दीपावली 2021 शुभ मुहूर्त
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दीपावली 2021 शुभ मुहूर्त
दीपावली 04 नवंबर 2021, दिन गुरूवार को
है।
लक्ष्मी पूजा का शुभ मुहूर्त
शाम 06:10 बजे से रात्रि 08:06 बजे तक
पूजा की अवधि 01 घंटा 54 मिनट
प्रदोष काल मुहूर्त
शाम 05:34 बजे से रात्रि 08:10 बजे तक
अमावस्या तिथि प्रारंभ 04 नवबंर 2021, सुबह 06:03 बजे से
अमावस्या तिथि समाप्त 05 नवबंर 2021, 02:44 बजे
दिवाली का पर्व पांच दिवसीय पर्व होता
है, जोकि बड़े ही धूमधाम के साथ
मनाया जाता है। इस दौरान मां लक्ष्मी के साथ-साथ भगवान गणेश, कुबेर, धनवंतरि, यमराज,
गोवर्धन आदि कई देवी-देवताओं की पूजा की जाती है। तथा सभी घरों में
अनेक प्रकार के पकवान और मिष्ठान बनाए जाते हैं। घरों को दुल्हन की तरह सजाया जाता
है। तथा मिट्टी के दीये जलाकर घरों को रोशन किया जाता है।
दीपावली के चार शुभ मुहूर्त (Deepawali/Diwali Date & Shubh Muhurat)
वृश्चिक लग्न दिवाली मुहूर्त–वृश्चिक लग्न में दिवाली लक्ष्मी पूजा सुबह के समय की जाती है | वृश्चिक लग्न के अंतर्गत मंदिर, हॉस्पिटल, होटल, स्कूल व
कॉलेजों में पूजा की जाती है | अधिकांश राजनैतिक, टी.वी. फ़िल्मी कलाकार वृश्चिक लग्न में ही पूजा करते है |
कुंभ लग्न दिवाली मुहूर्त–कुंभ लग्न
में दीपावली लक्ष्मी पूजा दोपहर के समय में की जाती है | कुंभ लग्न में वे लोग पूजा करते है जो बीमार रहते है
जिन पर शनि की दशा ख़राब चल रही है और व्यापर में हानी हो रही है | वे लोग कुंभ लग्न में लक्ष्मी पूजन करते है |
वृषभ लग्न दिवाली मुहूर्त–वृषभ लग्न
में दिवाली लक्ष्मी पूजन शाम के समय की जाती है | शास्त्रों व पुरानो के अनुसार लक्ष्मी पूजन का यहाँ समय बेहद शुभ माना
जाता है |
सिहं लग्न दिवाली मुहूर्त–सिहं लग्न
में दिवाली लक्ष्मी पूजन मध्य रात्रि में किया जाता है | मध्य रात्रि में निशीथ काल संतो व तांत्रिको द्वारा
देवी लक्ष्मी का पूजन किया जाता है |
दीवाली पूजा हेतु पूजन सामग्री Deepawali Pujan Samagri
दीपावली पूजन सामग्री: दीवाली पूजा के सामान की लगभग सभी चीजें घर में ही मिल जाती हैं | कुछ अतिरिक्त वस्तुए जो बाहर से लाई जाती है | यहाँ आपको दिवाली लक्ष्मी पूजा में काम आने वाली सभी वस्तुओ की सूचि दे दी गई है | जो इस प्रकार है–
लक्ष्मी, सरस्वती व गणेश जी का चित्र या प्रतिमा, कमल व गुलब
के फूल, पान का पत्ता, केसर, लाल कपड़ा, रोली, कुमकुम,
चावल, पान, सुपारी,
लौंग, इलायची, धूप,
कपूर, अगरबत्तियां, मिट्टी
तथा तांबे के दीपक, रुई, कलावा (मौलि),
नारियल, शहद, दही,
गंगाजल, गुड़, धनिया,
फल, फूल, जौ, गेहूँ, दूर्वा, चंदन, सिंदूर, घृत, पंचामृत, दूध, मेवे, खील, बताशे, गंगाजल, यज्ञोपवीत (जनेऊ),
श्वेत वस्त्र, इत्र, चौकी,
कलश, कमल गट्टे की माला, शंख, आसन, थाली, चांदी का सिक्का, देवताओं के प्रसाद हेतु मिष्ठान्न
(बिना वर्क का)
मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए इन बातों का रखें ध्यान-
मां लक्ष्मी को साफ- सफाई पसंद होती
है। दिवाली से पहले घर की अच्छी तरह से साफ- सफाई कर लें। धार्मिक मान्यताओं के
अनुसार मां लक्ष्मी का वास वहीं होता है जहां पर स्वच्छता का ध्यान रखा जाता है।
मां लक्ष्मी उन लोगों पर प्रसन्न रहती
हैं जो क्रोध नहीं करते हैं और सभी से प्रेम से बात करते हैं। मां लक्ष्मी की कृपा
प्राप्त करने के लिए क्रोध न करें।
किसी भी पूजा से पहले भगवान गणेश की
पूजा की जाती है। इस बात का विशेष ध्यान रखें। महालक्ष्मी के पावन दिन माता
लक्ष्मी और भगवान गणेश की विधि- विधान से पूजा करें।
शस्त्रों में माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु की प्रसन्नता के लिए दीपावली की पूजा के लिए कुछ नियम बताए गए हैं | इन नियमों में गृहस्थों के लिए प्रदोष काल में संध्या के समय स्थिर लग्न में पूजन करना उत्तम माना गया है इससे सुख समृद्धि की वृद्धि होती है | जबकि तंत्र विद्या से माता लक्ष्मी की पूजा करने वालों के लिए मध्य रात्रि का समय उत्तम माना गया है क्योकि मध्य रात्रि में निशीथ काल में देवी लक्ष्मी की पूजा सभी प्रकार की कामना पूर्ण करने वाली मानी जाती है |
दीपावली पूजा विधि एवं शुभ मुहूर्त
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हर वर्ष भारतवर्ष में दिवाली का
त्यौहार बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है. प्रतिवर्ष यह कार्तिक माह की अमावस्या
को मनाई जाती है. रावण से दस दिन के युद्ध के बाद श्रीराम जी जब अयोध्या वापिस आते
हैं तब उस दिन कार्तिक माह की अमावस्या थी, उस दिन घर-घर में दिए जलाए गए थे तब से इस त्योहार को दीवाली के रुप में
मनाया जाने लगा और समय के साथ और भी बहुत सी बातें इस त्यौहार के साथ जुड़ती चली
गई।
“ब्रह्मपुराण” के अनुसार आधी रात तक रहने वाली अमावस्या तिथि ही महालक्ष्मी पूजन के लिए श्रेष्ठ होती है. यदि अमावस्या आधी रात तक नहीं होती है तब प्रदोष व्यापिनी तिथि लेनी चाहिए. लक्ष्मी पूजा व दीप दानादि के लिए प्रदोषकाल ही विशेष शुभ माने गए हैं।
दीपावली पूजन के लिए पूजा स्थल एक दिन पहले से सजाना चाहिए पूजन सामग्री
भी दिपावली की पूजा शुरू करने से पहले ही एकत्रित कर लें। इसमें अगर माँ के पसंद
को ध्यान में रख कर पूजा की जाए तो शुभत्व की वृद्धि होती है। माँ के पसंदीदा रंग
लाल, व् गुलाबी है। इसके बाद फूलों की
बात करें तो कमल और गुलाब मां लक्ष्मी के प्रिय फूल हैं। पूजा में फलों का भी खास
महत्व होता है। फलों में उन्हें श्रीफल, सीताफल, बेर, अनार व सिंघाड़े पसंद आते हैं। आप इनमें से कोई
भी फल पूजा के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं। अनाज रखना हो तो चावल रखें वहीं मिठाई
में मां लक्ष्मी की पसंद शुद्ध केसर से बनी मिठाई या हलवा, शीरा
और नैवेद्य है।
माता के स्थान को सुगंधित करने के लिए
केवड़ा, गुलाब और चंदन के
इत्र का इस्तेमाल करें।
दीये के लिए आप गाय के घी, मूंगफली या तिल्ली के तेल का इस्तेमाल कर सकते हैं।
यह मां लक्ष्मी को शीघ्र प्रसन्न करते हैं। पूजा के लिए अहम दूसरी चीजों में गन्ना,
कमल गट्टा, खड़ी हल्दी, बिल्वपत्र,
पंचामृत, गंगाजल, ऊन का
आसन, रत्न आभूषण, गाय का गोबर, सिंदूर, भोजपत्र शामिल हैं।
चौकी सजाना
लक्ष्मी,
गणेश,
मिट्टी के दो बड़े दीपक,
कलश, जिस पर नारियल रखें, वरुण
नवग्रह,
षोडशमातृकाएं,
कोई प्रतीक,
बहीखाता,
कलम और दवात,
नकदी की संदूक,
थालियां, 1, 2, 3,
जल का पात्र
सबसे पहले चौकी पर लक्ष्मी व गणेश की
मूर्तियां इस प्रकार रखें कि उनका मुख पूर्व या पश्चिम में रहे। लक्ष्मीजी, गणेशजी की दाहिनी ओर रहें। पूजा करने वाले मूर्तियों
के सामने की तरफ बैठे। कलश को लक्ष्मीजी के पास चावलों पर रखें। नारियल को लाल
वस्त्र में इस प्रकार लपेटें कि नारियल का अग्रभाग दिखाई देता रहे व इसे कलश पर
रखें। यह कलश वरुण का प्रतीक है। दो बड़े दीपक रखें। एक में घी भरें व दूसरे में
तेल। एक दीपक चौकी के दाईं ओर रखें व दूसरा मूर्तियों के चरणों में। इसके अलावा एक
दीपक गणेशजी के पास रखें।
मूर्तियों वाली चौकी के सामने छोटी
चौकी रखकर उस पर लाल वस्त्र बिछाएं। कलश की ओर एक मुट्ठी चावल से लाल वस्त्र पर
नवग्रह की प्रतीक नौ ढेरियां बनाएं। गणेशजी की ओर चावल की सोलह ढेरियां बनाएं। ये
सोलह मातृका की प्रतीक हैं। नवग्रह व षोडश मातृका के बीच स्वस्तिक का चिह्न बनाएं।
इसके बीच में सुपारी रखें व चारों कोनों पर चावल की ढेरी। सबसे ऊपर बीचों बीच ॐ लिखें। छोटी चौकी के सामने तीन थाली व जल भरकर कलश रखें। थालियों की निम्नानुसार व्यवस्था करें-
1. ग्यारह दीपक,
2. खील, बताशे, मिठाई, वस्त्र, आभूषण, चन्दन का लेप, सिन्दूर, कुंकुम, सुपारी, पान,
3. फूल, दुर्वा, चावल,
लौंग, इलायची, केसर-कपूर,
हल्दी-चूने का लेप, सुगंधित पदार्थ, धूप, अगरबत्ती, एक दीपक।
इन थालियों के सामने पूजा करने वाला
बैठे। आपके परिवार के सदस्य आपकी बाईं ओर बैठें। कोई आगंतुक हो तो वह आपके या आपके
परिवार के सदस्यों के पीछे बैठे।
हर साल दिवाली पूजन में नया सिक्का ले
और पुराने सिक्को के साथ इख्ठा रख कर दीपावली पर पूजन करे और पूजन के बाद सभी
सिक्को को तिजोरी में रख दे।
पूजा की संक्षिप्त विधि स्वयं करने के
लिए
पवित्रीकरण
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हाथ में पूजा के जलपात्र से थोड़ा सा
जल ले लें और अब उसे मूर्तियों के ऊपर छिड़कें। साथ में नीचे दिया गया पवित्रीकरण
मंत्र पढ़ें। इस मंत्र और पानी को छिड़ककर आप अपने आपको पूजा की सामग्री को और अपने
आसन को भी पवित्र कर लें।
शरीर एवं पूजा सामग्री पवित्रीकरण
मन्त्र
ॐ पवित्रः अपवित्रो वा
सर्वावस्थांगतोऽपिवा।
यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स वाह्यभ्यन्तर शुचिः॥
पृथ्वी पवित्रीकरण विनियोग
पृथ्विति मंत्रस्य मेरुपृष्ठः ग षिः सुतलं छन्दः कूर्मोदेवता आसने विनियोगः॥
अब पृथ्वी पर जिस जगह आपने आसन बिछाया
है, उस जगह को पवित्र कर लें और मां
पृथ्वी को प्रणाम करके मंत्र बोलें-
पृथ्वी पवित्रीकरण मन्त्र
ॐ पृथ्वी त्वया धृता लोका देवि त्वं
विष्णुना धृता।
त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु
चासनम्॥
पृथिव्यै नमः आधारशक्तये नमः
अब आचमन करें
---------------------------
पुष्प, चम्मच या अंजुलि से एक बूंद पानी अपने मुंह में छोड़िए और बोलिए-
ॐ केशवाय नमः
और फिर एक बूंद पानी अपने मुंह में
छोड़िए और बोलिए-
ॐ नारायणाय नमः
फिर एक तीसरी बूंद पानी की मुंह में
छोड़िए और बोलिए-
ॐ वासुदेवाय नमः
इसके बाद संभव हो तो किसी किसी
ब्राह्मण द्वारा विधि विधान से पूजन करवाना अति लाभदायक रहेगा। ऐसा संभव ना हो तो
सर्वप्रथम दीप प्रज्वलन कर गणेश जी का ध्यान कर अक्षत पुष्प अर्पित करने के पश्चात
दीपक का गंधाक्षत से तिलक कर निम्न मंत्र से पुष्प अर्पण करें।
शुभम करोति कल्याणम,
अरोग्यम धन संपदा,
शत्रु-बुद्धि विनाशायः,
दीपःज्योति नमोस्तुते !
पूजन हेतु संकल्प
इसके बाद बारी आती है संकल्प की।
जिसके लिए पुष्प, फल, सुपारी, पान, चांदी का सिक्का,
नारियल (पानी वाला), मिठाई, मेवा, आदि सभी सामग्री थोड़ी-थोड़ी मात्रा में लेकर
संकल्प मंत्र बोलें- ऊं विष्णुर्विष्णुर्विष्णु:, ऊं
तत्सदद्य श्री पुराणपुरुषोत्तमस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य ब्रह्मणोऽह्नि
द्वितीय पराद्र्धे श्री श्वेतवाराहकल्पे सप्तमे वैवस्वतमन्वन्तरे, अष्टाविंशतितमे कलियुगे, कलिप्रथम चरणे जम्बुद्वीपे
भरतखण्डे आर्यावर्तान्तर्गत ब्रह्मवर्तैकदेशे पुण्य (अपने नगर/गांव का नाम लें)
क्षेत्रे बौद्धावतारे वीर विक्रमादित्यनृपते : 2070, तमेऽब्दे
शोभन नाम संवत्सरे दक्षिणायने/उत्तरायणे हेमंत ऋतो महामंगल्यप्रदे मासानां
मासोत्तमे कार्तिक मासे कृष्ण पक्षे अमावस तिथौ (जो वार हो) शनि वासरे स्वाति
नक्षत्रे आयुष्मान योग चतुष्पाद करणादिसत्सुशुभे योग (गोत्र का नाम लें)
गोत्रोत्पन्नोऽहं अमुकनामा (अपना नाम लें) सकलपापक्षयपूर्वकं सर्वारिष्ट
शांतिनिमित्तं सर्वमंगलकामनया– श्रुतिस्मृत्यो- क्तफलप्राप्तर्थं— निमित्त
महागणपति नवग्रहप्रणव सहितं कुलदेवतानां पूजनसहितं स्थिर लक्ष्मी महालक्ष्मी देवी
पूजन निमित्तं एतत्सर्वं शुभ-पूजोपचारविधि सम्पादयिष्ये।
गणेश पूजन
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किसी भी पूजन की शुरुआत में सर्वप्रथम
श्री गणेश को पूजा जाता है। इसलिए सबसे पहले श्री गणेश जी की पूजा करें।
इसके लिए हाथ में पुष्प लेकर गणेश जी
का ध्यान करें। मंत्र पढ़े – गजाननम्भूतगणादिसेवितं
कपित्थ जम्बू फलचारुभक्षणम्।
उमासुतं शोक विनाशकारकं
नमामि विघ्नेश्वरपादपंकजम्।
गणपति आवाहन:
ऊं गं गणपतये इहागच्छ इह तिष्ठ।। इतना कहने के
बाद पात्र में अक्षत छोड़ दे।
इसके पश्चात गणेश जी को पंचामृत से
स्नान करवाये पंचामृत स्नान के बाद शुद्ध जल से स्नान कराए अर्घा में जल लेकर
बोलें- एतानि पाद्याद्याचमनीय-स्नानीयं, पुनराचमनीयम् ऊं गं गणपतये नम:।
रक्त चंदन लगाएं:
इदम रक्त चंदनम् लेपनम् ऊं गं गणपतये नम:, इसी प्रकार श्रीखंड चंदन बोलकर श्रीखंड चंदन लगाएं।
इसके पश्चात सिन्दूर चढ़ाएं “इदं सिन्दूराभरणं लेपनम् ऊं गं गणपतये नम:। दूर्वा और
विल्बपत्र भी गणेश जी को अर्पित करें। उन्हें वस्त्र पहनाएं और कहें – इदं रक्त
वस्त्रं ऊं गं गणपतये समर्पयामि।
पूजन के बाद श्री गणेश को प्रसाद
अर्पित करें और बोले – इदं नानाविधि नैवेद्यानि ऊं गं गणपतये समर्पयामि:। मिष्ठान
अर्पित करने के लिए मंत्र: इदं शर्करा घृत युक्त नैवेद्यं ऊं गं गणपतये
समर्पयामि:। प्रसाद अर्पित करने के बाद आचमन करायें। इदं आचमनयं ऊं गं गणपतये नम:।
इसके बाद पान सुपारी चढ़ायें: इदं ताम्बूल पुगीफल समायुक्तं ऊं गं गणपतये
समर्पयामि:। अब एक फूल लेकर गणपति पर चढ़ाएं और बोलें: एष: पुष्पान्जलि ऊं गं
गणपतये नम:
इसी प्रकार अन्य देवताओं का भी पूजन
करें बस जिस देवता की पूजा करनी हो गणेश जी के स्थान पर उस देवता का नाम लें।
कलश पूजन
इसके लिए लोटे या घड़े पर मोली बांधकर
कलश के ऊपर आम के पत्ते रखें। कलश के अंदर सुपारी, दूर्वा, अक्षत व् मुद्रा रखें। कलश के गले में मोली
लपेटे। नारियल पर वस्त्र लपेट कर कलश पर रखें। अब हाथ में अक्षत और पुष्प लेकर
वरुण देव का कलश में आह्वान करें। ओ३म् त्तत्वायामि ब्रह्मणा वन्दमानस्तदाशास्ते
यजमानो हविभि:। अहेडमानो वरुणेह बोध्युरुशंस मान आयु: प्रमोषी:। (अस्मिन कलशे
वरुणं सांगं सपरिवारं सायुध सशक्तिकमावाहयामि, ओ३म्भूर्भुव:
स्व:भो वरुण इहागच्छ इहतिष्ठ। स्थापयामि पूजयामि॥)
इसके बाद इस प्रकार श्री गणेश जी की
पूजन की है उसी प्रकार वरुण देव की भी पूजा करें। इसके बाद इंद्र और फिर कुबेर जी
की पूजा करें। एवं वस्त्र सुगंध अर्पण कर भोग लगाये इसके बाद इसी प्रकार क्रम से
कलश का पूजन कर लक्ष्मी पूजन आरम्भ करे
लक्ष्मी पूजन
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सर्वप्रथम निम्न मंत्र कहते हुए माँ
लक्ष्मी का ध्यान करें।
ॐ या सा पद्मासनस्था,
विपुल-कटि-तटी, पद्म-दलायताक्षी।
गम्भीरावर्त-नाभिः,
स्तन-भर-नमिता, शुभ्र-वस्त्रोत्तरीया।।
लक्ष्मी दिव्यैर्गजेन्द्रैः।
मणि-गज-खचितैः, स्नापिता
हेम-कुम्भैः।
नित्यं सा पद्म-हस्ता, मम वसतु गृहे, सर्व-मांगल्य-युक्ता।।
अब माँ लक्ष्मी की प्रतिष्ठा करें
हाथ में अक्षत लेकर मंत्र कहें – “ॐ भूर्भुवः
स्वः महालक्ष्मी, इहागच्छ इह तिष्ठ,
एतानि पाद्याद्याचमनीय-स्नानीयं, पुनराचमनीयम्।”
प्रतिष्ठा के बाद स्नान कराएं और
मंत्र बोलें – ॐ मन्दाकिन्या समानीतैः, हेमाम्भोरुह-वासितैः स्नानं कुरुष्व देवेशि, सलिलं च
सुगन्धिभिः।। ॐ लक्ष्म्यै नमः।। इदं रक्त चंदनम् लेपनम् से रक्त चंदन लगाएं। इदं
सिन्दूराभरणं से सिन्दूर लगाएं। ‘ॐ मन्दार-पारिजाताद्यैः, अनेकैः
कुसुमैः शुभैः। पूजयामि शिवे, भक्तया, कमलायै
नमो नमः।। ॐ लक्ष्म्यै नमः, पुष्पाणि समर्पयामि।’इस मंत्र से
पुष्प चढ़ाएं फिर माला पहनाएं। अब लक्ष्मी देवी को इदं रक्त वस्त्र समर्पयामि कहकर
लाल वस्त्र पहनाएं। इसके बाद मा लक्ष्मी के क्रम से अंगों की पूजा करें।
माँ लक्ष्मी की अंग पूजा
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बाएं हाथ में अक्षत लेकर दाएं हाथ से थोड़े थोड़े छोड़ते जाए और मंत्र कहें –
ऊं चपलायै नम: पादौ पूजयामि
ऊं चंचलायै नम: जानूं पूजयामि,
ऊं कमलायै नम: कटि पूजयामि,
ऊं कात्यायिन्यै नम: नाभि पूजयामि,
ऊं जगन्मातरे नम: जठरं पूजयामि,
ऊं विश्ववल्लभायै नम: वक्षस्थल पूजयामि,
ऊं कमलवासिन्यै नम: भुजौ पूजयामि,
ऊं कमल पत्राक्ष्य नम: नेत्रत्रयं पूजयामि,
ऊं
श्रियै नम: शिरं: पूजयामि।
अष्टसिद्धि पूजा
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अंग पूजन की ही तरह हाथ में अक्षत लेकर मंतोच्चारण करते रहे। मंत्र इस प्रकर है –
ऊं अणिम्ने नम:, ओं महिम्ने नम:, ऊं गरिम्णे नम:,
ओं लघिम्ने नम:, ऊं प्राप्त्यै नम: ऊं
प्राकाम्यै नम:, ऊं ईशितायै नम: ओं वशितायै नम:।
अष्टलक्ष्मी पूजन
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अंग पूजन एवं अष्टसिद्धि पूजा की ही तरह हाथ में अक्षत लेकर मंत्रोच्चारण करें।
ऊं आद्ये लक्ष्म्यै नम:, ओं विद्यालक्ष्म्यै नम:, ऊं
सौभाग्य लक्ष्म्यै नम:, ओं अमृत लक्ष्म्यै नम:, ऊं लक्ष्म्यै नम:, ऊं सत्य लक्ष्म्यै नम:, ऊं भोगलक्ष्म्यै नम:, ऊं योग लक्ष्म्यै नम:
नैवैद्य अर्पण
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पूजन के बाद देवी को
“इदं नानाविधि नैवेद्यानि ऊं महालक्ष्मियै समर्पयामि”
मंत्र से नैवैद्य अर्पित करें।
मिष्टान अर्पित करने के लिए मंत्र:
“इदं शर्करा घृत समायुक्तं नैवेद्यं ऊं महालक्ष्मियै समर्पयामि” बालें।
प्रसाद अर्पित करने के बाद आचमन करायें। इदं आचमनयं ऊं महालक्ष्मियै नम:।
इसके बाद पान सुपारी चढ़ायें: इदं ताम्बूल पुगीफल समायुक्तं ऊं महालक्ष्मियै समर्पयामि।
अब एक फूल लेकर लक्ष्मी देवी पर चढ़ाएं और बोलें: एष:
पुष्पान्जलि ऊं महालक्ष्मियै नम:।
माँ को यथा सामर्थ वस्त्र, आभूषण, नैवेद्य अर्पण कर
दक्षिणा चढ़ाए दूध, दही, शहद, देसी घी और गंगाजल मिलकर चरणामृत बनाये और गणेश लक्ष्मी जी के सामने रख
दे। इसके बाद 5 तरह के फल, मिठाई
खील-पताशे, चीनी के खिलोने लक्ष्मी माता और गणेश जी को चढ़ाये
और प्राथना करे की वो हमेशा हमारे घरो में विराजमान रहे। इनके बाद एक थाली में
विषम संख्या में दीपक 11,21 अथवा यथा सामर्थ दीप रख कर इनको
भी कुंकुम अक्षत से पूजन करे इसके बाद माँ को श्री सूक्त अथवा ललिता सहस्त्रनाम का
पाठ सुनाये पाठ के बाद माँ से क्षमा याचना कर माँ लक्ष्मी जी की आरती कर
बड़े-बुजुर्गों का आशीर्वाद लेने के बाद थाली के दीपो को घर में सब जगह रखे।
लक्ष्मी-गणेश जी का पूजन करने के बाद, सभी को जो पूजा में
शामिल हो, उन्हें खील, पताशे, चावल दे।
सब फिर मिल कर प्राथना करे की माँ
लक्ष्मी हमने भोले भाव से आपका पूजन किया है! उसे स्वीकार करे और गणेशा, माँ सरस्वती और सभी देवताओं सहित हमारे घरो में निवास
करे। प्रार्थना करने के बाद जो सामान अपने हाथ में लिया था वो मिटटी के लक्ष्मी
गणेश, हटड़ी और जो लक्ष्मी गणेश जी की फोटो लगायी थी उस पर
चढ़ा दे।
लक्ष्मी पूजन के बाद आप अपनी तिजोरी
की पूजा भी करे रोली को देसी घी में घोल कर स्वस्तिक बनाये और धुप दीप दिखा करे
मिठाई का भोग लगाए।
लक्ष्मी माता और सभी भगवानो को आपने
अपने घर में आमंत्रित किया है अगर हो सके तो पूजन के बाद शुद्ध बिना लहसुन-प्याज़
का भोजन बना कर गणेश-लक्ष्मी जी सहित सबको भोग लगाए। दीपावली पूजन के बाद आप मंदिर, गुरद्वारे और चौराहे में भी दीपक और मोमबतियां जलाएं।
रात को सोने से पहले पूजा स्थल पर
मिटटी का चार मुह वाला दिया सरसो के तेल से भर कर जगा दे और उसमे इतना तेल हो की
वो सुबह तक जग सके
माँ लक्ष्मी जी की आरती
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ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता
तुम को निस दिन सेवत, मैयाजी को निस दिन सेवत
हर विष्णु विधाता
ॐ जय लक्ष्मी माता ...
उमा रमा ब्रह्माणी, तुम ही जग माता
ओ मैया तुम ही जग माता .
सूर्य चन्द्र माँ ध्यावत, नारद ऋषि गाता
ॐ जय लक्ष्मी माता ..
दुर्गा रूप निरन्जनि, सुख सम्पति दाता
ओ मैया सुख सम्पति दाता .
जो कोई तुम को ध्यावत, ऋद्धि सिद्धि धन पाता
ॐ जय लक्ष्मी माता ..
तुम पाताल निवासिनि, तुम ही शुभ दाता
ओ मैया तुम ही शुभ दाता .
कर्म प्रभाव प्रकाशिनि, भव निधि की दाता
ॐ जय लक्ष्मी माता ..
जिस घर तुम रहती तहँ सब सद्गुण आता
ओ मैया सब सद्गुण आता .
सब संभव हो जाता, मन नहीं घबराता
ॐ जय लक्ष्मी माता ..
तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न कोई पाता
ओ मैया वस्त्र न कोई पाता .
ख़ान पान का वैभव, सब तुम से आता
ॐ जय लक्ष्मी माता ..
शुभ गुण मंदिर सुंदर, क्षीरोदधि जाता
ओ मैया क्षीरोदधि जाता .
रत्न चतुर्दश तुम बिन, कोई नहीं पाता
ॐ जय लक्ष्मी माता ..
महा लक्ष्मीजी की आरती, जो कोई जन गाता
ओ मैया जो कोई जन गाता .
उर आनंद समाता, पाप उतर जाता
ॐ जय लक्ष्मी माता ..