भारत के सबसे बड़े त्योहारों में से दिवाली एक है। कार्तिक मास की अमावस्या को दिवाली का त्योहार बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। इस साल दीपावली 19 अक्टूबर 2017 को मनायी जाएगी। दिवाली के त्योहार पर रोशनी का अपना एक अलग ही महत्व रहता है। रोशनी के लिए पारंपरिक तरीकों में दीयों को सबसे ज्यादा तवज्जो दी जाती है। दिवाली के त्योहार पर घर को दीयों से जगमग कर दिया जाता है।
इस दिवाली पर गुरु चित्रा योग का संयोग बन रहा है, जो कि महालक्ष्मी काे प्रसन्न करने के लिए पूजा-पाठ से लेकर घर की सजावट के लिए बाजार से हर प्रकार की खरीदारी करने के लिए शुभ है। नक्षत्र मेखला की गणना के अनुसार ऐसा संयोग आगे 4 साल बाद 2021 में बनेगा। 1990 में गुरुवार के दिन चित्रा नक्षत्र में जब दिवाली आई थी तब यह संयोग बना था। यह दिवाली इसलिए भी खास होगी क्योंकि इस रोज 7 चौघडि़ए, एक अभिजित मुहूर्त और दो लग्न मिलाकर दिन से रात तक खरीदी से लेकर लक्ष्मी, गणेश कुबेर की पूजा के ल वैसे तो दिवाली से पहले 13 अक्टूबर को पुष्य नक्षत्र और इसके बाद 17 अक्टूबर को धनतेरस पर भी लोगों को जमकर खरीदारी करने का मौका मिलेगा। लेकिन ज्योतिष के मान से गुरु चित्रा योग में पूजा खरीदी खास ही नहीं बल्कि चीर स्थाई काल तक लाभ देने वाली मानी जाती है। इसलिए लोग इस योग भी लाभ ले सकते हैं। 19 अक्टूबर को सुबह 7.25 बजे तक हस्त्र नक्षत्र रहेगा। इसके बाद चित्रा नक्षत्र लगने के साथ गुरु चित्रा योग शुरू हाे जाएगा जो कि अगले 24 घंटे तक रहेगा।
दिवाली पर अधिकांश लोग शाम के वक्त प्रदोषकाल में महालक्ष्मी की पूजा करते हैं। इस बार शाम 5.54 से रात 8.26 बजे तक 2.20 घंटे का प्रदोषकाल रहेगा। इस दौरान लोग धन, सुख-समृद्धि की कामना से लक्ष्मी, गणेश कुबेर का पूजन कर सेकेंगे। इस बार एक और खास बात यह भी है कि दिवाली पर लक्ष्मी की विशेष पूजा के लिए 12 साल के बाद चतुर्ग्रही योग का संयोग भी बन रहा है। जाे कि रात 8 बजे के बाद शुरू होगा।
अमावस्या तिथि, गुरुवार का दिन और चित्रा नक्षत्र इन तीनों के एक साथ होने का योग बहुत कम बनता है। ज्योतिष में गुरु को सोना, भूमि, कृषि आदि का कारक ग्रह माना जाता है। जबकि चित्रा नक्षत्र चांदी, वस्त्र, वाहन और इलेक्ट्रॉनिक चीजों के लिए खास शुक्र की राशि वाला यह नक्षत्र समृद्धि का कारक है। गुरु, शुक्र के साथ नक्षत्र का संचार लाभप्रद रहेगा।
दीपावली पर ये सात चौघडि़ए
एक अभिजीत मुहूर्त और दो लग्न
सुबह 6.30 से 8 बजे तक शुभ
सुबह 11 से 12.30 बजे तक चर
दोपहर 12.30 से 2 बजे तक लाभ
दोपहर 2 से 3.30 बजे तक अमृत
शाम 5 से 6.30 बजे तक शुभ
शाम 6.30 से रात 8 बजे तक अमृत
रात 8 से रात 9.30 बजे तक चर
दिन के 11 से 12.30 बजे तक अभिजित मुहूर्त
शाम 7.36 से 9.27 तक वृषभ लग्न
रात 2.4 से 4.10 तक सिंह लग्न
दिवाली पूजन शुभ मुहूर्त
मुख्यतः तीन कालो में वर्गीकृत किया जाता है । जिसमे श्रीगणेश व लक्ष्मी पूजन के लिए सबसे बढ़िया मुहूर्त का समय प्रदोष काल को ही माना जाता है । प्रदोष काल के अलावा
महानिशिता काल मुहूर्त और चौघड़िया पूजा मुहूर्त भी होता है। आइये तीनो काल के शुभ मुहूर्त के बारे में जाने —
दीवाली लक्ष्मी पूजा प्रदोष काल शुभ मुहूर्त
समय = 7:11PMसे 8:16PM
अवधि = 1 घण्टा 5 मिनट्स
प्रदोष काल = 5:43PM से 8:16PM
वृषभ काल = 7:11PM से 9:06PM
अमावस्या तिथि प्रारम्भ = 19.10.2017 को 12:13 AM बजे
अमावस्या तिथि समाप्त = 20.10.2017 को 12:41AM बजे
दीवाली लक्ष्मी पूजा महानिशिता काल शुभ मुहूर्त
समय = 23:40 से 24:31+ (20.10.2017 को 00:31) *(स्थिर लग्न के बिना)
अवधि = 0 घण्टे 51 मिनट्स
महानिशिता काल = 23:40 से 24:31+ (20.10.2017 को 00:31)
सिंह काल = 25:41+ (20.10.2017 को 01:41) से 27:59+ (20.10.2017 को 03:59)
दीवाली लक्ष्मी पूजा चौघड़िया शुभ मुहूर्त
प्रातःकाल मुहूर्त (चर, लाभ, अमृत) = 06:28AM – 07:53AM
अपराह्न मुहूर्त (शुभ) = 04:19 PM– 08:55 PM
सायंकाल मुहूर्त (शुभ, अमृत, चर) = 12:06 AM– 12:41 AM
गृहस्थ और व्यापारी वर्ग के लोगो के लिए लक्ष्मी पूजा को प्रदोष काल के दौरान ही किया जाना शुभ माना जाता है जो कि सूर्यास्त के बाद प्रारम्भ होता है और लगभग 1 घण्टे 05 मिनट तक रहता है ।
महानिशिता काल तांत्रिक समुदायों और पण्डितों के लिए होता है । महानिशीता काल में मुख्यतः तांत्रिक कार्य, ज्योतिषविद, वेद् आरम्भ, कर्मकाण्ड, अघोरी, यंत्र-मंत्र-तंत्र सिद्धि साधना कार्य व विभिन्न शक्तियों का पूजन करते हैं एवं शक्तियों का आवाहन करना, मन्त्र शक्ति जागृत करना, मंत्रो को जगाना आदि शुभ रहता है।
लक्ष्मी पूजा को करने के लिए चौघड़िया मुहूर्त विशेषकर व्यापारी समुदाय के लिए और यात्रा के लिए उपयुक्त होता है । अतः इस विशेष कल में व्यापारी वर्ग को चाहिए की धन लक्ष्मी का आहवाहन एवं पूजन, गल्ले की पूजा तथा हवन इत्यादि कार्य सम्पूर्ण करें।
लक्ष्मी पूजन सामग्री
यहाँ पर बताई जा रही पूजन आदि की सामग्री की कोई बाध्यता नहीं है, आप अपने श्रद्धा और आर्थिक स्तिथि के अनुसार पूजन सामग्री का चयन कर सकते है । क्योंकि भगवान सच्ची भक्ति और भाव के भूखे है न की आप के द्वारा चढ़ाये जाने वाले पूजन सामग्री के…
1. लक्ष्मी व श्री गणेश की मूर्तियां (बैठी हुई मुद्रा में) अथवा चित्र।
2. देवी देवताओ के लिए लाल सूति आसन और वस्त्र, वस्त्र लाल अथवा पीले रंग का होना उत्तम रहता है।
3. केशर, रोली-मौली(कलावा), चावल, पान, सुपारी, फल – फूल, दूध, खील, बताशे, सिंदूर, शहद, सिक्के, लौंग।
4. सूखे मेवे, मिठाई, दही, गंगाजल, धूप, अगरबत्ती, 11 दीपक
5. रूई तथा नारियल और मिट्टी अथवा तांबे का कलश रखना उत्तम है।
दीवाली पूजन विधि
सबसे पहले पूजा स्थल की साफ सफाई कर ले । इसके बाद अपने आपको तथा आसन को, पूजन सामग्रियों को इस मंत्र से शुद्धिकरण के लिए इस मंत्र का जाप करे –
“ऊं अपवित्र : पवित्रोवा सर्वावस्थां गतोऽपिवा।
य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तर: शुचि :॥”
पृथ्विति मंत्रस्य मेरुपृष्ठः ग षिः सुतलं छन्दः
कूर्मोदेवता आसने विनियोगः॥
इन मंत्रों से अपने ऊपर तथा आसन पर 3-3 बार कुशा या पुष्पादि से छींटें लगायें फिर आचमन करें –पुष्प, चम्मच या अंजुलि से एक बूंद पानी अपने मुंह में छोड़िए और बोलिए-
ॐ केशवाय नमः
और फिर एक बूंद पानी अपने मुंह में छोड़िए और बोलिए-
ॐ नारायणाय नमः
फिर एक तीसरी बूंद पानी की मुंह में छोड़िए और बोलिए-
ॐ वासुदेवाय नमः
फिर हाथ धोएं, पुन: आसन शुद्धि मंत्र बोलें-
ऊं पृथ्वी त्वयाधृता लोका देवि त्यवं विष्णुनाधृता।
त्वं च धारयमां देवि पवित्रं कुरु चासनम्॥
शुद्धि और आचमन के बाद चौकी सजाये चौकी पर माँ लक्ष्मी और गणेश की मूर्तियाँ विराजमान करे ।
मूर्तियों को विराजमान करने से पहले यह सुनश्चित अवश्य कर ले की मूर्तियों का मुख पूर्व या पश्चिम दिशा में हो और भगवान गणेश की मूर्ति माँ लक्ष्मी की बायीं ओर ही हो पूजनकर्ता का मुख मूर्तियों के सामने की तरफ हो।
अब कलश को माँ लक्ष्मी के सामने मुट्ठी भर चावलो के ऊपर स्थापित कर दे कलश के मुख पर रक्षा सूत्र बांध ले और चारो तरफ कलश पर रोली से स्वस्तिक या ॐ बना ले।
कलश के अंदर साबुत सुपारी, दूर्वा, फूल, सिक्का डालें ।
उसके ऊपर आम या अशोक के पत्ते रखने चाहिए उसके ऊपर नारियल, जिस पर लाल कपडा लपेट कर मोली लपेट दें।
अब नारियल को कलश पर रखें।
ध्यान रहे कि नारियल का मुख उस सिरे पर हो, जिस तरफ से वह पेड़ की टहनी से जुड़ा होता है।
कलश वरुण का प्रतीक है ।
इस प्रक्रिया के बाद गणेशजी की ओर त्रिशूल और माँ लक्ष्मीजी की ओर श्री का चिह्न बनाएँ उसके सामने चावल का ढेर लगाकर नौ ढेरियाँ बनाएँ ।
छोटी चौकी के सामने तीन थाली व जल भरकर कलश रखें ।
दो दिप को जलाये – एक घी की दीपक और दूसरें को तेल से भर कर और एक दीपक को चौकी के दाईं ओर और दूसरें को लक्ष्मी-गणेश की प्रतिमाओं के चरणों में रखें।
तीन थालियों में निम्न सामान रखें।
1. ग्यारह दीपक (पहली थाली में)
2. खील, बताशे, मिठाई, वस्त्र, आभूषण, चन्दन का लेप सिन्दूर कुंकुम, सुपारी, पान (दूसरी थाली में)
3. फूल, दुर्वा चावल, लौंग, इलायची, केसर-कपूर, हल्दी चूने का लेप, सुगंधित पदार्थ, धूप, अगरबत्ती, एक दीपक. (तीसरी थाली में)
इन थालियों के सामने पूजा करने वाला स्वंय बैठे। परिवार के अन्य सदस्य आपकी बाईं ओर बैठें। शेष सभी परिवार के सदस्यों के पीछे बैठे।
आप हाथ में अक्षत, पुष्प और जल ले लीजिए। कुछ द्रव्य (रुपये, पैसे 1, 2, 5, 11 आदि) भी ले लीजिए यह सब हाथ में लेकर संकल्प मंत्र का जाप करे ।
ऊं विष्णुर्विष्णुर्विष्णु:, ऊं तत्सदद्य श्री पुराणपुरुषोत्तमस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीय पराद्र्धे श्री श्वेतवाराहकल्पे सप्तमे वैवस्वतमन्वन्तरे,
अष्टाविंशतितमे कलियुगे, कलिप्रथम चरणे जम्बुद्वीपे भरतखण्डे आर्यावर्तान्तर्गत ब्रह्मवर्तैकदेशे पुण्य (अपने नगर/गांव का नाम लें) क्षेत्रे बौद्धावतारे वीर विक्रमादित्यनृपते : २०६७, तमेऽब्दे शोभन नाम संवत्सरे दक्षिणायने/उत्तरायणे हेमंत ऋतो महामंगल्यप्रदे मासानां मासोत्तमे कार्तिक मासे कृष्ण पक्षे अमावस तिथौ (जो वार हो) शुक्र वासरे स्वाति नक्षत्रे प्रीति योग नाग करणादिसत्सुशुभे योग (गोत्र का नाम लें) गोत्रोत्पन्नोऽहं अमुकनामा (अपना नाम लें) सकलपापक्षयपूर्वकं सर्वारिष्ट शांतिनिमित्तं सर्वमंगलकामनया– श्रुतिस्मृत्यो- क्तफलप्राप्तर्थं— निमित्त महागणपति नवग्रहप्रणव सहितं कुलदेवतानां पूजनसहितं स्थिर लक्ष्मी महालक्ष्मी देवी पूजन निमित्तं एतत्सर्वं शुभ-पूजोपचारविधि सम्पादयिष्ये।
अर्थात संकल्प कीजिए कि मैं अमुक व्यक्ति अमुक स्थान व समय पर अमुक देवी-देवता की पूजा करने जा रहा हूं जिससे मुझे शास्त्रोक्त फल प्राप्त हो।
सबसे पहले गणेश जी पूजन करे तब माँ लक्ष्मी का।
दिवाली गणपति पूजन विधि
हाथ में पुष्प और चावल का अक्षत लेकर गणपति का ध्यान करें।
मंत्र पढ़ें-
गजाननम्भूतगणादिसेवितं कपित्थ जम्बू फलचारुभक्षणम्।
उमासुतं शोक विनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपंकजम्।
आवाहन: ऊं गं गणपतये इहागच्छ इह तिष्ठ।।
इतना कहकर पात्र में अक्षत छोड़ें।
अर्घा में जल लेकर बोलें-
एतानि पाद्याद्याचमनीय-स्नानीयं, पुनराचमनीयम् ऊं गं गणपतये नम:।
रक्त चंदन लगाएं –
इदम रक्त चंदनम् लेपनम् ऊं गं गणपतये नम:
सिन्दूर चढ़ाएं –
इदं सिन्दूराभरणं लेपनम् ऊं गं गणपतये नम:
दुर्वा और विल्बपत्र भी गणेश जी को चढ़ाएं।
गणेश जी को वस्त्र पहनाएं –
इदं रक्त वस्त्रं ऊं गं गणपतये समर्पयामि।
पूजन के बाद गणेश जी को प्रसाद अर्पित करें-
इदं नानाविधि नैवेद्यानि ऊं गं गणपतये समर्पयामि:।
इसी प्रकार से अन्य सभी देवताओं की पूजा करें। जिस देवता की पूजा करनी हो गणेश के स्थान पर उस देवता का नाम लें।
दिवाली लक्ष्मी पूजन विधि
सबसे पहले माता लक्ष्मी का ध्यान करे-ं
ॐ या सा पद्मासनस्था, विपुल-कटि-तटी, पद्म-दलायताक्षी।
गम्भीरावर्त-नाभिः, स्तन-भर-नमिता, शुभ्र-वस्त्रोत्तरीया।।
लक्ष्मी दिव्यैर्गजेन्द्रैः। मणि-गज-खचितैः, स्नापिता हेम-कुम्भैः।
नित्यं सा पद्म-हस्ता, मम वसतु गृहे, सर्व-मांगल्य-युक्ता।।
इसके बाद लक्ष्मी देवी की प्रतिष्ठा (स्थापित) करें। हाथ में अक्षत लेकर बोले-ं
“ॐ भूर्भुवः स्वः महालक्ष्मी, इहागच्छ इह तिष्ठ, एतानि पाद्याद्याचमनीय-स्नानीयं, पुनराचमनीयम्।”
-प्रतिष्ठा के बाद स्नान कराएं :
ॐ मन्दाकिन्या समानीतैः, हेमाम्भोरुह-वासितैः स्नानं कुरुष्व देवेशि, सलिलं च सुगन्धिभिः।। ॐ लक्ष्म्यै नमः।।
रक्त चंदन लगाए-
इदं रक्त चंदनम् लेपनम् ।
इदं सिन्दूराभरणं से सिन्दूर लगाएं।
‘ॐ मन्दार-पारिजाताद्यैः, अनेकैः कुसुमैः शुभैः। पूजयामि शिवे, भक्तया, कमलायै नमो नमः।। ॐ लक्ष्म्यै नमः, पुष्पाणि समर्पयामि।’
इस मंत्र से पुष्प चढ़ाएं फिर माला पहनाएं।
अब लक्ष्मी देवी को इदं रक्त वस्त्र समर्पयामि कहकर लाल वस्त्र पहनाएं।
लक्ष्मी देवी की पूजा के बाद भगवान विष्णु एवं शिव जी पूजा करनी चाहिए फिर गल्ले की पूजा करें।
लक्ष्मी पूजा के समय लक्ष्मी मंत्र का उच्चारण करते रहें –
इस मंत्र का कम से कम 11 माला कमलगट्टे की माला से जप करें और अधिक आपके सामर्थ्यानुसार 51, 108, 11, 121 माला जपें
मन्त्र
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नम:
पूजन के पश्चात सपरिवार आरती और क्षमा प्रार्थना करें-
क्षमा प्रार्थना
न मंत्रं नोयंत्रं तदपिच नजाने स्तुतिमहो
न चाह्वानं ध्यानं तदपिच नजाने स्तुतिकथाः ।
नजाने मुद्रास्ते तदपिच नजाने विलपनं
परं जाने मातस्त्व दनुसरणं क्लेशहरणं
दीपक कहाँ रखने चाहिए
वैसे तो अपनी श्रद्धा के अनुसार दीपक जलाकर रखे जा सकते है लेकिन कुछ जगह दीपक जलाकर अवश्य रखने चाहिए ,जो इस प्रकार है :
— घी का दीपक इष्ट देव के यहाँ जहाँ रोज पूजा करते है।
— एक दीपक तुलसी के तले।
— घर के मुख्य द्वार पर दोनों तरफ एक एक ।
— एक दीपक घर के दक्षिणी पश्चिमी कोने पर।
— एक दीपक रसोई घर में।
— एक दीपक मटकी वाले परिन्डे पर(जल के जल/पानी स्रोतों पर)
— एक दीपक पास में यदि कोई मंदिर है तो वहाँ।
— एक दीपक पीपल के पेड़ के नीचे।
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