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सोमवार, 31 दिसंबर 2018

लोग हमारे विषय में क्या कहते है ? Shabar Mantra Review by users

हमने इस सप्ताह को हमारी ईबुक्स खरीदने वाले सभी मित्रो को एक सर्वे फॉर्म भेजा था जिसमे से अभी केवल कुछ ही लोगो का जवाब आया है जिनको की हम आपके साथ साँझा कर रहे है ताकि आप सभी को अनुमान हो सके की हमारी ईबुक्स कैसी है और इनसे क्या फायदा लोगो को पहुंचा है |
इसके लिए एक सभी लोगो के जवाब एक साथ एक फोटो (स्क्रीनशॉट) के रूप में और अलग अलग  फोटो (स्क्रीनशॉट) के रूप में आपके साथ साँझा का रहे है ताकि आप भी आंकलन कर सके |
आज तक आपने कई तन्त्र मन्त्र की पुस्तकें देखि और पढ़ी होगी लेकिन जेसा की मैं आपको EBOOK मैं मत्रों का संग्रह दे रहा हूँ वेसी आपने ना तो देखि होगी और ना ही सुनी होगी | ऐसे ऐसे मन्त्र, तन्त्र, यन्त्र प्रयोग इस पुस्तक में दियें गये है जोकि कई हजारों रुपये खर्च करने पर भी सिद्ध महापुरुष / भगत लोग किसी को नही बताते | ये मन्त्र ऐसे है जोकि छोटी से छोटी साधना की पूर्ति करने व जप करने से ही मन्त्र के वीर / सिद्ध आत्मा अपना प्रभाव तुरंत ही दिखाने लगते है |


शाबर मंत्र अत्यंत ही अटपटे शब्दों की रचना होती है | जिनके बार बार आवृति से यह अत्यंत ही तीक्ष्ण प्रभावशाली बनकर तनाव चिंता से मुक्ति दिलाते ही है | साथ में मानवी इच्छा को पूर्ण करते है | इन मंत्रो के मूलभूत स्रष्टा गुरु गोरखनाथ जी है | जिन्होंने इन मंत्रो की रचना कर अध्यात्म के क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन लाया था | वस्तुतः वैदिक मन्त्र कीलित होते है जिनको की जनसाधारण द्वारा सिद्ध करना बहुत ही मुस्किल कार्य है | तथा इनको बिना गुरु के ना ही समझा जा सकता है और ना ही इन्हें सिद्ध करने का अधिकारी हो सकता है | मन्त्र उच्चारण भी बहुत कठिन होते है जिनको की बिना व्याकरण ज्ञान के ठीक ढंग से उच्चारित नहीं किया जा सकता है | तब जाकर शिव जी, गुरु गोरखनाथ, नाथ पंथी, सिद्ध साधको आदि ने लोक कल्याण के लिए इन शाबर मंत्रो का निर्माण किया जिनका कोई भी व्यक्ति किसी भी धर्म, जाति, उम्र, स्त्री, पुरुष कोई भी इनका प्रयोग बड़ी ही आसानी से खुद ही कर सकता है |
शाबर मंत्रो की सिद्धी के लिए वैदिक तांत्रिक मन्त्रो जैसे कड़े एंव समस्या पूर्ण विधान नहीं होते है |इनके साथ समय, स्थान, पात्र, सामग्री, जप संख्या, हवन आदि की ज्यादा जरूरत नहीं पड़ती | कहीं भी, कभी भी, किसी भी स्थिति में कोई भी इन शाबर मंत्रो का प्रयोग कर सकता है |



शाबर मन्त्रो की उत्पत्ति
    ‘साबरया शबरशब्द का पर्यायवाची अर्थ ग्रामीण, अपरिष्कृत, असभ्य आदि होता है | ‘साबर-तन्त्र’ – तन्त्र की ग्राम्य (ग्रामीण) शाखा है | इसके प्रवर्तक भगवान् शंकर स्वयं प्रत्यक्षतया नहीं है, किन्तु जिन सिद्ध-साधको ने इसका आविष्कार किया, वे जरुर परम-शिव-भक्त अवश्य थे | गुरु गोरखनाथ तथा गुरु मछिन्दर नाथ साबर-मन्त्रके जनक माने जाते हैं | तथा गोरखनाथ जी ही मुख्यतः शाबर मन्त्रो के प्रचारक माने जाते है | वे   अपने तपोबल से वे भगवान् शंकर के समान पूज्य माने जाते हैं | अपनी साधना के कारण वे मन्त्र-प्रवर्तक ऋषियों के समान विश्वास और श्रद्धा के पात्र हैं | ‘सिद्धऔर नाथसम्प्रदायों ने मिलकर परम्परागत मन्त्रों के मूल सिद्धान्तों को लेकर आम बोल-चाल की भाषा को अटपटे स्वरूप देकर उन शब्दों को शाबर मन्त्रो का दर्जा दिया गया |
साबर’-मन्त्रों में दुहाई’, ‘गाली’, ‘आनऔर शाप’, ‘श्रद्धाऔर धमकीइन सबका  प्रयोग किया जाता है | साधक अपने शाबर मन्त्र के देव के समक्ष बालकया याचकबनकर देवता को सब कुछ कहता है और उसी से सब कुछ कराना चाहता है | जिस प्रकार एक बालक अपने माता पिता से अपनी इच्छित वस्तु प्राप्त करने के लिए कुछ भी अनाप-शनाप कह देता है | और तो और आश्चर्य यह है कि उस साधक की यह दुहाई’, ‘गाली’, ‘आनऔर शाप’, ‘श्रद्धाऔर धमकीभी काम करती है | ‘दुहाई’, ‘आनका अर्थ है सौगन्ध, कसम देकर कार्य करवाने को बाध्य करना |

तांत्रिक व् शास्त्रीय प्रयोगों में इस प्रकार की दुहाई’, ‘गाली’, ‘आनऔर शाप’, ‘श्रद्धाऔर धमकीआदि नहीं दी जाती है | ‘साबर’-मन्त्रों की रचना में हमे संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, और कई क्षेत्रीय भाषाओं का समायोजन मिलता है तो कुछ मन्त्रों में संस्कृत और मलयालय, कन्नड़, गुजराती, बंगाली या तमिल भाषाओं का मिश्रित रुप मिलेगा, तो किन्हीं में शुद्ध क्षेत्रीय भाषाओं की ग्राम्य-शैली भी मिल जाती है |

हालाँकि हिन्दुस्तान में कई तरह की भाषाओ का प्रयोग व्यवहार में लाया जाता है फिर भी इसके बड़े भू-भाग में बोली जाने वाली भाषा हिन्दीही है | अतः अधिकांश साबरमन्त्र हिन्दी में ही देखने-सुनने को मिलते हैं | इस मन्त्रों में शास्त्रीय मन्त्रों के समान षड्न्गन्यास’ – ऋषि, छन्द, बीज, शक्ति, कीलक और देवता आदि की प्रक्रिया अलग से नहीं रहती, अपितु इन अंगों का वर्णन मन्त्र में ही सम,समाहित रहता है | इसलिए प्रत्येक साबरमन्त्र अपने आप में पूर्ण होते है | उपदेष्टा ऋषिके रुप में गोरखनाथ, लोना चमारिन, योगिनी, मरही माता, असावरी देवी, सुलेमान जैसे सिद्ध-पुरुष हैं | कई मन्त्रों में इनके नाम लिए जाते हैं और कईयों में केवल गुरु के नाम से ही काम चल जाता है |
पल्लव’ (शास्त्रीय मन्त्रो के अन्त में लगाए जाने वाले शब्द आदि) के स्थान पर 
शब्द साँचा पिण्ड काचा, फुरो मन्त्र ईश्वरी वाचा
वाक्य ही सामान्यतः रहता है | इस वाक्य का अर्थ है-

शब्द (अक्षर/ध्वनि) ही सत्य है, नष्ट नहीं होती |
यह देह (शरीर) अनित्य (हमेशा न रहने वाला) है, बहुत कच्चा है |
हे मन्त्र | तुम ईश्वर की वाणी हो (ईश्वर के वचन से प्रकट होवो)


इसी प्रकार
मेरी भक्ति गुरु की शक्ति
फुरो मन्त्र ईश्वरी वाचा
और उपरोक्त वाक्य का अर्थ है
मेरी भक्ति (विश्वास/ श्रद्धा) की ताकत से |
मेरे गुरु की शक्ति से |
हे मन्त्र | तुम ईश्वर की वाणी होकर चलो (ईश्वर के वचन से प्रकट होवो)

या इससे मिलते-जुलते दूसरे शब्द आदि शाबर मन्त्रों के पल्लवहोते है |








शाबर मन्त्र | हमारे बारे में लोगो की राय, विचार

शाबर मन्त्र | हमारे बारे में लोगो की राय, विचार

शाबर मन्त्र | हमारे बारे में लोगो की राय, विचार

शाबर मन्त्र | हमारे बारे में लोगो की राय, विचार

शाबर मन्त्र | हमारे बारे में लोगो की राय, विचार

शाबर मन्त्र | हमारे बारे में लोगो की राय, विचार

शाबर मन्त्र | हमारे बारे में लोगो की राय, विचार

शाबर मन्त्र | हमारे बारे में लोगो की राय, विचार

शाबर मन्त्र | हमारे बारे में लोगो की राय, विचार

शाबर मन्त्र | हमारे बारे में लोगो की राय, विचार

विशेष: यहाँ हमने हमारे ईबुक्स खरीददारो की ईमेल-पता छिपाया है |

रविवार, 2 दिसंबर 2018

शाबर मन्त्र संग्रह भाग-15 श्री कामाक्षा देवी मन्त्र तन्त्र साधना | KAMAKSHA DEVI MANTRA TANTRA SADHNA

शाबर मन्त्र संग्रह भाग-15 श्री कामाक्षा देवी मन्त्र तन्त्र साधना


शाबर मन्त्र संग्रह भाग-15 श्री कामाक्षा देवी मन्त्र तन्त्र साधना

योनि मात्र शरीराय कुंजवासिनि कामदा।
रजोस्वला महातेजा कामाक्षी ध्येताम सदा॥
इस बारे में `राजराजेश्वरी कामाख्या रहस्यएवं `दस महाविद्याओंनामक ग्रंथ के रचयिता एवं मां कामाख्या के अनन्य भक्त ज्योतिषी एवं वास्तु विशेषज्ञ डॉ॰ दिवाकर शर्मा ने बताया कि अम्बूवाची योग पर्व के दौरान मां भगवती के गर्भगृह के कपाट स्वत ही बंद हो जाते हैं और उनका दर्शन भी निषेध हो जाता है। इस पर्व की महत्ता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पूरे विश्व से इस पर्व में तंत्र-मंत्र-यंत्र साधना हेतु सभी प्रकार की सिद्धियाँ एवं मंत्रों के पुरश्चरण हेतु उच्च कोटियों के तांत्रिकों-मांत्रिकोंअघोरियों का बड़ा जमघट लगा रहता है। तीन दिनों के उपरांत मां भगवती की रजस्वला समाप्ति पर उनकी विशेष पूजा एवं साधना की जाती है।

पौराणिक सत्य है कि अम्बूवाची पर्व के दौरान माँ भगवती रजस्वला होती हैं और मां भगवती की गर्भ गृह स्थित महामुद्रा (योनि-तीर्थ) से निरंतर तीन दिनों तक जल-प्रवाह के स्थान से रक्त प्रवाहित होता है। यह अपने आप मेंइस कलिकाल में एक अद्भुत आश्चर्य का विलक्षण नजारा है।

कामाख्या मंदिर असम की राजधानी दिसपुर के पास गुवाहाटी से 8 किलोमीटर दूर कामाख्या में है। कामाख्या से भी 10 किलोमीटर दूर नीलाचल पव॑त पर स्थित है। यह मंदिर शक्ति की देवी सती का मंदिर है। यह मंदिर एक पहाड़ी पर बना है  व इसका महत् तांत्रिक महत्व है। प्राचीन काल से सतयुगीन तीर्थ कामाख्या वर्तमान में तंत्र सिद्धि का सर्वोच्च स्थल है। पूर्वोत्तर के मुख्य द्वार कहे जाने वाले असम राज्य की राजधानी दिसपुर से 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित नीलांचल अथवा नीलशैल पर्वतमालाओं पर स्थित मां भगवती कामाख्या का सिद्ध शक्तिपीठ सती के इक्यावन शक्तिपीठों में सर्वोच्च स्थान रखता है। यहीं भगवती की महामुद्रा (योनि-कुण्ड) स्थित है।


अम्बुवाची पर्व विश्व के सभी तांत्रिकोंमांत्रिकों एवं सिद्ध-पुरुषों के लिये वर्ष में एक बार पड़ने वाला अम्बूवाची योग पर्व वस्तुत एक वरदान है। यह अम्बूवाची पर्वत भगवती (सती) का रजस्वला पर्व होता है। पौराणिक शास्त्रों के अनुसार सतयुग में यह पर्व 16 वर्ष में एक बारद्वापर में 12 वर्ष में एक बारत्रेता युग में 7 वर्ष में एक बार तथा कलिकाल में प्रत्येक वर्ष जून माह में तिथि के अनुसार मनाया जाता है। इस बार अम्बूवाची योग पर्व जून की 222324 तिथियों में मनाया गया।

कामाख्या-मन्त्र का महत्त्व कामाख्या तन्त्र’ के अनुसार सिद्धि की हानि’ एवं विघ्न-निवारण’ हेतु कामाख्या-मन्त्र’ का जप आवश्यक है। सभी साधकों को सभी देवताओं के उपासकों को कामाख्या-मन्त्र की साधना’ अवश्य करनी चाहिए। शक्ति के उपासकों के लिए कामाख्या-मन्त्र’ की साधना अत्यन्त आवश्यक है। यह कामाख्या-मन्त्र’ कल्प-वृक्ष के समान है। सभी साधकों को एकदो या चार बार इसका साधना एक वर्ष मे अवश्य करना चाहिए।

भाषा: हिंदी    मूल्य: 201 / -

गाय भैंस का दूध बढ़ाने का मन्त्र | Spell to increase Cow & Buffalo milk

गाय भैंस का दूध बढ़ाने का मन्त्र | Spell to increase Cow & Buffalo milk 

घर में दुग्धारी पशुओं जैसे की गाय, भैंस, बकरी आदि का दूध बढ़ाने के लिए आज हम आपको दो अनुभूत शाबर मन्त्र साधना दे रहे है जिससे की आपके दुग्धारी पशुओं जैसे की गाय, भैंस, बकरी आदि का दूध बढ़ने लगेगा | और आपको आशातीत से भी अधिक लाभ प्राप्ति होगी |

जैसा की पहले भी कई पोस्टों में यह दर्शाया गया है की शाबर मन्त्र की साधना करने से पहले कुछ जरूरी उपाय भी करने होने है जिनसे की आपकी साधना सफल
हो सके और आपका समय-पैसा-मेहनत आदि व्यर्थ ना जाये | और वो सभी जरूरी उपाय शाबर मन्त्र भाग 1 में दर्शाए गये है जिनका की आप भी फायदा उठा सकते है और एक सफल साधक बन सकते है चाहे आपके श्री गुरुदेव है या अभी तक आपको कोई गुरु नही मिला हो |

अभी तक हमने सिद्ध शक्तिशाली शाबर मन्त्रो  से सम्बन्धित 15 ईबूक्स का प्रकाशन किया है और अन्य और भी विषयों पर ई-पुस्तको का प्रकाशन कार्य प्रगति पर है | आपके प्रेम, प्रोत्साहनों, सुझावों की मदद से हम ईबुक्स के कार्यो को और भी प्रभावी बनाने का प्रयत्न कर रहे है और उन सभी ईबुक्स में गुप्त गुरु-शिष्य परम्परा से चलने वाले उपाय, शाबर मन्त्र तन्त्र टोटके, व् अन्य तांत्रिक उपाय, साधना, तर्क, बातो का समावेश किया गया है |

शाबर मन्त्र 1:

|| ॐ ह्रीं कराली पुरुष मुख रूपा ठ: ठ: ||

इस मन्त्र को रोज पानी पर 21 बार जाप करके अभिमंत्रित करे | फिर इसी अभिमंत्रित जल के द्वारा अपने घरेलू दुग्धारी पशुओं जैसे की गाय, भैंस, बकरी आदि के आंचल को धोएं | ऐसा रोज करते रहे और ध्यान देते रहे, रोज आपके दुग्धारी पशुओं के दूध में वृद्धि होती रहेगी |


शाबर मन्त्र 2:

|| ॐ हुंकारीणे प्रसर शतीत ||

इस मन्त्र   को पहले कार्तिक शुक्ल की चौदस को केवल एक माला जाप करके सिद्ध कर लीजिये फिर इसी मन्त्र के द्वारा दुग्धारी पशुओं जैसे की गाय, भैंस, बकरी आदि का चारा- घास, खल आदि को अभिमंत्रित करके खिलाये |



शनिवार, 1 दिसंबर 2018

A real Bhagtaai Life Story | भगताई जीवन की एक सच्ची घटना


A real Bhagtaai Life Story | भगताई जीवन की  एक सच्ची घटना
यह घटना दिल्ली के *** नगर के होली चौक नामक स्थान की है वहा एक महिला थी मितभाषीसभी पर दया करने वाली और लोग उसे माँमाता जी कहकर पुकारते थे उस महिला में कई देविया की सवारी आती थी और लगभग 10-15 साल से उस महिला ( उस महिला में आने वाली देवी की सवारी) ने कई लोगो का भला कियाकई ही लोगो को सही रास्ता दिखायाबहुत से लोगो के काम में हाथ डाला और वह देवी पर विश्वास के कारण किसी को भी गुरु बनानाशिक्षा दीक्षा लेना जरूरी नहीं समझा क्योंकि वाही बात है की जब शक्ति (शक्तियों) खुद ही उसके पास आ गई है तो उसे कही ओर जाने की जरूरत ही क्या थीपरन्तु ऐसे भगत से कुछ अपने-पराये लोग अक्सर द्वेषभाव भी रखते है जो की उन भगतो कोबर्बाद करना चाहते है सो उस महिला के साथ भी कुछ वैसा ही हुआ की उस पर किसी ने अभिचार कर्म कर दिया बस फिर क्या थाअभिचार कर्म अपना काम करता रहा और निगुरीय दैवीय शक्ति (शक्तियों) अपने बल से जहाँ तक सम्भव हो सका रोकती रहती और बाकी भार भगत पर पड़ताधीरे-धीरे उस महिला की शक्ति (शक्तियों) बंधन में आ गई और उस महिला से वो शक्ति (शक्तियों) दूर होने लगी फिर पूरा परिवार बर्बादी की ओर अग्रसर होने लगा और देखते ही देखते वो महिला भगत बीमार पड़ने लगी और अंत को प्राप्त हो गई |
अगर उस महिला पर किसी अच्छे साधक या गुरु का हाथ होता तो ऐसी नौबत ही नहीं आती क्योंकि गुरु पहले से ही सब सम्भावित खतरों से बचाव का उपाय कर देता है या फिर हर एक उपाय भगत को बता देता है जिससे की भगत पर आगे भविष्य में किसी का वार या अभिचार कर्म हानि ना पहुंचा पाए|
तो प्रिय भगतो अब आप समझ ही चुके होगे की एक भगत के लिया गुरु की जरुरत कितनी है अगर गुरु अच्छा मिला तो समझे की जिंदगी सफल हो गई और अगर किसी ऐसे ही गुरु के चक्कर में फँस गये तो वो आपकी शक्ति (शक्तियों) को अपने काम में प्रयोग करेगा और आप को किसी भी तरह का ज्ञान-विद्या नही देगा बल्कि यही कहेगा की पूजा-पाठ करो और शक्ति (शक्तियों) को याद करो जबकि एक अच्छा और सच्चा गुरु आपको हर चीज़ की काट करनाबचाव करना और भी कई बाते है वो सब आपको बता देता है जिससे की आप किसी भी तरह की परेशानी को सहज ही हल कर सको |
पानी पियो छान के |
गुरु करो जान के ||


जैसा की आप अभी पढ़ ही चुके है की गुरु का एक भगत के जीवन में कितना महत्पूर्ण स्थान है |  तो जैसा की आपको बताया गया है उसके बावजूद भी कई बार ऐसा होता है कि एक गुरु होता है वह अपने शिष्य को पूरा ज्ञान नहीं देता है और अक्सर 99 प्रतिशत स्थिति में यही होता है कि वह गुरु अपने शिष्य को कभी भी पूरा ज्ञान ध्यान नहीं देता है खासकर की भगताई लाइन की ऐसा इसलिए होता है क्योंकि गुरु यह सोचता है कि यदि मैंने इसको पूरा ज्ञान दे दिया तो बाद में गुरु की शीशे को कोई जरुरत नहीं पड़ेगी क्योंकि उसमें वही बात हो गई गुरु गुड रहा और चेला चीनी हो गया और अधिकतर ऐसा होता भी है कि चेले लोग अपने गुरु से सेवा पूछ लेते हैं कैसे क्या करना है और फिर बाद में जैसे उनको थोड़ा सा आगे रास्ता दिखता है खुद बखुद यहाँ वहां से पढ़ लेते हैं और सिर्फ वही से समस्या खड़ी हो जाती है कि आपके काम धीरे धीरे रुकने शुरू हो जाते हैं और एक समय ऐसा था कि आपने यदि किसी देवता की सवारी भी आती है तो आप पूर्णतया  ही निष्क्रिय हो जाते हैं आपके देवता कोई काम नहीं करते वक्त जरूर देते हैं कि फलाना काम इस विधी से हो जायेगा या  मैं इतने समय में कर दूंगा लेकिन होता कुछ भी नहीं है सिर्फ देखते रहो देवता झूठ बोलता रहता है और कब तक आपको आगे का टाइम देता रहता है इतने दिन में हो जाएगा इसमें टाइम में हो जायेगा पुरे होता क्यों नही है और ऐसा होता क्यों है क्योंकि चैला जो है थोड़ा बोलते ही सोचने लगता है कि हम उसे सब कुछ आ गया और कुछ गुरु लोग भी ऐसे होते हैं जोकि अपने चेले को पूरा ध्यान ज्ञान विधि पूरी विधि से नहीं बताते हैं |

वैसे आपके गुरु का कोई स्वार्थ भी हो सकता है कि इन में गुरु का अपना कोई स्वार्थ हो कि वह आपको पूरी विधि नहीं बताता है और परिणाम स्वरुप आपको भटकना पड़ता है आपके सभी रास्ते बंद हो जाते हैं आपको समझ नहीं आता कि क्या किया जाए आपके सभी काम रुक जाते हैं और परेशानियां शुरू हो जाती है समझ नहीं आता है ऐसा क्यों हो रहा है |

सोमवार, 26 नवंबर 2018

devi devta pitru ka shrir me aavesh | devi devta lagna |देवी/देवता/पितृ का शरीर में आवेश का प्रचलन


धीरे-धीरे आवेश का प्रचलन प्रारम्भ हुआ जो साधक बदन को हिलाते अर्थात झुमते हुऐ लोगों कि समस्याओं का समाधान करने थे। ऐसे साधकों के बारे में कहा जाता है कि इस साधक के अन्दर देवता की आत्मा ने प्रवेश किया हुआ है। साधक के शरीर में किसी भी देवी या देवता की आत्मा का प्रवेश करना आवेश कहलाता है। ऐसे साधक जोर-जोर से हिलने लगते है और अपने पास आये हुऐ आम व्यक्तियों का ईलाज करते है। इस व्यवस्था में आम व्यक्ति और देवता के बीच कोई माध्यम नहीं होता अपितु आप व्यक्ति सीधे ही देवता से बात करके अपनी समस्या का समाधान पाता है।

साधना का यह प्रयोग भी आम व्यक्तियों के बीच में काफी प्रचलित है। किन्तु सही मायने में यह क्रिया तभी फलीभूत है, जब साधक गुरू के सान्निध्य में इस साधना को बार-बार करे। क्योंकि ऐसा न करने वाले साधक को अनेकों ही परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। मान लीजिऐ किसी साधक के अन्दर देवता के आवेश की बजाऐ किसी भूत या प्रेत का आवेश आ गया और उसे देवता का आवेश मान कर वह साधक जन-कल्याण करने लगा तो सम्भव है, कि आम व्यक्ति की समस्याऐं तो दूर होने लगेगीं, किन्तु साधक और उसके परिवार को अनेकों ही परेशानियों का सामना करना पड़ेगा। आज अनेकों ही ऐसे साधक हैं, जिन में देवता का नहीं बल्कि भूत-प्रेतों का आवेश आता है।

जिसके द्वारा वह जन कल्याण करते हैं। किन्तु साधक व उसका परिवार अनेकों ही परेशनियों से घिरा रहता है। अगर कोई उनसे कहे कि आप तो साधक हो देवता कि आप के ऊपर असीम कृपा है। फिर आप या आपके परिवार में परेशानी क्यों है। तो ऐसे साधक हँसकर यही जवाब देते हैं, कि जैसी देवता की इच्छा। अगर अधिक जोर देकर उनसे पूछा जाऐ तो वह, यह कहते है, कि जिस प्रकार एक डॉक्टर अपना ईलाज़ स्वयं नहीं कर सकता उसी तरह हम स्वयं अपनी समस्या का समाधान नहीं कर सकते। जो साधक ऐसा कहते है, यह पूर्णतः मिथ्या प्रचार है। अगर आप मन, कर्म, वचन से पवित्र हैं और पूर्णतः देवता का ही आवेश है, तो आपके घर परिवार में किसी भी प्रकार की कोई भी परेशानी नहीं होगी। जिन साधकों के घरों में यह परेशानियाँ है, वह साधक मन, कर्म, वचन से पवित्र नहीं है अथवा देवता के आवेश के स्थान पर भूत या प्रेत का आवेश है। आज का जो समय है, इसमें सबसे ज्यादा जो देखने को तन्त्र मिलता है, वह ओझा, गुणी या आवेश वाले तान्त्रिकों का अधिक है। सिद्ध तान्त्रिक तो बहुत ही कम देखने को मिलते है। अघोर-विद्या के जो भी सिद्ध तान्त्रिक थे, वह भी धीरे-धीरे समाप्त होते जा रहे है। भैरवी-साधना का तो बड़ी मुश्किल से ही कोई नाम लेवा बचा है। कोई माने या न माने किन्तु सभी साधनाऐं धीरे-धीरे समाप्त होती जा रही है।

इसके मूल में जो कारण है, वह यही है कि तान्त्रिकों का व्यभिचारी होना एवं शिष्यों की आस्था का न होना। जब तक गुरू और शिष्य दोनों के ही अन्दर श्रद्धा भाव नहीं होगा और दोनों ही ब्रहम् के प्रति समर्पित नहीं होगे, तब तक तन्त्र का उत्थान सम्भव नहीं है। प्राचीन काल में जो भी साधना की जाती थी, उसके मूल में गुरू और शिष्य का एक ही उद्देश्य होता था कि अधिक से अधिक ऊर्जा का इकट्ठा करना एव कुन्डलिनी-शक्ति को जाग्रत करते हुऐ, उस के द्वारा ब्रहम् को प्राप्त करना। ऊर्जा शक्ति को इकट्ठा करने हेतु, फिर चाहे सात्विक साधना करनी पड़े या तामसिक। साधना कोई भी क्यों न हो सभी साधनाऐं हमें ऊर्जा प्रदान करती है। अगर इस ऊर्जा का हम सही इस्तेमाल करें, तो हम पूर्ण ब्रहम् को प्राप्त कर सकते हैं। अगर हमारा उद्देश्य पवित्र है, तो फिर कोई भी शक्ति हमें उस परमात्मा से मिलने से रोक नहीं सकती।

हम सभी का कर्तव्य है कि एक बार फिर से एक नये युग की रचना हो और जितनी भी साधनाऐं लुप्त होती जा रही है, उन सबको पुनः स्थापित करें।अगर हमने समय रहते अपने आपको जागरूक नहीं बनाया तो एक दिन ऐसा आयेगा, जब हमारी सभी प्राचीन धरोहर समाप्त हो जायेगी। अगर हम ध्यान-पूर्वक अध्ययन करें तो कुछ वक्त पहले वेदों का अध्ययन सभी करते थे, किन्तु आज के समय में अधिकतर व्यक्तियों को तो चार वेदों के नाम तक भी मालूम नहीं है। कैसी विड़म्बना है कि जिन चार वेदों से यह सम्पूर्ण सृष्टि बनी है हमें उन का नाम तक याद नहीं। अगर यही हाल रहा तो एक समय ऐसा भी आयेगा, जब हम धीरे-धीरे करके सब कुछ खो चुके होगें। किन्तु कहते है कि ‘फिर पछतायेत होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत’ इसलिये हम आवाहन करते है, उन साधकों का जो सही मायने में हिन्दु धर्म कि सभ्यता को और हिन्दु धर्म के मूल तत्त्व श्रद्धा और भावना को बचाना चाहते है।

अगर हमने समय के रहते अपने आप को नहीं संभाला तो एक समय ऐसा भी आऐगा, जब हमारी हालत पश्चिमी सभ्यता से भी बुरी हो जाऐगी। पश्चिम के देशों की नकल करके हम अपने आप को महान समझ रहे है। ध्यान-पूर्वक अध्ययन करने पर पता चलता है कि आज वही पश्चिमी देश वेद-मंत्रों और गीता के ऊपर अनुसंधान (रिसर्च) कर रहे है। आर्य सभ्यता में 21 वीं सदी के अन्दर धीरे-धीरे जहाँ यह कहा जाने लगा है कि वेदों में क्या रखा है। वही पश्चिमी देशों ने वेदों का अध्ययन करके अपनी ध्यान-योग की शक्ति को इतना अधिक बढ़ा लिया है, कि जिसके बारे में हिन्दुस्तान का आम व्यक्ति सोच भी नही सकता। हिन्दुस्तान का आम व्यक्ति पश्चिमी सभ्यता की देन रेकी, लामाफैरा, क्रिश्टल-हीलिंग, फैंग-शूई, टच-थेरेपी आदि की तरफ भाग रहा है। वही पश्चिम का आम व्यक्ति हिन्दुस्तान के प्राचीन ग्रन्थों का अनुसंधान करने में लगा हुआ है। इसे हम अपना दुर्भाग्य ही कहगें कि आर्यों के पास सब कुछ होते हुऐ भी, वह पश्चिम के देशों की नकल कर रहा है। इसलिऐ हम सबको फिर से जागना होगा और जगाना होगा आम व्यक्ति को, ताकि लुप्त होती जा रही आर्य सभ्यता को समय के रहते बचाया जा सके।
विषय से सम्बन्धित विडियो देखने के लिए कृप्या निचे लिंक देखे :












शनिवार, 27 अक्तूबर 2018

DEEWALI OFFER

हमेशा की तरह इस बार भी हम आपके लिए लायें  है शुभ दीवाली का विशेष ऑफ केवल सिमित समय तक के लिए ही वैध है |

आज तक आपने कई तन्त्र मन्त्र की पुस्तकें देखि और पढ़ी होगी, लेकिन जेसा की मैं आपको EBOOK में मत्रों का संग्रह दे रहा हूँ वेसी आपने ना तो देखि होगी और ना ही सुनी होगी | ऐसे ऐसे मन्त्र, तन्त्र, यन्त्र प्रयोग इस पुस्तक में दियें गये है जोकि कई हजारों लाखों रुपये खर्च करने पर भी सिद्ध महापुरुष / भगत / साधक  लोग किसी को नही बताते | ये मन्त्र ऐसे है जोकि छोटी से छोटी साधना की पूर्ति करने व जप करने से ही मन्त्र के देवी देवता / वीर / सिद्ध शक्ति / सिद्ध आत्मा अपना प्रभाव तुरंत ही दिखाने लगते है |


इन मंत्रों के सभी मंत्र, यंत्र, यंत्र, कार्यवाही और उनके तरीकों को आज के चरम समय को देखकर चिन्हित किया गया है, ताकि आम लोग जो भी कोई अन्य काम करते है वे भगत लोग, इस भारतीय प्राचीन शाबर मन्त्र ज्ञान शक्ति का लाभ उठा सकते हैं। आपने आज तक कई किताबें पढ़ी हैं, जिसमें इस तरह के तरीकों का विवरण, जप और पूजा सामग्री , समय अवधि, दी जाती है कि आप केवल पढ़ने के बाद ही पाठकगण टूट से जाते हैं और उन पुस्तकों में लिखी सभी बातो का पालन करना एक आम आदमी के लिए सम्भव भी नही होता, लेकिन यहाँ हमारे द्वारा तैयार शाबर मन्त्र की पुस्तक/पुस्तकों में सभी विधियां सरल रूप से दर्शायी गई हैं जिनको की कोई भी पढ़ा-लिखा या अनपढ़ या महिला-पुरुष कोई भी साधना करने का इच्छुक, सभी अच्छी तरह से पूर्ण कर पाएंगे, क्योंकि हमने इन शाबर मन्त्रो की ईबुक्स में केवल जप-ध्यान-जप संख्या-अनिवार्य वस्तु का ही विवरण दिया है जिनका की वास्तव में प्रयोग होना है साधना के दौरान | 
जो भी भगत्त भाई मन्त्र विद्या सीखना चाहता है लेकिन सच्चा गुरु नही मिल पाने के कारण साधना नही कर पा रहा है तो उनके लिए यह पुस्तके अमूल्य ज्ञान की निधि साबित होगी | और जिन्हें गुरु कृपा से कुछ सिखने को मिला उनके लिए यह ईबुक्स और भी ज्ञान वर्धक रहेगी  और साथ ही अपनी शक्तियों-सिद्धियों को और भी बढ़ा सकेंगे|

जैसा की आपको ज्ञात है की अभी तक हमने शाबर मन्त्र पुस्तक के कुल 14 भाग ईबुक के रूप में प्रकाशित किये है जिनका की हमारे पाठकगण बहुत लाभ ले चुके है और समय समय पर हमे सुचना देते रहते है की उन्होंने किस मन्त्र, तन्त्र आदि का प्रयोग किया, किस विषय/कार्य के लिए किया और उन्हें कैसा परिणाम मिला |  और साथ ही हमारे बहुत से पाठकगण हमसे अपनी समस्याओं ईमेंल के द्वारा व् फोन कॉल के द्वारा शेयर करते है और अपनी समस्याओ के  उचित समाधान भी प्राप्त करते है |
अभी तक हम अपने पाठकों को सभी ईबूक्स अलग अलग भागो में भेजते थे जिसमे समय भी लगता था और  कई बार बहुत से भाईयो को सभी ईबुक्स ढूंढने में भी समय लगता था अत: अब हम प्रस्तुत करते है 

  शाबर मन्त्र महाशस्त्र 

जोकि केवल एक ही ईबुक है और इसी ईबुक में सभी शाबर मन्त्र के भाग 1 से 14 तक के सम्पूर्ण मन्त्र-तन्त्र-यंत्र-टोटके आदि दिए गये है | जिससे की पाठकों को बार बार अलग-अलग ईबुक्स को ढूँढना, खोजना आदि परेशानियों से भी छुटकारा मिलेगा | 


शाबर मन्त्र महाशस्त्र शाबर मन्त्र संग्रह PDF



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सोमवार, 8 अक्तूबर 2018

NAVARATRI GHAT STHAPANA 2018 NAVARAN MANTRA SIDDHI


शारदीय नवरात्री   2018


शारदीय नवरात्रा आश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि यानि एकम से नवमी तिथि तक होते हैं। घट स्थापना प्रतिपदा के दिन की जाती है। इस वर्ष शारदीय नवरात्रा 10 अक्टूबर , बुधवार  से शुरू होकर 18 अक्टूबर , गुरुवार तक रहेंगे।
इसी दिन से नवरात्री के नौ दिन के उत्सव की शुरुआत होती है।

नवरात्रि शुरुआत – 10 अक्टूबर (बुधवार) 2018
महाअष्टमी– 17 अक्टूबर
महानवमी– 18 अक्टूबर (गुरुवार) 2018

नवरात्रि दौरान घर में घट स्थापना और पूजा विधि

नवरात्रि घट स्थापना मुहूर्त –
10 अक्टूबर (बुधवार) 2018
06:18:40 से लेकर 10:11:37 तक 
(अवधि: 3 घंटे 52 मिनट)

नवरात्री के इसी काल में देवी माँ ने महाबलशाली दैत्यों का वध करके मानव तथा देवताओं को अभयदान दिया था। देवी मां के आशीर्वाद से नवरात्रि के इन नौ दिनों में संसार में सत्त्वगुण का प्रभाव बढ़ता है तथा तमोगुण का प्रभाव घटता है  नवरात्रि में श्रद्धा पूर्वक यह पूजा करने
से शक्ति तत्त्व का लाभ पूरे परिवार को वर्ष भर मिलता रहता है।

नवरात्री के नौ दिनों तक देवी माँ के एक स्वरुप की पूजा की जाती है। जो इस प्रकार है :-



प्रतिपदा तिथि     घटस्थापना,  श्री शैलपुत्री पूजा
द्वितीया तिथि      श्री ब्रह्मचारिणी पूजा
तृतीय तिथि        श्री चंद्रघंटा पूजा
चतुर्थी तिथि        श्री कुष्मांडा पूजा
पंचमी तिथि        श्री स्कन्दमाता पूजा
षष्ठी तिथि           श्री कात्यायनि पूजा
सप्तमी तिथि       श्री कालरात्रि पूजा
अष्टमी तिथि        श्री महागौरी पूजा , महा अष्टमी पूजा , सरस्वती पूजा
नवमी तिथि         चैत्र नवरात्रा – राम नवमी , शारदीय नवरात्रा – श्री सिद्धिदात्री पूजा , महानवमी पूजा , आयुध पूजा

घट स्थापना ,कलश स्थापना –

नवरात्री में घट स्थापना का बहुत महत्त्व होता है। नवरात्री की शुरुआत घट स्थापना से की जाती है। शुभ मुहूर्त में कलश स्थापित किया जाता है। घट स्थापना प्रतिपदा तिथि के पहले एक तिहाई हिस्से में कर लेनी चाहिए। इसे कलश स्थापना भी कहते है।
कलश को सुख समृद्धि , ऐश्वर्य देने वाला तथा मंगलकारी माना जाता है। कलश के मुख में भगवान विष्णु , गले में रूद्र , मूल में ब्रह्मा तथा मध्य में देवी शक्ति का निवास माना जाता है। नवरात्री के समय ब्रह्माण्ड में उपस्थित शक्तियों का घट में आह्वान करके उसे कार्यरत किया जाता है। इससे घर की सभी विपदा दायक तरंगें नष्ट हो जाती है तथा घर में सुख शांति तथा समृद्धि बनी रहती है।

घट स्थापना करने की सामग्री और विधि इस प्रकार है :-

  घट स्थापना की सामग्री –
Þ     जौ बोने के लिए मिट्टी का पात्र। यह वेदी कहलाती है।
Þ     जौ बोने के लिए शुद्ध साफ़ की हुई मिटटी जिसमे कंकर आदि ना हो।
Þ     पात्र में बोने के लिए जौ ( गेहूं भी ले सकते है )
Þ     घट स्थापना के लिए मिट्टी का कलश  ( सोने, चांदी या तांबे  का कलश भी ले सकते है )
Þ     कलश में भरने के लिए शुद्ध जल
Þ     गंगाजल
Þ     रोली , मौली
Þ     इत्र
Þ     पूजा में काम आने वाली साबुत सुपारी
Þ     दूर्वा
Þ     कलश में रखने के लिए सिक्का ( किसी भी प्रकार का कुछ लोग चांदी या सोने का सिक्का भी रखते है )
Þ     पंचरत्न ( हीरा , नीलम , पन्ना , माणक और मोती )
Þ     पीपल , बरगद , जामुन , अशोक और आम के पत्ते  ( सभी ना मिल पायें तो कोई भी दो प्रकार के पत्ते ले सकते है )
Þ     कलश ढकने के लिए ढक्कन ( मिट्टी का या तांबे का )
Þ     ढक्कन में रखने के लिए साबुत चावल
Þ     नारियल
Þ     लाल कपडा
Þ     फूल माला
Þ     फल तथा मिठाई
Þ     दीपक , धूप , अगरबत्ती

घट स्थापना की विधि –

 सबसे पहले जौ बोने के लिए एक ऐसा पात्र लें जिसमे कलश रखने के बाद भी आस पास जगह रहे। यह पात्र मिट्टी की थाली जैसा कुछ हो तो श्रेष्ठ होता है। इस पात्र में जौ उगाने के लिए मिट्टी की एक परत बिछा दें। मिट्टी शुद्ध होनी चाहिए । पात्र के बीच में कलश रखने की जगह छोड़कर बीज डाल दें। फिर एक परत मिटटी की बिछा दें। एक बार फिर जौ डालें। फिर से मिट्टी की परत बिछाएं। अब इस पर जल का छिड़काव करें।
कलश तैयार करें। कलश पर स्वस्तिक बनायें। कलश के गले में मौली बांधें। अब कलश को थोड़े गंगा जल और शुद्ध जल से पूरा भर दें।
कलश में साबुत सुपारी , फूल और दूर्वा डालें। कलश में इत्र , पंचरत्न तथा सिक्का डालें। अब कलश में पांचों प्रकार के पत्ते डालें। कुछ पत्ते
थोड़े बाहर दिखाई दें इस प्रकार लगाएँ। चारों तरफ पत्ते लगाकर ढ़क्कन लगा दें। इस ढ़क्कन में अक्षत यानि साबुत चावल भर दें।
 नारियल तैयार करें। नारियल को लाल कपड़े में लपेट कर मौली बांध दें। इस नारियल को कलश पर रखें। नारियल का मुँह आपकी तरफ
होना चाहिए। यदि नारियल का मुँह ऊपर की तरफ हो तो उसे रोग बढ़ाने वाला माना जाता है। नीचे की तरफ हो तो शत्रु बढ़ाने वाला मानते
है , पूर्व की और हो तो धन को नष्ट करने वाला मानते है। नारियल का मुंह वह होता है जहाँ से वह पेड़ से जुड़ा होता है ।
 अब यह कलश जौ उगाने के लिए तैयार किये गये पात्र के बीच में रख दें। अब देवी देवताओं का आह्वान करते हुए प्रार्थना करें कि
हे समस्त देवी देवता आप सभी नौ दिन के लिए कृपया कलश में विराजमान हों”

आह्वान करने के बाद ये मानते हुए कि सभी देवता गण कलश में विराजमान है। कलश की पूजा करें।
कलश को टीका करें , अक्षत चढ़ाएं , फूल माला अर्पित करें , इत्र अर्पित करें , नैवेद्य यानि फल मिठाई आदि अर्पित करें।
 घट स्थापना या कलश स्थापना के बाद देवी माँ की चौकी स्थापित करें।

देवी माँ की चौकी की स्थापना और पूजा विधि

Þ     लकड़ी  की एक चौकी को गंगाजल और शुद्ध जल से धोकर पवित्र करें।
Þ     साफ कपड़े से पोंछ कर उस पर लाल कपड़ा बिछा दें।
Þ     इसे कलश के दायी तरफ रखें।
Þ     चौकी पर माँ दुर्गा की मूर्ति अथवा फ्रेम युक्त फोटो रखें।
Þ     माँ को चुनरी ओढ़ाएँ।
Þ     धूप , दीपक आदि जलाएँ।
Þ     नौ दिन तक जलने वाली माता की अखंड ज्योत जलाएँ।
Þ     देवी मां को तिलक लगाए ।
Þ     माँ दुर्गा को वस्त्र, चंदन, सुहाग के सामान यानि हलदी, कुमकुम, सिंदूर, अष्टगंध आदि अर्पित करें ।
Þ     काजल लगाएँ ।
Þ     मंगलसूत्र, हरी चूडियां , फूल माला , इत्र , फल , मिठाई आदि अर्पित करें।
Þ     श्रद्धानुसार दुर्गा सप्तशती के पाठ , देवी माँ  के स्रोत , सहस्रनाम आदि का पाठ करें।
Þ     देवी माँ की आरती करें।
Þ     पूजन के उपरांत वेदी पर बोए अनाज पर जल छिड़कें।

रोजाना देवी माँ का पूजन करें तथा जौ वाले पात्र में जल का हल्का छिड़काव करें। जल बहुत अधिक या कम ना छिड़के । जल इतना हो कि जौ अंकुरित हो सके। ये अंकुरित जौ शुभ माने जाते है। । यदि इनमे से  किसी अंकुर का रंग सफ़ेद हो तो उसे बहुत अच्छा माना जाता है। यह दुर्लभ होता है।

नवरात्री के व्रत उपवास –

 नवरात्री में लोग अपनी श्रद्धा के अनुसार देवी माँ की भक्ति करते है। कुछ लोग पलंग के ऊपर नहीं सोते। कुछ लोग शेव नहीं करते , कुछ नाखुन नहीं काटते। इस समय नौ दिन तक व्रत , उपवास रखने का बहुत महत्त्व है। अपनी श्रद्धानुसार एक समय भोजन और एक समय फलाहार करके या दोनों समय फलाहार करके उपवास किया जाता है। इससे सिर्फ आध्यात्मिक बल ही प्राप्त नहीं होता , पाचन तंत्र भी मजबूत होता है तथा मेटाबोलिज्म में जबरदस्त सुधार आता है।
व्रत के समय अंडा , मांस , शराब , प्याज , लहसुन , मसूर दाल , हींग , राई , मेथी दाना आदि वस्तुओं का उपयोग नहीं करना चाहिए। इसके अलावा  सादा नमक के बजाय सेंधा नमक काम में लेना चाहिए।


नवरात्री में कन्या पूजन –


महाअष्टमी या नवमी के दिन कन्या पूजन किया जाता है। कुछ लोग अष्टमी के दिन और कुछ नवमी के दिन कन्या पूजन करते है। परिवार की रीति के अनुसार किसी भी दिन कन्या पूजन किया जा सकता है। तीन साल से नौ साल तक आयु की कन्याओं को तथा साथ ही एक लांगुरिया (छोटा लड़का ) को खीर , पूरी , हलवा , चने की सब्जी आदि खिलाये जाते है। कन्याओं को तिलक करके , हाथ में मौली बांधकर, गिफ्ट दक्षिणा आदि देकर आशीर्वाद लिया जाता है , फिर उन्हें विदा किया जाता है।

महानवमी और विसर्जन –

 महानवमी के दिन माँ का विशेष पूजन करके पुन: पधारने का आवाहन कर, स्वस्थान विदा होने के लिए प्रार्थना की जाती है। कलश के जल का छिड़काव परिवार के सदस्यों पर और पूरे घर में किया जाता है। ताकि घर का प्रत्येक स्थान पवित्र हो जाये। अनाज के कुछ अंकुर माँ के पूजन के समय चढ़ाये जाते है। कुछ अंकुर दैनिक पूजा स्थल पर रखे जाते है , शेष अंकुरों को बहते पानी में प्रवाहित कर दिया जाता है। कुछ लोग इन अंकुर को शमीपूजन के समय शमी वृक्ष को अर्पित करते हैं और लौटते समय इनमें से कुछ अंकुर केश में धारण करते हैं ।

 

मां दुर्गा के नवरुपों की उपासना

मां दुर्गा के नवरुपों की उपासना निम्न मंत्रों के द्वारा की जाती है. प्रथम दिन शैलपुत्री की एवं क्रमशः नवें दिन सिद्धिदात्री की उपासना की जाती है -

1.शैलपुत्री

वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम् । 

वृषारुढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम् ॥

2. ब्रह्मचारिणी

दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू ।

देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा ॥

3. चन्द्रघण्टा

पिण्डजप्रवरारुढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता ।

प्रसादं तनुते मह्यां चन्द्रघण्टेति विश्रुता ॥

4. कूष्माण्डा

सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च ।

दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे ॥

5. स्कन्दमाता

सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया ।

शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी ॥

6. कात्यायनी

चन्द्रहासोज्वलकरा शार्दूलवरवाहना ।

कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी ॥

7. कालरात्रि 

एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता ।

लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी ॥

वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा ।

वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी ॥

8. महागौरी

श्वेते वृषे समारुढा श्वेताम्बरधरा शुचिः ।

महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा ॥

9. सिद्धिदात्री

सिद्धगन्धर्वयक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि ।

सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी ॥




कैसे करें मंत्र जाप-

नवरात्रि के प्रतिपदा के दिन संकल्प लेकर प्रातःकाल स्नान करके पूर्व या उत्तर दिशा कि और मुख करके दुर्गा कि मूर्ति या चित्र की पंचोपचार या दक्षोपचार या षोड्षोपचार से पूजा करें। शुद्ध-पवित्र आसन ग्रहण कर रुद्राक्ष, स्फटिक, तुलसी या चंदन कि माला से मंत्र का जाप १,,,११ माला जाप पूर्ण कर अपने कार्य उद्देश्य कि पूर्ति हेतु मां से प्राथना करें। संपूर्ण नवरात्रि में जाप करने से मनोवांच्छित कामना अवश्य पूरी होती हैं। उपरोक्त मंत्र के विधि-विधान के अनुसार जाप करने से मां कि कृपा से व्यक्ति को पाप और कष्टों से छुटकारा मिलता हैं और मोक्ष प्राप्ति का मोक्ष प्राप्ति का मार्ग सुगम प्रतित होता हैं।

नवार्ण मंत्र महत्व-

माता भगवती जगत् जननी दुर्गा जी की साधना-उपासना के क्रम में, नवार्ण मंत्र एक ऐसा महत्त्वपूर्ण महामंत्र है | नवार्ण अर्थात नौ अक्षरों का इस नौ अक्षर के महामंत्र में नौ ग्रहों को नियंत्रित करने की शक्ति है, जिसके माध्यम से सभी क्षेत्रों में पूर्ण सफलता प्राप्त की जा सकती है और भगवती दुर्गा का पूर्ण आशीर्वाद प्राप्त किया जा सकता है यह महामंत्र शक्ति साधना में सर्वोपरि तथा सभी मंत्रों-स्तोत्रों में से एक महत्त्वपूर्ण महामंत्र है। यह माता भगवती दुर्गा जी के तीनों स्वरूपों माता महासरस्वती, माता महालक्ष्मी व माता महाकाली की एक साथ साधना का पूर्ण प्रभावक बीज मंत्र है और साथ ही माता दुर्गा के नौ रूपों का संयुक्त मंत्र है और इसी महामंत्र से नौ ग्रहों को भी शांत किया जा सकता है |
नवार्ण मंत्र-

|| ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे ||

नौ अक्षर वाले इस अद्भुत नवार्ण मंत्र में देवी दुर्गा की नौ शक्तियां समायी हुई है | जिसका सम्बन्ध नौ ग्रहों से भी है |
ऐं = सरस्वती का बीज मन्त्र है ।
ह्रीं = महालक्ष्मी का बीज मन्त्र है ।
क्लीं = महाकाली का बीज मन्त्र है ।
इसके साथ नवार्ण मंत्र के प्रथम बीज ” ऐं “ से माता दुर्गा की प्रथम शक्ति माता शैलपुत्री की उपासना की जाती है, जिस में सूर्य ग्रह को नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई है |
नवार्ण मंत्र के द्वितीय बीज ” ह्रीं “ से माता दुर्गा की द्वितीय शक्ति माता ब्रह्मचारिणी की उपासना की जाती है, जिस में चन्द्र ग्रह को नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई है|
नवार्ण मंत्र के तृतीय बीज ” क्लीं “ से माता दुर्गा की तृतीय शक्ति माता चंद्रघंटा की उपासना की जाती है, जिस में मंगल ग्रह को नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई है|
नवार्ण मंत्र के चतुर्थ बीज ” चा “ से माता दुर्गा की चतुर्थ शक्ति माता कुष्मांडा की  उपासना की जाती है, जिस में बुध ग्रह को नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई है |
नवार्ण मंत्र के पंचम बीज ” मुं “ से माता दुर्गा की पंचम शक्ति माँ स्कंदमाता की उपासना की जाती है, जिस में बृहस्पति ग्रह को नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई है|
नवार्ण मंत्र के षष्ठ बीज ” डा “ से माता दुर्गा की षष्ठ शक्ति माता कात्यायनी की उपासना की जाती है, जिस में शुक्र ग्रह को नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई है |
नवार्ण मंत्र के सप्तम बीज ” यै “ से माता दुर्गा की सप्तम शक्ति माता कालरात्रि की उपासना की जाती है, जिस में शनि ग्रह को नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई है |
नवार्ण मंत्र के अष्टम बीज ” वि “ से माता दुर्गा की अष्टम शक्ति माता महागौरी की उपासना की जाती है, जिस में राहु ग्रह को नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई है |
नवार्ण मंत्र के नवम बीज ” चै “ से माता दुर्गा की नवम शक्ति माता सिद्धीदात्री की उपासना की जाती है, जिस में केतु ग्रह को नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई है l


नवार्ण मंत्र साधना विधी:-

विनियोग:
ll ॐ अस्य श्रीनवार्णमंत्रस्य ब्रम्हाविष्णुरुद्राऋषय: गायत्र्युष्णिगनुष्टुभश्छंन्दांसी, श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वत्यो देवता: , ऐं बीजम , ह्रीं शक्ति: ,क्लीं कीलकम श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वत्यो प्रीत्यर्थे जपे विनियोग: ll
विलोम बीज न्यास:-
ॐ च्चै नम: गूदे ।
ॐ विं नम: मुखे ।
ॐ यै नम: वाम नासा पूटे ।
ॐ डां नम: दक्ष नासा पुटे ।
ॐ मुं नम: वाम कर्णे ।
ॐ चां नम: दक्ष कर्णे ।
ॐ क्लीं नम: वाम नेत्रे ।
ॐ ह्रीं नम: दक्ष नेत्रे ।
ॐ ऐं ह्रीं नम: शिखायाम ॥
(विलोम न्यास से सर्व दुखोकी नाश होता है, संबन्धित मंत्र उच्चारण की साथ दहीने हाथ की उँगलियो से संबन्धित स्थान पे स्पर्श कीजिये)
ब्रम्हारूप न्यास:-
ॐ ब्रम्हा सनातन: पादादी नाभि पर्यन्तं मां पातु ॥
ॐ जनार्दन: नाभेर्विशुद्धी पर्यन्तं नित्यं मां पातु ॥
ॐ रुद्र स्त्रीलोचन: विशुद्धेर्वम्हरंध्रातं मांपातु ॥
ॐ हं स: पादद्वयं मे पातु ॥
ॐ वैनतेय: कर इयं मे पातु ॥
ॐ वृषभश्चक्षुषी मे पातु ॥
ॐ गजानन: सर्वाड्गानी मे पातु ॥
ॐ सर्वानंन्द मयोहरी: परपरौ देहभागौ मे पातु ॥
(ब्रम्हारूपन्यास से सभी मनोकामनाये पूर्ण होती है, संबन्धित मंत्र उच्चारण की साथ दोनों हाथो की उँगलियो से संबन्धित स्थान पे स्पर्श कीजिये)

ध्यान मंत्र-
खड्गमं चक्रगदेशुषुचापपरिघात्र्छुलं भूशुण्डीमशिर:                                                   शड्ख संदधतीं करैस्त्रीनयना सर्वाड्ग भूषावृताम ।
नीलाश्मद्दुतीमास्यपाददशकां सेवेमहाकालीकां                                  
यामस्तौत्स्वपिते हरौ कमलजो हन्तुं मधु कैटभम ॥



माला पूजन-

जाप आरंभ करनेसे पूर्व ही इस मंत्र से माला का पुजा कीजिये,इस विधि से आपकी माला भी चैतन्य हो जाती है.
ऐं ह्रीं अक्षमालिकायै नंम:’’
ॐ मां माले महामाये सर्वशक्तिस्वरूपिनी ।
चतुर्वर्गस्त्वयि न्यस्तस्तस्मान्मे सिद्धिदा भव ॥
ॐ अविघ्नं कुरु माले त्वं गृहनामी दक्षिणे
करे । जपकाले च सिद्ध्यर्थ प्रसीद मम सिद्धये ॥
ॐ अक्षमालाधिपतये सुसिद्धिं देही देही सर्वमन्त्रार्थसाधिनी साधय साधय सर्वसिद्धिं परिकल्पय परिकल्पय मे स्वाहा।
अब आप येसे चैतन्य माला से नवार्ण मंत्र का जाप करे-
नवार्ण मंत्र-
ll ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ll

नवार्ण मंत्र की सिद्धि 9 दिनो मे 1,25,000 मंत्र जाप से होती है,परंतु आप येसे नहीं कर सकते है तो रोज 1,3,5,7,11,21….इत्यादि माला मंत्र जाप भी कर सकते है,इस विधि से सारी इच्छाये पूर्ण होती है,सारइ दुख समाप्त होते है और धन की वसूली भी सहज ही हो जाती है।
हमे शास्त्र के हिसाब से यह सोलह प्रकार के न्यास देखने मिलती है जैसे ऋष्यादी,कर ,हृदयादी ,अक्षर ,दिड्ग,सारस्वत,प्रथम मातृका ,द्वितीय मातृका,तृतीय मातृका ,षडदेवी ,ब्रम्हरूप,बीज मंत्र ,विलोम बीज ,षड,सप्तशती ,शक्ति जाग्रण न्यास और बाकी के 8 न्यास गुप्त न्यास नाम से जाने जाते है,इन सारे न्यासो का अपना  एक अलग ही महत्व होता है,उदाहरण के लिये शक्ति जाग्रण न्यास से माँ सुष्म रूप से साधकोके सामने शीघ्र ही आ जाती है और मंत्र जाप की प्रभाव से प्रत्यक्ष होती है और जब माँ चाहे किसिभी रूप मे क्यू न आये हमारी कल्याण तो निच्छित  ही कर देती है।

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