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रविवार, 29 दिसंबर 2019

MUSIBAT DUR KARNE KA ISLAMI AMAL


मुसीबत दूर करने का साबर मंत्र

मुसीबत दूर करने का साबर मंत्र  इलाहि बहुर्मत सईद मही अलदीन । इलाहि बहुर्मत शेख़ मही अलदीन । इलाहि बहुर्मत गौस मही अलदीन । इलाहि बहुर्मत ख्वाजा मही अलदीन । इलाहि बहुर्मत गरीब मही अलदीन । इलाहि बहुर्मत मसकीन मही अलदीन । इलाहि बहुर्मत लेख मही अलदीन । इलाहि बहुर्मत कुतुब मही अलदीन । इलाहि बहुर्मत मखदूम मही अलदीन । इलाहि बहुर्मत दरवेश मही अलदीन । इलाहि बहुर्मत वाली मही अलदीन ।   अचानक आई मुसीबतों को दूर करने के लिए यह एक सर्वश्रेष्ठ मंत्र है । इस मंत्र के द्वारा समस्त परेशानियों से सरलता पूर्वक छुटकारा पाया जा सकता है । किसी भी पुर्णिमा से नियमित इस मंत्र का जाप आरंभ कर दे और जब तक परेशानिया दूर न हो जाए तब तक प्रतिदिन श्रद्धापूर्वक इस मंत्र का अधिकाधिक जाप करते रहे । निश्चय ही साधक को फायदा होगा । यह एक अनुभूत मंत्र है ।
इलाहि बहुर्मत सईद मही अलदीन ।
इलाहि बहुर्मत शेख़ मही अलदीन ।
इलाहि बहुर्मत गौस मही अलदीन ।
इलाहि बहुर्मत ख्वाजा मही अलदीन ।
इलाहि बहुर्मत गरीब मही अलदीन ।
इलाहि बहुर्मत मसकीन मही अलदीन ।
इलाहि बहुर्मत लेख मही अलदीन ।
इलाहि बहुर्मत कुतुब मही अलदीन ।
इलाहि बहुर्मत मखदूम मही अलदीन ।
इलाहि बहुर्मत दरवेश मही अलदीन ।
इलाहि बहुर्मत वली मही अलदीन ।


अचानक आई मुसीबतों को दूर करने के लिए यह एक सर्वश्रेष्ठ मंत्र है । इस मंत्र के द्वारा समस्त परेशानियों से सरलता पूर्वक छुटकारा पाया जा सकता है । किसी भी पुर्णिमा से नियमित इस मंत्र का जाप आरंभ कर दे और जब तक परेशानिया दूर न हो जाए तब तक प्रतिदिन श्रद्धापूर्वक इस मंत्र का अधिकाधिक जाप करते रहे । निश्चय ही साधक को फायदा होगा । यह एक अनुभूत मंत्र है ।

गुरुवार, 28 नवंबर 2019

Sidh Tantra Totke and Upaay | सिद्ध टोटके और उपाय‬

1. आर्थिक समस्या के छुटकारे के लिए : 

यदि आप हमेशा आर्थिक समस्या से परेशान हैं तो इसके लिए आप 21 शुक्रवार 9 वर्ष से कम आयु की 5 कन्यायों को खीर व मिश्री का प्रसाद बांटें |

सिद्ध टोटके https://powerfulshabarmantra.blogspot.com/  और उपाय‬

2. घर और कार्यस्थल में धन वर्षा के लिए : 

इसके लिए आप अपने घर, दुकान या शोरूम में एक अलंकारिक फव्वारा रखें | या एक मछलीघर जिसमें 8 सुनहरी व एक काली मछ्ली हो रखें | इसको उत्तर या उत्तरपूर्व की ओर रखें | यदि कोई मछ्ली मर जाय तो उसको निकाल कर नई मछ्ली लाकर उसमें डाल दें |

3. परेशानी से मुक्ति के लिए : 

आज कल हर आदमी किसी न किसी कारण से परेशान है | कारण कोई भी हो आप एक तांबे के पात्र में जल भर कर उसमें थोडा सा लाल चंदन मिला दें | उस पात्र को सिरहाने रख कर रात को सो जांय | प्रातः उस जल को तुलसी के पौधे पर चढा दें | धीरे-धीरे परेशानी दूर होगी |

4. कुंवारी कन्या के विवाह हेतु :


    1. यदि कन्या की शादी में कोई रूकावट आ रही हो तो पूजा वाले 5 नारियल लें | भगवान शिव की मूर्ती या फोटो के आगे रख कर “ऊं श्रीं वर प्रदाय श्री नामः” मंत्र का पांच माला जाप करें फिर वो पांचों नारियल शिव जी के मंदिर में चढा दें | विवाह की बाधायें अपने आप दूर होती जांयगी |
    2. प्रत्येक सोमवार को कन्या सुबह नहा-धोकर शिवलिंग पर “ऊं सोमेश्वराय नमः” का जाप करते हुए दूध मिले जल को चढाये और वहीं मंदिर में बैठ कर रूद्राक्ष की माला से इसी मंत्र का एक माला जप करे | विवाह की सम्भावना शीघ्र बनती नज़र आयेगी

5. व्यापार बढाने के लिए :


    1. शुक्ल पक्ष में किसी भी दिन अपनी फैक्ट्री या दुकान के दरवाजे के दोनों तरफ बाहर की ओर थोडा सा गेहूं का आटा रख दें | ध्यान रहे ऐसा करते हुए आपको कोई देखे नही |
    2. पूजा घर में अभिमंत्रित श्र्री यंत्र रखें |
    3. शुक्र्वार की रात को सवा किलो काले चने भिगो दें | दूसरे दिन शनिवार को उन्हें सरसों के तेल में बना लें | उसके तीन हिस्से कर लें | उसमें से एक हिस्सा घोडे या भैंसे को खिला दें | दूसरा हिस्सा कुष्ठ रोगी को दे दें और तीसरा हिस्सा अपने सिर से घडी की सूई से उल्टे तरफ तीन बार वार कर किसी चौराहे पर रख दें | यह प्रयोग 40 दिन तक करें | कारोबार में लाभ होगा |

6. लगातार बुखार आने पर :


     1. यदि किसी को लगातार बुखार आ रहा हो और कोई भी दवा असर न कर रही हो तो आक की जड लेकर उसे किसी कपडे में कस कर बांध लें | फिर उस कपडे को रोगी के कान से बांध दें | बुखार उतर जायगा |
     2. इतवार या गुरूवार को चीनी, दूध, चावल और पेठा (कद्दू-पेठा, सब्जी बनाने वाला) अपनी इच्छा अनुसार लें और उसको रोगी के सिर पर से वार कर किसी भी धार्मिक स्थान पर, जहां पर लंगर बनता हो, दान कर दें |
     3. यदि किसी को टायफाईड हो गया हो तो उसे प्रतिदिन एक नारियल पानी पिलायें | कुछ ही दिनों में आराम हो जायगा |

7. नौकरी जाने का खतरा हो या ट्रांसफर रूकवाने के लिए : 

पांच ग्राम डली वाला सुरमा लें | उसे किसी वीरान जगह पर गाड दें | ख्याल रहे कि जिस औजार से आपने जमीन खोदी है उस औजार को वापिस न लायें | उसे वहीं फेंक दें दूसरी बात जो ध्यान रखने वाली है वो यह है कि सुरमा डली वाला हो और एक ही डली लगभग 5 ग्राम की हो | एक से ज्यादा डलियां नहीं होनी चाहिए |

8. कारोबार में नुकसान हो रहा हो या कार्यक्षेत्र में झगडा हो रहा हो तो : 

यदि उपरोक्त स्थिति का सामना हो तो आप अपने वज़न के बराबर कच्चा कोयला लेकर जल प्रवाह कर दें | अवश्य लाभ होगा |

9. मुकदमें में विजय पाने के लिए : 

यदि आपका किसी के साथ मुकदमा चल रहा हो और आप उसमें विजय पाना चाहते हैं तो थोडे से चावल लेकर कोर्ट/कचहरी में जांय और उन चावलों को कचहरी में कहीं पर फेंक दें | जिस कमरे में आपका मुकदमा चल रहा हो उसके बाहर फेंकें तो ज्यादा अच्छा है | परंतु याद रहे आपको चावल ले जाते या कोर्ट में फेंकते समय कोई देखे नहीं वरना लाभ नहीं होगा | यह उपाय आपको बिना किसी को पता लगे करना होगा |

10. धन के ठहराव के लिए : 

आप जो भी धन मेहनत से कमाते हैं उससे ज्यादा खर्च हो रहा हो अर्थात घर में धन का ठहराव न हो तो ध्यान रखें को आपके घर में कोई नल लीक न करता हो | अर्थात पानी टप–टप टपकता न हो | और आग पर रखा दूध या चाय उबलनी नहीं चाहिये | वरना आमदनी से ज्यादा खर्च होने की सम्भावना रह्ती है |

11. मानसिक परेशानी दूर करने के लिए : 

रोज़ हनुमान जी का पूजन करे व हनुमान चालीसा का पाठ करें | प्रत्येक शनिवार को शनि को तेल चढायें | अपनी पहनी हुई एक जोडी चप्पल किसी गरीब को एक बार दान करें |

12. बच्चे के उत्तम स्वास्थ्य व दीर्घायु के लिए :


     1. एक काला रेशमी डोरा लें | “ऊं नमोः भगवते वासुदेवाय नमः” का जाप करते हुए उस डोरे में थोडी थोडी दूरी पर सात गांठें लगायें | उस डोरे को बच्चे के गले या कमर में बांध दें |
     2 . प्रत्येक मंगलवार को बच्चे के सिर पर से कच्चा दूध 11 बार वार कर किसी जंगली कुत्ते को शाम के समय पिला दें | बच्चा दीर्घायु होगा |

13. किसी रोग से ग्रसित होने पर : 

सोते समय अपना सिरहाना पूर्व की ओर रखें | अपने सोने के कमरे में एक कटोरी में सेंधा नमक के कुछ टुकडे रखें | सेहत ठीक रहेगी |

14. प्रेम विवाह में सफल होने के लिए : 

यदि आपको प्रेम विवाह में अडचने आ रही हैं तो : शुक्ल पक्ष के गुरूवार से शुरू करके विष्णु और लक्ष्मी मां की मूर्ती या फोटो के आगे “ऊं लक्ष्मी नारायणाय नमः” मंत्र का रोज़ तीन माला जाप स्फटिक माला पर करें | इसे शुक्ल पक्ष के गुरूवार से ही शुरू करें | तीन महीने तक हर गुरूवार को मंदिर में प्रशाद चढांए और विवाह की सफलता के लिए प्रार्थना करें |

15. नौकर न टिके या परेशान करे तो : 

हर मंगलवार को बदाना (मीठी बूंदी) का प्रशाद लेकर मंदिर में चढा कर लडकियों में बांट दें | ऐसा आप चार मंगलवार करें |

16. बनता काम बिगडता हो, लाभ न हो रहा हो या कोई भी परेशानी हो तो : 

हर मंगलवार को हनुमान जी के चरणों में बदाना (मीठी बूंदी) चढा कर उसी प्रशाद को मंदिर के बाहर गरीबों में बांट दें |

17. यदि आपको सही नौकरी मिलने में दिक्कत आ रही हो तो :


    1. कुएं में दूध डालें| उस कुएं में पानी होना चहिए |
    2. काला कम्बल किसी गरीब को दान दें |
    3. 6 मुखी रूद्राक्ष की माला 108 मनकों वाली माला धारण करें जिसमें हर मनके के बाद चांदी के टुकडे पिरोये हों |

18. अगर आपका प्रमोशन नहीं हो रहा तो :


    1. गुरूवार को किसी मंदिर में पीली वस्तुये जैसे खाद्य पदार्थ, फल, कपडे इत्यादि का दान करें |
    2. हर सुबह नंगे पैर घास पर चलें |   

19. पति को वश में करने के लिए : 

यह प्रयोग शुक्ल पक्ष में करना चाहिए | एक पान का पत्ता लें | उस पर चंदन और केसर का पाऊडर मिला कर रखें | फिर दुर्गा माता जी की फोटो के सामने बैठ कर दुर्गा स्तुति में से चँडी स्त्रोत का पाठ 43 दिन तक करें | पाठ करने के बाद चंदन और केसर जो पान के पत्ते पर रखा था, का तिलक अपने माथे पर लगायें | और फिर तिलक लगा कर पति के सामने जांय | यदि पति वहां पर न हों तो उनकी फोटो के सामने जांय | पान का पता रोज़ नया लें जो कि साबुत हो कहीं से कटा फटा न हो | रोज़ प्रयोग किए गए पान के पत्ते को अलग किसी स्थान पर रखें | 43 दिन के बाद उन पान के पत्तों को जल प्रवाह कर दें | शीघ्र समस्या का समाधान होगा |

20. यदि आपको धन की परेशानी है, नौकरी मे दिक्कत आ रही है, प्रमोशन नहीं हो रहा है या आप अच्छे करियर की तलाश में है तो यह उपाय कीजिए : 

किसी दुकान में जाकर किसी भी शुक्रवार को कोई भी एक स्टील का ताला खरीद लीजिए | लेकिन ताला खरीदते वक्त न तो उस ताले को आप खुद खोलें और न ही दुकानदार को खोलने दें ताले को जांचने के लिए भी न खोलें | उसी तरह से डिब्बी में बन्द का बन्द ताला दुकान से खरीद लें | इस ताले को आप शुक्रवार की रात अपने सोने के कमरे में रख दें | शनिवार सुबह उठकर नहा-धो कर ताले को बिना खोले किसी मन्दिर, गुरुद्वारे या किसी भी धार्मिक स्थान पर रख दें | जब भी कोई उस ताले को खोलेगा आपकी किस्मत का ताला खुल जायगा |

21. यदि आप अपना मकान, दुकान या कोई अन्य प्रापर्टी बेचना चाहते हैं और वो बिक न रही हो तो यह उपाय करें : 

बाजार से 86 (छियासी) साबुत बादाम (छिलके सहित) ले आईए | सुबह नहा-धो कर, बिना कुछ खाये, दो बादाम लेकर मन्दिर जाईए | दोनो बादाम मन्दिर में शिव-लिंग या शिव जी के आगे रख दीजिए | हाथ जोड कर भगवान से प्रापर्टी को बेचने की प्रार्थना कीजिए और उन दो बादामों में से एक बादाम वापिस ले आईए | उस बादाम को लाकर घर में कहीं अलग रख दीजिए | ऐसा आपको 43 दिन तक लगातार करना है | रोज़ दो बादाम लेजाकर एक वापिस लाना है | 43 दिन के बाद जो बादाम आपने घर में इकट्ठा किए हैं उन्हें जल-प्रवाह (बहते जल, नदी आदि में) कर दें | आपका मनोरथ अवश्य पूरा होगा | यदि 43 दिन से पहले ही आपका सौदा हो जाय तो भी उपाय को अधूरा नही छोडना चाहिए | पूरा उपाय करके 43 बादाम जल-प्रवाह करने चाहिए | अन्यथा कार्य में रूकावट आ सकती है |

22. यदि आप ब्लड प्रेशर या डिप्रेशन से परेशान हैं तो : 

इतवार की रात को सोते समय अपने सिरहाने की तरफ 325 ग्राम दूध रख कर सोंए | सोमवार को सुबह उठ कर सबसे पहले इस दूध को किसी कीकर या पीपल के पेड को अर्पित कर दें | यह उपाय 5 इतवार तक लगातार करें | लाभ होगा |

23. माईग्रेन या आधा सीसी का दर्द का उपाय : 

सुबह सूरज उगने के समय एक गुड का डला लेकर किसी चौराहे पर जाकर दक्षिण की ओर मुंह करके खडे हो जांय | गुड को अपने दांतों से दो हिस्सों में काट दीजिए | गुड के दोनो हिस्सों को वहीं चौराहे पर फेंक दें और वापिस आ जांय | यह उपाय किसी भी मंगलवार से शुरू करें तथा 5 मंगलवार लगातार करें | लेकिन ध्यान रहे यह उपाय करते समय आप किसी से भी बात न करें और न ही कोई आपको पुकारे न ही आप से कोई बात करे | अवश्य लाभ होगा |

24. फंसा हुआ धन वापिस लेने के लिए : 

यदि आपकी रकम कहीं फंस गई है और पैसे वापिस नहीं मिल रहे तो आप रोज़ सुबह नहाने के पश्चात सूरज को जल अर्पण करें | उस जल में 11 बीज लाल मिर्च के डाल दें तथा सूर्य भगवान से पैसे वापिसी की प्रार्थना करें | इसके साथ ही "ओम आदित्याय नमः"  का जाप करें |



नोट :
     1. सभी उपाय दिन में ही करने चाहिए | अर्थात सूरज उगने के बाद व सूरज डूबने से पहले |
     2. सच्चाई व शुद्ध भोजन पर विशेष ध्यान देना चाहिए |
     3. किसी भी उपाय के बीच मांस, मदिरा, झूठे वचन, परस्त्री गमन की विशेष मनाही है |
     4. सभी उपाय पूरे विश्वास व श्रद्धा से करें, लाभ अवश्य होगा |
     5. एक दिन में एक ही उपाय करना चाहिए | यदि एक से ज्यादा उपाय करने हों तो छोटा उपाय पहले करें | एक उपाय के दौरान दूसरे उपाय का कोई सामान भी घर में न रखें |
     6. जो भी उपाय शुरू करें तो उसे पूरा अवश्य करें | अधूरा न छोडें |

शनिवार, 26 अक्टूबर 2019

Deepawali 13 totke for money

तिजोरी यानी धन की पेटी अधिकांश घरों में होती है। यह ऐसी जगह होती है जहां हम अपनी कीमती सामग्री और धन-पैसा रखते हैं। यह तिजोरी कभी खाली नहीं रखना चाहिए। यहां धन की आवक बनी रहे इसलिए कुछ टोटके  हैं जिनको अपनाकर आप अपनी तिजोरी या धन की पेटी को हमेशा भरे हुए पायेंगे। आप इन उपायों को दीपावली के दिन करें। धन विशेष रूप से लाभ मिलता रहेगा।

 

 

पहला टोटका :

पूजा की सुपारी : पूजा की सुपारी पूर्ण एवं अखंडित होती है। इसीलिए इसको पूजा के समय गौरी-गणेश का रूप मानकर उस पर जनेऊ चढ़ाई जाती है। बाद में उस पूजा की सुपारी को तिजोरी में रखना चाहिए क्योंकि जहां गणेशजी यानी बुद्धि के स्वामी का निवास होता है वहीं लक्ष्मी का निवास होता है। इससे घर में लक्ष्मी का स्थाई निवास होता है।

 

लक्ष्मी पूजन में सुपारी रखें। सुपारी पर लाल धागा लपेटकर अक्षत, कुमकुम, पुष्प आदि पूजन सामग्री से पूजा करें और पूजन के बाद इस सुपारी को तिजोरी में रखें।

 

दूसरा टोटका :

तिजोरी में रखें ये वस्तुएं : शुक्रवार को पीले कपड़े में 5 कौड़ी और थोड़ी-सी केसर, चांदी के सिक्के के साथ बांधकर तिजोरी या धन रखने के स्थान पर रख दें। उसके साथ थोड़ी हल्दी की गांठें भी रख दें। कुछ दिनों में ही इसका असर होने लगेगा।

 

तीसरा टोटका :

रहेगी सदा बरकत इस उपाय से : तिजोरी में 10-10 के नोट की एक गड्डी रखें और कुछ पीतल और तांबें के सिक्के भी रखे। पीले सिक्के होंगे तो वह भी चल जाएंगे। कुछ सिक्के आपकी जेब में भी रखें। ध्यान रखें कि सिक्के जर्मन या एल्युमिनियम वाले न हों।

 

चौथा टोटका :

पीपल का पत्ता : एक पीपल का पत्ता लें और उस पर देशी घी में मिश्रित लाल सिंदूर से उसे पर ॐ लिख कर इसे तिजोरी या धन रखने वाले स्थान पर रख दें। ऐसा कम से कम पांच शनिवार करेंगे तो पांच पत्ते हो जाएंगे। इससे धन संबंधी तंगी दूर हो जाएगी।

 

पांचवां टोटका :

पीली कौड़ी : पुष्य नक्षत्र के दिन शाम के समय लक्ष्मी पूजन करें। पूजन में पुराने चांदी के सिक्के और रुपयों के साथ कौड़ी रखकर उनका केसर और हल्दी से पूजन करें। पूजा के बाद इन्हें तिजोरी में रख दें। आपकी तिजोरी हमेशा पैसों से भरी रहेगी।

 

छठा टोटका :

दक्षिणावर्ती शंख रखें- तंत्र-मंत्र में दक्षिणावर्ती शंख का विशेष महत्व है। इसे घर के पूजा स्थान या तिजोरी में रखने से माता लक्ष्मी स्वत: ही इसकी ओर आकर्षित होती है और रंक को भी राजा बना देती है। सोम-पुष्य योग में इसे घर में रखने से सुख-समृद्धि बनी रहेगी।

सातवां टोटका :

भोजपत्र : अखंडित भोजपत्र पर लाल चंदन को पानी में घोल लें और उसको इंक जैसा इस्तेमाल करते हुए मोर पंख से ‘श्रीं’ लिखें। अब उस भोजपत्र को तिजोरी में रख दें। कुछ ही दिनों में फायदा शुरु हो जाएगा। पैसा बढ़ता चला जाएगा।
आठवां टोटका :

बहेड़ा की जड़ : बहेड़ा सहज सुलभ फल है। इसका पेड़ बहुत बड़ा, महुआ के पेड़ जैसा होता है। रवि-पुष्य के दिन इसकी जड़ या पत्ते लाकर उनकी पूजा करें, तत्पश्चात् इन्हें लाल वस्त्र में बांधकर भंडारगृह या तिजोरी में रख दें। यह उपाय आपकी समृद्धि बढ़ाएगा।

 

नौवां टोटका :

शंखपुष्पी की जड़ : पुष्य-नक्षत्र के दिन शंखपुष्पी की जड़ लाकर, इसे देव-प्रतिमाओं की भांति पूजें और इसके पश्चात्य चांदी की डिब्बी में प्रतिष्ठित करके, उस डिब्बी को धन की पेटी, तिजोरी, भण्डारघर अथवा बक्से में रख दें। यह टोटका लक्ष्मीजी की कृपा कराने में अत्यन्त समर्थ है। हर गुरु-पुष्य के दिन शंखपुष्पी की जड़ व चांदी की डिब्बी बदल दें। पहले वाली बहते पानी में प्रवाह कर दें।

 

दसवां टोटका :

यंत्र स्थापना : ऐश्वर्य वृद्धि यंत्र या धनदा यंत्र की स्थापना करें। दोनों में से से किसी भी एक यंत्र को विधिवत रूप से पूजन करके उसे धन रखने के स्थान पर या तिजोरी में रख दें। इससे आपकी तिजोरी कभी भी खाली नहीं रहेगी और धन बढ़ता ही जाएगा।

 

ग्यारहवां टोटका :

काली गुंजा : धन-संपदा के लिए तिजोरी के नीचे या तिजोरी के अंदर काली गुंजा के ग्यारह दाने पवित्र करके रखें। धन रखने के स्थान पर या तिजोरी में हमेशा लाल वस्त्र बिछाएं। दूकान में तिजोरी के पास लक्ष्मी गणेश की तस्वीर लगाएं।

 

बारहवां टोटका :

व्यापार में लाभ हेतु : होली के दिन गुलाल के एक खुले पैकेट में एक मोती शंख और चांदी का एक सिक्का रखकर उसे नए लाल कपडे में लाल मौली से बांधकर तिजोरी में रखें, व्यवसाय में लाभ होगा।

 

इसके अलावा व्यवसाय में मनोनुकूल लाभ की प्राप्ति नहीं हो रही हो तो किसी भी शनिवार के दिन नीले कपड़े में 21 दाने रक्त गुंजा के बांधकर तिजोरी में रख दें। अपने इष्टदेव का ध्यान करते हुए हर रोज धूप, दीप अवश्य दिखाएं। ऐसा नियमित करने से व्यापार में लाभ मिलेगा और सफलता भी प्राप्त होगी।

 

तेरहवां टोटका :

श्रीफल : किसी शुभ मुहूर्त में श्रीलक्ष्मी फल को लाल कपड़े में रखकर उस पर कामिया सिन्दूर, देशी कपूर तथा साबुत लौंग चढ़ाकर धूप-दीप देकर एवं कुछ दक्षिणा अर्पित करके अपने गल्ले या तिजोरी में रखें। इससे धन में वृद्धि होती चली जाएगी। यदि एक नारियल चमकदार लाल कपड़े में लपेटकर धन रखने के स्थान पर रखा जाए तो शीघ्र ही धन का आगमन होगा।

शुक्रवार, 25 अक्टूबर 2019

Shree Laxmi Kamla Prayog on Deepawali 2019


यह श्री कमला प्रयोग सारे दु:खो को हर लेता है ,घर की सभी प्रकार की अशुभता दूर कर देता है , दरिद्र्यता दूर कर के घर में शुभ लक्ष्मी की प्राप्ति होकर सभी प्रकार का सुख प्राप्त होता है | इसका 16 बार 108 दिन तक पाठ करनेसे अति शीघ्र फल प्राप्त होता है | फ़लश्रुती केवल अन्तः मे एक बार पढे |

!! श्री कमला प्रयोगः !!

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः |

दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो: स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि |

हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्ण रजतस्त्रजाम | चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जात वेदो म आवह ||

दारिद्र्यदु:खभयहारिणी क त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता ||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः||१||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः |

दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो: स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि |

तां म आव ह जातवेदो लक्ष्मी मनप गामिनीम् | यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषा नहम् ||

दारिद्र्यदु:खभयहारिणी क त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता ||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः||२||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः |

दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो: स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि |

अश्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनादप्रबोधिनीम् | श्रियं देवीमुपह्वये श्रीर्मा देवीजुषताम् ||

दारिद्र्यदु:खभयहारिणी क त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता ||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः||३||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः |

दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो: स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि |

कां सोस्मितां हिरण्यप्राकारामार्द्रां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम् | पद्मे स्थितां पद्मवर्णां तामिहोपह्वये श्रियम् ||

दारिद्र्यदु:खभयहारिणी क त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता ||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः||४ ||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः |

दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो: स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि |

चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं श्रियं लोके देवजुष्टामुदाराम् | तां पद्मिनीमीं शरणमहं प्रपद्दे अलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे ||

दारिद्र्यदु:खभयहारिणी क त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता ||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः||५||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः |

दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो: स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि |

आदित्यवर्णे तपसोऽधिजातो वनस्पतिस्तववृक्षोथ बिल्वः | तस्य फलानि तपसानुदन्तु मायान्तरायाश्च बाह्या अलक्ष्मीः ||

दारिद्र्यदु:खभयहारिणी क त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता ||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः||६||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः |

दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो: स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि |

उपैतु मां देवसखः कीर्तिश्च मणिना सह | प्रादुर्भूतो सुराष्ट्रेऽस्मिन् कीर्तिमृद्धिं ददातु मे ||

दारिद्र्यदु:खभयहारिणी क त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता ||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः||७||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः |

दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो: स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि |

क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठां अलक्ष्मीं नाशयाम्यहम् | अभूतिमसमृद्धिं च सर्वांनिर्णुद मे गृहात् ||दारिद्र्यदु:खभयहारिणी क त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता ||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः||८||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः |

दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो: स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि |

गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करीषिणीम् | ईश्वरीं सर्वभूतानां तामिहोपह्वये श्रियम् ||दारिद्र्यदु:खभयहारिणी क त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता ||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः||९||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः |

दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो: स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि |

मनसः काममाकूतिं वाचः सत्यमशीमहि | पशूनां रूपमन्नस्य मयि श्रीः श्रयतां यशः ||दारिद्र्यदु:खभयहारिणी क त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता ||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः ||१०||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः |

दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो: स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि |

कर्दमेनप्रजाभूता मयिसम्भवकर्दम | श्रियं वासय मे कुले मातरं पद्ममालिनीम् ||

दारिद्र्यदु:खभयहारिणी क त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता ||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः||११||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः |

दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो: स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि |

आपः सृजन्तु स्निग्धानि चिक्लीत वस मे गृहे | नि च देवीं मातरं श्रियं वासय मे कुले ||दारिद्र्यदु:खभयहारिणी क त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता ||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः||१२ ||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः |

दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो: स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि |

आर्द्रां पुष्करिणीं पुष्टिं पिङ्गलां पद्ममालिनीम् | चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह ||दारिद्र्यदु:खभयहारिणी क त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता ||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः||१३ ||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः |

दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो: स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि |

आर्द्रां यः करिणीं यष्टिं सुवर्णां हेममालिनीम् | सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह ||दारिद्र्यदु:खभयहारिणी क त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता ||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः||१४ ||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः |

दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो: स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि |

तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् | यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योश्वान्विन्देयं पुरुषानहम् ||

दारिद्र्यदु:खभयहारिणी क त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता ||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः||१५||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः |

दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो: स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि |

यः शुचिः प्रयतो भूत्वा जुहुयादाज्यमन्वहम् | सूक्तं पञ्चदशर्चं च श्रीकामः सततं जपेत् ||दारिद्र्यदु:खभयहारिणी क त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता ||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः||१६||

|| फलश्रुती ||

पद्मानने पद्म-ऊरू पद्माक्षी पद्मसम्भवे | तन्मेभजसि पद्माक्षी येन सौख्यं लभाम्यहम् ||१७||

अश्वदायै गोदायै धनदायै महाधने | धनं मे जुषतां देवि सर्वकामांश्च देहि मे ||१८||

पद्मानने पद्मविपद्मपत्रे पद्मप्रिये पद्मदलायताक्षि | विश्वप्रिये विष्णु्मनोनुकूले त्वत्पादपद्मं मयि संनिधत्स्व ||१९||

पुत्रपौत्रं धनं धान्यं हस्त्यश्वादिगवेरथम् | प्रजानां भवसि माता आयुष्मन्तं करोतु मे ||२०||

धनमग्निर्धनं वायु:, धनं सूर्यो धनं वसुः | धनमिन्द्रो बृहस्पति: वरुणं धनमस्तु ते ||२१||

वैनतेय सोमं पिब सोमं पिबतु वृत्रहा | सोमं धनस्य सोमिनो मह्यं ददातु सोमिनः ||२२||

न क्रोधो न च मात्सर्यं न लोभो नाशुभा मतिः | भवन्ति कृतपुण्यानां भक्तानां श्रीसूक्तं जपेत् ||२३||

सरसिजनिलये सरोजहस्ते धवलतरांशुक-गन्ध-माल्य-शोभे | भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम् ||२४||

विष्णुपत्नीं क्षमां देवीं माधवीं माधवप्रियाम् | लक्ष्मीं प्रियसखीं देवीं नमाम्यच्युतवल्लभाम् ||२५||

महालक्ष्मी च विद्महे विष्णुपत्नी च धीमहि | तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात् ||२६||

श्रीवर्चस्वमायुष्यमारोग्यमाविधाच्छोभमानं महीयते | धान्यं धनं पशुं बहुपुत्रलाभं शतसंवत्सरं दीर्घमायुः ||२७||

आनन्द: कर्दम: श्रीद: चिक्लीत इति विश्रुताः | ऋषयः श्रिय पुत्राश्च मयि श्रीर्देवि-देवता ||२८||

ऋण रोगादि दारिद्र्यं पापं क्षुद् अपमृत्यवः | भय शोक मनस्तापाः नश्यन्तु मम सर्वदा ||२९||

ॐ शान्ति: शान्तिः शान्तिः ॐ

रविवार, 6 अक्टूबर 2019

Shabar Mantra eBook Part 20 Anubhut Shabar Mantra | शाबर मन्त्र भाग 20 अद्भुत शाबर मन्त्र संग्रह

Shabar Mantra eBook Part 20 Anubhut Shabar Mantra  
शाबर मन्त्र भाग 20 अद्भुत शाबर मन्त्र संग्रह  



|| श्री गुरुवे नम: || 


ॐ गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वर: 
गुरु साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नम:|| 

गुरुदेव ही ब्रह्मा, विष्णु और शिव है | गुरुदेव ही साक्षात् परब्रह्म है | 
अतः ऐसे गुरुदेव को मैं नमस्कार करके शाबर मंत्र के विषय में लिख रहा हूँ | मन्त्र तन्त्र शास्त्र का विषय बहुत ही कठिन व जटिल है | 
शाबर मंत्र की विद्याये कई प्रकार की कही गयी है | कई तांत्रिक लोग ६४ (64) योगिनी को लेकर चलते है, कई ३ योगिनी को और कई ६८ (68) योगिनी को, तो कई ८४ (84) योगिनी को लेकर चलते है | शाबर मन्त्रो के अलग अलग फड़ होते है जैसे- औघड़, उल्तनी, पलटनी, बैह्या, मरघट वीर, मरही माता, दुल्ल्हादेव, बाघ देव, खैर माता, भिल्ट बाबा, भैसासुर, महिसासुर, काल्हा बाबा, कावड़ खण्ड की मैली, देसावरी, मराहि माता आदि ||

शाबर मंत्र अत्यंत ही अटपटे शब्दों की रचना होती है | जिसके बार बार आवृति से यह अत्यंत ही तीक्ष्ण प्रभावशाली बनकर तनाव चिंता से मुक्ति दिलाते ही है | साथ में मानवी इच्छा को पूर्ण करते है | इन मंत्रो के मूलभूत स्रष्टा गुरु गोरखनाथ जी है | जिन्होंने इन मंत्रो की रचना कर अध्यात्म के क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन लाया था | वस्तुतः वैदिक मन्त्र कीलित होते है जिनको की जनसाधारण द्वारा सिद्ध करना बहुत ही मुस्किल कार्य है | तथा इनको बिना गुरु के ना ही समझा जा सकता है और ना ही इन्हें सिद्ध करने का अधिकारी हो सकता है | मन्त्र उच्चारण भी बहुत कठिन होते है जिनको की बिना व्याकरण ज्ञान के ठीक ढंग से उच्चारित नहीं किया जा सकता है | तब जाकर शिव जी, गुरु गोरखनाथ, नाथ पंथी, सिद्ध साधको आदि ने लोक कल्याण के लिए इन शाबर मंत्रो का निर्माण किया जिनका कोई भी व्यक्ति किसी भी धर्म, जाति, उम्र, स्त्री, पुरुष कोई भी इनका प्रयोग बड़ी ही आसानी से खुद ही कर सकता है | शाबर मंत्रो की सिद्धी के लिए वैदिक तांत्रिक मन्त्रो जैसे कड़े एंव समस्या पूर्ण विधान नहीं होते है | इनके साथ समय, स्थान, पात्र, सामग्री, जप संख्या, हवन आदि की ज्यादा जरूरत नहीं पड़ती | कहीं भी, कभी भी, किसी भी स्थिति में कोई भी इन शाबर मंत्रो का प्रयोग कर सकता है |


वैदिक मन्त्र शास्त्र में तो अगणित मन्त्र-तन्त्र है | इसी प्रकार अन्य धर्म – मुस्लिम, जैन, बुद्ध आदि में भी ये कम नही है | ये मन्त्र तन्त्र प्राय: लुप्त होते जा रहे है | कारण की हमारे पूर्वज अपने तन्त्र मन्त्र ज्ञान को अपने साथ ही ले कर चले गये | अब जो कुछ बी बचा है वो बुल्कुल ना के बराबर है | बहुत से लोग ये समझते है कि पुस्तक का पाठ कर लिया, अब हम सिद्ध साधक / भगत / तांत्रिक बन गये | इन प्रकार की आशा करना बेकार है |

आज तक आपने कई तन्त्र मन्त्र की पुस्तकें देखि और पढ़ी होगी , लेकिन जेसा की मैं आपको EBOOK मैं मत्रों का संग्रह दे रहा हूँ वेसी आपने ना तो देखि होगी और ना ही सुनी होगी | ऐसे ऐसे मन्त्र तन्त्र प्रयोग इन पुस्तकों में दियें गये है जोकि कई हजारों रुपये खर्च करने पर भी सिद्ध महापुरुष लोग किसी को नही बताते | ये मन्त्र ऐसे है जोकि छोटी से छोटी साधना की पूर्ति करने व जप करने से ही मन्त्र के वीर / सिद्ध आत्मा अपना प्रभाव तुरंत ही दिखाने लगते है |


आज तक आपने कई तन्त्र मन्त्र की पुस्तकें देखि और पढ़ी होगी, लेकिन जेसा की मैं आपको EBOOK मैं मत्रों का संग्रह दे रहा हूँ वेसी आपने ना तो देखि होगी और ना ही सुनी होगी | ऐसे ऐसे मन्त्र, तन्त्र, यन्त्र प्रयोग इस पुस्तक में दियें गये है जोकि कई हजारों रुपये खर्च करने पर भी सिद्ध महापुरुष / भगत लोग किसी को नही बताते | ये मन्त्र ऐसे है जोकि छोटी से छोटी साधना की पूर्ति करने व जप करने से ही मन्त्र के वीर / सिद्ध आत्मा अपना प्रभाव तुरंत ही दिखाने लगते है |

इन मंत्रों के सभी मंत्र, यंत्र, यंत्र, कार्यवाही और उनके तरीकों को आज के चरम समय को देखकर हाइलाइट किया गया है, ताकि आम लोग जो भी कोई अन्य काम करते है वे भगत लोग , इस ग्रामीण शक्ति का लाभ उठा सकते हैं। आपने आज तक कई किताबें पढ़ी हैं, जिसमें इस तरह के तरीकों का विवरण, जप और पूजा सामग्री , समय अवधि, दी जाती है कि आप केवल पढ़ने के बाद ही टूट जाते हैं और उन पुस्तकों में लिखी सभी बातो का पालन करना एक आम आदमी के लिए सम्भव भी नही होता , लेकिन इन पुस्तकों में सभी विधियां सरल हैं |

इस भाग “शाबर मन्त्र भाग 20 अद्भुत शाबर मन्त्र” में आपको अनेक प्रकार के प्राचीन प्रमाणिक अद्भुत शक्तिशाली शाबर मंत्रो, व् तंत्रों सम्बन्धी रहस्यों, बारीकियो का ज्ञान होगा और शाबर मन्त्रो की सिद्धि, प्रयोग, जप नियम, सीमायें आदि की पूर्ण जानकारी प्राप्त होगी | और अगर आप एक शाबर मन्त्र साधक है या आपका ऐसा ही विचार है कि शाबर मन्त्र साधना करने का तो यह पुस्तक आपके लिए बहुत ही अनिवार्य है जिसका की अध्ययन आपको जरुर ही करना चाहिए | व् अपने शाबर मन्त्र साधक जीवन को अग्रसर करना चाहिए |

इस ईबुक के सभी मंत्र, यंत्र, यंत्र, कार्यवाही और उनके तरीकों को आज के चरम समय को देखकर हाइलाइट किया गया है, ताकि आम लोग जो भी कोई अन्य काम करते है वे भगत लोग, इस ग्रामीण ज्ञान का लाभ उठा सकते हैं। आपने आज तक कई किताबें पढ़ी हैं, जिसमें इस तरह के तरीकों का विवरण, जप और पूजा सामग्री , समय अवधि, दी जाती है कि आप केवल पढ़ने के बाद ही टूट जाते हैं और उन पुस्तकों में लिखी सभी बातो का पालन करना एक आम आदमी के लिए सम्भव भी नही होता , लेकिन इन पुस्तकों में सभी विधियां सरल हैं | पूर्व में प्रकाशित भाग 19 की तरह ही इसमें भी विभिन्न प्रकार के शाबर मन्त्रो का संग्रहं किया गया है जिससे की केवल एक ईबुक में ही आपकी समस्याओ से सम्बंधित हल व् उपाय आपके समक्ष प्रस्तुत हो सके | हमारा ध्येय आपकी समस्याओ का अंत, सुरक्षित, अन्न-धन से भरपूर व् खुशहाल जीवन व्यतीत करना है | आप फिर भी किसी भी प्रकार की समस्या के लिए हमे लिख सकते है |


जैसा की आपको ज्ञात है की अभी तक हमने शाबर मन्त्र पुस्तक के कुल 20 भाग ईबुक के रूप में प्रकाशित किये है जिनका की हमारे पाठकगण बहुत लाभ ले चुके है और समय समय पर हमे सुचना देते रहते है की उन्होंने किस मन्त्र, तन्त्र आदि का प्रयोग किया, किस विषय/कार्य के लिए किया और उन्हें कैसा परिणाम मिला और साथ ही हमारे बहुत से पाठकगण हमसे अपनी समस्याओं ईमेंल के द्वारा व् फोन कॉल के द्वारा शेयर करते है और अपनी समस्याओ के  उचित समाधान भी प्राप्त करते है |
अभी तक हम अपने पाठकों को सभी ईबूक्स अलग अलग भागो में भेजते थे जिसमे समय भी लगता था और  कई बार बहुत से भाईयो को सभी ईबुक्स ढूंढने में भी समय लगता था अत: अब हम प्रस्तुत करते है 
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जोकि केवल एक ही ईबुक है और इसी ईबुक में सभी शाबर मन्त्र के भाग 1 से 20 तक के सम्पूर्ण मन्त्र-तन्त्र-यंत्र-टोटके आदि दिए गये है | जिससे की पाठकों को बार बार अलग-अलग ईबुक्स को ढूँढना, खोजना आदि परेशानियों से भी छुटकारा मिलेगा



शाबर मन्त्र की सभी ईबुक्स भाग 1 से 20 तक का वास्तविक मूल्य : 6180/- रूपए है | और इन ईबुक्स की कीमत पाठकों के लगातार सकारात्मक सफलता को देखते हुए समय समय पर आगे बढ़ाई जाती रही है अगर आप अभी 

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रविवार, 4 अगस्त 2019

Das Mahavidya Sidh Shabar Mantra | दश महाविद्या शाबर मन्त्र

दश महाविद्या शाबर मन्त्र : पार्वती सवरूप दुर्गा से प्रगटी दश महाविद्या शाबर मन्त्र 


महाविद्या शब्द संस्कृत भाषा के शब्दों "महा" तथा "विद्या" से बना है- "महा" अर्थात महान्, विशाल, विराट ; तथा "विद्या" अर्थात ज्ञान।
दशमहाविद्या अर्थात महान विद्या रूपी देवी। महाविद्या, देवी दुर्गा के दस रूप हैं, जो अधिकांश तान्त्रिक साधकों द्वारा पूजे जाते हैं, परन्तु साधारण भक्तों को भी अचूक सिद्धि प्रदान करने वाली है। इन्हें दस महाविद्या के नाम से भी जाना जाता है। ये दसों महाविद्याएं आदि शक्ति माता पार्वती की ही रूप मानी जाती हैं। दस महाविद्या विभिन्न दिशाओं की अधिष्ठातृ शक्तियां हैं। भगवती काली और तारा देवी- उत्तर दिशा की, श्री विद्या (षोडशी)- ईशान दिशा की, देवी भुवनेश्वरी, पश्चिम दिशा की, श्री त्रिपुर भैरवी, दक्षिण दिशा की, माता छिन्नमस्ता, पूर्व दिशा की, भगवती धूमावती पूर्व दिशा की, माता बगला (बगलामुखी), दक्षिण दिशा की, भगवती मातंगी वायव्य दिशा की तथा माता श्री कमला र्नैत्य दिशा की अधिष्ठातृ है।

दशमहाविद्या :पौराणिक कथा के अनुसार 

श्री देवीभागवत पुराण के अनुसार महाविद्याओं की उत्पत्ति भगवान शिव और उनकी पत्नी सती, जो कि पार्वती का पूर्वजन्म थीं, के बीच एक विवाद के कारण हुई। जब शिव और सती का विवाह हुआ तो सती के पिता दक्ष प्रजापति दोनों के विवाह से खुश नहीं थे। उन्होंने शिव का अपमान करने के उद्देश्य से एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें उन्होंने सभी देवी-देवताओं को आमन्त्रित किया लेकिन द्वेषवश उन्होंने अपने जामाता भगवान शंकर और अपनी पुत्री सती को निमन्त्रित नहीं किया। सती, पिता के द्वारा आयोजित यज्ञ में जाने की जिद करने लगीं जिसे शिव ने अनसुना कर दिया, इस पर सती ने स्वयं को एक भयानक रूप में परिवर्तित (महाकाली का अवतार) कर लिया। जिसे देख भगवान शिव भागने को उद्यत हुए। अपने पति को डरा हुआ जानकर माता सती उन्हें रोकने लगीं तो शिव जिस दिशा में गये उस दिशा में माँ का एक अन्य विग्रह प्रकट होकर उन्हें रोकता है। इस प्रकार दसों दिशाओं में माँ ने वे दस रूप लिए थे वे ही दस महाविद्याएँ कहलाईं। इस प्रकार देवी दस रूपों में विभाजित हो गयीं जिनसे वह शिव के विरोध को हराकर यज्ञ में भाग लेने गयीं। वहाँ पहुँचने के बाद माता सती एवं उनके पिता के बीच विवाद हुआ। दक्ष प्रजापति ने शिव की निंदा की और सती ने यज्ञ कुंड में प्राणों की आहुति दे दी।

कहीं-कहीं 24 विद्याओं का वर्णन भी आता है। परंतु मूलतः दस महाविद्या ही प्रचलन में है। इनके दो कुल हैं। इनकी साधना 2 कुलों के रूप में की जाती है। श्री कुल और काली कुल। इन दोनों में नौ- नौ देवियों का वर्णन है। इस प्रकार ये 18 हो जाती है। कुछ ऋषियों ने इन्हें तीन रूपों में माना है। उग्र, सौम्य और सौम्य-उग्र। उग्र में काली, छिन्नमस्ता, धूमावती और बगलामुखी है। सौम्य में त्रिपुरसुंदरी, भुवनेश्वरी, मातंगी और महालक्ष्मी (कमला) है। तारा तथा भैरवी को उग्र तथा सौम्य दोनों माना गया हैं देवी के वैसे तो अनंत रूप है पर इनमें भी तारा, काली और षोडशी के रूपों की पूजा, भेद रूप में प्रसिद्ध हैं। भगवती के इस संसार में आने के और रूप धारण करने के कारणों की चर्चा मुख्यतः जगत कल्याण, साधक के कार्य, उपासना की सफलता तथा दानवों का नाश करने के लिए हुई। सर्वरूपमयी देवी सर्वभ् देवीमयम् जगत। अतोऽहम् विश्वरूपा त्वाम् नमामि परमेश्वरी।। अर्थात् ये सारा संसार शक्ति रूप ही है। इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
महाविद्या विचार का विकास शक्तिवाद के इतिहास में एक नया अध्याय बना जिसने इस विश्वास को पोषित किया कि सर्व शक्तिमान् एक नारी है।

शाक्त भक्तों के अनुसार "दस रूपों में समाहित एक सत्य की व्याख्या है - महाविद्या" जिससे जगदम्बा के दस लौकिक व्यक्तित्वों की व्याख्या होती है। महाविद्याएँ तान्त्रिक प्रकृति की मानी जाती हैं जो निम्न हैं-

कालीतारा (देवी)छिन्नमस्ताषोडशीभुवनेश्वरीत्रिपुरभैरवीधूमावतीबगलामुखीमातंगीकमला

शाक्त दर्शन, दस महाविद्याओं को भगवान विष्णु के दस अवतारों से सम्बद्ध करता है और यह व्याख्या करता है कि महाविद्याएँ वे स्रोत हैं जिनसे भगवान विष्णु के दस अवतार उत्पन्न हुए थे। महाविद्याओं के ये दसों रूप चाहे वे भयानक हों अथवा सौम्य, जगज्जननी के रूप में पूजे जाते हैं।




Das Mahavidya Sidh Shabar Mantra | दश महाविद्या शाबर मन्त्र
सत नमो आदेश । गुरुजी को आदेश । ॐ गुरुजी । ॐ सोऽहं सिद्ध की काया, तीसरा नेत्र त्रिकुटी ठहराया । गगण मण्डल में अनहद बाजा । वहाँ देखा शिवजी बैठा, गुरु हुकम से भितरी बैठा, शुन्य में ध्यान गोरख दिठा । यही ध्यान तपे महेशा, यही ध्यान ब्रह्माजी लाग्या । यही ध्यान विष्णु की माया ! ॐ कैलाश गिरी से, आयी पार्वती देवी, जाकै सन्मुख बैठ गोरक्ष योगी,देवी ने जब किया आदेश । नहीं लिया आदेश, नहीं दिया उपदेश । सती मन में क्रोध समाई, देखु गोरख अपने माही,नौ दरवाजे खुले कपाट, दशवे द्वारे अग्नि प्रजाले, जलने लगी तो पार पछताई । राखी राखी गोरख राखी, मैं हूँ तेरी चेली, संसार सृष्टि की हूँ मैं माई । कहो शिवशंकर स्वामीजी, गोरख योगी कौन है दिठा । यह तो योगी सबमें विरला, तिसका कौन विचार । हम नहीं जानत,अपनी करणी आप ही जानी । गोरख देखे सत्य की दृष्टि । दृष्टि देख कर मन भया उनमन, तब गोरख कली बिच कहाया । हम तो योगी गुरुमुख बोली, सिद्धों का मर्म न जाने कोई । कहो पार्वती देवीजी अपनी शक्ति कौन-कौन समाई । तब सती ने शक्ति की खेल दिखायी, दस महाविद्या की प्रगटली ज्योति ।

काली दस महाविद्या में प्रथम रूप है। माना जाता है माँ ने ये काली रूप दैत्यों के संहार के लिए लिया था। जीवन की हर परेशानी व दुःख दूर करने के लिए इनकी आराधना की जाती है। माता का यह रूप साक्षात और जाग्रत है। काली के रूप में माता का किसी भी प्रकार से अपमान करना अर्थात खुद के जीवन को संकट में डालने के समान है। महा दैत्यों का वध करने के लिए माता ने ये रूप धरा था। सिद्धि प्राप्त करने के लिए माता की वीरभाव में पूजा की जाती है। काली माता तत्काल प्रसन्न होने वाली और तत्काल ही रूठने वाली देवी है। अत: इनकी साधना या इनका भक्त बनने के पूर्व एकनिष्ठ और कर्मों से पवित्र होना जरूरी होता है।

यह कज्जल पर्वत के समान शव पर आरूढ़ मुंडमाला धारण किए हुए एक हाथ में खड्ग दूसरे हाथ में त्रिशूल और तीसरे हाथ में कटे हुए सिर को लेकर भक्तों के समक्ष प्रकट होने वाली काली माता को नमस्कार। यह काली एक प्रबल शत्रुहन्ता महिषासुर मर्दिनी और रक्तबीज का वध करने वाली शिव प्रिया चामुंडा का साक्षात स्वरूप है, जिसने देव-दानव युद्ध में देवताओं को विजय दिलवाई थी। इनका क्रोध तभी शांत हुआ था जब शिव इनके चरणों में लेट गए थे।




प्रथम ज्योति माता शम्भु शिवानी काली प्रगटी ।

।।दश महाविद्या शाबर मन्त्र : महाकाली ।।

ॐ निरंजन निराकार अवगत पुरुष तत सार, तत सार मध्ये ज्योत, ज्योत मध्ये परम ज्योत, परम ज्योत मध्ये उत्पन्न भई माता शम्भु शिवानी काली ओ काली काली महाकाली, कृष्णवर्णी, शव वहानी, रुद्र की पोषणी, हाथ खप्पर खडग धारी, गले मुण्डमाला हंस मुखी । जिह्वा ज्वाला दन्त काली । मद्यमांस कारी श्मशान की राणी । मांस खाये रक्त-पी-पीवे । भस्मन्ति माई जहाँ पर पाई तहाँ लगाई । सत की नाती धर्म की बेटी इन्द्र की साली काल की काली जोग की जोगीन, नागों की नागीन मन माने तो संग रमाई नहीं तो श्मशान फिरे अकेली चार वीर अष्ट भैरों, घोर काली अघोरकाली अजर बजर अमर काली भख जून निर्भय काली बला भख, दुष्ट को भख, काल भख पापी पाखण्डी को भख जती सती को रख, ॐ काली तुम बाला ना वृद्धा, देव ना दानव, नर ना नारी देवीजी तुम तो हो परब्रह्मा काली । क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं दक्षिणे कालिके क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं स्वाहा ।


द्वितीय ज्योति तारा त्रिकुटा तोतला प्रगटी ।

।।दश महाविद्या शाबर मन्त्र : तारा ।।

ॐ आदि योग अनादि माया जहाँ पर ब्रह्माण्ड उत्पन्न भया । ब्रह्माण्ड समाया आकाश मण्डल तारा त्रिकुटा तोतला माता तीनों बसै ब्रह्म कापलि, जहाँ पर ब्रह्मा विष्णु महेश उत्पत्ति, सूरज मुख तपे चंद मुख अमिरस पीवे,अग्नि मुख जले, आद कुंवारी हाथ खण्डाग गल मुण्ड माल, मुर्दा मार ऊपर खड़ी देवी तारा । नीली काया पीली जटा, काली दन्त में जिह्वा दबाया । घोर तारा अघोर तारा, दूध पूत का भण्डार भरा । पंच मुख करे हां हां ऽऽकारा,डाकिनी शाकिनी भूत पलिता सौ सौ कोस दूर भगाया ।चण्डी तारा फिरे ब्रह्माण्डी तुम तो हों तीन लोक की जननी । ॐ ह्रीं स्त्रीं फट् | 


तृतीय ज्योति त्रिपुर सुन्दरी प्रगटी ।

।। दश महाविद्या शाबर मन्त्र :षोडशी-त्रिपुर सुन्दरी ।।

ॐ निरञ्जन निराकार अवधू मूल द्वार में बन्ध लगाई पवन पलटे गगन समाई, ज्योति मध्ये ज्योत ले स्थिर हो भई ॐ मध्याः उत्पन्न भई उग्र त्रिपुरा सुन्दरी शक्ति आवो शिवधर बैठो, मन उनमन, बुध सिद्ध चित्त में भया नाद। तीनों एक त्रिपुर सुन्दरी भया प्रकाश । हाथ चाप शर धर एक हाथ अंकुश । त्रिनेत्रा अभय मुद्रा योग भोग की मोक्षदायिनी ।इडा पिंगला सुषम्ना देवी नागन जोगन त्रिपुर सुन्दरी । उग्र बाला,रुद्र बाला तीनों ब्रह्मपुरी में भया उजियाला । योगी के घर जोगन बाला, ब्रह्मा विष्णु शिव की माता । श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं सौः।


चतुर्थ ज्योति भुवनेश्वरी प्रगटी ।

।। दश महाविद्या शाबर मन्त्र :भुवनेश्वरी ।।

ॐ आदि ज्योति अनादि ज्योत ज्योत मध्ये परम ज्योत परम ज्योति मध्ये शिव गायत्री भई उत्पन्न, ॐ प्रातः समय उत्पन्न भई देवी भुवनेश्वरी । बाला सुन्दरी कर धर वर पाशांकुश अन्नपूर्णी दूध पूत बल दे बालका ऋद्धि सिद्धि भण्डार भरे, बालकाना बल दे जोगी को अमर काया । चौदह भुवन का राजपाट संभाला कटे रोग योगी का, दुष्ट को मुष्ट, काल कन्टक मार । योगी बनखण्ड वासा, सदा संग रहे भुवनेश्वरी माता । ॐ ह्रीं |


पञ्चम ज्योति छिन्नमस्ता प्रगटी ।

।। दश महाविद्या शाबर मन्त्र :छिन्नमस्ता ।।

सत का धर्म सत की काया, ब्रह्म अग्नि में योग जमाया । काया तपाये जोगी (शिव गोरख) बैठा, नाभ कमल पर छिन्नमस्ता, चन्द सूर में उपजी सुष्मनी देवी, त्रिकुटी महल में फिरे बाला सुन्दरी, तन का मुन्डा हाथ में लिन्हा, दाहिने हाथ में खप्पर धार्या। पी पी पीवे रक्त, बरसे त्रिकुट मस्तक पर अग्नि प्रजाली, श्वेत वर्णी मुक्त केशा कैची धारी । देवी उमा की शक्ति छाया, प्रलयी खाये सृष्टि सारी । चण्डी, चण्डी फिरे ब्रह्माण्डी भख भख बाला भख दुष्ट को मुष्ट जती,सती को रख, योगी घर जोगन बैठी, श्री शम्भुजती गुरु गोरखनाथजी ने भाखी । छिन्नमस्ता जपो जाप, पाप कन्टन्ते आपो आप, जो जोगी करे सुमिरण पाप पुण्य से न्यारा रहे । काल ना खाये । श्रीं क्लीं ह्रीं ऐं वज्र-वैरोचनीये हूं हूं फट् स्वाहा ।


षष्टम ज्योति भैरवी प्रगटी ।

।। दश महाविद्या शाबर मन्त्र :भैरवी ।।

ॐ सती भैरवी भैरो काल यम जाने यम भूपाल तीन नेत्र तारा त्रिकुटा, गले में माला मुण्डन की । अभय मुद्रा पीये रुधिर नाशवन्ती ! काला खप्पर हाथ खंजर,कालापीर धर्म धूप खेवन्ते वासना गई सातवें पाताल, सातवें पाताल मध्ये परम-तत्त्व परम-तत्त्व में जोत, जोत में परम जोत, परम जोत में भई उत्पन्न काल-भैरवी, त्रिपुर-भैरवी, सम्पत्त-प्रदा-भैरवी,कौलेश-भैरवी, सिद्धा-भैरवी, विध्वंसिनि-भैरवी,चैतन्य-भैरवी, कामेश्वरी-भैरवी, षटकुटा-भैरवी, नित्या-भैरवी । जपा अजपा गोरक्ष जपन्ती यही मन्त्र मत्स्येन्द्रनाथजी को सदा शिव ने कहायी । ऋद्ध फूरो सिद्ध फूरो सत श्रीशम्भुजती गुरु गोरखनाथजी अनन्त कोट सिद्धा ले उतरेगी काल के पार,भैरवी भैरवी खड़ी जिन शीश पर, दूर हटे काल जंजाल भैरवी मन्त्र बैकुण्ठ वासा । अमर लोक में हुवा निवासा ।
ॐ ह्सैं ह्स्क्ल्रीं ह्स्त्रौः


सप्तम ज्योति धूमावती प्रगटी

।। दश महाविद्या शाबर मन्त्र :धूमावती ।।

ॐ पाताल निरंजन निराकार, आकाश मण्डल धुन्धुकार, आकाश दिशा से कौन आये,कौन रथ कौन असवार, आकाश दिशा से धूमावन्ती आई, काक ध्वजा का रथ अस्वार आई थरै आकाश, विधवा रुप लम्बे हाथ, लम्बी नाक कुटिल नेत्र दुष्टा स्वभाव, डमरु बाजे भद्रकाली, क्लेश कलह कालरात्रि । डंका डंकनी काल किट किटा हास्य करी । जीव रक्षन्ते जीव भक्षन्ते जाजा जीया आकाश तेरा होये ।धूमावन्तीपुरी में वास, न होती देवी न देव तहा न होती पूजा न पाती तहा न होती जात न जाती तब आये श्रीशम्भुजती गुरु गोरखनाथ आप भयी अतीत । ॐ धूं धूं धूमावती स्वाहा ।


अष्टम ज्योति बगलामुखी प्रगटी ।

।। दश महाविद्या शाबर मन्त्र :बगलामुखी ।।

ॐ सौ सौ दुता समुन्दर टापू, टापू में थापा सिंहासन पिला । संहासन पीले ऊपर कौन बसे । सिंहासन पीला ऊपर बगलामुखी बसे,बगलामुखी के कौन संगी कौन साथी ।कच्ची बच्ची काक-कूतिया-स्वान-चिड़िया, ॐ बगला बाला हाथ मुद्-गर मार, शत्रु हृदय पर सवार तिसकी जिह्वा खिच्चै बाला । बगलामुखी मरणी करणी उच्चाटण धरणी,अनन्त कोट सिद्धों ने मानी ॐ बगलामुखी रमे ब्रह्माण्डी मण्डे चन्दसुर फिरे खण्डे खण्डे । बाला बगलामुखी नमो नमस्कार । ॐ ह्लीं ब्रह्मास्त्राय विद्महे स्तम्भन-बाणाय धीमहि तन्नो बगला प्रचोदयात् ।


नवम ज्योति मातंगी प्रगटी ।

।। दश महाविद्या शाबर मन्त्र :मातंगी ।।

ॐ शून्य शून्य महाशून्य, महाशून्य में ॐ-कार, ॐ-कार में शक्ति,शक्ति अपन्ते उहज आपो आपना, सुभय में धाम कमल में विश्राम, आसन बैठी, सिंहासन बैठी पूजा पूजो मातंगी बाला,शीश पर अस्वारी उग्र उन्मत्त मुद्राधारी, उद गुग्गल पाण सुपारी, खीरे खाण्डे मद्य-मांसे घृत-कुण्डे सर्वांगधारी । बुन्द मात्रेन कडवा प्याला, मातंगी माता तृप्यन्ते ।ॐ मातंगी-सुन्दरी, रुपवन्ती, कामदेवी, धनवन्ती, धनदाती, अन्नपूर्णी अन्नदाती, मातंगी जाप मन्त्र जपे काल का तुम काल को खाये ।तिसकी रक्षा शम्भुजती गुरु गोरखनाथजी करे । ॐ ह्रीं क्लीं हूं मातंग्यै फट् स्वाहा ।


दसवीं ज्योति कमला प्रगटी ।

।। दश महाविद्या शाबर मन्त्र :कमला ।।

ॐ अ-योनी शंकर ॐ-कार रुप, कमला देवी सती पार्वती का स्वरुप । हाथ में सोने का कलश, मुख से अभयमुद्रा । श्वेत वर्ण सेवा पूजा करे, नारद इन्द्रा । देवी देवत्या ने किया जयॐ-कार । कमला देवी पूजो केशर पान सुपारी, चकमक चीनी फतरी तिल गुग्गल सहस्र कमलों का किया हवन । कहे गोरख, मन्त्र जपो जाप जपो ऋद्धि सिद्धि की पहचान गंगा गौरजा पार्वती जान । जिसकी तीन लोक में भया मान ।कमला देवी के चरण कमल को आदेश । ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं सिद्ध-लक्ष्म्यै नमः ।

गुरु पूर्णिमा विशेष प्रेरणादायक कहानी

सुनो पार्वती हम मत्स्येन्द्र पूता, आदिनाथ नाती, हम शिव स्वरुप उलटी थापना थापी योगी का योग, दस विद्या शक्ति जानो, जिसका भेद शिव शंकर ही पायो । सिद्ध योग मर्म जो जाने विरला तिसको प्रसन्न भयी महाकालिका । योगी योग नित्य करे प्रातः उसे वरद भुवनेश्वरी माता । सिद्धासन सिद्ध, भया श्मशानी तिसके संग बैठी बगलामुखी । जोगी खड दर्शन को कर जानी, खुल गया ताला ब्रह्माण्ड भैरवी । नाभी स्थाने उडीय्यान बांधी मनीपुर चक्र में बैठी, छिन्नमस्ता रानी । ॐ-कार ध्यान लाग्या त्रिकुटी, प्रगटी तारा बाला सुन्दरी । पाताल जोगन(कुण्डलिनी) गगन को चढ़ी, जहां पर बैठी त्रिपुर सुन्दरी । आलस मोड़े, निद्रा तोड़े तिसकी रक्षा देवी धूमावन्ती करें । हंसा जाये दसवें द्वारे देवी मातंगी का आवागमन खोजे । जो कमला देवी की धूनी चेताये तिसकी ऋद्धि सिद्धि से भण्डार भरे । जो दसविद्या का सुमिरण करे । पाप पुण्य से न्यारा रहे । योग अभ्यास से भये सिद्धा आवागमन निवरते । मन्त्र पढ़े सो नर अमर लोक में जाये । इतना दस महाविद्या मन्त्र जाप सम्पूर्ण भया । अनन्त कोट सिद्धों में, गोदावरी त्र्यम्बक क्षेत्र अनुपान शिला, अचलगढ़ पर्वत पर बैठ श्रीशम्भुजती गुरु गोरखनाथजी ने पढ़ कथ कर सुनाया श्रीनाथजी गुरुजी को आदेश आदेश।।


सोमवार, 8 जुलाई 2019

GURU PURNIMA SPECIAL: MOTIVATIONAL STORY | गुरु गूंगे गुरु बाबरे गुरु के रहिये दास, गुरु जो भेजे नरक को, स्वर्ग की रखिये आस

GURU PURNIMA SPECIAL: MOTIVATIONAL STORY 

गुरु गूंगे गुरु बाबरे गुरु के रहिये दास,

गुरु जो भेजे नरक को, स्वर्ग की रखिये आस ||


अर्थात : गुरु चाहे गूंगा हो चाहे गुरु बाबरा (पागल) हो गुरु के हमेशा दास रहना चाहिए। गुरु यदि नरक को भेजे तब भी शिष्य को यह इच्छा रखनी चाहिए कि मुझे स्वर्ग ही प्राप्त होगा, अर्थात इसमें मेरा कल्याण ही होगा | यदि शिष्य को गुरु पर पूर्ण विश्वास हो तो उसका बुरा स्वयं गुरु भी नहीं कर सकते।

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इस के सन्दर्भ में एक प्रेरणादायक प्रसंग प्रस्तुत है:-

एक बार की बात है नारद जी श्री विष्णु भगवान जी से मिलने गए | भगवान ने उनका बहुत सम्मान किया | जब नारद जी वहाँ से वापिस गए तब श्री विष्णुजी ने कहा "हे लक्ष्मी! जिस स्थान पर नारद जी बैठे थे। उस स्थान को गाय के गोबर से लीप दो" |

जब विष्णुजी यह बात कह रहे थे तब नारदजी बाहर ही खड़े थे। उन्होंने सब सुन लिया और वापिस आ गए और विष्णु भगवान जी से पुछा- 
"हे भगवान! जब मै आया तो आपने मेरा खूब सम्मान किया पर जब मै जा रहा था, तो आपने लक्ष्मी जी से यह क्यों कहा कि जिस स्थान पर नारद बैठा था उस स्थान को गोबर से लीप दो?"

भगवान ने कहा:- "हे नारद! मैंने आपका सम्मान इसलिए किया क्योंकि आप देव ऋषि है, और मैंने देवी लक्ष्मी से ऐसा इसलिए कहा क्योंकि आपका कोई गुरु नहीं है | अर्थात आप निगुरे है। जिस स्थान पर कोई निगुरा बैठ जाता है वो स्थान गन्दा हो जाता है |"
यह सुनकर नारद जी ने कहा:- "हे भगवान! आपकी बात सत्य है, पर मै गुरु किसे बनाऊ ? नारायण बोले:- "हे नारद! धरती पर चले जाओ जो व्यक्ति सबसे पहले मिले उसे अपना गुरु मानलो |"

नारद जी ने प्रणाम किया और चले गए | जब नारद जी धरती पर आये तो उन्हें सबसे पहले एक मछली पकड़ने वाला एक मछुवारा मिला | वो मछुआरा गंदा - मैला सा, गवार सा दिखाई दे रहा था, जिससे नारद जी को उसके रूप-वेशभूषा और दुर्गन्ध से घृणा होने लगी | 
Guru Purnima Special | प्रेरक कहानी: गुरु गूंगे, गुरु बावरे, गुरु के रहिये दास

नारद जी वापिस नारायण के पास चले गए और कहा:- "महाराज वो मछुवारा तो कुछ भी नहीं जानता, मै उसे गुरु कैसे मान सकता हूँ?"
यह सुनकर भगवान ने कहा:- "नारद जी अपना पर्ण पूरा करो |" 

Guru Purnima Special | प्रेरक कहानी: गुरु गूंगे, गुरु बावरे, गुरु के रहिये दास
नारद जी विष्णुजी की बात सुनकर वापिस आये और उस मछुवारे से गुरु बन जाने का आग्रह किया | पहले तो मछुवारा नहीं माना बाद में बहुत मनाने से मान गया | मछुवारे को राजी करने के बाद नारद जी वापिस भगवान के पास गए और कहा:- "हे भगवान! मेरे गुरूजी को तो कुछ भी नहीं आता, वे मुझे क्या सिखायेगे ?" 

यह सुनकर विष्णु जी को क्रोध आ गया और उन्होंने कहा:- "हे नारद गुरु निंदा करते हो जाओ मै आपको श्राप देता हूँ कि आपको 84 लाख योनियों में घूमना पड़ेगा |"

यह सुनकर नारद जी ने दोनों हाथ जोड़कर कहा:- "हे भगवान! इस श्राप से बचने का उपाय भी बता दीजिये ?" 
भगवान नारायण ने कहा:- "इसका उपाय जाकर अपने गुरुदेव से पूछो |" 

नारद जी ने सारी बात जाकर गुरुदेव को बताई | गुरूजी ने कहा:- "ऐसा करना भगवान से कहना 84 लाख योनियों की तस्वीरे धरती पर बना दे फिर उस पर लेट कर गोल घूम लेना और विष्णु जी से कहना 84 लाख योनियों में घूम आया मुझे माफ़ करदो आगे से गुरु निंदा नहीं करूँगा |"

नारद जी ने विष्णु जी के पास जाकर वैसा ही किया जैसा की उनके गुरूजी ने उन्हें बताया | नारद जी ने विष्णु जी के पास जाकर उनसे कहा"- "हे प्रभु! 84 लाख योनिया धरती पर बना दो |" और फिर उन पर लेट कर घूम लिए और कहा :- "हे नारायण! मुझे माफ़ कर दीजिये आगे से कभी गुरु निंदा नहीं करूँगा |" 

यह सुनकर विष्णु जी ने कहा:- "देखा! जिस गुरु की निंदा कर रहे थे उसी ने मेरे श्राप से बचा लिया | हे नारदजी गुरु की महिमा अपरम्पार है |"

एक प्रसंग है कि एक पंडीत ने धन्ने भगत को एक साधारण पत्थर देकर कहा इसे भोग लगाया करो एक दिन भगवान कृष्ण दर्शन देगे | उस धन्ने भक्त के विश्वास से एक दिन उस पत्थर से भगवान प्रकट हो गए | फिर गुरु पर तो वचन विश्वास रखने वाले का उद्धार निश्चित है |



गुरु पूर्णिमा दीक्षा संस्कार

इस बार 5-7-2020 को गुरु पूर्णिमा पड़ रही है गुरु पूर्णिमा की तिथी 4-7-2020 रात 11:33  से 5-7-2020 शुबह 10:13 तक रहेगा  जिनके पास गुरु मंत्र है वो अपने गुरु  के चरणो का ध्यान करके गुरु मंत्र का पाठ करे सभी के शरीर में गुरु का स्थान होता  है लेकिन बहुत कम लोग ही जानते हैं कि शरीर में गुरु का स्थान  कहा होता है । जो 7वा चक्र है आपके शरीर में सहस्त्रात्र चक्र होता है,  वहा पे गुरु का स्थान होता है, वहा पे ध्यान लगा के अपने गुरु मंत्र का जाप करे ।

 जिन लोगो की दिक्षा चाहीए जो दीक्षा लेना चाहते हैं उन्हे दिक्षा मिलेगी और गुरु शिष्य परमपरा से उन्हे जोड़ा जायेगा तो जो भी इच्छुक दिक्षा लेना चाह्ता है वो पर्सनल में ईमेल करे । 

eMail : mantrashabar@gmail.com 




Diwali 2024 Laxmi Puja Muhurat Timing | Diwali on 31 Octover ? or 01 November?

  दीपावली  2024  शुभ मुहूर्त हिंदू धर्म में दिवाली का बहुत अधिक महत्व होता है। दिवाली के पावन पर्व की शुरुआत धनतेरस से हो जाती है। धनतेरस ...