शारदीय नवरात्रा आश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि यानि एकम से नवमी तिथि तक होते हैं। घट स्थापना प्रतिपदा के दिन की जाती है। इस वर्ष शारदीय नवरात्रा 10 अक्टूबर , बुधवार से शुरू होकर 18 अक्टूबर , गुरुवार तक रहेंगे।
इसी दिन से नवरात्री के नौ दिन के उत्सव
की शुरुआत होती है।
नवरात्रि शुरुआत –
10 अक्टूबर (बुधवार) 2018
महाअष्टमी– 17 अक्टूबर
महानवमी– 18 अक्टूबर (गुरुवार)
2018
नवरात्रि दौरान घर में घट स्थापना और पूजा विधि–
नवरात्रि घट स्थापना मुहूर्त –
10 अक्टूबर (बुधवार) 2018
06:18:40 से
लेकर 10:11:37 तक
(अवधि: 3 घंटे 52 मिनट)
नवरात्री के इसी काल में देवी माँ ने महाबलशाली दैत्यों का वध करके मानव तथा देवताओं को अभयदान दिया था। देवी मां के आशीर्वाद से नवरात्रि के इन नौ दिनों में संसार में सत्त्वगुण का प्रभाव बढ़ता है तथा तमोगुण का प्रभाव घटता है । नवरात्रि में श्रद्धा पूर्वक यह पूजा करने
से शक्ति तत्त्व का लाभ पूरे परिवार को वर्ष भर मिलता रहता है।
नवरात्री के नौ दिनों तक देवी माँ के एक स्वरुप की पूजा की जाती है। जो इस प्रकार है :-
प्रतिपदा तिथि – घटस्थापना, श्री शैलपुत्री पूजा
द्वितीया तिथि – श्री
ब्रह्मचारिणी पूजा
तृतीय तिथि – श्री
चंद्रघंटा पूजा
चतुर्थी तिथि – श्री
कुष्मांडा पूजा
पंचमी तिथि – श्री
स्कन्दमाता पूजा
षष्ठी तिथि –
श्री कात्यायनि पूजा
सप्तमी तिथि – श्री
कालरात्रि पूजा
अष्टमी तिथि – श्री
महागौरी पूजा , महा अष्टमी पूजा , सरस्वती पूजा
नवमी तिथि – चैत्र नवरात्रा – राम नवमी , शारदीय नवरात्रा – श्री
सिद्धिदात्री पूजा , महानवमी पूजा , आयुध पूजा
घट स्थापना ,कलश स्थापना –
नवरात्री में घट स्थापना
का बहुत महत्त्व होता है। नवरात्री की शुरुआत घट स्थापना से की जाती है। शुभ मुहूर्त
में कलश स्थापित किया जाता है। घट स्थापना प्रतिपदा तिथि के पहले एक तिहाई हिस्से में
कर लेनी चाहिए। इसे कलश स्थापना भी कहते है।
कलश को सुख समृद्धि , ऐश्वर्य देने वाला तथा
मंगलकारी माना जाता है। कलश के मुख में भगवान विष्णु , गले में रूद्र , मूल में ब्रह्मा तथा
मध्य में देवी शक्ति का निवास माना जाता है। नवरात्री के समय ब्रह्माण्ड में उपस्थित
शक्तियों का घट में आह्वान करके उसे कार्यरत किया जाता है। इससे घर की सभी विपदा दायक
तरंगें नष्ट हो जाती है तथा घर में सुख शांति तथा समृद्धि बनी रहती है।
घट स्थापना करने की सामग्री और विधि इस प्रकार है :-
घट स्थापना की सामग्री –
Þ
जौ बोने के लिए मिट्टी
का पात्र। यह वेदी कहलाती है।
Þ
जौ बोने के लिए शुद्ध
साफ़ की हुई मिटटी जिसमे कंकर आदि ना हो।
Þ
पात्र में बोने के
लिए जौ ( गेहूं भी ले सकते है )
Þ
घट स्थापना के लिए
मिट्टी का कलश ( सोने, चांदी या तांबे का कलश भी ले सकते है )
Þ
कलश में भरने के लिए
शुद्ध जल
Þ
गंगाजल
Þ
रोली , मौली
Þ
इत्र
Þ
पूजा में काम आने
वाली साबुत सुपारी
Þ
दूर्वा
Þ
कलश में रखने के लिए
सिक्का ( किसी भी प्रकार का कुछ लोग चांदी या सोने का सिक्का भी रखते है )
Þ
पंचरत्न ( हीरा , नीलम , पन्ना , माणक और मोती )
Þ
पीपल , बरगद , जामुन , अशोक और आम के पत्ते ( सभी ना मिल पायें तो कोई भी दो प्रकार के पत्ते
ले सकते है )
Þ
कलश ढकने के लिए ढक्कन
( मिट्टी का या तांबे का )
Þ
ढक्कन में रखने के
लिए साबुत चावल
Þ
नारियल
Þ
लाल कपडा
Þ
फूल माला
Þ
फल तथा मिठाई
Þ
दीपक , धूप , अगरबत्ती
घट स्थापना की विधि –
सबसे पहले जौ बोने के लिए एक
ऐसा पात्र लें जिसमे कलश रखने के बाद भी आस पास जगह रहे। यह पात्र मिट्टी की थाली जैसा
कुछ हो तो श्रेष्ठ होता है। इस पात्र में जौ उगाने के लिए मिट्टी की एक परत बिछा दें।
मिट्टी शुद्ध होनी चाहिए । पात्र के बीच में कलश रखने की जगह छोड़कर बीज डाल दें। फिर
एक परत मिटटी की बिछा दें। एक बार फिर जौ डालें। फिर से मिट्टी की परत बिछाएं। अब इस
पर जल का छिड़काव करें।
कलश तैयार करें। कलश
पर स्वस्तिक बनायें। कलश के गले में मौली बांधें। अब कलश को थोड़े गंगा जल और शुद्ध
जल से पूरा भर दें।
कलश में साबुत सुपारी
, फूल और दूर्वा डालें। कलश में इत्र , पंचरत्न तथा सिक्का डालें। अब
कलश में पांचों प्रकार के पत्ते डालें। कुछ पत्ते
थोड़े बाहर दिखाई दें
इस प्रकार लगाएँ। चारों तरफ पत्ते लगाकर ढ़क्कन लगा दें। इस ढ़क्कन में अक्षत यानि साबुत
चावल भर दें।
नारियल तैयार करें। नारियल को
लाल कपड़े में लपेट कर मौली बांध दें। इस नारियल को कलश पर रखें। नारियल का मुँह आपकी
तरफ
होना चाहिए। यदि नारियल
का मुँह ऊपर की तरफ हो तो उसे रोग बढ़ाने वाला माना जाता है। नीचे की तरफ हो तो शत्रु
बढ़ाने वाला मानते
है , पूर्व की और हो तो धन
को नष्ट करने वाला मानते है। नारियल का मुंह वह होता है जहाँ से वह पेड़ से जुड़ा होता
है ।
अब यह कलश जौ उगाने के लिए तैयार
किये गये पात्र के बीच में रख दें। अब देवी देवताओं का आह्वान करते हुए प्रार्थना करें
कि
“ हे समस्त देवी देवता आप सभी नौ दिन के लिए कृपया
कलश में विराजमान हों”
आह्वान करने के बाद ये
मानते हुए कि सभी देवता गण कलश में विराजमान है। कलश की पूजा करें।
कलश को टीका करें , अक्षत चढ़ाएं , फूल माला अर्पित करें
, इत्र अर्पित करें , नैवेद्य यानि फल मिठाई आदि अर्पित करें।
घट स्थापना या कलश स्थापना के
बाद देवी माँ की चौकी स्थापित करें।
देवी माँ की चौकी की स्थापना और पूजा विधि
Þ
लकड़ी की एक चौकी को गंगाजल और शुद्ध जल से धोकर पवित्र
करें।
Þ
साफ कपड़े से पोंछ
कर उस पर लाल कपड़ा बिछा दें।
Þ
इसे कलश के दायी तरफ
रखें।
Þ
चौकी पर माँ दुर्गा
की मूर्ति अथवा फ्रेम युक्त फोटो रखें।
Þ
माँ को चुनरी ओढ़ाएँ।
Þ
धूप , दीपक आदि जलाएँ।
Þ
नौ दिन तक जलने वाली
माता की अखंड ज्योत जलाएँ।
Þ
देवी मां को तिलक
लगाए ।
Þ
माँ दुर्गा को वस्त्र, चंदन, सुहाग के सामान यानि
हलदी, कुमकुम, सिंदूर, अष्टगंध आदि अर्पित
करें ।
Þ
काजल लगाएँ ।
Þ
मंगलसूत्र, हरी चूडियां , फूल माला , इत्र , फल , मिठाई आदि अर्पित
करें।
Þ
श्रद्धानुसार दुर्गा
सप्तशती के पाठ ,
देवी माँ के स्रोत , सहस्रनाम आदि का पाठ करें।
Þ
देवी माँ की आरती
करें।
Þ
पूजन के उपरांत वेदी
पर बोए अनाज पर जल छिड़कें।
रोजाना देवी माँ का पूजन
करें तथा जौ वाले पात्र में जल का हल्का छिड़काव करें। जल बहुत अधिक या कम ना छिड़के
। जल इतना हो कि जौ अंकुरित हो सके। ये अंकुरित जौ शुभ माने जाते है। । यदि इनमे से किसी अंकुर का रंग सफ़ेद हो तो उसे बहुत अच्छा माना
जाता है। यह दुर्लभ होता है।
नवरात्री के व्रत उपवास –
नवरात्री में लोग अपनी श्रद्धा
के अनुसार देवी माँ की भक्ति करते है। कुछ लोग पलंग के ऊपर नहीं सोते। कुछ लोग शेव
नहीं करते , कुछ नाखुन नहीं काटते। इस समय नौ दिन तक व्रत , उपवास रखने का बहुत महत्त्व
है। अपनी श्रद्धानुसार एक समय भोजन और एक समय फलाहार करके या दोनों समय फलाहार करके
उपवास किया जाता है। इससे सिर्फ आध्यात्मिक बल ही प्राप्त नहीं होता , पाचन तंत्र भी मजबूत
होता है तथा मेटाबोलिज्म में जबरदस्त सुधार आता है।
व्रत के समय अंडा , मांस , शराब , प्याज , लहसुन , मसूर दाल , हींग , राई , मेथी दाना आदि वस्तुओं
का उपयोग नहीं करना चाहिए। इसके अलावा सादा
नमक के बजाय सेंधा नमक काम में लेना चाहिए।
नवरात्री में कन्या पूजन –
महाअष्टमी या नवमी के
दिन कन्या पूजन किया जाता है। कुछ लोग अष्टमी के दिन और कुछ नवमी के दिन कन्या पूजन
करते है। परिवार की रीति के अनुसार किसी भी दिन कन्या पूजन किया जा सकता है। तीन साल
से नौ साल तक आयु की कन्याओं को तथा साथ ही एक लांगुरिया (छोटा लड़का ) को खीर , पूरी , हलवा , चने की सब्जी आदि खिलाये
जाते है। कन्याओं को तिलक करके , हाथ में मौली बांधकर, गिफ्ट दक्षिणा आदि देकर आशीर्वाद
लिया जाता है , फिर उन्हें विदा किया जाता है।
महानवमी और विसर्जन –
महानवमी के दिन माँ का विशेष
पूजन करके पुन: पधारने का आवाहन कर, स्वस्थान विदा होने के लिए प्रार्थना
की जाती है। कलश के जल का छिड़काव परिवार के सदस्यों पर और पूरे घर में किया जाता है।
ताकि घर का प्रत्येक स्थान पवित्र हो जाये। अनाज के कुछ अंकुर माँ के पूजन के समय चढ़ाये
जाते है। कुछ अंकुर दैनिक पूजा स्थल पर रखे जाते है , शेष अंकुरों को बहते पानी में
प्रवाहित कर दिया जाता है। कुछ लोग इन अंकुर को शमीपूजन के समय शमी वृक्ष को अर्पित
करते हैं और लौटते समय इनमें से कुछ अंकुर केश में धारण करते हैं ।
मां दुर्गा के नवरुपों की उपासना
मां दुर्गा के नवरुपों
की उपासना निम्न मंत्रों के द्वारा की जाती है. प्रथम दिन शैलपुत्री की एवं क्रमशः
नवें दिन सिद्धिदात्री की उपासना की जाती है -
1.शैलपुत्री
वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्
।
वृषारुढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम् ॥
2. ब्रह्मचारिणी
दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू ।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा ॥
3. चन्द्रघण्टा
पिण्डजप्रवरारुढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता ।
प्रसादं तनुते मह्यां चन्द्रघण्टेति विश्रुता
॥
4. कूष्माण्डा
सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च ।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु
मे ॥
5. स्कन्दमाता
सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया ।
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी ॥
6. कात्यायनी
चन्द्रहासोज्वलकरा शार्दूलवरवाहना ।
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी ॥
7. कालरात्रि
एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता ।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी
॥
वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा ।
वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी
॥
8. महागौरी
श्वेते वृषे समारुढा श्वेताम्बरधरा शुचिः
।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा ॥
9. सिद्धिदात्री
सिद्धगन्धर्वयक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि ।
सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी
॥
कैसे करें मंत्र जाप-
नवरात्रि के प्रतिपदा
के दिन संकल्प लेकर प्रातःकाल स्नान करके पूर्व या उत्तर दिशा कि और मुख करके दुर्गा
कि मूर्ति या चित्र की पंचोपचार या दक्षोपचार या षोड्षोपचार से पूजा करें। शुद्ध-पवित्र
आसन ग्रहण कर रुद्राक्ष, स्फटिक, तुलसी या चंदन कि माला से मंत्र
का जाप १,५,७,११ माला जाप पूर्ण कर अपने कार्य उद्देश्य कि पूर्ति हेतु मां से प्राथना करें।
संपूर्ण नवरात्रि में जाप करने से मनोवांच्छित कामना अवश्य पूरी होती हैं। उपरोक्त
मंत्र के विधि-विधान के अनुसार जाप करने से मां कि कृपा से व्यक्ति को पाप और कष्टों
से छुटकारा मिलता हैं और मोक्ष प्राप्ति का मोक्ष प्राप्ति का मार्ग सुगम प्रतित होता
हैं।
नवार्ण मंत्र महत्व-
माता भगवती जगत् जननी
दुर्गा जी की साधना-उपासना के क्रम में, नवार्ण मंत्र एक ऐसा महत्त्वपूर्ण
महामंत्र है | नवार्ण अर्थात नौ अक्षरों का इस नौ अक्षर के महामंत्र में नौ
ग्रहों को नियंत्रित करने की शक्ति है, जिसके माध्यम से सभी क्षेत्रों
में पूर्ण सफलता प्राप्त की जा सकती है और भगवती दुर्गा का पूर्ण आशीर्वाद प्राप्त
किया जा सकता है यह महामंत्र शक्ति साधना में सर्वोपरि तथा सभी मंत्रों-स्तोत्रों में
से एक महत्त्वपूर्ण महामंत्र है। यह माता भगवती दुर्गा जी के तीनों स्वरूपों माता महासरस्वती, माता महालक्ष्मी व माता
महाकाली की एक साथ साधना का पूर्ण प्रभावक बीज मंत्र है और साथ ही माता दुर्गा के नौ
रूपों का संयुक्त मंत्र है और इसी महामंत्र से नौ ग्रहों को भी शांत किया जा सकता है
|
नवार्ण मंत्र-
|| ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे ||
नौ अक्षर वाले इस अद्भुत
नवार्ण मंत्र में देवी दुर्गा की नौ शक्तियां समायी हुई है | जिसका सम्बन्ध नौ ग्रहों
से भी है |
ऐं = सरस्वती का बीज मन्त्र है ।
ह्रीं = महालक्ष्मी का बीज मन्त्र है ।
क्लीं = महाकाली का बीज मन्त्र है ।
इसके साथ नवार्ण मंत्र
के प्रथम बीज ” ऐं “ से माता दुर्गा की प्रथम शक्ति माता शैलपुत्री की उपासना की जाती
है, जिस में सूर्य ग्रह को नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई है |
नवार्ण मंत्र के द्वितीय
बीज ” ह्रीं “ से माता दुर्गा की द्वितीय शक्ति माता ब्रह्मचारिणी की उपासना की जाती
है, जिस में चन्द्र ग्रह को नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई है|
नवार्ण मंत्र के तृतीय
बीज ” क्लीं “ से माता दुर्गा की तृतीय शक्ति माता चंद्रघंटा की उपासना की जाती है, जिस में मंगल ग्रह को
नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई है|
नवार्ण मंत्र के चतुर्थ
बीज ” चा “ से माता दुर्गा की चतुर्थ शक्ति माता कुष्मांडा की उपासना की जाती है, जिस में बुध ग्रह को नियंत्रित
करने की शक्ति समायी हुई है |
नवार्ण मंत्र के पंचम
बीज ” मुं “ से माता दुर्गा की पंचम शक्ति माँ स्कंदमाता की उपासना की जाती है, जिस में बृहस्पति ग्रह
को नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई है|
नवार्ण मंत्र के षष्ठ
बीज ” डा “ से माता दुर्गा की षष्ठ शक्ति माता कात्यायनी की उपासना की जाती है, जिस में शुक्र ग्रह को
नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई है |
नवार्ण मंत्र के सप्तम
बीज ” यै “ से माता दुर्गा की सप्तम शक्ति माता कालरात्रि की उपासना की जाती है, जिस में शनि ग्रह को
नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई है |
नवार्ण मंत्र के अष्टम
बीज ” वि “ से माता दुर्गा की अष्टम शक्ति माता महागौरी की उपासना की जाती है, जिस में राहु ग्रह को
नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई है |
नवार्ण मंत्र के नवम
बीज ” चै “ से माता दुर्गा की नवम शक्ति माता सिद्धीदात्री की उपासना की जाती है, जिस में केतु ग्रह को
नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई है l
नवार्ण मंत्र साधना विधी:-
विनियोग:
ll ॐ अस्य श्रीनवार्णमंत्रस्य ब्रम्हाविष्णुरुद्राऋषय: गायत्र्युष्णिगनुष्टुभश्छंन्दांसी, श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वत्यो
देवता: , ऐं बीजम , ह्रीं शक्ति: ,क्लीं कीलकम श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वत्यो
प्रीत्यर्थे जपे विनियोग: ll
विलोम बीज न्यास:-
ॐ च्चै नम: गूदे ।
ॐ विं नम: मुखे ।
ॐ यै नम: वाम नासा पूटे
।
ॐ डां नम: दक्ष नासा
पुटे ।
ॐ मुं नम: वाम कर्णे
।
ॐ चां नम: दक्ष कर्णे
।
ॐ क्लीं नम: वाम नेत्रे
।
ॐ ह्रीं नम: दक्ष नेत्रे
।
ॐ ऐं ह्रीं नम: शिखायाम
॥
(विलोम न्यास से सर्व दुखोकी नाश होता है, संबन्धित मंत्र उच्चारण
की साथ दहीने हाथ की उँगलियो से संबन्धित स्थान पे स्पर्श कीजिये)
ब्रम्हारूप न्यास:-
ॐ ब्रम्हा सनातन: पादादी
नाभि पर्यन्तं मां पातु ॥
ॐ जनार्दन: नाभेर्विशुद्धी
पर्यन्तं नित्यं मां पातु ॥
ॐ रुद्र स्त्रीलोचन:
विशुद्धेर्वम्हरंध्रातं मांपातु ॥
ॐ हं स: पादद्वयं मे
पातु ॥
ॐ वैनतेय: कर इयं मे
पातु ॥
ॐ वृषभश्चक्षुषी मे पातु
॥
ॐ गजानन: सर्वाड्गानी
मे पातु ॥
ॐ सर्वानंन्द मयोहरी:
परपरौ देहभागौ मे पातु ॥
(ब्रम्हारूपन्यास से सभी मनोकामनाये पूर्ण होती है, संबन्धित मंत्र उच्चारण
की साथ दोनों हाथो की उँगलियो से संबन्धित स्थान पे स्पर्श कीजिये)
ध्यान मंत्र-
खड्गमं चक्रगदेशुषुचापपरिघात्र्छुलं भूशुण्डीमशिर:
शड्ख संदधतीं करैस्त्रीनयना सर्वाड्ग भूषावृताम ।
नीलाश्मद्दुतीमास्यपाददशकां सेवेमहाकालीकां
यामस्तौत्स्वपिते हरौ कमलजो हन्तुं मधु कैटभम
॥
माला पूजन-
जाप आरंभ करनेसे पूर्व
ही इस मंत्र से माला का पुजा कीजिये,इस विधि से आपकी माला भी चैतन्य
हो जाती है.
“ऐं ह्रीं अक्षमालिकायै
नंम:’’
ॐ मां माले महामाये सर्वशक्तिस्वरूपिनी ।
चतुर्वर्गस्त्वयि न्यस्तस्तस्मान्मे सिद्धिदा
भव ॥
ॐ अविघ्नं कुरु माले त्वं गृहनामी दक्षिणे
करे । जपकाले च सिद्ध्यर्थ प्रसीद मम सिद्धये
॥
ॐ अक्षमालाधिपतये सुसिद्धिं देही देही सर्वमन्त्रार्थसाधिनी
साधय साधय सर्वसिद्धिं परिकल्पय परिकल्पय मे स्वाहा।
अब आप येसे चैतन्य माला
से नवार्ण मंत्र का जाप करे-
नवार्ण मंत्र-
ll ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ll
नवार्ण मंत्र की सिद्धि
9 दिनो मे 1,25,000 मंत्र जाप से होती है,परंतु आप येसे नहीं कर
सकते है तो रोज 1,3,5,7,11,21….इत्यादि माला मंत्र जाप भी कर सकते है,इस विधि से सारी इच्छाये
पूर्ण होती है,सारइ दुख समाप्त होते है और धन की वसूली भी सहज ही हो जाती है।
हमे शास्त्र के हिसाब
से यह सोलह प्रकार के न्यास देखने मिलती है जैसे ऋष्यादी,कर ,हृदयादी ,अक्षर ,दिड्ग,सारस्वत,प्रथम मातृका ,द्वितीय मातृका,तृतीय मातृका ,षडदेवी ,ब्रम्हरूप,बीज मंत्र ,विलोम बीज ,षड,सप्तशती ,शक्ति जाग्रण न्यास और
बाकी के 8 न्यास गुप्त न्यास नाम से जाने जाते है,इन सारे न्यासो का अपना एक अलग ही महत्व होता है,उदाहरण के लिये शक्ति
जाग्रण न्यास से माँ सुष्म रूप से साधकोके सामने शीघ्र ही आ जाती है और मंत्र जाप की
प्रभाव से प्रत्यक्ष होती है और जब माँ चाहे किसिभी रूप मे क्यू न आये हमारी कल्याण
तो निच्छित ही कर देती है।