श्वेतार्क गणपति का महत्व और प्रयोग
हिन्दू धर्म में गजानन की पूजा का विशेष महत्व है। हर शुभ कार्य में गणपति को ही सबसे पहले अर्पण किया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक श्रीगणेश प्रथम पूज्य देव कहलाते है। यहां तक कि पौराणिक कथाओं में देवता भी किसी शुभ कार्य के लिए सबसे पहले गणेश पूजन ही करते हैं। पुराणों के मुताबिक गणेश की अग्रपूजा का विधान है।
श्वेतार्क की गणेश प्रतिमा जिनकी रोज पूजा करने से आपका घर धन धान्य से परिपूर्ण होगा। शास्त्रों में श्वेतार्क के बारे में कहा गया है "जहां कहीं भी यह पौधा अपने आप उग आता है उसके आस-पास पुराना धन गड़ा होता है"जिस घर में श्वेतार्क की जड़ रहेगी वहां से दरिद्रता स्वयं पलायन कर जाएगी-इस प्रकार मदार का यह पौधा मनुष्य के लिए देव कृपा,रक्षक एवं समृद्धिदाता भी है-
गणपति की मूर्तियों में सबसे अधिक महत्व श्वेतार्क की गणेश प्रतिमा का है। सफेद की आक की जड़ से आप ये मूर्ति प्राप्त कर सकते हैं। कई बार जड़ की बनावट हूबहू गणेशजी की प्रतिमा से मेल खाती है। वैसे सावधानी पूर्वक जड़ निकालने के बाद इसे आप बढ़ई के पास ले जाकर गणेश की पूर्ण आकृति बनवा सकते हैं।
श्वेतार्क की जड़ निकालने का भी विधान है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक श्वेतार्क की जड़ रवि पुष्य योग में ही निकालें। रवि पुष्य योग की पूर्व संध्या पर श्वेतार्क वृक्ष को दीप दिखाकर विधिवत पूजा करें और उनके घर आगमन के लिए आवाहन करें। इसके बाद रवि पुष्य योग में ही जड़ों की खुदाई करें। सबसे पहले चांदी के किसी नुकीली चीज से जड़ खोदें। फिर फावड़ा या सुविधानुसार लोहे के औजारों की इस्तेमाल कर सकते हैं।
सफेद मदार की जड़ में गणेशजी का वास होता है कभी-कभी इसकी जड़ गणशेजी की आकृति ले लेती है इसलिए सफेद मदार की जड़ कहीं से भी प्राप्त करें और उसकी श्रीगणेश की प्रतिमा बनवा लें-उस पर लाल सिंदूर का लेप करके उसे लाल वस्त्र पर स्थापित करें-यदि जड़ गणेशाकार नहीं है तो किसी कारीगर से आकृति बनवाई जा सकती है शास्त्रों में मदार की जड़ की स्तुति इस मंत्र से करने का विघान है-
चतुर्भुज रक्ततनुंत्रिनेत्रं पाशाकुशौ मोदरक पात्र दन्तो।
करैर्दधयानं सरसीरूहस्थं गणाधिनाभंराशि चूडामीडे।।
जब सावधानी पूर्वक जड़ निकल आए तो तत्काल बाद इसका दूध से अभिषेक करें। फिर कुछ हफ्तों तक धूप में इसे सूखने के लिए रख देँ। बाद में काट छांटकर इसे गणपति की आकृति का रूप दें। इसके बाद श्वेतार्क मूर्ति पर घी का लेप करें। फिर इसकी प्राण प्रतिष्ठा कर घर में स्थापित कर देँ।
खास बात ये कि श्वेतार्क की नियमित और विधिवत पूजा होनी चाहिए। श्वेतार्क मूर्ति अगर आप घर में स्थापित कर रहे हैं। तो ध्यान रखें कि अगर आप कहीं बाहर जा रहे हों तो इनकी पूजा का विधिवत इंतजाम करके जाएं।
गणेशोपासना में साधक लाल वस्त्र, लाल आसान, लाल पुष्प, लाल चंदन, मूंगा अथवा रूद्राक्ष की माला का प्रयोग करें-नेवैद्य में गुड़ व मूंग के लड्डू अर्पित करें- "ऊँ वक्रतुण्डाय हुम्" मंत्र का जप करें- श्रद्धा और भावना से की गई श्वेतार्क की पूजा का प्रभाव थोड़े बहुत समय बाद आप स्वयं प्रत्यक्ष रूप से अनुभव करने लगेंगे-
श्वेतार्क गणपति एक बहुत प्रभावी मूर्ति होती है जिसकी आराधना साधना से सर्व-मनोकामना सिद्धि-अर्थ लाभ,कर्ज मुक्ति,सुख-शान्ति प्राप्ति ,आकर्षण प्रयोग,वैवाहिक बाधाओं,उपरी बाधाओं का शमन ,वशीकरण ,शत्रु पर विजय प्राप्त होती है-यद्यपि यह तांत्रिक पूजा है यदि श्वेतार्क की स्वयमेव मूर्ति मिल जाए तो अति उत्तम है अन्यथा रवि-पुष्य योग में पूर्ण विधि-विधान से श्वेतार्क को आमंत्रित कर रविवार को घर लाकर तथा गणपति की मूर्ति बना विधिवत प्राण प्रतिष्ठा कर अथवा प्राण प्रतिष्ठित मूर्ति किसी साधक से प्राप्त कर साधना/उपासना की जाए तो उपर्युक्त लाभ शीघ्र प्राप्त होते है यह एक तीब्र प्रभावी प्रयोग है श्वेतार्क गणपति साधना भिन्न प्रकार से भिन्न उद्देश्यों के लिए की जा सकती है तथा इसमें मंत्र भी भिन्न प्रयोग किये जाते है-
श्वेतार्क गणपति के विभिन्न प्रयोग-
सर्वमनोकामना की पूर्ति हेतु श्वेतार्क गणपति का पूजन बुधवार के दिन प्राराम्भ करे तथा पीले रंग के आसन पर पीली धोती पहनकर पूर्व दिशा की और मुह्कर बैठे-एक हजार मंत्र प्रतिदिन के हिसाब से 21 दिन में 21 हजार मंत्र जप मंत्र सिद्ध चैतन्य मूंगे की माला से करे और पूजन में लाल चन्दन ,कनेर के पुष्प ,केशर,गुड ,अगरबत्ती ,शुद्ध घृत के दीपक का प्रयोग करे-
मन्त्र-
"ऊँ वक्रतुण्डाय हुम्"
1- घर में विवाह कार्य ,सुख-शान्ति के लिए श्वेतार्क गणपति प्रयोग बुधवार को लाल वस्त्र ,लाल आसन का प्रयोग करके प्रारम्भ करे ,इक्यावन दिन में इक्यावन हजार जप मंत्र का करे ,मुह पूर्व हो ,माला मूगे की हो,साधना समाप्ति पर कुवारी कन्या को भोजन कराकर वस्त्रादि भेट करे|
2- आकर्षण प्रयोग हेतु रात्री के समय पश्चिम दिशा को,लाल वस्त्र- आसन के साथ हकीक माला से शनिवार के दिन से प्रारंभ कर पांच दिन में पांच हजार जप मंत्र का करे -पूजा में तेल का दीपक ,लाल फूल,गुड आदि का प्रयोग करे -उपरोक्त प्रयोग किसी के भी आकर्षण हेतु किया जा सकता है|
3- सर्व स्त्री आकर्षण हेतु श्वेतार्क गणपति प्रयोग,पूर्व मुख ,पीले आसन पर पीला वस्त्र पहनकर किया जाता है तथा पूजन में लाल चन्दन ,कनेर के पुष्प ,अगरबत्ती,शुद्ध घृत का दीपक का प्रयोग होता है तथा मूगे की माला से इक्यावन दिन में इक्यावन हजार जप मंत्र का किया जाता है जिसे बुधवार से प्रारंभ किया जाता है|
4- स्थायी रूप से विदेश में प्रवास करके विवाह करने अथवा अविवाहित कन्या का प्रवासी भारतीय से विवाह करके विदेश में बसने हेतु अथवा विदेश जाने में आ रही रूकावटो को दूर करने हेतु श्वेतार्क गणपति का प्रयोग शुक्ल पक्ष के बुधवार से प्रातः काल ब्रह्म मुहूर्त में प्रारम्भ करे-पूर्व दिशा की और लाल ऊनी कम्बल ,पीली धोती के प्रयोग के साथ मंत्र सिद्ध चैतन्य मूंगे की माला से 21 दिन में सवा लाख जप मंत्र का करे तथा पूजन में लाल कनेर पुष्प ,घी का दीपक ,अगरबत्ती ,केशर ,बेसन के लड्डू ,लाल वस्त्र ,लकड़ी की चौकी ,का प्रयोग करे तथा बाइसवे दिन हवंन कर पांच कुवारी कन्याओं को भोजन कराकर वस्त्र-दक्षिणा दे विदा करे इसके उपरान्त मूगे की माला आप अपने गले में धारण करे |
5- कर्ज मुक्ति हेतु श्वेतार्क गणपति का प्रयोग बुधवार को लाल वस्त्रादि-वस्तुओ के साथ शुरू करे और 21 दिन में सवा लाख जप मंत्र का करे मूंगे अथवा रुद्राक्ष अथवा स्फटिक की मंत्र सिद्ध चैतन्य माला से करे साधना के बाद माला अपने गले में धारण करे तथा पूजन में लाल वस्तुओ का प्रयोग करे और दीपक घी का जलाए|
6- श्वेतार्क गणपति की साधना में एक बात ध्यान देने की है की प्राण प्रतिष्ठा होने के बाद मूर्ति चैतन्य हो जाती है और उसे हर हाल में प्रतिदिन पूजा देनी होती है साधना समाप्ति पर यदि रोज पूजा देते रहेगे तो चतुर्दिक विकास होता है यदि किसी कारण से आप पूजा न दे सके या कोई भी सदस्य घर का पूजा न कर सके तो मूर्ति का विसर्जन कर दे|
उपरोक्त प्रयोगों में मंत्र भिन्न-भिन्न प्रयोग होते है-जिन्हें न देने का कारण सिर्फ इनके दुरुपयोग से इनको बचाना है-यह प्रयोग तंत्र के अंतर्गत आते है अतः सावधानी आवश्यक है इसलिए मन्त्र यहाँ नहीं लिखे गए है क्युकि तंत्र के मन्त्र अचूक होते है और आज वैमनस्य के कारण लोग हित की जगह दूसरों का अहित कर देते है सिर्फ जो पात्रता के योग्य होते है ये मन्त्र गुरु की देखरेख में ही शिष्य को दिया जाता है-वैसे सभी मन्त्र शंकर भगवान् द्वारा कीलित अवस्था में है जिनका उत्कीलन गुरु द्वारा शिष्य से करवा कर मन्त्र को प्रभावी बनाया जाता है पुस्तक में दिए गए मन्त्र चैतन्य अवस्था में नहीं होते है इसलिए उसका कोई प्रभाव नहीं होता है जबकि मन्त्र शक्ति आज भी पूर्वकाल की तरह ही गुण सम्पन्न है|
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