समर्पयामि।
अब एक फूल लेकर लक्ष्मी देवी पर चढ़ाएं और बोलें: एष: पुष्पान्जलि ऊं
महालक्ष्मियै नम:।
माँ को यथा सामर्थ वस्त्र, आभूषण, नैवेद्य
अर्पण कर दक्षिणा चढ़ाए दूध, दही, शहद, देसी
घी और गंगाजल मिलकर चरणामृत बनाये और गणेश लक्ष्मी जी के सामने रख दे। इसके बाद 5 तरह के फल, मिठाई खीलपताशे, चीनी
के खिलोने लक्ष्मी माता और गणेश जी को चढ़ाये और प्राथना करे की वो हमेशा हमारे घरो
में विराजमान रहे। इनके बाद एक थाली में विषम संख्या में दीपक 11, 21 अथवा यथा सामर्थ दीप रख कर इनको भी कुंकुम अक्षत से पूजन करे इसके
बाद माँ को श्री सूक्त अथवा ललिता सहस्त्रनाम का पाठ सुनाये पाठ के बाद माँ से
क्षमा याचना कर माँ लक्ष्मी जी की आरती कर बड़ेबुजुर्गों का आशीर्वाद लेने के बाद
थाली के दीपो को घर में सब जगह रखे। लक्ष्मीगणेश जी का पूजन करने के बाद, सभी
को जो पूजा में शामिल हो, उन्हें खील, पताशे, चावल
दे।
सब फिर मिल कर प्राथना करे की माँ लक्ष्मी हमने भोले भाव से आपका
पूजन किया है! उसे स्वीकार करे और गणेशा, माँ सरस्वती और सभी
देवताओं सहित हमारे घरो में निवास करे। प्रार्थना करने के बाद जो सामान अपने हाथ
में लिया था वो मिटटी के लक्ष्मी गणेश, हटड़ी और जो लक्ष्मी गणेश
जी की फोटो लगायी थी उस पर चढ़ा दे।
लक्ष्मी पूजन के बाद आप अपनी तिजोरी की पूजा भी करे रोली को देसी घी
में घोल कर स्वस्तिक बनाये और धुप दीप दिखा करे मिठाई का भोग लगाए।
लक्ष्मी माता और सभी भगवानो को आपने अपने घर में आमंत्रित किया है
अगर हो सके तो पूजन के बाद शुद्ध बिना लहसुनप्याज़ का भोजन बना कर गणेशलक्ष्मी जी
सहित सबको भोग लगाए। दीपावली पूजन के बाद आप मंदिर, गुरद्वारे
और चौराहे में भी दीपक और मोमबतियां जलाएं।
रात को सोने से पहले पूजा स्थल पर मिटटी का चार मुह वाला दिया सरसो
के तेल से भर कर जगा दे और उसमे इतना तेल हो की वो सुबह तक जग सके
माँ लक्ष्मी जी की आरती
ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता
तुम को निस दिन सेवत, मैयाजी को निस दिन सेवत
हर विष्णु विधाता
ॐ जय लक्ष्मी माता ...
उमा रमा ब्रह्माणी, तुम ही जग माता
ओ मैया तुम ही जग माता .
सूर्य चन्द्र माँ ध्यावत, नारद ऋषि गाता
ॐ जय लक्ष्मी माता ..
दुर्गा रूप निरन्जनि, सुख सम्पति दाता
ओ मैया सुख सम्पति दाता .
जो कोई तुम को ध्यावत, ऋद्धि सिद्धि धन पाता
ॐ जय लक्ष्मी माता ..
तुम पाताल निवासिनि, तुम ही शुभ दाता
ओ मैया तुम ही शुभ दाता .
कर्म प्रभाव प्रकाशिनि, भव निधि की दाता
ॐ जय लक्ष्मी माता ..
जिस घर तुम रहती तहँ सब सद्गुण आता
ओ मैया सब सद्गुण आता .
सब संभव हो जाता, मन नहीं घबराता
ॐ जय लक्ष्मी माता ..
तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न कोई पाता
ओ मैया वस्त्र न कोई पाता .
ख़ान पान का वैभव, सब तुम से आता
ॐ जय लक्ष्मी माता ..
शुभ गुण मंदिर सुंदर, क्षीरोदधि जाता
ओ मैया क्षीरोदधि जाता .
रत्न चतुर्दश तुम बिन, कोई नहीं पाता
ॐ जय लक्ष्मी माता ..
महा लक्ष्मीजी की आरती, जो कोई जन गाता
ओ मैया जो कोई जन गाता .
उर आनंद समाता, पाप उतर जाता
ॐ जय लक्ष्मी माता ..
महानिशीथ काल
महानिशीथ काल मे धन लक्ष्मी का आहवाहन
एवं पूजन, गल्ले
की पूजा तथा हवन इत्यादि कार्य सम्पूर्ण कर लेना चाहिए. श्री महालक्ष्मी पूजन, महाकाली पूजन, लेखनी, कुबेर पूजन, अन्य वैदिक
तांत्रिक मंन्त्रों का जपानुष्ठान किया जाता है।
लक्ष्मी साधना (लक्ष्मी प्राप्ति के विभिन्न विभिन्न बीज
मंत्र साधना)
ऐसे तो लक्ष्मी साधना अनंत है किसी भी
साधक को एक जानकार गुरु से लक्ष्मी साधना को समझ कर उसका दीक्षा लेकर साधना करना
चाहिए लेकिन कभीकभी जानकार गुरु के अभाव में व्यक्ति स्वयं ही साधना करने का
निर्णय लेता है, ऐसे
तो लक्ष्मी अलगअलग मंत्र है लेकिन सभी मंत्रों का ज्यादा संख्या में जाप करना संभव
नहीं होता इसीलिए व्यक्ति को बीज मंत्रों का चुनाव करना चाहिए और उन बीज मंत्रों
को 11
लाख की संख्या में जाप करना चाहिए
हर व्यक्ति एक प्रकार का काम नहीं
करता है और अलगअलग काम करने के कारण लक्ष्मी भी उसे अलग तरीके से प्राप्त होती है
इसीलिए सही बीज मंत्र का चयन करना आवश्यक है ताकि उसे जिस तरीके का काम करता है या
जिस प्रकार की लक्ष्मी उसे चाहिए वैसे ही उसे प्राप्त हो
श्रीं देवी लक्ष्मी का यह सर्वाधिक प्रचलित बीज मंत्र
है और हर व्यक्ति चाहे वह गृहस्थ हो या सन्यासी सभी लोगों ने इस बीज मंत्र को
अवश्य साधा है यह बीज मंत्र आपको लक्ष्मी प्रदान करने में सहायक है किसी भी प्रकार
से चाहे गलत तरीके से ही सही आपके पास पैसे ला कर देती है, इस बीज मंत्र
को आप पश्चिम दिशा की ओर मुंह करके सटीक माला से लाल वस्त्र लाल आसन का उपयोग करके
11
लाख का जाप कर सकते हैं
ह्रीं
यह बीज मंत्र देवी महालक्ष्मी का बीज मंत्र है ऐसे देखा जाता है कि बहुत
सारे लोगों के पास पैसे तो होते हैं लेकिन वह उसे भोग नहीं कर सकते अगर किसी
व्यक्ति को लक्ष्मी के साथ ऐश्वर्या और अपार धनसंपत्ति चाहिए जिसका स्वयं वह भोग
कर सके तो उसे इस बीज मंत्र का जाप करना चाहिए इस बीज मंत्र को माया बीच भी कहा
जाता है देवी महालक्ष्मी हम सबको माया में रखती है अगर हम कुछ खरीदते हैं तो सदैव
भी हम उसे अपना मानने लगते हैं और यह मेरा है यह मेरा है करते रहते हैं, इस बीज मंत्र
को आप उत्तर दिशा की ओर मुंह करके लाल मूंगे का माला या फिर लाल चंदन की माला से
लाल वस्त्र लाल आसन का उपयोग करके 11 लाख का जाप कर सकते हैं
स्त्रीं
यह बीज मंत्र देवी महाविद्या तारा का है इस बीज मंत्र का साधना खासकर
व्यापारी वर्ग के लोगों को करना चाहिए उन व्यापारियों को करना चाहिए जो व्यापार से
संबंधित अलगअलग अवसर प्राप्त करना चाहते हैं जो एक से ज्यादा व्यापार करना चाहते
हैं क्यों यह चाहते हैं कि उन्हें ऑटो दिखाओ से व्यापार के अवसर प्राप्त हो देवी
तारा अपने आप में अष्ट लक्ष्मी है और व्यापारी वर्ग के लिए यह बीज मंत्र का साधना
सर्वश्रेष्ठ, नौकरी
पैसे वाले लोग अगर एक बीज मंत्र का साधना करेंगे तो वह ज्यादा इसका लाभ नहीं उठा
पाएंगे क्योंकि उनके धन आगमन का सिर्फ एक ही रास्ता होगा और वह है नौकरी में मिलने
वाला तनखा, इस
बीज मंत्र को आप उत्तर दिशा की ओर मुंह करके लाल मूंगे का माला या लाल चंदन की
माला से लाल वस्त्र लाल आस्थान का उपयोग करके 11 लाख का जाप कर सकते हैं
त्रीं यह बीज मंत्र देवी कामाख्या का है इस बीज मंत्र
का साधना व्यक्ति को मन की इच्छा से यह कामना से लक्ष्मी प्रदान करने में सक्षम है
जैसे कि आपकी इच्छा हुआ कि अब मुझे विदेश कहीं जाना है और आपके पास ऐसा ना हो तो
आप इस बीज मंत्र कागज साधना करते हैं और प्रयोग करते हैं तो कहीं ना कहीं से आपके
पास चाहे कर दे के रूप में हो या कमाई के रूप में हो आपके पास पैसे आते हैं और
आपकी इच्छा या कामना पूरा होता है देवी कामाख्या कामना पूर्ति करने वाली सबसे
प्रधान देवी है और इन्हें कामकला काली भी कहा जाता है अष्ट काली में कामकला काली
का स्थान है, इस
बीज मंत्र को आप पूर्व दिशा की ओर मुंह करके लाल मंगे का माल आया लाल चंदन का माला
से लाल वस्त्र लाल आसन का उपयोग करके 11 लाख का जाप कर सकते हैं
ऐं
यह देवी सरस्वती का बीज मंत्र है और इसे बाग बीच भी कहा जाता है आप में से
बहुत सारे ऐसे लोग होंगे जो सेल्स में है मार्केटिंग में है कस्टमर केयर में हैं
कस्टमर सपोर्ट में है जहां पर आप के बोलने से व्यक्ति प्रभावित होकर आपका सामान
लेते हैं या आपकी सेवाएं लेते हैं यहां पर पैसा तभी आता है जब आपकी वाणी में
आकर्षण हो और आप जैसे लोगों को यह बीज मंत्र का साधना करना चाहिए इससे आपकी वाणी
में आकर्षण की वृद्धि होगी और आपका व्यापार मैं वृद्धि होगा जिसके कारण आपको
लक्ष्मी प्राप्ति होगी,
इस बीज मंत्र को आप पूर्व दिशा की ओर मुंह करके स्पटीक माला से या
तुलसी की माला से सफेद वस्त्र सफेद आसन का उपयोग करके 11 लाख का जाप कर
सकते हैं
क्लीं
यह काम भी है कृष्ण कामदेव और कालरात्रि इन तीनों का यह बीज मंत्र है इस
बीज मंत्र का जाप उन व्यक्तियों को करना चाहिए जिनके व्यक्तित्व पर उन्हें पैसा
मिलता है जैसे कि कोई अभिनेता कहीं पर जाता है या ऐसा व्यक्ति जिसे लोग बुलाते हैं
भाषण देने के लिए उन्हें यह बीज मंत्र की साधना करनी चाहिए अगर आप यह भी इस मंत्र
की साधना करेंगे तो आपके
व्यक्तित्व से आप लोगों को प्रभावित
कर सकते हैं लोग ज्यादा से ज्यादा आपसे जुड़ना चाहेंगे जिससे आपको और ज्यादा धन की
प्राप्ति होगी इस बीज मंत्र को मल्टी लेवल मार्केटिंग वाले लोग के बहुत उपयोगी
होगा, इस
बीज मंत्र को आप दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके फिरोजा या फिर नीले हकीक की माला से
नीले वस्त्र नीले आसन का उपयोग करके 11 लाख का जाप कर सकते हैं
हूं यह बीज मंत्र देवी चंडी का चामुंडा का
छिन्नमस्ता का बीज मंत्र है इस बीज मंत्र का साधना करने वाला व्यक्ति तीनों लोगों
को वश में कर सकता है यह वशीकरण का प्रधान बीज मंत्र है और तंत्र में यह कहा गया
है अगर कोई व्यक्ति हूं बीज मंत्र कि अगर सिद्धि कर ले तो किसी को भी मोहित करने
वाला सिद्धि उसके पास आ जाता है, क्योंकि यह उग्र बीज मंत्र है और तमोगुण प्रधान है इसकी साधना करते
वक्त बहुत ज्यादा उसन्न का अनुभव होना क्रोध का आना स्वाभाविक है, व्यक्ति को
चाहिए इससे भयभीत होकर अपनी साधना बीच में ना छोड़े, इस बीज मंत्र को आप उत्तर या दक्षिण
दिशा की ओर मुंह करके लाल चंदन का माला या लाल हकीक का माला लाल वस्त्र लाल आसन का
उपयोग करके 11
लाख का जाप कर सकते हैं|
यह थे प्रधान बीज मंत्र जो आपको लक्ष्मी प्रदान करवा सकते हैं|
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