पितृ पक्ष के अंतिम दिन यानी सर्व पितृ अमावस्या के अगले दिन से शारदीय नवरात्रि का प्रारंभ होता है। हिन्दी पंचांग के अनुसार, आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से मां दुर्गा की आराधना का महापर्व नवरात्रि शुरु होती है। नवरात्रि में मां दुर्गा के नौ स्वरुपों मां शैलपुत्री, मां ब्रह्मचारिणी, मां चंद्रघंटा, मां कुष्मांडा, मां स्कंदमाता, मां कात्यायनी, मां कालरात्रि, मां महागौरी और मां सिद्धिदात्री की पूजा क्रमश: की जाती है। इस नवरात्रि में ही बंगाल, बिहार, झारखंड समेत देश कई राज्यों में दुर्गा पूजा का आयोजन होता है, तो कई स्थानों पर रामलीला का आयोजन होता है। दुर्गाष्टमी या महानवमी को कन्या पूजा की जाती है। महानवमी को नवरात्रि हवन का भी आयोजन होता है। दशहरा के दिन रावण, मेघनाद और कुंभकर्ण का पुतला दहन भी किया जाता है, वहीं विजयादशमी के दिन मां दुर्गा की मूर्तियों का विधि विधान से विसर्जन भी होता है। इस दिन शस्त्र पूजा भी की जाती है।
शारदीय नवरात्रि 2021 का प्रारंभ
इस वर्ष शारदीय
नवरात्रि का प्रारंभ 07 अक्टूबर दिन गुरुवार
को आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से हो रहा है। इस दिन ही कलश स्थापना या घट स्थापना होगा
और मां शैलपुत्री की पूजा की जाएगी। जिन लोगों को नौ दिन व्रत रखना होगा, वे कलश स्थापना के साथ नवरात्रि व्रत एवं मां दुर्गा की पूजा
का संकल्प लेंगे और व्रत शुरू करेंगे। जो लोग एक दिन का नवरात्रि व्रत रहेंगे, वो अगले दिन व्रत का पारण कर लेंगे और फिर दुर्गाष्टमी के दिन
व्रत रखेंगे एवं कन्या पूजन करेंगे।
8 दिन की है नवरात्रि 2021
इस वर्ष की नवरात्रि
आठ दिनों की है क्योंकि आश्विन शुक्ल षष्ठी तिथि का क्षय हो रहा है। इस कारण से आठ
दिनों की नवरात्रि है।
दुर्गाष्टमी 2021
या महाष्टमी 2021
नवरात्रि में प्रथम
दिन के बाद अष्टमी का बहुत महत्व होता है। इसे दुर्गाष्टमी या महाष्टमी कहते हैं।
इस वर्ष दुर्गाष्टमी 13 अक्टूबर दिन बुधवार
को है। इस दिन मां महागौरी की पूजा होती है। जो लोग प्रथम दिन व्रत रखते हैं, वे महाष्टमी का भी व्रत रखते हैं।
महानवमी 2021
इस वर्ष शारदीय
नवरात्रि की महानवमी 14 अक्टूबर दिन गुरुवार
को है। इस दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है और हवन किया जाता है।
दशहरा 2021 या
विजशदशमी 2021
इस वर्ष दशहरा या
विजशदशमी 15 अक्टूबर दिन शुक्रवार को है। इस दिन
रावण, मेघनाद और कुंभकर्ण के पुतलों का दहन
होता है। रामलीला में रावण वध का मंचन होता है। विजयादशमी के दिन दुर्गा मूर्ति का
विसर्जन भी किया जाता है। हालांकि यह मुहूर्त पर निर्भर करता है। दशहरा या
विजयादशमी बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।
शारदीय नवरात्रि 2021 : कलश स्थापना
7 अक्टूबर 2021 दिन गुरुवार को कलश
स्थापना होगी
|
इस दौरान दौरान तुला राशि का चंद्रमा, चित्रा नक्षत्र, करण किस्तुन रहेगा | कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त सुबह 6 बजकर 17 मिनट से लेकर सुबह 07 बजकर 07 मिनट तक रहेगा |
शारदीय नवरात्रि 2021 तिथियां
7 अक्टूबर (पहला दिन) मां शैलपुत्री की पूजा
8 अक्टूबर (दूसरा दिन)- मां ब्रह्मचारिणी की पूजा
9 अक्टूबर (तीसरा दिन)- मां चंद्रघंटा व मां कुष्मांडा की पूजा
10 अक्टूबर (चौथा दिन)- मां स्कंदमाता की
पूजा
11 अक्टूबर (पांचवां दिन)- मां कात्यायनी
की पूजा
12 अक्टूबर (छठवां दिन)- मां कालरात्रि की
पूजा
13 अक्टूबर (सातवां दिन)- मां महागौरी की
पूजा
14 अक्टूबर (आठवां दिन)- मां सिद्धिदात्री
की पूजा
15 अक्टूबर- दशमी तिथि, नवरात्रि व्रत परायण, विजयादशमी या दशहरा
नवरात्रि के पीछे पौराणिक कहानी
इस त्योहार से
संबंधित कई कहानियां हैं, लेकिन उनमें से दो
बहुत लोकप्रिय और प्रचलित हैं। पहले एक राक्षस महिषासुर के बारे में है और वह देवी
दुर्गा के हाथों से कैसे मिला। ये रहा:
महिषासुर नाम का एक
दानव भगवान शिव का बड़ा उपासक था। दानव की भक्ति से प्रभावित होकर, भगवान शिव खुश हो गए और उन्हें किसी भी व्यक्ति या भगवान
द्वारा मारे नहीं जाने का वरदान दिया। यह आशीर्वाद महिषासुर के सिर पर चढ़ गया, जिससे वह अभिमानी और अभिमानी हो गया। उसने मूल निवासियों को
आतंकित करना शुरू कर दिया, उनके घरों पर हमला
किया और सभी के लिए समस्याएं पैदा कीं। पृथ्वी को नष्ट करने के बाद, उसने स्वर्ग को निशाना बनाया और देवताओं को भी डराया। देवता
त्रिदेव के पास गए; ब्रह्मा, विष्णु
और शिव; एक समाधान प्राप्त करने के लिए, जिसने माँ दुर्गा को बनाया। लुका-छिपी के एक जोरदार खेल के बाद, मां दुर्गा ने आखिरकार राक्षस को ढूंढ निकाला और उसे मार डाला।
इसने बुराई पर अच्छाई की जीत पर टिप्पणी की।
दूसरी कहानी इस
प्रकार है:
भगवान राम, परम महाशक्ति देवी भगवती के बहुत बड़े उपासक थे। उन्होंने नौ
दिनों तक सीधे अपनी पूजा में खुद को समर्पित किया ताकि रावण के खिलाफ जीत हासिल की
जा सके। नौवें दिन, देवी भगवती उनके सामने प्रकट हुईं और
उन्हें आशीर्वाद दिया और दसवें दिन भगवान राम ने दशानन का वध किया। तब से, देवी भगवती के विभिन्न रूपों को नौ दिनों के लिए सीधा किया
जाता है और विजयादशमी के दसवें दिन मनाया जाता है।
DURGA POOJA NAVRATRI BEEJ MANTRA
RAM NAVAMI
शक्ति की उपासना का
पर्व चैत्र नवरात्र 13 अप्रैल से शुरू हो
रहा है। इस बार कोई तिथि क्षय नहीं है। नवरात्र का पावन पर्व पूरे नौ दिनों तक
मनाया जाएगा। समापन 21 अप्रैल को होगा।
नवरात्र के साथ ही हिन्दू नववर्ष की शुरुआत भी होगी। नवरात्र में मां दुर्गा की
पूजा जीवन में सुख समृद्धि और शांति लाती है। कलश स्थापना, जौ बोने, दुर्गा सप्तशती का
पाठ करने, हवन और कन्या पूजन से मां प्रसन्न होती
हैं। चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से नवरात्र शुरू हो रहे हैं।
चंद्रमा मेष राशि में रहेगा। अश्वनी नक्षत्र व स्वार्थसिद्ध और अमृतसिद्ध योग बन
रहे हैं। अमृतसिद्धि योग में कोई कार्य शुरू करने पर शुभ फल मिलता है। साथ ही
स्थायित्व की प्राप्ति होती है। वहीं स्वार्थ सिद्धि योग में जो भी कार्य किए जाते
हैं वह बिना बाधा के पूर्ण होते हैं और सुख समृद्धि आती है।
नवरात्रि के लिए पूजा सामग्री (Navratri Poojan Samagri)
नवरात्रि के व्रत
रखने और पूजा करने का तभी लाभ होता है जब सब कार्य विधिपूर्वक किये जाएंआज हम आपको
नवरात्रि के लिए पूजा सामग्री बता रहे हैं।
मां दुर्गा की
प्रतिमा या फोटो, कपूर, धूप, दीपक, दीपबत्ती, नैवेद्य, केसर, चौकी, रोली, मौली, सुगंधित तेलबेलपत्र, कमलगट्टा, मेंहदी, हल्दी की गांठ और पिसी हुई हल्दी, सुपारी साबुत, पटरा, आसन, पुष्प, दूर्वा, बंदनवार आम के पत्तों
का, पुष्पहार, वस्त्र, दर्पण, कंघी, कंगन-चूड़ी, बिंदी, लाल रंग की गोटेदार चुनरीलाल, रेशमी
चूड़ियां, सिंदूर, मधु, शक्कर, पंचमेवा, जायफल, आदिकी आवश्यकता होती
है।
घर पर नवरात्रि पूजा विधि (Navratri Ghat Sthapna Pooja Vidhi)
चैत्र नवरात्रि कलश स्थापन पूजा
चैत्र नवरात्रि आमतौर
पर मार्च-अप्रैल की अवधि में शुरू होती है। लोग अपने घर और कार्यस्थल पर कलश
स्थापन पूजा करना पसंद करते हैं। एक कलश को पूजा स्थल पर रखा जाता है और लोग कलश
पूजा के अनुष्ठान को करने के लिए एक पुजारी को बुलाते हैं। नवरात्रि के पहले दिन
कलश स्थापित करने का एक सही तरीका है।
● सुबह जल्दी उठना और शॉवर लेना पहली गतिविधि होनी चाहिए।
● मूर्तियों को साफ करने के बाद, आपको
सबसे पहले उस स्थान की सफाई करनी होगी, जहां कलश रखा जाना
है।
● अगली चीज़ जो आपको करने की ज़रूरत है, वह है लकड़ी के आसन पर लाल रंग का कपड़ा बिछाना और लाल कपड़े
पर कच्चा चावल डालते हुए भगवान गणेश के मंत्रों का जाप करना।
● कुछ मिट्टी का उपयोग करके,
आपको
एक वेदी बनाने और उसमें जौ के बीज बोने की आवश्यकता है।
● अब, मिट्टी पर कलश
स्थापित करें और उसमें थोड़ा पानी डालें।
● कलश पर स्वस्तिक चिन्ह बनाने के लिए सिंदूर के पेस्ट का उपयोग करें और कलश के गले में एक
पवित्र धागा बाँधें।
● कलश में सुपारी और सिक्का डालें और उसमें कुछ आम के पत्ते
रखें।
● अब, एक नारियल लें, उसके चारों ओर एक पवित्र धागा और एक लाल चुनरी बाँध लें।
● इस नारियल को कलश के ऊपर रख दें और सर्वशक्तिमान ईश्वर से
प्रार्थना करें।
● देवताओं को फूल चढ़ाएं और धार्मिक मन और आत्मा से पूजा करें।
नवरात्रि में माँ दुर्गा के नौ रूपों की पूजा का विधान (Nav Durga ke Nav Roop)
● दिन 1- 7 अक्टूबर
2021 :मां शैलपुत्री पूजा घटस्थापना:यह देवी
दुर्गा के नौ रूपों में से प्रथम रूप है। मां शैलपुत्री चंद्रमा को दर्शाती हैं और
इनकी पूजा से चंद्रमा से संबंधित दोष समाप्त हो जाते हैं। शैलपुत्री माता पार्वती
का ही दूसरा रूप है। इन्हें हिमालय राज की पुत्री कहा जाता है। इनके दाएं हाथ में
त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल होता है तथा यह मां नंदी की सवारी करती है। शक्ति और
कर्म इनके प्रतीक हैं।
● दिन 2- 8 अक्टूबर
2021 :माँ ब्रह्मचारिणी पूजा :ज्योतिषीय
मान्यता के अनुसार देवी ब्रह्मचारिणी मंगल ग्रह को नियंत्रित करती हैं। देवी की
पूजा से मंगल ग्रह के बुरे प्रभाव कम होते हैं। ऐसा कहा जाता है कि जब मां पार्वती
अविवाहित थी तब उन्हेंब्रह्मचारिणी कहा जाता था। यानि कि यह दिन भी मां पार्वती का
ही होता है। ये मां श्वेत वस्त्र धारण किए हुए होती हैं और इनके दाएं हाथ में
कमण्डल और बाएं हाथ में जपमाला होती है। देवी का स्वरूप अत्यंत तेज़ और ज्योतिर्मय
है। ये मां शांति और सकारात्मकता की प्रतीक है।
● दिन 3- 9 अक्टूबर
2021 :माँ चंद्रघंटा पूजा :देवी चंद्रघण्टा
शुक्र ग्रह को नियंत्रित करती हैं। देवी की पूजा से शुक्र ग्रह के बुरे प्रभाव कम
होते हैं। पौराणिक कथा के अनुसार ऐसा माना जाता है कि माँ पार्वती और भगवान शिव के
विवाह के दौरान उनका यह नाम पड़ा था। मां चंद्रघण्टा का प्रिय रंग पीला होता है
इसलिए इस दिन पीले रंग धारण किए जाते हैं। यह रंग साहस का प्रतीक है।
● दिन 3 - 9 अक्टूबर
2021 :माँ कूष्मांडा पूजा :माँ कूष्माण्डा
सूर्य का मार्गदर्शन करती हैं अतः इनकी पूजा से सूर्य के कुप्रभावों से बचा जा
सकता है। मां कुष्मांडा शेर की सवारी करती हैं और उनकी आठ भुजाएं होती हैं। ऐसी
मान्यता है कि पृथ्वी पर होने वाली हरियाली माँ के इसी रूप के कारण है। इस दिन हरे
कपड़े पहनने को शुभ माना जाता है।
● दिन 4 : 10 अक्टूबर
2021 :माँ स्कंदमाता पूजा :देवी स्कंदमाता बुध
ग्रह को नियंत्रित करती हैं। देवी की पूजा से बुध ग्रह के बुरे प्रभाव कम होते
हैं। भगवान कार्तिकेय का एक नाम स्कंद भी है। इनकी चार भुजाएं होती हैं। माता अपने
पुत्र को लेकर शेर की सवारी करती है। इस दिन ग्रे रंग के कपड़े पहनने की मान्यता
है।
● दिन 5- 11 अक्टूबर
2021 :माँ कात्यायनी पूजा :देवी कात्यायनी
बृहस्पति ग्रह को नियंत्रित करती हैं। देवी की पूजा से बृहस्पति के बुरे प्रभाव कम
होते हैं। माता कात्यायिनी साहस का प्रतीक हैं। ये शेर की सवारी करती हैं और उनकी
चार भुजाएं हैं। इस दिन केसरिया रंग का महत्व होता है।
● दिन 6 : 12 अक्टूबर
2021 :माँ कालरात्रि पूजा :देवी कालरात्रि शनि
ग्रह को नियंत्रित करती हैं। देवी की पूजा से शनि के बुरे प्रभाव कम होते हैं। और
ऐसा कहा जाता है कि जब मां पार्वती ने शुंभ निशुंभ नामक दो राक्षसों का वध किया था
तब उनका रंग काला हो गया था। इसके बावजूद इस दिन काले के बजाय सफेद रंग पहना जाता
है।
● दिन 7 : 13 अक्टूबर
2021 :माँ महागौरी पूजा :देवी महागौरी राहु
ग्रह को नियंत्रित करती हैं। देवी की पूजा से राहु के बुरे प्रभाव कम होते हैं।
माता का यह रूप शांति और ज्ञान की देवी का प्रतीक है। इस दिन पिंक कपड़े पहने जाते
हैं।
● दिन 8 - 14 अक्टूबर
2021 :माँ सिद्धिदात्री पूजा :देवी
सिद्धिदात्री केतु ग्रह को नियंत्रित करती हैं। देवी की पूजा से केतु के बुरे
प्रभाव कम होते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस दिन सच्चे मन से पूजा करने वालों को
सिद्धि प्राप्त होती है। मां सिद्धिदात्री कमल के फूल पर विराजमान हैं और उनकी चार
भुजाएं होती हैं।
• दिन 9 - 14 अक्टूबर
2021 : दशमी तिथि, नवरात्रि व्रत परायण, विजयादशमी या दशहरा
9 दुर्गा के बीज मंत्र (Nav Durga Beej Mantra)
नवरात्रि के समय में
मां दुर्गा के बीज मंत्रों का जाप कल्याणकारी और प्रभावी माना जाता है। इस
नवरात्रि आप 9 दुर्गा के बीज मंत्रों का जाप कर सकते
हैं। इसमें शब्दों के उच्चारण का विशेष ध्यान रखा जाता है। आइए मां दुर्गा के 9 स्वरुपों के बीज मंत्रों के बारे में जानते हैं।
1. शैलपुत्री: ह्रीं शिवायै नम:।
2. ब्रह्मचारिणी: ह्रीं श्री अम्बिकायै नम:।
3. चन्द्रघण्टा: ऐं श्रीं शक्तयै नम:।
4. कूष्मांडा: ऐं ह्री देव्यै नम:।
5. स्कंदमाता: ह्रीं क्लीं स्वमिन्यै नम:।
6. कात्यायनी: क्लीं श्री त्रिनेत्रायै नम:।
7. कालरात्रि: क्लीं ऐं श्री कालिकायै नम:।
8. महागौरी: श्री क्लीं ह्रीं वरदायै नम:।
9. सिद्धिदात्री: ह्रीं क्लीं ऐं सिद्धये नम:।
मां दुर्गा के 108 नाम (Maa Durga Ke 108 Naam)
1. सती:अग्नि में जल कर भी जीवित होने वाली
2. साध्वी:आशावादी
3. भवप्रीता:भगवान शिव पर प्रीति रखने वाली
4. भवानी:ब्रह्मांड में निवास करने वाली
5. भवमोचनी:संसारिक बंधनों से मुक्त करने
वाली
6. आर्या:देवी
7. दुर्गा:अपराजेय
8. जया:विजयी
9. आद्य:शुरुआत की वास्तविकता
10. त्रिनेत्र:तीन आंखों वाली
11. शूलधारिणी:शूल धारण करने वाली
12. पिनाकधारिणी:शिव का त्रिशूल धारण करने
वाली
13. चित्रा:सुरम्य, सुंदर
14. चण्डघण्टा:प्रचण्ड स्वर से घण्टा नाद
करने वाली, घंटे की आवाज निकालने वाली
15. सुधा:अमृत की देवी
16. मन:मनन-शक्ति
17. बुद्धि:सर्वज्ञाता
18. अहंकारा:अभिमान करने वाली
19. चित्तरूपा:वह जो सोच की अवस्था में है
20. चिता:मृत्युशय्या
21. चिति:चेतना
22. सर्वमन्त्रमयी:सभी मंत्रों का ज्ञान
रखने वाली
23. सत्ता:सत-स्वरूपा, जो सब से ऊपर है
24. सत्यानंद स्वरूपिणी:अनन्त आनंद का रूप
25. अनन्ता:जिनके स्वरूप का कहीं अंत नहीं
26. भाविनी:सबको उत्पन्न करने वाली, खूबसूरत औरत
27. भाव्या:भावना एवं ध्यान करने योग्य
28. भव्या:कल्याणरूपा, भव्यता के साथ
29. अभव्या:जिससे बढ़कर भव्य कुछ नहीं
30. सदागति:हमेशा गति में, मोक्ष दान
31. शाम्भवी:शिवप्रिया, शंभू की पत्नी
32. देवमाता:देवगण की माता
33. चिन्ता:चिन्ता
34. रत्नप्रिया:गहने से प्यार करने वाली
35. सर्वविद्या:ज्ञान का निवास
36. दक्षकन्या:दक्ष की बेटी
37. दक्षयज्ञविनाशिनी:दक्ष के यज्ञ को रोकने
वाली
38. अपर्णा:तपस्या के समय पत्ते को भी न
खाने वाली
39. अनेकवर्णा:अनेक रंगों वाली
40. पाटला:लाल रंग वाली
41. पाटलावती:गुलाब के फूल
42. पट्टाम्बरपरीधाना:रेशमी वस्त्र पहनने
वाली
43. कलामंजीरारंजिनी:पायल को धारण करके
प्रसन्न रहने वाली
44. अमेय:जिसकी कोई सीमा नहीं
45. विक्रमा:असीम पराक्रमी
46. क्रूरा:दैत्यों के प्रति कठोर
47. सुन्दरी:सुंदर रूप वाली
48. सुरसुन्दरी:अत्यंत सुंदर
49. वनदुर्गा:जंगलों की देवी
50. मातंगी:मतंगा की देवी
51. मातंगमुनिपूजिता:बाबा मतंगा द्वारा
पूजनीय
52. ब्राह्मी:भगवान ब्रह्मा की शक्ति
53. माहेश्वरी:प्रभु शिव की शक्ति
54. इंद्री:इंद्र की शक्ति
55. कौमारी:किशोरी
56. वैष्णवी:अजेय
57. चामुण्डा:चंड और मुंड का नाश करने वाली
58. वाराही:वराह पर सवार होने वाली
59. लक्ष्मी:सौभाग्य की देवी
60. पुरुषाकृति:वह जो पुरुष धारण कर ले
61. विमिलौत्त्कार्शिनी:आनन्द प्रदान करने
वाली
62. ज्ञाना:ज्ञान से भरी हुई
63. क्रिया:हर कार्य में होने वाली
64. नित्या:अनन्त
65. बुद्धिदा:ज्ञान देने वाली
66. बहुला:विभिन्न रूपों वाली
67. बहुलप्रेमा:सर्व प्रिय
68. सर्ववाहनवाहना:सभी वाहन पर विराजमान
होने वाली
69. निशुम्भशुम्भहननी:शुम्भ, निशुम्भ का वध करने वाली
70. महिषासुरमर्दिनि:महिषासुर का वध करने
वाली
71. मसुकैटभहंत्री:मधु व कैटभ का नाश करने
वाली
72. चण्डमुण्ड विनाशिनि:चंड और मुंड का नाश
करने वाली
73. सर्वासुरविनाशा:सभी राक्षसों का नाश
करने वाली
74. सर्वदानवघातिनी:संहार के लिए शक्ति रखने
वाली
75. सर्वशास्त्रमयी:सभी सिद्धांतों में
निपुण
76. सत्या:सच्चाई
77. सर्वास्त्रधारिणी:सभी हथियारों धारण
करने वाली
78. अनेकशस्त्रहस्ता:कई हथियार धारण करने
वाली
79. अनेकास्त्रधारिणी:अनेक हथियारों को धारण
करने वाली
80. कुमारी:सुंदर किशोरी
81. एककन्या:कन्या
82. कैशोरी:जवान लड़की
83. युवती:नारी
84. यति:तपस्वी
85. अप्रौढा:जो कभी पुराना ना हो
86. प्रौढा:जो पुराना है
87. वृद्धमाता:शिथिल
88. बलप्रदा:शक्ति देने वाली
89. महोदरी:ब्रह्मांड को संभालने वाली
90. मुक्तकेशी:खुले बाल वाली
91. घोररूपा:एक भयंकर दृष्टिकोण वाली
92. महाबला:अपार शक्ति वाली
93. अग्निज्वाला:मार्मिक आग की तरह
94. रौद्रमुखी:विध्वंसक रुद्र की तरह भयंकर
चेहरा
95. कालरात्रि:काले रंग वाली
96. तपस्विनी:तपस्या में लगे हुए
97. नारायणी:भगवान नारायण की विनाशकारी रूप
98. भद्रकाली:काली का भयंकर रूप
99. विष्णुमाया:भगवान विष्णु का जादू
100. जलोदरी:ब्रह्मांड में निवास करने वाली
101. शिवदूती:भगवान शिव की राजदूत
102. करली:हिंसक
103. अनन्ता:विनाश रहित
104. परमेश्वरी:प्रथम देवी
105. कात्यायनी:ऋषि कात्यायन द्वारा पूजनीय
106. सावित्री:सूर्य की बेटी
107. प्रत्यक्षा:वास्तविक
108.ब्रह्मवादिनी:वर्तमान में हर जगह वास
करने वाली
मां दुर्गा की आरती जय अम्बे
गौरी
(Maa Durga Ki Aarti Jai Ambe Gauri)
जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी.....
जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी।
तुमको निशदिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिव री।। जय अम्बे गौरी,...।
मांग सिंदूर बिराजत, टीको मृगमद को।
उज्ज्वल से दोउ नैना, चंद्रबदन नीको।। जय अम्बे गौरी,...।
कनक समान कलेवर, रक्ताम्बर राजै।
रक्तपुष्प गल माला, कंठन पर साजै।। जय अम्बे गौरी,...।
केहरि वाहन राजत, खड्ग खप्परधारी।
सुर-नर मुनिजन सेवत, तिनके दुःखहारी।। जय अम्बे गौरी,...।
कानन कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती।
कोटिक चंद्र दिवाकर, राजत समज्योति।। जय अम्बे गौरी,...।
शुम्भ निशुम्भ बिडारे, महिषासुर घाती।
धूम्र विलोचन नैना, निशिदिन मदमाती।। जय अम्बे गौरी,...।
चण्ड-मुण्ड संहारे, शौणित बीज हरे।
मधु कैटभ दोउ मारे, सुर भयहीन करे।। जय अम्बे गौरी,...।
ब्रह्माणी, रुद्राणी, तुम कमला
रानी।
आगम निगम बखानी, तुम शिव पटरानी।। जय अम्बे गौरी,...।
चौंसठ योगिनि मंगल गावैं, नृत्य करत भैरू।
बाजत ताल मृदंगा, अरू बाजत डमरू।। जय अम्बे गौरी,...।
तुम ही जग की माता, तुम ही हो भरता।
भक्तन की दुःख हरता, सुख सम्पत्ति करता।। जय अम्बे गौरी,...।
भुजा चार अति शोभित, खड्ग खप्परधारी।
मनवांछित फल पावत, सेवत नर नारी।। जय अम्बे गौरी,...।
श्री मालकेतु में राजत, कोटि रतन ज्योति।। जय अम्बे
गौरी,...।
अम्बेजी की आरती जो कोई नर गावै।
कहत शिवानंद स्वामी, सुख-सम्पत्ति पावै।। जय अम्बे गौरी,...।
मां दुर्गा की आरती (माँ !जगजननी जय !जय!!)
(Maa Durga Ki Aarti Maa Jag janni Jay Jay)
जगजननी जय !जय!! (माँ !जगजननी जय !जय!!)
भयहारिणी, भवतारिणी ,भवभामिनि
जय ! जय !!
माँ जग जननी जय जय …………
तू ही सत-चित-सुखमय शुद्ध ब्रह्मरूपा ।
सत्य सनातन सुंदर पर – शिव सुर-भूपा ।। माँ जग ………….
आदि अनादि अनामय अविचल अविनाशी ।
अमल अनंत अगोचर अज आनंदराशि।। माँ जग ………….
अविकारी , अघहारी, अकल , कलाधारी ।
कर्ता विधि , भर्ता हरि , हर
सँहारकारी ।। माँ जग…………
तू विधिवधू , रमा ,तू उमा , महामाया ।
मूल प्रकृति विद्या तू , तू। जननी ,जाया ।। माँ जग ……….
राम , कृष्ण तू , सीता , व्रजरानी राधा ।
तू वाञ्छाकल्पद्रुम , हारिणी सब बाधा ।। माँ जग……….
दश विद्या , नव दुर्गा , नानाशास्त्रकरा
।
अष्टमात्रका ,योगिनी , नव नव रूप
धरा ।। माँ जग ………..
तू परधामनिवासिनि , महाविलासिनी तू ।
तू ही श्मशानविहारिणि , ताण्डवलासिनि तू ।।
माँ जग जननी जय जय …………
सुर – मुनि – मोहिनी सौम्या तू शोभा धारा ।
विवसन विकट -सरूपा , प्रलयमयी धारा ।। माँ जग ………..
तू ही स्नेह – सुधामयि, तू अति गरलमना ।
रत्नविभूषित तू ही , तू
ही अस्थि- तना ।।माँ जग ………….
मूलाधारनिवासिनी , इह – पर – सिद्धिप्रदे ।
कालातीता काली , कमला तू वरदे ।। माँ जग ……….
शक्ति शक्तिधर तू ही नित्य अभेदमयी ।
भेदप्रदर्शिनि वाणी विमले ! वेदत्रयी ।। माँ जग ………..
हम अति दीन दुखी मा ! विपत – जाल घेरे ।
हैं कपूत अति कपटी , पर बालक तेरे ।। माँ जग ….…..
निज स्वभाववश जननी ! दयादृष्टि कीजै ।
करुणा कर करुणामयि ! चरण – शरण दीजै ।।
माँ जग जननी जय जय , माँ जग जननी जय जय
नवरात्रि
में माँ दुर्गा की मन्त्र साधना
नवरात्रि के समय में
माँ दुर्गा की मन्त्र साधना करने का अपना अलग ही पुन्य है और मन्त्र सिद्धि के साथ
ही माँ की भक्ति, अनुकम्पा प्राप्ति भी सहज है | माँ की भक्ति, मन्त्र साधना करने के
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