धन क्यों जरूरी
धन समाज में व्यक्ति के मान-सम्मान में वृद्धि करता है और उसकी एक अच्छी छवि का निर्माण करता है। हम सभी व्यापार, अच्छी नौकरी, अच्छे व्यवसाय आदि के माध्यम से अधिक से अधिक धन कमाकर धनी होना चाहते हैं ताकि, हम आधुनिक समय की बढ़ती हुई सभी आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकें।
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आज के इस युग में प्रत्येक व्यक्ति अच्छे रोजगार की प्राप्ति में लगा हुआ है पर बहुत प्रयत्न करने पर भी अच्छी नौकरी नहीं मिलती है | रोजगार सम्बन्धी किसी भी समस्या के समाधान के लिए इस मन्त्र का प्रतिदिन 11बार सुबह और 11बार शाम को जप करे |
धन का महत्व क्या
शास्त्रों में मनुष्य जीवन के लिए चार पुरुषार्थ कहे गए हैं-धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष। इस विषय में
सरलता से कहा जाए तो यह है धर्मपूर्वक अर्थ [धन, संपत्ति] कमाते हुए अपनी इच्छाओं का पालन करना और
धर्म पूर्वक कार्य करते हुए मोक्ष प्राप्त करना अर्थात् बार-बार जीवन-मरण के दु:ख
से छुटकारा पाकर परम् शांति प्राप्त करना। धर्म को शास्त्रों में अनेक प्रकार से
परिभाषित किया है। मनुस्मृति के अनुसार आचार: परमो धमर्: अर्थात् आचार ही परम धर्म
है। जो संसार को धारण कर रहा है और जिसे धारण करना संसार का कर्तव्य है, वह धर्म है, दूसरे रूप में कहें तो धर्म
ही आचार है। वेद और वेदानुकूल स्मृतियों में सत्य बोलना और सत्कार्यो व सद्विचारों
को रखते हुए व्यवहार करना ही आचार है। इसके साथ सत्य हमेशा जुड़ा रहने से इसे
सदाचार भी कहा जाता है। समस्त मानवों में यह सदाचार समान होने से सार्वभौमिक मानव
धर्म समान है। मनुष्य को जीने के लिए धन की आवश्यकता होती है। यजुर्वेद के एक
मंत्र में कहा गया है कि-वयं स्थाम पतयो रयीणाम् अर्थात् हम धन ऐश्वर्यो के स्वामी
हों। वेद में अनेक ऐसे मंत्र हैं जिनमें कहा गया है कि हम पुरुषार्थ करते हुए धन व
ऐश्वर्य प्राप्त करें, जिससे
घरों में धन-धान्य की कमी न रहे,
परंतु यह भी कहा गया है कि हम पाप से प्राप्त धन को अपने पास से
हटाएं, शुभ लक्ष्मी हमारे पास रहे
और पाप से प्राप्त लक्ष्मी नष्ट हो जाए। धन प्राप्ति के लिए अपनाया गया साधन भी
उत्तम होना चाहिए। बिना परिश्रम किए लूट, चोरी या भ्रष्टाचार से कमाया गया धन हितकारी नहीं है। यदि हम
धर्मपूर्वक जीवन व्यतीत करते हैं तो धन की आवश्यकता सीमित होती है। धन हमें अपनी
योग्यता-परिश्रम के बल पर ही प्राप्त करना चाहिए। आज संचार के अधिक साधन होने के
कारण व बचपन से ही उचित संस्कार न मिलने के कारण हमारी मनोवृत्ति भौतिकता की ओर
अग्रसर हो गई है और हम येन केन प्रकारेण धन प्राप्त करना चाहते हैं, परंतु धन की शुद्धता भी
आवश्यक है, जिसके
लिए साधनों की पवित्रता भी आवश्यक है।
काली वाण : प्रथम वाण
ॐ नमः काली कंकाली महाकाली
मुख सुन्दर जिए ब्याली
चार वीर भैरों चौरासी
बीततो पुजू पान ऐ मिठाई
अब बोलो काली की दुहाई |
काली वाण : द्वितीय वाण
ॐ काली कंकाली महाकाली
मुख सुन्दर जिए ज्वाला वीर
वीर
भैरू चौरासी बता तो पुजू
पान मिठाई |
काली वाण : तृतीय वाण
ॐ काली कंकाली महाकाली
सकल सुंदरी जीहा बहालो
चार वीर भैरव चौरासी
तदा तो पुजू पान मिठाई
अब बोलो काली की दुहाई |
काली वाण : चतुर्थ वाण
ॐ काली कंकाली महाकाली
सर्व सुंदरी जिए बहाली
चार वीर भैरू चौरासी
तण तो पुजू पान मिठाई
अब राज बोलो
काली की दुहाई |
काली वाण : पंचम वाण
ॐ नमः काली कंकाली महाकाली
मख सुन्दर जिए काली
चार वीर भैरू चौरासी
तब राज तो पुजू पान मिठाई
अब बोलो काली की दोहाई |
काली पञ्च वाण सिद्ध करने की विधि / काली पञ्च वाण पाठ करने की विधि :
इस मन्त्र को सिद्ध करने की कोई आवश्यकता नहीं है | यह मन्त्र स्वयं सिद्ध है केवल माँ काली के सामने अगरबती जलाकर 11 बार सुबह और 11 बार शाम को जप कर ले | मन्त्र एक दम शुद्ध है भाषा के नाम पर हेर फेर न करे | शाबर मन्त्र जैसे लिखे हो वैसे ही पढने पर फल देते है शुद्ध करने पर निष्फल हो जाते है |
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